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Reservation In Bihar: तमिलनाडु, महाराष्ट्र के बाद बिहार में आरक्षण 70 के पार, सवाल- सुप्रीम कोर्ट में अटकेगा मामला?

बिहार जातीय सर्वे रिपोर्ट जारी होने के बाद सरकार ने आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 75 प्रतिशत करने का फैसला लिया है, जिसमें 10 प्रतिशत EWS के लिए होगा. हालांकि सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण का प्रावधान 50 प्रतिशत है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट मामला गया तो अटक सकता है. पढ़ें पूरी खबर.

बिहार का चुनावी अस्त्र
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 8, 2023, 8:17 PM IST

बिहार में आरक्षण बढ़ाने पर विशेषज्ञ की राय.

पटनाः लोकसभा चुनाव 2024 और बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर बिहार सरकार ने अस्त्र चला दिया है. जातीय सर्वे रिपोर्ट जारी होने के बाद सरकर ने आरक्षण को बढ़ाकर 75 प्रतिशत (75 Percent Reservation Increased In Bihar) करने का फैसला लिया है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट की बात करें तो 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधन है, ऐसे में अगर यह मामला वहां तक पहुंचा तो सरकार के सामने चुनौती होगी, लेकिन अन्य राज्यों में भी इसी तरह आरक्षण को बढाया गया है.

75 साल बाद भी नहीं सुलझा विवादः देश में आरक्षण को लेकर बहस होती रही है. संविधान निर्माण के वक्त भी आरक्षण को लेकर लंबी बहस चली थी. भीमराव अंबेडकर के प्रयासों से आरक्षण का प्रावधान किया गया था, लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी आरक्षण का मसाला नहीं सुलझ सका है. हमेशा आरक्षण की सीमा को बढ़ाए जाने की मांग उठती रही है. हाल में केंद्र सरकार ने आरक्षण को 60% कर दिया है, जिसमें 10% EWS के लिए है. सुप्रीम कोर्ट के प्रावधान से 10% अधिक है.

75% से ज्यादा की मांगः देश में कई राज्यों ने भी आरक्षण की सीमा को बढ़ाया है. तमिलनाडु महाराष्ट्र आंध्र प्रदेश और बिहार जैसे राज्य उसके उदाहरण हैं. बिहार राजनीति का प्रयोगशाला कहा जाता है. यहां भी आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 75% कर दिया गया है. महागठबंधन की सरकार ने 65% एससी-एसटी और ओबीसी के लिए तय किए हैं तो 10% EWS के लिए है. लेकिन इसे और बढ़ाने की मांग की जा रही है.

ईटीवी भारत GFX
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पहले 27 प्रतिशत का था आरक्षणः आरक्षण की सीमा को लेकर पूर्व में कई कमेटियों का भी गठन हुआ है. 1979 में केंद्र की सरकार ने बीपी मंडल की अध्यक्षता में 6 सदस्यीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया था. आयोग ने 1980 में रिपोर्ट दी थी. 1931 की जनगणना को आधार बनाया गया था आयोग के रिपोर्ट पर केंद्र की सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों को 27 फीसदी आरक्षण देने का फैसला लिया गया.

आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबितः संविधान का अनुच्छेद 16 सरकारी नौकरियों में सामान्य अवसर प्रदान करने की बात करता है, लेकिन अनुच्छेद 164 16( 4)क को 16(4)ख तथा अनुच्छेद 16(5) के तहत राज्य को अधिकार दिया गया है कि वह पिछड़े वर्ग के नागरिकों के लिए सरकारी नौकरी में आरक्षण दे सकता है. यहां भी आर्थिक शब्द का जिक्र नहीं है. आरक्षण के मसले पर कई बार सुप्रीम कोर्ट को भी दखल देनी पड़ी, लेकिन अभी आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.

"भारत सरकार ने 103वां संविधान संशोधन कर आरक्षण की सीमा बढ़ाने का रास्ता साफ कर दिया है. केंद्र की सरकार ने भी सीमा बढ़ाकर 60% कर दिया है. बिहार सरकार ने भी आरक्षण की सीमा 75% तक करने का फैसला लिया है. हालांकि यह मामला भी अन्य राज्यों की तरह सुप्रीम कोर्ट में जाएगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट को भी बड़े बेंच स्थापित कर गहन विचार विमर्श के बाद लोकहित में निर्णय देना होगा." -डॉ. विद्यार्थी विकास, प्रोफेसर, एएन सिंह इंस्टिट्यूट

50% से अधिक प्रावधान नहींः 1963 में श्री बालाजी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि पिछड़े वर्ग का वर्गीकरण करना असंवैधानिक है. कोई विशेष वर्ग पिछड़ा वर्ग है या नहीं इसके निर्धारण के लिए व्यक्ति की जाति मात्र कसौटी नहीं हो सकती. इसके निर्धारण के लिए आर्थिक दशा, निर्धनता, पेशा, निवास स्थान को विधान में रखना जरूरी है. बालाजी बनाम मैसूर राज्य मामले में सरकार के एक आदेश को जरूरत से ज्यादा मानते हुए खारिज कर दिया था. इसमें अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 68% आरक्षण का प्रावधान किया गया था. सर्वोच्च न्यायालय में व्यवस्था दी थी कि आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं होनी चाहिए.

राज्य और केंद्र में प्रमोशन में भी आरक्षणः 1992 में इंदिरा साहनी मामले में भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मील का पत्थर माना जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़े वर्ग के लिए अलग से आरक्षण लागू करने को सही कराया था. इस मामले में पहली बार प्रमोशन में आरक्षण को अनुमन्य नहीं कहा गया. सरकार ने 77वां संविधान संशोधन किया और राज्य और केंद्र को प्रमोशन में आरक्षण का अधिकार दिया गया.

"1992 में इंदिरा साहनी बनाम केंद्र सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट में फैसला दिया था कि आरक्षण 50% से अधिक नहीं हो सकती है, लेकिन कुछ राज्यों ने आरक्षण की सीमा को बढ़ाया है, लेकिन तमाम आरक्षण के फैसले के खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. बिहार का मामला भी सुप्रीम कोर्ट में जाएगा. सरकार स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार पर बेहतर काम करें ताकि आरक्षण की नौबत ना आए." -डॉ. बीएन प्रसाद, प्रोफेसर, एएन सिंह इंस्टिट्यूट

सुप्रीम कोर्ट में अटक सकता है मामलाः भारत सरकार ने 103वां संविधान संशोधन किया. संविधान संशोधन के मुताबिक आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया. ईडब्ल्यूएस के रूप में स्वर्ग को माना गया. ईडब्ल्यूएस की कैटेगरी में वैसे लोग आते हैं जो अगड़ी जाति से हैं, लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर हैं. बिहार में SC-ST, OBC और EWS के लिए आरक्षण 75 प्रतिशत करने पर राजनीतिक विशेषज्ञ का मानना है कि मामला सुप्रीम कोर्ट में अटक सकता है.

"बिहार सरकार के सामने लोकसभा और विधानसभा चुनाव है. चुनाव को देखते हुए सरकार ने आरक्षण कार्ड खेला है. सुप्रीम कोर्ट ने 50% का बैरियर लगा रखा है. बावजूद इसके सरकार सीमा बढ़ा रही है. मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित भी है, लेकिन फिलहाल बिहार सरकार ने जो दाव खेला है, वह पॉलीटिकल स्टंट मात्र है. दो चुनाव को साधने के लिए महागठबंधन की ओर से आरक्षण कार्ड खेला गया है." -डॉ. संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

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75 साल बाद भी नहीं सुलझा विवादः देश में आरक्षण को लेकर बहस होती रही है. संविधान निर्माण के वक्त भी आरक्षण को लेकर लंबी बहस चली थी. भीमराव अंबेडकर के प्रयासों से आरक्षण का प्रावधान किया गया था, लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी आरक्षण का मसाला नहीं सुलझ सका है. हमेशा आरक्षण की सीमा को बढ़ाए जाने की मांग उठती रही है. हाल में केंद्र सरकार ने आरक्षण को 60% कर दिया है, जिसमें 10% EWS के लिए है. सुप्रीम कोर्ट के प्रावधान से 10% अधिक है.

75% से ज्यादा की मांगः देश में कई राज्यों ने भी आरक्षण की सीमा को बढ़ाया है. तमिलनाडु महाराष्ट्र आंध्र प्रदेश और बिहार जैसे राज्य उसके उदाहरण हैं. बिहार राजनीति का प्रयोगशाला कहा जाता है. यहां भी आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 75% कर दिया गया है. महागठबंधन की सरकार ने 65% एससी-एसटी और ओबीसी के लिए तय किए हैं तो 10% EWS के लिए है. लेकिन इसे और बढ़ाने की मांग की जा रही है.

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पहले 27 प्रतिशत का था आरक्षणः आरक्षण की सीमा को लेकर पूर्व में कई कमेटियों का भी गठन हुआ है. 1979 में केंद्र की सरकार ने बीपी मंडल की अध्यक्षता में 6 सदस्यीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया था. आयोग ने 1980 में रिपोर्ट दी थी. 1931 की जनगणना को आधार बनाया गया था आयोग के रिपोर्ट पर केंद्र की सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों को 27 फीसदी आरक्षण देने का फैसला लिया गया.

आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबितः संविधान का अनुच्छेद 16 सरकारी नौकरियों में सामान्य अवसर प्रदान करने की बात करता है, लेकिन अनुच्छेद 164 16( 4)क को 16(4)ख तथा अनुच्छेद 16(5) के तहत राज्य को अधिकार दिया गया है कि वह पिछड़े वर्ग के नागरिकों के लिए सरकारी नौकरी में आरक्षण दे सकता है. यहां भी आर्थिक शब्द का जिक्र नहीं है. आरक्षण के मसले पर कई बार सुप्रीम कोर्ट को भी दखल देनी पड़ी, लेकिन अभी आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.

"भारत सरकार ने 103वां संविधान संशोधन कर आरक्षण की सीमा बढ़ाने का रास्ता साफ कर दिया है. केंद्र की सरकार ने भी सीमा बढ़ाकर 60% कर दिया है. बिहार सरकार ने भी आरक्षण की सीमा 75% तक करने का फैसला लिया है. हालांकि यह मामला भी अन्य राज्यों की तरह सुप्रीम कोर्ट में जाएगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट को भी बड़े बेंच स्थापित कर गहन विचार विमर्श के बाद लोकहित में निर्णय देना होगा." -डॉ. विद्यार्थी विकास, प्रोफेसर, एएन सिंह इंस्टिट्यूट

50% से अधिक प्रावधान नहींः 1963 में श्री बालाजी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि पिछड़े वर्ग का वर्गीकरण करना असंवैधानिक है. कोई विशेष वर्ग पिछड़ा वर्ग है या नहीं इसके निर्धारण के लिए व्यक्ति की जाति मात्र कसौटी नहीं हो सकती. इसके निर्धारण के लिए आर्थिक दशा, निर्धनता, पेशा, निवास स्थान को विधान में रखना जरूरी है. बालाजी बनाम मैसूर राज्य मामले में सरकार के एक आदेश को जरूरत से ज्यादा मानते हुए खारिज कर दिया था. इसमें अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 68% आरक्षण का प्रावधान किया गया था. सर्वोच्च न्यायालय में व्यवस्था दी थी कि आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं होनी चाहिए.

राज्य और केंद्र में प्रमोशन में भी आरक्षणः 1992 में इंदिरा साहनी मामले में भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मील का पत्थर माना जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़े वर्ग के लिए अलग से आरक्षण लागू करने को सही कराया था. इस मामले में पहली बार प्रमोशन में आरक्षण को अनुमन्य नहीं कहा गया. सरकार ने 77वां संविधान संशोधन किया और राज्य और केंद्र को प्रमोशन में आरक्षण का अधिकार दिया गया.

"1992 में इंदिरा साहनी बनाम केंद्र सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट में फैसला दिया था कि आरक्षण 50% से अधिक नहीं हो सकती है, लेकिन कुछ राज्यों ने आरक्षण की सीमा को बढ़ाया है, लेकिन तमाम आरक्षण के फैसले के खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. बिहार का मामला भी सुप्रीम कोर्ट में जाएगा. सरकार स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार पर बेहतर काम करें ताकि आरक्षण की नौबत ना आए." -डॉ. बीएन प्रसाद, प्रोफेसर, एएन सिंह इंस्टिट्यूट

सुप्रीम कोर्ट में अटक सकता है मामलाः भारत सरकार ने 103वां संविधान संशोधन किया. संविधान संशोधन के मुताबिक आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया. ईडब्ल्यूएस के रूप में स्वर्ग को माना गया. ईडब्ल्यूएस की कैटेगरी में वैसे लोग आते हैं जो अगड़ी जाति से हैं, लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर हैं. बिहार में SC-ST, OBC और EWS के लिए आरक्षण 75 प्रतिशत करने पर राजनीतिक विशेषज्ञ का मानना है कि मामला सुप्रीम कोर्ट में अटक सकता है.

"बिहार सरकार के सामने लोकसभा और विधानसभा चुनाव है. चुनाव को देखते हुए सरकार ने आरक्षण कार्ड खेला है. सुप्रीम कोर्ट ने 50% का बैरियर लगा रखा है. बावजूद इसके सरकार सीमा बढ़ा रही है. मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित भी है, लेकिन फिलहाल बिहार सरकार ने जो दाव खेला है, वह पॉलीटिकल स्टंट मात्र है. दो चुनाव को साधने के लिए महागठबंधन की ओर से आरक्षण कार्ड खेला गया है." -डॉ. संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

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