नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कहा है कि किसी आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को केवल इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता है क्योंकि अपराध करने वाले कुछ अन्य व्यक्तियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर नहीं किया गया है.
न्यायमूर्ति एम आर शाह (Justices M R Shah) और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्न (Justices B V Nagarathna) की पीठ ने कहा कि मुकदमे के दौरान यदि यह पाया जाता है कि अन्य आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आरोप-पत्र दायर नहीं किया गया है, तो अदालत उन्हें दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 319 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए आरोपी के रूप में पेश कर सकती है.
पीठ ने हाल के एक आदेश में कहा, 'किसी आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही केवल इस आधार पर खारिज नहीं की जा सकती कि अपराध करने वाले कुछ व्यक्तियों के खिलाफ आरोप-पत्र दायर नहीं किया गया है और उसका नाम जांच के बाद उसके खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनने की जरूरत महसूस करते हुए आरोप-पत्र में दायर किया गया है.'
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शीर्ष अदालत कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सुवर्णा सहकारी बैंक लिमिटेड द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश), 408 (क्लर्क द्वारा आपराधिक न्यास भंग), 409 (सरकारी कर्मचारी द्वारा आपराधिक न्यास भंग, धारा 420 (धोखाधड़ी) और 149 (गैर-कानूनी सभा का प्रत्येक सदस्य जो सामान्य उद्देश्य के अभियोजन में किए गए अपराध का दोषी है)के तहत एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी थी.
शिकायतकर्ता बैंक ने अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट, बैंगलोर की अदालत में शिकायत दर्ज की और भादंसं की विभिन्न धाराओं के तहत चिकपेट पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज की गई. जांच पूरी होने पर मामले में आरोपी नंबर एक के खिलाफ आरोप-पत्र दायर किया गया.
आरोपी ने उच्च न्यायालय का रुख किया, जिसने उसके खिलाफ कार्यवाही को इस आधार पर रद्द कर दिया था कि पुलिस रिपोर्ट में मूल आरोपी नंबर दो और तीन की अनुपस्थिति में, केवल आरोपी नंबर 1 के खिलाफ आरोप-पत्र दायर नहीं किया जा सकता.
(पीटीआई-भाषा)