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कोरोना वायरस फैलने के लिए काले कार्बन उत्सर्जन का सहारा लेता है : अध्ययन

हाल ही की एक शोध रिपोर्ट में पता चला है कि कोरोना वायरस फैलने के लिए काले कार्बन उत्सर्जन का सहारा लेता है. यह काला कार्बन अलग-अलग ईंधन के जलने पर उत्सर्जित होता है. शोध के लेखको ने कहा कि कई अध्ययन में कोविड-19 के बढ़ते मामलों को वायु प्रदूषण से जोड़ा गया है. पढ़ें पूरी खबर...

कोरोना वायरस
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Published : Jul 18, 2021, 8:03 PM IST

नई दिल्ली : पुणे स्थित भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) द्वारा किए गए एक नए शोध में सामने आया है कि कोरोना वायरस फैलने के लिए जैव ईंधन के जलने के दौरान उत्सर्जित काले कार्बन का ही सहारा लेता है और यह अन्य अभिकणीय पदार्थ (पीएम) 2.5 कणों के साथ नहीं फैलता है.

जर्नल 'एल्सेवियर' में प्रकाशित शोध सितंबर से दिसंबर 2020 के दौरान दिल्ली से एकत्रित पीएम 2.5 और काला कार्बन के 24 घंटे के औसत आंकड़ों पर आधारित है.

पीएम 2.5 ऐसे सूक्ष्म कण होते हैं जो सांस के द्वारा शरीर में गहराई से प्रवेश करते हैं और फेफड़ों एवं श्वसन प्रणाली में सूजन पैदा करते हैं. इसके कारण कई बीमारियों होने के साथ ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी कमी आती है. पीएम 2.5 में अन्य सूक्ष्म कणों के साथ ही काला कार्बन भी शुमार रहता है. अलग-अलग तरह के ईंधन के जलने पर काला कार्बन उत्सर्जन होता है.

शोध के लेखक अदिति राठौड़ और गुफरान बेग ने कहा कि कई अध्ययन में कोविड-19 के बढ़ते मामलों को वायु प्रदूषण से जोड़ा गया है. उन्होंने कहा कि इटली में किए गए एक शोध में पीएम 2.5 के स्तर और कोरोना वायरस के मामलों का आपस में संबंध दर्शाया गया है.

वरिष्ठ वैज्ञानिक बेग ने कहा, हालांकि, हमारे शोध में यह दलील दी गई है कि पीएम 2.5 के सभी कणों में कोरोना वायरस नहीं होता है. लेकिन कोरोना वायरस फैलने के लिए जैव ईंधन के जलने के दौरान उत्सर्जित काला कार्बन का ही सहारा लेता है.

पढ़ें : जानें, वैज्ञानिक कैसे करते हैं कोरोना के नए वेरिएंट की पहचान

शोध में कहा गया है कि दिल्ली कोरोना वायरस संक्रमण से बुरी तरह प्रभावित रही. हालांकि, जब लगभग छह महीने बाद हालात सामान्य होने के साथ मृतक संख्या में कमी दर्ज की जाने लगी, तो अचानक ही संक्रमण के नए मामलों में 10 गुना से अधिक का इजाफा दर्ज किया गया. ऐसा पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की घटनाओं के बाद देखने में आया.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : पुणे स्थित भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) द्वारा किए गए एक नए शोध में सामने आया है कि कोरोना वायरस फैलने के लिए जैव ईंधन के जलने के दौरान उत्सर्जित काले कार्बन का ही सहारा लेता है और यह अन्य अभिकणीय पदार्थ (पीएम) 2.5 कणों के साथ नहीं फैलता है.

जर्नल 'एल्सेवियर' में प्रकाशित शोध सितंबर से दिसंबर 2020 के दौरान दिल्ली से एकत्रित पीएम 2.5 और काला कार्बन के 24 घंटे के औसत आंकड़ों पर आधारित है.

पीएम 2.5 ऐसे सूक्ष्म कण होते हैं जो सांस के द्वारा शरीर में गहराई से प्रवेश करते हैं और फेफड़ों एवं श्वसन प्रणाली में सूजन पैदा करते हैं. इसके कारण कई बीमारियों होने के साथ ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी कमी आती है. पीएम 2.5 में अन्य सूक्ष्म कणों के साथ ही काला कार्बन भी शुमार रहता है. अलग-अलग तरह के ईंधन के जलने पर काला कार्बन उत्सर्जन होता है.

शोध के लेखक अदिति राठौड़ और गुफरान बेग ने कहा कि कई अध्ययन में कोविड-19 के बढ़ते मामलों को वायु प्रदूषण से जोड़ा गया है. उन्होंने कहा कि इटली में किए गए एक शोध में पीएम 2.5 के स्तर और कोरोना वायरस के मामलों का आपस में संबंध दर्शाया गया है.

वरिष्ठ वैज्ञानिक बेग ने कहा, हालांकि, हमारे शोध में यह दलील दी गई है कि पीएम 2.5 के सभी कणों में कोरोना वायरस नहीं होता है. लेकिन कोरोना वायरस फैलने के लिए जैव ईंधन के जलने के दौरान उत्सर्जित काला कार्बन का ही सहारा लेता है.

पढ़ें : जानें, वैज्ञानिक कैसे करते हैं कोरोना के नए वेरिएंट की पहचान

शोध में कहा गया है कि दिल्ली कोरोना वायरस संक्रमण से बुरी तरह प्रभावित रही. हालांकि, जब लगभग छह महीने बाद हालात सामान्य होने के साथ मृतक संख्या में कमी दर्ज की जाने लगी, तो अचानक ही संक्रमण के नए मामलों में 10 गुना से अधिक का इजाफा दर्ज किया गया. ऐसा पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की घटनाओं के बाद देखने में आया.

(पीटीआई-भाषा)

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