श्रीनगर : राजकुमार के पास आगामी 15 दिनों तक काम की कोई कमी नहीं है. अब वह अपनी आर्थिक स्थिति को एक बार फिर पटरी पर ला सकता है. बीते सप्ताह कश्मीर लौटा पंजाब का यह प्रवासी मजदूर शादी-आयोजनों में टेंट लगाने का काम करता है और यही उसकी आय का जरिया है, जिससे वह अपना और अपने परिवार का पेट पालता है.
राजकुमार उन हजारों गैर-कश्मीरी मजदूरों में से एक है, जो कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद राज्य छोड़ कर चले गए थे.
राज्य में पुन: वापसी करने को लेकर राजकुमार ने कहा, 'दो महीने पहले शादी के सीजन के बीच राज्य छोड़कर जाने के कारण मुझे काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा.'
उन्होंने आगे कहा, 'परिस्थितियों को एक बार फिर से संभालने का प्रयास कर रहा हूं.'
अगर देखा जाए तो राजकुमार कश्मीर लौटने वाले इकलौता मजदूर नहीं है. अक्टूबर से कई प्रवासी कर्मचारी खास कर नाई और मजदूर फिर घाटी का रुख करने लगे हैं.
बीते दो अगस्त को जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने एडवाइजरी जारी कर अमरनाथ यात्रियों और पर्यटकों से तत्कालीन सुरक्षा स्थिति के मद्देनजर कश्मीर छोड़कर जाने के लिए कहा था. इस एडवाइजरी के बाद कश्मीर में रहने वाले हजारों गैर-कश्मीरी प्रवासी मजदूरों के बीच हलचल मच गई थी. वहीं,क्षेत्र में ठप पड़ी सम्पर्क व्यवस्था ने उनमें असुरक्षा की भावना भर दी थी.
हालांकि, जहां लगभग सभी गैर-कश्मीरी प्रवासी मजदूरों ने अनुच्छेद 370 हटने के कुछ दिनों के अंदर ही घाटी छोड़कर जाने का फैसला किया था, वहीं राजू भाई जैसे भी कुछ लोग थे, जिन्होंने घाटी में ही रुकने का फैसला किया था.
तीन दशक से यहां व्यापार कर रहे गुजरात के ये कपड़ा व्यवसायी अपने परिवार के साथ श्रीनगर के करन नगर में रहते हैं. राजू भाई के कई रिश्तेदार कश्मीर से अगस्त में ही जा चुके थे, लेकिन उन्हें यकीन था कि उन्हें यहां कोई नुकसान नहीं होगा.
राजू भाई ने कहा, 'मुझे यहां असुरक्षा महसूस नहीं हुई. मुझे मेरे कश्मीरी भाइयों पर पूरा यकीन था कि वे मेरा हमेशा साथ देंगे.'
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सालों से हिंसा और उथल-पुथल के बीच भी ये गैर-कश्मीरी यहां काम करते आ रहे हैं और कहीं न कहीं वे राज्य की अर्थव्यवस्था से भी जुड़ गये हैं. जीवनयापन करने के लिए यहां हजारों गैर प्रवासी मजदूर काम की तलाश में आते हैं. इनमें दिहाड़ी मजदूर, कंस्ट्रक्शन कर्मचारी, विक्रेता शामिल हैं. वहीं, फसलों की कटाई के वक्त भी इन मजदूरों को बुलाया जाता है.
खैर, घाटी में संचार व्यवस्था बहाल होते ही मजदूरों का जत्था कश्मीर आने लगा है.