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अरुणाचल : सालों पुरानी हस्तनिर्मित कागज उद्योग को युवा उद्यमी ने किया पुनर्जीवित

अरुणाचल में युवा उद्यमी ने मोन शुगु हस्तनिर्मित कागज बनाने की परंपरा को फिर से पुनर्जीवित किया है. यह हस्तनिर्मित कागज कला विलुप्त होने के कगार पर थी.

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Published : Feb 4, 2021, 5:40 PM IST

युवा एंटरप्रेन्योरस
युवा एंटरप्रेन्योरस

ईटानगर : अरुणाचल प्रदेश के तवांग में युवा उद्यमी (Young entrepreneur) ने पारंपरिक हस्तनिर्मित कागज (आर्ट ऑफ मेकिंग पेपर) 'मोन शुगु' बनाने की कला को पुनर्जीवित किया है, जो पर्यावरण के अनुकूल है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 जनवरी को अपने रेडियो कार्यक्रम मन की बात के दौरान 'मोन शुगू' का जिक्र किया था और युवा उद्यमी के प्रयास की सराहना की थी. युवा उद्यमी के प्रयास ने न केवल शताब्दी पुरानी पारंपरिक कला पुनर्जीवित हुई, बल्कि कुछ स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिला है.

यह कागज स्थानीय रूप से पेड़ के छाल से बनाया गया है, जिसे सुगा संग (वानस्पतिक नाम डाफने पेपरेसी) कहा जाता है. इस प्रक्रिया में किसी भी रसायन का उपयोग नहीं किया जाता है. इस छाल का एक नमूना KNHPI कुमारप्पा नेशनल हैंडमेड पेपर इंस्टीट्यूट (KNHPI) में भेजा गया था, ताकि इससे बनी कागज की गुणवत्ता का परीक्षण किया जा सके.

बता दें : मंत्रालय, सार्वजनिक उपक्रम अब नहीं छपवाएंगे कैलैंडर, डायरी

स्थानीय लोगों का कहना है कि दस्तावेजीकरण करने के लिए मोन शुगु का उपयोग करते थे. तवांग में बौद्ध के रिकॉर्ड से पता चलता है कि मोन शुगु का उपयोग 1860 के दशक के दौरान शुरू हुआ था.

ईटानगर : अरुणाचल प्रदेश के तवांग में युवा उद्यमी (Young entrepreneur) ने पारंपरिक हस्तनिर्मित कागज (आर्ट ऑफ मेकिंग पेपर) 'मोन शुगु' बनाने की कला को पुनर्जीवित किया है, जो पर्यावरण के अनुकूल है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 जनवरी को अपने रेडियो कार्यक्रम मन की बात के दौरान 'मोन शुगू' का जिक्र किया था और युवा उद्यमी के प्रयास की सराहना की थी. युवा उद्यमी के प्रयास ने न केवल शताब्दी पुरानी पारंपरिक कला पुनर्जीवित हुई, बल्कि कुछ स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिला है.

यह कागज स्थानीय रूप से पेड़ के छाल से बनाया गया है, जिसे सुगा संग (वानस्पतिक नाम डाफने पेपरेसी) कहा जाता है. इस प्रक्रिया में किसी भी रसायन का उपयोग नहीं किया जाता है. इस छाल का एक नमूना KNHPI कुमारप्पा नेशनल हैंडमेड पेपर इंस्टीट्यूट (KNHPI) में भेजा गया था, ताकि इससे बनी कागज की गुणवत्ता का परीक्षण किया जा सके.

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स्थानीय लोगों का कहना है कि दस्तावेजीकरण करने के लिए मोन शुगु का उपयोग करते थे. तवांग में बौद्ध के रिकॉर्ड से पता चलता है कि मोन शुगु का उपयोग 1860 के दशक के दौरान शुरू हुआ था.

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