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विधान सभा चुनाव 2022: पश्चिमी यूपी को साधने के लिए बीजेपी ने अपनाई रणनीति, पढ़ें खबर

बीजेपी ने इस इलाके में अपने किसान और जाट नेताओं को सक्रिय कर दिया है. इनमें केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, पूर्व केंद्रीय मंत्री और बागपत से सांसद डॉक्टर सत्यपाल सिंह, किसान मोर्चा के अध्यक्ष राजकुमार चाहर समेत कई दूसरे ऐसे नेता हैं, जिनकी बात का असर इन इलाकों में है.

विधान सभा चुनाव 2022
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Published : Jan 24, 2022, 12:01 PM IST

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव 2022 (uttar pradesh assembly election 2022) की लड़ाई भारतीय जनता पार्टी पूरे दम-खम से लड़ रही है. वहीं, बीजेपी को मालूम है कि किसान आंदोलन के चलते उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नुकसान पहुंचा है, इसलिए इसकी भरपाई के लिए बीजेपी अब अपने किसान और जाट नेताओं को इस इलाके में सक्रिय कर रही है. अचरज की बात ये कि ये वही इलाका है, जहां 2017 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी को जाट समुदाय ने दोनों हाथ खोल कर समर्थन दिया था. ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की इस रिपोर्ट में जानते हैं क्या है पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए बीजेपी की रणनीति.

बता दें, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन के बाद राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) को एक संजीवनी मिल गई है और उसका फायदा वह समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके पूरा उठाने की कोशिश में है, लेकिन समाजवादी पार्टी और आरएलडी के बीच गठबंधन में भी सीटों को लेकर काफी घमासान मचा हुआ है. आरएलडी को छपरौली और सीवाल खास जैसी सीटों से उतारे गए उम्मीदवारों को बदलना पड़ा है और बीजेपी इसी का फायदा उठाते हुए अब जाटों को ये बताने निकल पड़ी है कि उनकी असली हिमायती बीजेपी ही है, कोई और नहीं.

बीजेपी ने इस इलाके में अपने किसान और जाट नेताओं को सक्रिय कर दिया है. इनमें केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, पूर्व केंद्रीय मंत्री और बागपत से सांसद डॉक्टर सत्यपाल सिंह, किसान मोर्चा के अध्यक्ष राजकुमार चाहर समेत कई दूसरे ऐसे नेता हैं, जिनकी बात का असर इन इलाकों में है. ये सारे नेता डोर-टू-डोर कैंपेन कर जाट और किसान समुदाय को बता रहे हैं कि बीजेपी ही दरअसल उनकी असली हिमायती है.

पश्चिमी यूपी के इलाके में आरएलडी और सपा के गठबंधन में मुस्लिम मतों का भी पोलराइजेशन हो रहा है. हालांकि इस इलाके में सपा का बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं है, लेकिन मुस्लिम समुदाय को विकल्प के तौर पर आरएलडी ही उपलब्ध हो पा रही है, इसीलिए वह आरएलडी का साथ दे रहे हैं. यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी इस बात को हवा देने की कोशिश कर रही है कि जाट-मुस्लिम गठबंधन वाले इस पार्टी के साथ ना जाएं. इसी सिलसिले में कैराना से गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को डोर-टू-डोर कैंपेन की शुरुआत की है.

बीजेपी जाटों को याद दिलाना चाहती है कि मुजफ्फरनगर दंगे में कैसे सपा ने सिर्फ एक खास वर्ग को सपोर्ट किया गया था और कैसे इस इलाके में कानून व्यवस्था की अनदेखी जानबूझकर की गई थी. बीजेपी को पता है कि सिर्फ यही एक फैक्टर है जो किसान और जाट समुदाय के लोगों को आरएलडी-सपा गठबंधन के पक्ष में जाने से रोक सकता है. बागपत के सांसद सत्यपाल सिंह के मुताबिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी कुछ मुस्लिम इलाकों को छोड़कर कहीं भी प्रभाव नहीं रखता, इसीलिए अखिलेश यादव ने आरएलडी से गठबंधन किया है.

पढ़ें: ढाई महीने उत्तर प्रदेश में रहेगा हिंदू-मुस्लिम और जिन्ना का भूत : राकेश टिकैत

सत्यपाल सिंह मानते हैं कि छपरौली और सिवाल खास जैसे क्षेत्रों में जाटों ने कैंडिडेट का विरोध किया और आरएलडी को अपना उम्मीदवार बदलना पड़ा. उन्होंने कहा कि बीजेपी नेताओं को भी किसान संगठनों ने भरोसा दिलाया है कि वह किसी एक पार्टी के साथ नहीं जा रहे और ना ही वह बीजेपी का बहिष्कार कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि चुनाव से पहले सभी गिले-शिकवे दूर कर लिए जाएंगे.

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव 2022 (uttar pradesh assembly election 2022) की लड़ाई भारतीय जनता पार्टी पूरे दम-खम से लड़ रही है. वहीं, बीजेपी को मालूम है कि किसान आंदोलन के चलते उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नुकसान पहुंचा है, इसलिए इसकी भरपाई के लिए बीजेपी अब अपने किसान और जाट नेताओं को इस इलाके में सक्रिय कर रही है. अचरज की बात ये कि ये वही इलाका है, जहां 2017 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी को जाट समुदाय ने दोनों हाथ खोल कर समर्थन दिया था. ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की इस रिपोर्ट में जानते हैं क्या है पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए बीजेपी की रणनीति.

बता दें, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन के बाद राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) को एक संजीवनी मिल गई है और उसका फायदा वह समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके पूरा उठाने की कोशिश में है, लेकिन समाजवादी पार्टी और आरएलडी के बीच गठबंधन में भी सीटों को लेकर काफी घमासान मचा हुआ है. आरएलडी को छपरौली और सीवाल खास जैसी सीटों से उतारे गए उम्मीदवारों को बदलना पड़ा है और बीजेपी इसी का फायदा उठाते हुए अब जाटों को ये बताने निकल पड़ी है कि उनकी असली हिमायती बीजेपी ही है, कोई और नहीं.

बीजेपी ने इस इलाके में अपने किसान और जाट नेताओं को सक्रिय कर दिया है. इनमें केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, पूर्व केंद्रीय मंत्री और बागपत से सांसद डॉक्टर सत्यपाल सिंह, किसान मोर्चा के अध्यक्ष राजकुमार चाहर समेत कई दूसरे ऐसे नेता हैं, जिनकी बात का असर इन इलाकों में है. ये सारे नेता डोर-टू-डोर कैंपेन कर जाट और किसान समुदाय को बता रहे हैं कि बीजेपी ही दरअसल उनकी असली हिमायती है.

पश्चिमी यूपी के इलाके में आरएलडी और सपा के गठबंधन में मुस्लिम मतों का भी पोलराइजेशन हो रहा है. हालांकि इस इलाके में सपा का बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं है, लेकिन मुस्लिम समुदाय को विकल्प के तौर पर आरएलडी ही उपलब्ध हो पा रही है, इसीलिए वह आरएलडी का साथ दे रहे हैं. यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी इस बात को हवा देने की कोशिश कर रही है कि जाट-मुस्लिम गठबंधन वाले इस पार्टी के साथ ना जाएं. इसी सिलसिले में कैराना से गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को डोर-टू-डोर कैंपेन की शुरुआत की है.

बीजेपी जाटों को याद दिलाना चाहती है कि मुजफ्फरनगर दंगे में कैसे सपा ने सिर्फ एक खास वर्ग को सपोर्ट किया गया था और कैसे इस इलाके में कानून व्यवस्था की अनदेखी जानबूझकर की गई थी. बीजेपी को पता है कि सिर्फ यही एक फैक्टर है जो किसान और जाट समुदाय के लोगों को आरएलडी-सपा गठबंधन के पक्ष में जाने से रोक सकता है. बागपत के सांसद सत्यपाल सिंह के मुताबिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी कुछ मुस्लिम इलाकों को छोड़कर कहीं भी प्रभाव नहीं रखता, इसीलिए अखिलेश यादव ने आरएलडी से गठबंधन किया है.

पढ़ें: ढाई महीने उत्तर प्रदेश में रहेगा हिंदू-मुस्लिम और जिन्ना का भूत : राकेश टिकैत

सत्यपाल सिंह मानते हैं कि छपरौली और सिवाल खास जैसे क्षेत्रों में जाटों ने कैंडिडेट का विरोध किया और आरएलडी को अपना उम्मीदवार बदलना पड़ा. उन्होंने कहा कि बीजेपी नेताओं को भी किसान संगठनों ने भरोसा दिलाया है कि वह किसी एक पार्टी के साथ नहीं जा रहे और ना ही वह बीजेपी का बहिष्कार कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि चुनाव से पहले सभी गिले-शिकवे दूर कर लिए जाएंगे.

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