श्रीनगर : लॉकडाउन (Lockdown) के चलते कुछ इलाकों में ढील दी जा रही है, लेकिन स्कूल, कॉलेज व अन्य शिक्षण संस्थान पूरी तरह से बंद हैं. नतीजा दो साल से बच्चे घरों में रहने को मजबूर हैं. इस वजह से बच्चे डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं.
जम्मू-कश्मीर (jammu and kashmir) में पिछले एक साल से जनजीवन थम सा गया है. वहीं शिक्षा सिर्फ ऑनलाइन तरीकों तक ही सिमट कर रह गई है. यहां पर अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से शिक्षा व्यवस्था ठप हो गई है और केवल परीक्षाओं तक ही सीमित रह गई है.
शिक्षण संस्थानों के बंद रहने से बच्चों के घरों में कैद रहने से अधिक उदास होते जा रहे हैं. वहीं ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा से बच्चों में तनाव बढ़ रहा है. इस बारे में बच्चों का कहना है कि भले ही वे घर पर ही पढ़ रहे हैं, लेकिन सामान्य तरीके से क्लास में की जाने वाली पढ़ाई का विकल्प नहीं बन सकते.
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इस संबंध में कश्मीर विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई कर रहे गाजी मुजम्मिल का कहना है कि ऑनलाइन शिक्षा के जरिए विश्वविद्यालय परिसर का माहौल और शिक्षकों या अन्य सहयोगियों के साथ बातचीत आदि की वह भावना पैदा नहीं हो सकती है.
वहीं मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि खासकर लॉकडाउन के दौरान बच्चों और बुजुर्गों में डिप्रेशन का खतरा ज्यादा होता है, क्योंकि बच्चे शिक्षण संस्थानों और खेल से वंचित होते हैं. हालांकि जम्मू-कश्मीर में प्रशासन ने लॉकडाउन में ढील दी है, लेकिन शिक्षण संस्थान 15 जून तक बंद रहेंगे. इससे यह स्पष्ट है कि तब तक बच्चों को अपने घरों में ही रहना होगा.
इस बारे में डॉ. जुनैद नबी का कहना है कि इस दौरान माता-पिता की अधिक जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों की यथासंभव देखभाल करें ताकि उन्हें तनाव से बचाया जा सके.