नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं सालगिरह को भव्य तरीके से मनाने की घोषणा के बाद केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई है. पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के लिए सरगर्मी बढ़ने के साथ ही 'नेताजी किसके' इस बात को लेकर भाजपा और टीएमसी के बीच तनातनी शुरू हो गई है. दोनों ही पार्टियां नेताजी के नाम पर वोट बटोरना चाह रही हैं.
बता दें, केंद्र सरकार स्मरणोत्सव नाम से शुरू हो रहे इस कार्यक्रम को 23 जनवरी 2021 से अगले एक साल तक मनाएगी. पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती के उपलक्ष्य में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के रूप में एक साल के स्मरणोत्सव कार्यक्रम बनाने की घोषणा कर चुके हैं, जिसके लिए केंद्र सरकार ने एक उच्च स्तरीय पैनल भी बनाया है. इस पैनल में गृह मंत्री अमित शाह के साथ विशेषज्ञ, इतिहासकार, लेखक और सुभाष चंद्र बोस के परिवार के सदस्यों के साथ-साथ आजाद हिंद फौज से जुड़े कुछ नामी-गिरामी लोग शामिल हैं.
मगर केंद्र सरकार की इस पहल के पहले ही पश्चिम बंगाल की ममता सरकार ने सोमवार को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर नेताजी से संबंधित सभी फाइलों को सार्वजनिक करने की मांग की है. इसके साथ ही नेताजी के नाम पर बंगाल में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो चुकी है.
इस संबंध में ईटीवी भारत से बात करते हुए भाजपा प्रवक्ता सुदेश वर्मा ने कहा कि ममता बनर्जी का, जो नेताजी प्रेम दिख रहा है वह एक राजनीतिक दिखावा है और यह बात सभी को पता है कि किस पार्टी और किन नेताओं ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को राष्ट्रीय पटल पर लाने का कार्य किया है.
उन्होंने कहा कि भाजपा ने ही लोगों को नेताजी द्वारा किए गए कार्यों के बारे में बताया कि उन्होंने क्या-क्या काम किए हैं. उन्होंने कहा कि यह बात सबको मालूम है कि नेताजी का योगदान एक पन्ने या दो पन्ने में नहीं है और उसे इन पन्नों में समाहित नहीं किया जा सकता.
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भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि यह भाजपा का ही संकल्प था कि नेताजी की फाइलों को उजागर किया जाए और यह काम भी नरेंद्र मोदी ने किया. उन्होंने कहा कि भाजपा ने यह बात उठाई कि क्यों आखिर देश की आजादी में एक ही परिवार का नाम आता है, क्यों नेताजी का नाम नहीं उठाया जाता है.
सुदेश वर्मा ने यह भी कहा कि ममता आज जो भी कर रही हैं, वह भाजपा के दबाव की वजह से कर रही हैं, लेकिन ममता को यह समझना चाहिए कि कॉपीराइट बनकर कुछ करना और कुछ मन से करने में क्या फर्क होता है, जिसे जनता समझ रही है.