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उदयपुर चिंतन शिविर में 'गठबंधन की बाधाओं' पर मंथन करेगी कांग्रेस

2024 के लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने के लिए समान विचारधारा वाले दलों के साथ गठबंधन की आवश्यकता होगी, लेकिन आगे की राह आसान नहीं होगी. इन तमाम पहलुओं सहित पार्टी क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन को लेकर भी चिंतन शिविर में विचार मंथन होगा. पेश है वरिष्ठ पत्रकार अमित अग्निहोत्री का एक विश्लेषण.

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कांग्रेस (फाइल फोटो)
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Published : May 8, 2022, 6:08 PM IST

नई दिल्ली : राजस्थान के उदयपुर में होने वाले कांग्रेस के तीन दिवसीय चिंतन शिविर के दौरान पार्टी गठबंधन की बाधाओं पर विचार-विमर्श करेगी. इस दौरान पार्टी के 400 से अधिक नेता 2024 के होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए एक व्यापक रणनीति तैयार करने के लिए मंथन करेंगे. हालांकि कांग्रेस के मौजूदा सहयोगी में महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और शिवसेना, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा और तमिलनाडु में द्रमुक शामिल हैं.

पार्टी सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने के लिए समान विचारधारा वाले दलों के साथ गठबंधन की जरूरत होगी, लेकिन आगे की राह भी आसान नहीं होगी. इस बारे में एआईसीसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि किसी भी राष्ट्रीय विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस स्वाभाविक नेता है. उन्होंने कहा कि चिंतन शिविर में इस मुद्दे पर भी विचार-विमर्श किया जाएगा. साथ ही पार्टी को पुनर्जीवित करने और अन्य सभी चुनौतियों पर चर्चा की जाएगी.

सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस के सामने एक प्रमुख चुनौती यह भी है कि वह कई राज्यों में खुद मजबूत मानते हुए क्षेत्रीय दलों के खिलाफ रहती है, ऐसे में उन दलों के साथ लोकसभा सीटों के साझा करने को लेकर फार्मूला तैयार करना कहीं ज्यादा आसान हो सकता है. इसी क्रम में पार्टी तेलंगाना की तरह कुछ राज्य में सख्त नहीं है. तेलंगाना में कांग्रेस सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति को अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखती है. इसी तरह पश्चिम बंगाल में पार्टी सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ है, जबकि पंजाब और दिल्ली में कांग्रेस सीधे तौर पर सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी से लड़ती है.

कांग्रेस नेता ने कहा कि उत्तर प्रदेश में पार्टी की बहुत सीमित मौजूदगी के मद्देनजर वहां पर पार्टी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे क्षेत्रीय दलों के साथ गठजोड़ को लेकर भी चर्चा करेगी. बता दें कि उत्तर प्रदेश के 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में सपा ने कांग्रेस के साथ समझौता किया था लेकिन यह गठबंधन अधिक समय तक चल नहीं सका था. बाद में दोनों पक्षों को अपनी गलती का अहसास हुआ था. यही वजह है कि 2022 में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन करने से इनकार कर दिया. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने मायावती को गठबंधन की पेशकश करने के साथ ही उन्हें मुख्यमंत्री पद का आश्वासन भी दिया लेकिन बसपा प्रमुख नहीं मानीं थीं.

ये भी पढ़ें - राजस्थानः उदयपुर में चिंतन के बाद कांग्रेस साधेगी आदिवासी बाहुल्य सीटें...बनाई ये योजना

उत्तर प्रदेश में सपा प्रमुख विपक्ष के रूप में उभरी है और वह 2024 में सत्तारूढ़ भाजपा को सीधे चुनौती देगी. जबकि कांग्रेस के रणनीतिकार समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने के मूड में होंगे. लेकिन क्या अखिलेश यादव अगले लोकसभा चुनावों को लेकर कांग्रेस के साथ गठबंधन किए जाने के पक्ष में होंगे, यह महत्वपूर्ण सवाल है. इसी तरह कांग्रेस ने कर्नाटक में 2018 में जनता दल (सेक्युलर) के साथ गठबंधन किया था, लेकिन गठबंधन सरकार गिरने के बाद 2019 दोनों दलों का गठबंधन टूट गया. अब 2023 में कर्नाटक का विधानसभा चुनाव कांग्रेस अकेले लड़ेगी.

नई दिल्ली : राजस्थान के उदयपुर में होने वाले कांग्रेस के तीन दिवसीय चिंतन शिविर के दौरान पार्टी गठबंधन की बाधाओं पर विचार-विमर्श करेगी. इस दौरान पार्टी के 400 से अधिक नेता 2024 के होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए एक व्यापक रणनीति तैयार करने के लिए मंथन करेंगे. हालांकि कांग्रेस के मौजूदा सहयोगी में महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और शिवसेना, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा और तमिलनाडु में द्रमुक शामिल हैं.

पार्टी सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने के लिए समान विचारधारा वाले दलों के साथ गठबंधन की जरूरत होगी, लेकिन आगे की राह भी आसान नहीं होगी. इस बारे में एआईसीसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि किसी भी राष्ट्रीय विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस स्वाभाविक नेता है. उन्होंने कहा कि चिंतन शिविर में इस मुद्दे पर भी विचार-विमर्श किया जाएगा. साथ ही पार्टी को पुनर्जीवित करने और अन्य सभी चुनौतियों पर चर्चा की जाएगी.

सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस के सामने एक प्रमुख चुनौती यह भी है कि वह कई राज्यों में खुद मजबूत मानते हुए क्षेत्रीय दलों के खिलाफ रहती है, ऐसे में उन दलों के साथ लोकसभा सीटों के साझा करने को लेकर फार्मूला तैयार करना कहीं ज्यादा आसान हो सकता है. इसी क्रम में पार्टी तेलंगाना की तरह कुछ राज्य में सख्त नहीं है. तेलंगाना में कांग्रेस सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति को अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखती है. इसी तरह पश्चिम बंगाल में पार्टी सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ है, जबकि पंजाब और दिल्ली में कांग्रेस सीधे तौर पर सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी से लड़ती है.

कांग्रेस नेता ने कहा कि उत्तर प्रदेश में पार्टी की बहुत सीमित मौजूदगी के मद्देनजर वहां पर पार्टी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे क्षेत्रीय दलों के साथ गठजोड़ को लेकर भी चर्चा करेगी. बता दें कि उत्तर प्रदेश के 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में सपा ने कांग्रेस के साथ समझौता किया था लेकिन यह गठबंधन अधिक समय तक चल नहीं सका था. बाद में दोनों पक्षों को अपनी गलती का अहसास हुआ था. यही वजह है कि 2022 में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन करने से इनकार कर दिया. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने मायावती को गठबंधन की पेशकश करने के साथ ही उन्हें मुख्यमंत्री पद का आश्वासन भी दिया लेकिन बसपा प्रमुख नहीं मानीं थीं.

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उत्तर प्रदेश में सपा प्रमुख विपक्ष के रूप में उभरी है और वह 2024 में सत्तारूढ़ भाजपा को सीधे चुनौती देगी. जबकि कांग्रेस के रणनीतिकार समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने के मूड में होंगे. लेकिन क्या अखिलेश यादव अगले लोकसभा चुनावों को लेकर कांग्रेस के साथ गठबंधन किए जाने के पक्ष में होंगे, यह महत्वपूर्ण सवाल है. इसी तरह कांग्रेस ने कर्नाटक में 2018 में जनता दल (सेक्युलर) के साथ गठबंधन किया था, लेकिन गठबंधन सरकार गिरने के बाद 2019 दोनों दलों का गठबंधन टूट गया. अब 2023 में कर्नाटक का विधानसभा चुनाव कांग्रेस अकेले लड़ेगी.

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