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कानूनी संरक्षक पर बॉम्बे HC ने पति की मृत्यु के बाद मां को बच्चों के कानूनी संरक्षक के रूप में मान्यता दी - Natural Mother As Legal Guardian

बॉम्बे हाई कोर्ट ने पति की मौत के मामले में प्राकृतिक मां को बच्चों की कानूनी अभिभावक के रूप में मान्यता प्रदान की है. पढ़िए पूरी खबर... Bombay HC On Legal Guardian, Bombay High Court, Natural Mother As Legal Guardian

Bombay High Court
बॉम्बे हाई कोर्ट
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 17, 2023, 3:33 PM IST

मुंबई : बॉम्बे हाई कोर्ट ने पति की मौत के मामले में प्राकृतिक मां को बच्चों की कानूनी अभिभावक के रूप में मान्यता प्रदान की है. पति की मौत के बाद दोनों जुड़वा बच्चों के कानूनी अभिभावक की मान्यता देने की मांग को लेकर एक याचिका दायर की गई थी.

याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस रियाज चागला ने मां को कानूनी अभिभावक के रूप मे मंजूरी दे दी है. कोर्ट ने इस संबंध में 17 नवंबर को आदेश जारी किया है. याचिकाकर्ता के पति की 2008 में मौत हो गई थी. इस महिला का 24 साल का बेटा है. इसके अलावा 15 साल के दो जुड़वां बच्चे हैं, लेकिन इन जुड़वा बच्चों में से एक 15 साल की दिव्यांग लड़की है.

बताया गया कि इस लड़की के पुनर्वास के लिए उस तमिलनाडु के होसुर में पुनर्वासित किया जा सकता है. साथ ही उस लड़की के पास उत्तराधिकारी के रूप में पिता के नाम की संपत्ति है. यदि संपत्ति को बेचा जाए तो यह पुनर्वास संभव है. इसलिए मां को कानूनी अभिभावक घोषित करने के लिए यह याचिका दायर की गई है. लड़की के पुनर्वास के लिए प्रति माह लगभग एक लाख 25 हजार रुपये के हिसाब से पुनर्वास के लिए कुल तीन करोड़ रुपये उनके ट्रस्ट को दिए जाने की आवश्यकता है. इसलिए महिला की ओर से वकील ने बॉम्बे हाई कोर्ट में मुद्दा उठाया कि यह प्रक्रिया कोर्ट की कानूनी मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती.

वकील ने कोर्ट में यह भी बताया कि मां ने महिला के बड़े बच्चे की संरक्षकता को लेकर अनापत्ति प्रमाण पत्र दिया है. पक्षों को सुनने के बाद, न्यायमूर्ति रियाज़ छागला ने कहा कि महिला को अपने दो बच्चों द्वारा विरासत में मिली संपत्ति का हिस्सा बेचने के लिए कानूनी अभिभावक के रूप में मान्यता दी जा रही है, क्योंकि वह उनकी प्राकृतिक मां भी है. इस दौरान कोर्ट ने स्पष्ट किया यह भी सुनिश्चित करें की स्थायी देखभाल की जाए. इस संबंध में वकील विनोद सातपुते ने कहा कि यह हाई कोर्ट का सराहनीय फैसला है.

वकील सातपुते ने बताया कि दो जुड़वा बच्चे हैं, इनमें एक लड़की है और वह विकलांग है. पिता की संपत्ति बच्चों के नाम होती है. उन्होंने कहा कि कानूनी अभिभावक की मंजूरी के बिना मां इससे निपट नहीं सकती. इससे बेटी के पुनर्वास में मदद मिलेगी.

ये भी पढ़ें - केरल की नर्स को यमन में सुनाई गई फांसी की सजा, सिर्फ राष्ट्रपति ही दे सकते हैं माफी

मुंबई : बॉम्बे हाई कोर्ट ने पति की मौत के मामले में प्राकृतिक मां को बच्चों की कानूनी अभिभावक के रूप में मान्यता प्रदान की है. पति की मौत के बाद दोनों जुड़वा बच्चों के कानूनी अभिभावक की मान्यता देने की मांग को लेकर एक याचिका दायर की गई थी.

याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस रियाज चागला ने मां को कानूनी अभिभावक के रूप मे मंजूरी दे दी है. कोर्ट ने इस संबंध में 17 नवंबर को आदेश जारी किया है. याचिकाकर्ता के पति की 2008 में मौत हो गई थी. इस महिला का 24 साल का बेटा है. इसके अलावा 15 साल के दो जुड़वां बच्चे हैं, लेकिन इन जुड़वा बच्चों में से एक 15 साल की दिव्यांग लड़की है.

बताया गया कि इस लड़की के पुनर्वास के लिए उस तमिलनाडु के होसुर में पुनर्वासित किया जा सकता है. साथ ही उस लड़की के पास उत्तराधिकारी के रूप में पिता के नाम की संपत्ति है. यदि संपत्ति को बेचा जाए तो यह पुनर्वास संभव है. इसलिए मां को कानूनी अभिभावक घोषित करने के लिए यह याचिका दायर की गई है. लड़की के पुनर्वास के लिए प्रति माह लगभग एक लाख 25 हजार रुपये के हिसाब से पुनर्वास के लिए कुल तीन करोड़ रुपये उनके ट्रस्ट को दिए जाने की आवश्यकता है. इसलिए महिला की ओर से वकील ने बॉम्बे हाई कोर्ट में मुद्दा उठाया कि यह प्रक्रिया कोर्ट की कानूनी मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती.

वकील ने कोर्ट में यह भी बताया कि मां ने महिला के बड़े बच्चे की संरक्षकता को लेकर अनापत्ति प्रमाण पत्र दिया है. पक्षों को सुनने के बाद, न्यायमूर्ति रियाज़ छागला ने कहा कि महिला को अपने दो बच्चों द्वारा विरासत में मिली संपत्ति का हिस्सा बेचने के लिए कानूनी अभिभावक के रूप में मान्यता दी जा रही है, क्योंकि वह उनकी प्राकृतिक मां भी है. इस दौरान कोर्ट ने स्पष्ट किया यह भी सुनिश्चित करें की स्थायी देखभाल की जाए. इस संबंध में वकील विनोद सातपुते ने कहा कि यह हाई कोर्ट का सराहनीय फैसला है.

वकील सातपुते ने बताया कि दो जुड़वा बच्चे हैं, इनमें एक लड़की है और वह विकलांग है. पिता की संपत्ति बच्चों के नाम होती है. उन्होंने कहा कि कानूनी अभिभावक की मंजूरी के बिना मां इससे निपट नहीं सकती. इससे बेटी के पुनर्वास में मदद मिलेगी.

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