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ट्रंप की यात्रा पर पूर्व राजनयिक- अंतरराष्ट्रीय मंच पर घरेलू दांव खेलने का अच्छा मौका

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Published : Feb 14, 2020, 5:58 PM IST

Updated : Mar 1, 2020, 8:36 AM IST

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने पहले भारत दौरे पर 24-25 फरवरी को दिल्ली और अहमदाबाद में होंगे. अहमदाबाद से 13 किलो मीटर की दूरी पर बने सरदार पटेल स्टेडियम में 'हाउडी मोदी' की तर्ज पर एक आयोजन की तैयारियां की जा रही हैं. यह दौरा ट्रंप के महाभियोग मामले में सीनेट से राहत मिलने के कुछ दिनों बाद हो रहा है. अमरीका में भारत के पूर्व राजदूत अरुण सिंह का मानना है कि चुनावी साल में ट्रंप के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर घरेलू दांव खेलने का यह अच्छा मौका होगा...

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अरुण सिंह

नई दिल्ली : अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने पहले भारत दौरे पर 24-25 फरवरी को दिल्ली और अहमदाबाद में होंगे. अहमदाबाद से 13 किलो मीटर की दूरी पर बने सरदार पटेल स्टेडियम में 'हाउडी मोदी' की तर्ज पर एक आयोजन की तैयारियां की जा रही हैं. यह दौरा ट्रंप के महाभियोग मामले में सीनेट से राहत मिलने के कुछ दिनों बाद हो रहा है. अमरीका में भारत के पूर्व राजदूत अरुण सिंह का मानना है कि चुनावी साल में ट्रंप के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर घरेलू दांव खेलने का यह अच्छा मौका होगा. वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा ने अरुण सिंह से दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों, व्यापार समझौते की संभावनाओं, कश्मीर और सीएए-एनआरसी को लेकर अमरीकी कांग्रेस में हो रही गतिविधियों पर बात की.

सवाल- 2020 राष्ट्रपति चुनावों से पहले यह ट्रंप का आखिरी साल है. ऐसे में आप उनके भारत दौरे को कैसे देखते हैं ?

जवाब- किसी भी अमरीकी राष्ट्रपति के दौरे से काफी रोमांच होता है. दौरे में अभी करीब दस दिन बचे हैं, लेकिन मीडिया और लोगों के बीच इसकी चर्चाएं तेज हो गई हैं. यह इस बात की तरफ इशारा करता है कि सामरिक और राजनीतिक दायरों से आगे दोनों देशों के रिश्तों में मजबूती है. इसका कारण है लोगों से लोगों का जुड़ाव. अमरीका में आज के समय में चार मिलियन भारतीय मूल के लोग हैं. इसके अलावा दो लाख भारतीय छात्र हैं. बड़ी संख्या में भारतीय नौकरी की तलाश में अमरीका जाते हैं या ऐसी कई नौकरियां हैं, जो दोनों देशों को जोड़ती हैं. इस रिश्ते में बड़े स्तर पर उम्मीदों का निवेश किया गया है. इन सभी पहलुओं को देखते हुए मेरे ख्याल में यह दौरा महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे दोनों देशों के बीच दौरे से लगातार द्विपक्षीय रिश्तों को बरकरार रखने में मदद मिलती है. क्लिंटन के बाद से हर अमरीकी राष्ट्रपति ने भारत का दौरा किया है.

सवाल- पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा दो बार भारत आए थे. इस पर आप क्या कहेंगे?

जवाब- ओबामा दो बार आये थे और उनका पहला दौरा उनके पहले कार्यकाल में हुआ था. अगर आप क्लिंटन की बात करें, तो उनका पहला दौरा उनके दूसरे कार्यकाल के खत्म होते समय हुआ था. इस लिहाज़ से यह महत्वपूर्ण है कि ट्रंप अपने पहले कार्यकाल के अंत में अपना पहला दौरा कर रहे हैं. यह इस बात का संकेत है कि द्विपक्षीय रिश्तों को ट्रंप कितना निजी महत्व देते हैं. यह केवल भारत-अमरीका रिश्तों के लिए ही नहीं, बल्कि ब्रैड ट्रंप और ट्रंप की राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण है.

सवाल- यह ध्यान में रखते हुए कि ट्रंप हाल ही में महाभियोग के संकट से उबर आए हैं, क्या यह उनके लिए भी अपनी घरेलू जीत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने का मौका है ?

ट्रंप की यात्रा पर पूर्व राजदूत अरुण सिंह

जवाब- बिलकुल पांच फरवरी को अमरीका की सिनेट ने उन्हें बरी कर दिया है. चार फरवरी को उन्होंने अपना स्टेट ऑफ द यूनियन संबोधन किया, जो उनके समर्थकों में काफी पसंद किया गया. उन्होंने इस भाषण के जरिए अफ्रीकी-अमरीकी और हिस्पैनिक समुदाय तक पहुंचने की भी कोशिश की. अब उनके लिए यह साबित करने का समय है कि घरेलू ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उन्हें उतना ही सम्मान और समर्थन मिलता है. आज दुनिया में ऐसे कम ही देश हैं, जहां उन्हें ऐसा स्वागत मिलेगा.

सवाल- यह कहना है कि उनका स्वागत करने के लिये लाखों की संख्या में भारतीय आएंगे ?

जवाब- यह सही है. उनके स्वागत के लिए भारतीय लोग सड़कों पर आएंगे और बड़ी तादाद में अहमदाबाद के स्टेडियम में भी जमा होंगे. वहीं दिल्ली में भी उनका राजनीतिक स्वागत होगा. कई अन्य देशों में ट्रंप द्वारा सहयोगी देशों द्वारा ज़्यादा काम न करने के बयानों के बाद से चिंता व्याप्त है. इन देशों में अमरीका की सीरिया और अफगानिस्तान नीतियों को लेकर भी चिंता है. ट्रंप के लिए यह मौका दिखाने का है कि द्विपक्षीय स्तर पर उन्होंने काफी कुछ हासिल किया है. कुछ दिन पहले इक्वॉडोर के राष्ट्रपति का स्वागत करते समय ट्रंप ने यह कहा था कि उनके द्वारा द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए काफी कुछ किया गया है. इसलिए भारत आना और यहां ऐसा स्वागत मिलना उनके लिए काफी मददगार होगा.

सवाल- पीएम मोदी का काफी ध्यान तस्वीरों पर होता है. लेकिन क्या हम धरताल पर एक व्यापारिक समझौते की उम्मीद कर सकते हैं ?

जवाब- अंतरराष्ट्रीय संबंधों में तस्वीरें बहुत जरूरी होती हैं. इनसे इशारा किया जाता है, लेकिन ठोस काम भी उतने ही जरूरी होते हैं. तस्वीरें आपको एक सीमा तक ही ले जा सकती हैं. यह साफ है कि दोनों पक्ष रक्षा सहयोग को लेकर किसी तरह के समझौते के पक्ष में हैं, जिससे रिश्तों से जुड़ी गंभीरता की तरफ इशारा किया जा सके. एक ऐसा संदेश, जिससे इस रिश्ते में दोनों की गंभीरता के बारे में बताया जा सके. क्योंकि हम दूसरे देश से तब तक खरीद नहीं करते जब तक हमें पूरा भरोसा न हो. रक्षा से आगे बढ़ें तो व्यापार और वाणिज्य रिश्ते आते हैं. हाल ही में अमरीका में भारतीय राजदूत ने कहा है कि दोनों देशों के बीच 160 बिलियन अमरीकी डॉलर का व्यापार हो रहा है. इसका मतलब है कि यह हर साल लगातार बढ़ रहा है और अमरीका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. वैसे तो भारत पूरे तौर पर एक ट्रेड डेफिस्यिेट देश है, लेकिन अमरीका से भारत ट्रेड सरप्लस रहता है. यह हमारे लिए बहुत जरूरी है, लेकिन इसमें भी मसले हैं. सितंबर से हम सुन रहे हैं कि हम एक सीमित व्यापार समझौता होने जा रहा है. अब फरवरी आ गया है और इस बारे में स्थिति साफ नहीं है, जो दिखाता है कि दोनों पक्षों के हित इससे जुड़े हैं. कई बार समझौते तक पहुंचना आसान नहीं होता है, लेकिन प्रतिबद्ध कदम उठाए जा रहे हैं. ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए कि इस दिशा में कुछ हो सकेगा, क्योंकि सीमित समझौते की सूरत में भी यह तस्वीरों के लिए अच्छा होगा.

ट्रंप की यात्रा पर पूर्व राजदूत अरुण सिंह

सवाल- अगर व्यापारिक समझौता नहीं होता है, तो क्या यह निराश करने वाली बात होगी ? क्या इससे चिंता करने की जरूरत होगी ?

जवाब- मुझे नहीं लगता कि इससे कोई चिंता करने वाली बात होगी. दोनों ही पक्षों के फायदे और चिंताएं हैं. अभी और काम करने की जरूरत है. सीमित समझौता तस्वीरों के लिए अच्छा होगा, लेकिन इससे राष्ट्रपति ट्रंप को अपने समर्थकों को यह बताने का मौका मिलेगा कि उन्होंने मैक्सिको, कनाडा, दक्षिण कोरिया, चीन और अब भारत के साथ व्यापारिक समझौते करने में कामयाबी हासिल की है. उन्हें अपने समर्थकों को यह दिखाने का मौका मिलेगा कि उन्होंने तमाम देशों के साथ अलग-अलग तरह के व्यापारिक समझौते किए हैं और इनसे अमरीकी कर्मचारियों को ही फायदा मिलेगा. भारत के लिहाज से अगर हम अमरीका के साथ रिश्तों को मजबूत करने की तरफ काम कर रहे हैं, तो हमें व्यापार और निवेश के अलावा और क्षेत्रों में संबंधों पर ध्यान देने की ज़रूरत है. मिसाल के तौर पर भारतीय पक्ष ऊर्जा के क्षेत्र में साझेदारी की बात कर रहा है या तेल और गैस के क्षेत्र में, जहां हम अब अमरीका से खरीद कर रहे हैं, जो पहले नहीं होता था. नागरिक उड्डयन भी एक क्षेत्र हो सकता है, क्योंकि भारत अब ज्यादा से ज्यादा हवाई जहाज खरीदेगा. इनमें से ज्यादातर अमरीका से ही आएंगे. यह सब ही मौजूदा व्यापार के घाटों को कम करने में कारगर साबित हो सकते हैं. इसके अलावा तकनीक के क्षेत्र में भी आने वाले दिनों में तेजी से काम होगा. हमारे यहां 5जी, एआई नए तरह की डिजिटल तकनीक, जीव शास्त्र और आईटी का समन्वय होगा. हम जिस तरह रहते हैं और काम करे हैं, उसमें पूरी तरह से बदलाव आने वाला है. भारत और अमरीका के लिए रिश्तों को मजबूत करने के लिए नई साझेदारियां करना फायदेमंद होगा.

सवाल- डाटा का स्थानीयकरण भी चिंता का एक मसला है ?

जवाब- इस बारे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस हो रही है. नई तकनीक ने दुनियाभर में समाजों के लिए चुनौती खड़ी कर दी है. इनके कारण दुनियाभर के रेग्युलेटरों के लिए चुनौती खड़ी हो गई है. यह केवल भारत और अमरीका में ही नहीं है. यूरोप की तरफ देखें, वहां भी निजता को लेकर चिताएं हैं. फ्रांस ने डिजिटल कंपनियों पर टैक्स लगा दिया है, जिससे अमरीका खुश नहीं है. ताजा रिपोर्ट यह बताती हैं कि अमरीका, चीन द्वारा एक कंपनी को हैक कर 150 मिलियन अमरीकियों की जानकारियों के चोरी होने की खबरों से नाखुश है. अमरीका ने चार चीनी नागरिकों को पीएलए का सदस्य होने का आरोप लगाकर प्रतिबंधित कर दिया है. इसलिए डाटा, डाटा के स्थान, कंपनियों और लोगों से रिश्ते, सरकारों के बीच के रिश्ते, इन सभी पर विश्वस्तर पर बहस हो रही है. नई तकनीक समाज के लिए नई चुनौतियां लेकर आती हैं और हमें इससे निपटने के लिए काम करते रहना पड़ेगा.

सवाल- कश्मीर को लेकर ट्रंप ने विवादास्पद बयान दिए हैं. ट्रंप की करीबी लिंडसे ग्राहम समेत चार वरिष्ठ सेनेटर्स ने स्टेट सेक्रेटरी को पत्र लिखकर कश्मीर में इंटरनेट पर रोक को खत्म करने, राजनीतिक बंदियों को रिहा करने की मांग के साथ सीएए-एनआरसी पर हो रहे विरोधों की तरफ भी ध्यान दिलाया है. यह मुद्दा क्या भूमिका निभाएगा?

जवाब- इसमें एक पक्ष है, जो राष्ट्रपति ट्रंप से संबंध रखता है और दूसरा जो कांग्रेस से संबंधित है. अपने पिछले तीन साल के कार्यकाल में राष्ट्रपति ट्रंप को अनिश्चित और अमरीकी विदेश और कूटनीति के तय मानकों से अलग जाते राष्ट्रपति को तौर पर देखा गया है. मैं स्तबद्ध था जब पिछले साल जुलाई में उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से मुलाक़ात की. उन्होंने तब कहा थी कि वह कश्मीर मामले पर मध्यस्थता को तैयार हैं और, भारतीय पीएम ने भी उनसे इस मामले में मध्यस्थता करने की बात कही है. मैं इसलिए अचंभित नहीं था कि मैं सरकार में था, बल्कि इसलिए क्योंकि मैंने वर्षों तक अमरीका और पाकिस्तान के मामलों को करीब से देखा है और इसलिए मैं यह कह सकता हूं कि कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री कभी किसी अमरीकी राष्ट्रपति से मध्यस्थता के लिए कहने की बात नहीं सोचेगा. तो यह साफ था कि ट्रंप अपने आप ही यह बात कह रहे थे और भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसका सख्त खंडन भी किया. इसके बाद ट्रंप ने कभी यह नहीं कहा कि वह मध्यस्थता के लिए तैयार हैं, लेकिन यह कहा है कि अगर दोनों पक्ष तैयार हों तो वह मदद कर सकते हैं. अमरीका के लिए अफगानिस्तान में की जा रही उसकी तालिबान से शांति समझौते की कोशिशों के लिए पाकिस्तान का समर्थन जरूरी है. सितंबर में मोदी के साथ भव्य 'हाउडी मोदी' के बाद ट्रंप ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ मुलाकात की और इस दौरान उन्होंने पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद पर एक्शन की बात को यह कहकर टाल दिया कि वह ईरान पर ध्यान दे रहे हैं. वह यह बात साफ समझते हैं कि पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों के साथ काम करता आ रहा है. वह यह भी जानते हैं कि कश्मीर मामले पर भारत किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की इजाजत नहीं देगा. इसलिए हम कहते हैं कि अगर आप पाकिस्तान को किसी तरह से व्यस्त रखना चाहते हैं तो ठीक है.जहां तक कांग्रेस का सवाल है, वह प्रशासन से काफी अलग तरह काम करती है. अमरीकी कांग्रेस सरकार के ही एक अंग के तरह काम करती है. कांग्रेस में डेमोक्रेट दल की मदद से कश्मीर पर एक प्रस्ताव दाखिल किया जा रहा है. यह इसलिए नहीं कि कांग्रेस भारत विरोधी है, बल्कि कश्मीर पर पाबंदियों और सीएए और एनआरसी से संबंधित मसलों पर कांग्रेस की अपनी एक राय है. इन सिनेटरों द्वारा किया गया एक्शन उसी का हिस्सा है. उनकी राजनीति यह कहती है कि वह इन मुद्दों पर विरोधी रुख लें. भारत को वह करने की जरूरत है, जो उसके लिए फायदेमंद हो. भारत ने अमरीकी प्रशासन के साथ रिश्ते बनाए हैं, लेकिन इसके साथ ही उसे कांग्रेस तक अपनी पहुंच को भी मजबूत करना है. साल 2000 से ही भारत को कांग्रेस से मिल रहे पूर्ण समर्थन (डेमोक्रेट और रिपब्लिकन) ने भारत की राह आसान की है. कांग्रेस से इस तरह का समर्थन पाने वाले देशों में इससे पहले इजरायल की ही गिनती होती रही है. मौजूदा समय में कांग्रेस में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट के बीच संबंध विरोधी हैं और वह ट्रंप और मोदी के रिश्तों को भी उसी नजर से देखते हैं और इसलिए कांग्रेस भारत की कई नीतियों को लेकर विरोध के स्वर इख्तियार कर रही है. भारत के लिए इसे लेकर सतर्क रहने की जरूरत है. कांग्रेस तक पहुंचने की कोशिशें जारी रखे और इस रिश्ते को और मजबूत करे.

सवाल- 'हाउडी मोदी' के दौरान रिपब्लिकन पार्टी ने इसे मोदी द्वारा ट्रंप के चुनाव प्रचार के तौर पर देखा था. अब अमरीका में चुनावों से कुछ महीने पहले हो रहे 'केम छो ट्रंप' के कारण क्या भारत अमरीकी कांग्रेस में अपने लिये सभी पार्टियों के समर्थन को खतरे में डाल रहा है ?

जवाब- अमरीका में कोई भी राष्ट्रपति हो, भारत को उसमें निवेश करना होगा. भारत ने राष्ट्रपति क्लिंटन ने भी निवेश किया था. राष्ट्रपति बुश के समय भी यही देखने को मिला. आपको याद होगा कि उस समय भारतीय प्रधानमंत्री ने अमरीकी राष्ट्रपति से सितंबर 2008 में उनके कार्यकाल के आखरी दौर में मुलाकात की थी और कहा था कि भारत के लोग आपसे बहुत प्यार करते हैं. यह एक ऐसे समय में हुआ था जब बुश की लोकप्रियता अमरीका और विश्व में काफी नीचे चल रही थी. भारत ने राष्ट्रपति ओबामा के साथ उस समय घनिष्ठता से काम किया था, जब ज़्यादातर कांग्रेस उनके खिलाफ थी. आपको ऐसा करना होगा, लेकिन यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि अमरीका में अन्य देशों के उलट, कांग्रेस कई मायनों में सरकार के बराबर है. अमरीकी राष्ट्रपति के भारत आने पर आपको यह दिखाना होगा कि उनका स्वागत है. आप किसी व्यक्ति का स्वागत नहीं कर रहे हैं. आप अमरीका के राष्ट्रपति का स्वागत कर रहे हैं.

नई दिल्ली : अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने पहले भारत दौरे पर 24-25 फरवरी को दिल्ली और अहमदाबाद में होंगे. अहमदाबाद से 13 किलो मीटर की दूरी पर बने सरदार पटेल स्टेडियम में 'हाउडी मोदी' की तर्ज पर एक आयोजन की तैयारियां की जा रही हैं. यह दौरा ट्रंप के महाभियोग मामले में सीनेट से राहत मिलने के कुछ दिनों बाद हो रहा है. अमरीका में भारत के पूर्व राजदूत अरुण सिंह का मानना है कि चुनावी साल में ट्रंप के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर घरेलू दांव खेलने का यह अच्छा मौका होगा. वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा ने अरुण सिंह से दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों, व्यापार समझौते की संभावनाओं, कश्मीर और सीएए-एनआरसी को लेकर अमरीकी कांग्रेस में हो रही गतिविधियों पर बात की.

सवाल- 2020 राष्ट्रपति चुनावों से पहले यह ट्रंप का आखिरी साल है. ऐसे में आप उनके भारत दौरे को कैसे देखते हैं ?

जवाब- किसी भी अमरीकी राष्ट्रपति के दौरे से काफी रोमांच होता है. दौरे में अभी करीब दस दिन बचे हैं, लेकिन मीडिया और लोगों के बीच इसकी चर्चाएं तेज हो गई हैं. यह इस बात की तरफ इशारा करता है कि सामरिक और राजनीतिक दायरों से आगे दोनों देशों के रिश्तों में मजबूती है. इसका कारण है लोगों से लोगों का जुड़ाव. अमरीका में आज के समय में चार मिलियन भारतीय मूल के लोग हैं. इसके अलावा दो लाख भारतीय छात्र हैं. बड़ी संख्या में भारतीय नौकरी की तलाश में अमरीका जाते हैं या ऐसी कई नौकरियां हैं, जो दोनों देशों को जोड़ती हैं. इस रिश्ते में बड़े स्तर पर उम्मीदों का निवेश किया गया है. इन सभी पहलुओं को देखते हुए मेरे ख्याल में यह दौरा महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे दोनों देशों के बीच दौरे से लगातार द्विपक्षीय रिश्तों को बरकरार रखने में मदद मिलती है. क्लिंटन के बाद से हर अमरीकी राष्ट्रपति ने भारत का दौरा किया है.

सवाल- पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा दो बार भारत आए थे. इस पर आप क्या कहेंगे?

जवाब- ओबामा दो बार आये थे और उनका पहला दौरा उनके पहले कार्यकाल में हुआ था. अगर आप क्लिंटन की बात करें, तो उनका पहला दौरा उनके दूसरे कार्यकाल के खत्म होते समय हुआ था. इस लिहाज़ से यह महत्वपूर्ण है कि ट्रंप अपने पहले कार्यकाल के अंत में अपना पहला दौरा कर रहे हैं. यह इस बात का संकेत है कि द्विपक्षीय रिश्तों को ट्रंप कितना निजी महत्व देते हैं. यह केवल भारत-अमरीका रिश्तों के लिए ही नहीं, बल्कि ब्रैड ट्रंप और ट्रंप की राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण है.

सवाल- यह ध्यान में रखते हुए कि ट्रंप हाल ही में महाभियोग के संकट से उबर आए हैं, क्या यह उनके लिए भी अपनी घरेलू जीत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने का मौका है ?

ट्रंप की यात्रा पर पूर्व राजदूत अरुण सिंह

जवाब- बिलकुल पांच फरवरी को अमरीका की सिनेट ने उन्हें बरी कर दिया है. चार फरवरी को उन्होंने अपना स्टेट ऑफ द यूनियन संबोधन किया, जो उनके समर्थकों में काफी पसंद किया गया. उन्होंने इस भाषण के जरिए अफ्रीकी-अमरीकी और हिस्पैनिक समुदाय तक पहुंचने की भी कोशिश की. अब उनके लिए यह साबित करने का समय है कि घरेलू ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उन्हें उतना ही सम्मान और समर्थन मिलता है. आज दुनिया में ऐसे कम ही देश हैं, जहां उन्हें ऐसा स्वागत मिलेगा.

सवाल- यह कहना है कि उनका स्वागत करने के लिये लाखों की संख्या में भारतीय आएंगे ?

जवाब- यह सही है. उनके स्वागत के लिए भारतीय लोग सड़कों पर आएंगे और बड़ी तादाद में अहमदाबाद के स्टेडियम में भी जमा होंगे. वहीं दिल्ली में भी उनका राजनीतिक स्वागत होगा. कई अन्य देशों में ट्रंप द्वारा सहयोगी देशों द्वारा ज़्यादा काम न करने के बयानों के बाद से चिंता व्याप्त है. इन देशों में अमरीका की सीरिया और अफगानिस्तान नीतियों को लेकर भी चिंता है. ट्रंप के लिए यह मौका दिखाने का है कि द्विपक्षीय स्तर पर उन्होंने काफी कुछ हासिल किया है. कुछ दिन पहले इक्वॉडोर के राष्ट्रपति का स्वागत करते समय ट्रंप ने यह कहा था कि उनके द्वारा द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए काफी कुछ किया गया है. इसलिए भारत आना और यहां ऐसा स्वागत मिलना उनके लिए काफी मददगार होगा.

सवाल- पीएम मोदी का काफी ध्यान तस्वीरों पर होता है. लेकिन क्या हम धरताल पर एक व्यापारिक समझौते की उम्मीद कर सकते हैं ?

जवाब- अंतरराष्ट्रीय संबंधों में तस्वीरें बहुत जरूरी होती हैं. इनसे इशारा किया जाता है, लेकिन ठोस काम भी उतने ही जरूरी होते हैं. तस्वीरें आपको एक सीमा तक ही ले जा सकती हैं. यह साफ है कि दोनों पक्ष रक्षा सहयोग को लेकर किसी तरह के समझौते के पक्ष में हैं, जिससे रिश्तों से जुड़ी गंभीरता की तरफ इशारा किया जा सके. एक ऐसा संदेश, जिससे इस रिश्ते में दोनों की गंभीरता के बारे में बताया जा सके. क्योंकि हम दूसरे देश से तब तक खरीद नहीं करते जब तक हमें पूरा भरोसा न हो. रक्षा से आगे बढ़ें तो व्यापार और वाणिज्य रिश्ते आते हैं. हाल ही में अमरीका में भारतीय राजदूत ने कहा है कि दोनों देशों के बीच 160 बिलियन अमरीकी डॉलर का व्यापार हो रहा है. इसका मतलब है कि यह हर साल लगातार बढ़ रहा है और अमरीका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. वैसे तो भारत पूरे तौर पर एक ट्रेड डेफिस्यिेट देश है, लेकिन अमरीका से भारत ट्रेड सरप्लस रहता है. यह हमारे लिए बहुत जरूरी है, लेकिन इसमें भी मसले हैं. सितंबर से हम सुन रहे हैं कि हम एक सीमित व्यापार समझौता होने जा रहा है. अब फरवरी आ गया है और इस बारे में स्थिति साफ नहीं है, जो दिखाता है कि दोनों पक्षों के हित इससे जुड़े हैं. कई बार समझौते तक पहुंचना आसान नहीं होता है, लेकिन प्रतिबद्ध कदम उठाए जा रहे हैं. ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए कि इस दिशा में कुछ हो सकेगा, क्योंकि सीमित समझौते की सूरत में भी यह तस्वीरों के लिए अच्छा होगा.

ट्रंप की यात्रा पर पूर्व राजदूत अरुण सिंह

सवाल- अगर व्यापारिक समझौता नहीं होता है, तो क्या यह निराश करने वाली बात होगी ? क्या इससे चिंता करने की जरूरत होगी ?

जवाब- मुझे नहीं लगता कि इससे कोई चिंता करने वाली बात होगी. दोनों ही पक्षों के फायदे और चिंताएं हैं. अभी और काम करने की जरूरत है. सीमित समझौता तस्वीरों के लिए अच्छा होगा, लेकिन इससे राष्ट्रपति ट्रंप को अपने समर्थकों को यह बताने का मौका मिलेगा कि उन्होंने मैक्सिको, कनाडा, दक्षिण कोरिया, चीन और अब भारत के साथ व्यापारिक समझौते करने में कामयाबी हासिल की है. उन्हें अपने समर्थकों को यह दिखाने का मौका मिलेगा कि उन्होंने तमाम देशों के साथ अलग-अलग तरह के व्यापारिक समझौते किए हैं और इनसे अमरीकी कर्मचारियों को ही फायदा मिलेगा. भारत के लिहाज से अगर हम अमरीका के साथ रिश्तों को मजबूत करने की तरफ काम कर रहे हैं, तो हमें व्यापार और निवेश के अलावा और क्षेत्रों में संबंधों पर ध्यान देने की ज़रूरत है. मिसाल के तौर पर भारतीय पक्ष ऊर्जा के क्षेत्र में साझेदारी की बात कर रहा है या तेल और गैस के क्षेत्र में, जहां हम अब अमरीका से खरीद कर रहे हैं, जो पहले नहीं होता था. नागरिक उड्डयन भी एक क्षेत्र हो सकता है, क्योंकि भारत अब ज्यादा से ज्यादा हवाई जहाज खरीदेगा. इनमें से ज्यादातर अमरीका से ही आएंगे. यह सब ही मौजूदा व्यापार के घाटों को कम करने में कारगर साबित हो सकते हैं. इसके अलावा तकनीक के क्षेत्र में भी आने वाले दिनों में तेजी से काम होगा. हमारे यहां 5जी, एआई नए तरह की डिजिटल तकनीक, जीव शास्त्र और आईटी का समन्वय होगा. हम जिस तरह रहते हैं और काम करे हैं, उसमें पूरी तरह से बदलाव आने वाला है. भारत और अमरीका के लिए रिश्तों को मजबूत करने के लिए नई साझेदारियां करना फायदेमंद होगा.

सवाल- डाटा का स्थानीयकरण भी चिंता का एक मसला है ?

जवाब- इस बारे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस हो रही है. नई तकनीक ने दुनियाभर में समाजों के लिए चुनौती खड़ी कर दी है. इनके कारण दुनियाभर के रेग्युलेटरों के लिए चुनौती खड़ी हो गई है. यह केवल भारत और अमरीका में ही नहीं है. यूरोप की तरफ देखें, वहां भी निजता को लेकर चिताएं हैं. फ्रांस ने डिजिटल कंपनियों पर टैक्स लगा दिया है, जिससे अमरीका खुश नहीं है. ताजा रिपोर्ट यह बताती हैं कि अमरीका, चीन द्वारा एक कंपनी को हैक कर 150 मिलियन अमरीकियों की जानकारियों के चोरी होने की खबरों से नाखुश है. अमरीका ने चार चीनी नागरिकों को पीएलए का सदस्य होने का आरोप लगाकर प्रतिबंधित कर दिया है. इसलिए डाटा, डाटा के स्थान, कंपनियों और लोगों से रिश्ते, सरकारों के बीच के रिश्ते, इन सभी पर विश्वस्तर पर बहस हो रही है. नई तकनीक समाज के लिए नई चुनौतियां लेकर आती हैं और हमें इससे निपटने के लिए काम करते रहना पड़ेगा.

सवाल- कश्मीर को लेकर ट्रंप ने विवादास्पद बयान दिए हैं. ट्रंप की करीबी लिंडसे ग्राहम समेत चार वरिष्ठ सेनेटर्स ने स्टेट सेक्रेटरी को पत्र लिखकर कश्मीर में इंटरनेट पर रोक को खत्म करने, राजनीतिक बंदियों को रिहा करने की मांग के साथ सीएए-एनआरसी पर हो रहे विरोधों की तरफ भी ध्यान दिलाया है. यह मुद्दा क्या भूमिका निभाएगा?

जवाब- इसमें एक पक्ष है, जो राष्ट्रपति ट्रंप से संबंध रखता है और दूसरा जो कांग्रेस से संबंधित है. अपने पिछले तीन साल के कार्यकाल में राष्ट्रपति ट्रंप को अनिश्चित और अमरीकी विदेश और कूटनीति के तय मानकों से अलग जाते राष्ट्रपति को तौर पर देखा गया है. मैं स्तबद्ध था जब पिछले साल जुलाई में उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से मुलाक़ात की. उन्होंने तब कहा थी कि वह कश्मीर मामले पर मध्यस्थता को तैयार हैं और, भारतीय पीएम ने भी उनसे इस मामले में मध्यस्थता करने की बात कही है. मैं इसलिए अचंभित नहीं था कि मैं सरकार में था, बल्कि इसलिए क्योंकि मैंने वर्षों तक अमरीका और पाकिस्तान के मामलों को करीब से देखा है और इसलिए मैं यह कह सकता हूं कि कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री कभी किसी अमरीकी राष्ट्रपति से मध्यस्थता के लिए कहने की बात नहीं सोचेगा. तो यह साफ था कि ट्रंप अपने आप ही यह बात कह रहे थे और भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसका सख्त खंडन भी किया. इसके बाद ट्रंप ने कभी यह नहीं कहा कि वह मध्यस्थता के लिए तैयार हैं, लेकिन यह कहा है कि अगर दोनों पक्ष तैयार हों तो वह मदद कर सकते हैं. अमरीका के लिए अफगानिस्तान में की जा रही उसकी तालिबान से शांति समझौते की कोशिशों के लिए पाकिस्तान का समर्थन जरूरी है. सितंबर में मोदी के साथ भव्य 'हाउडी मोदी' के बाद ट्रंप ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ मुलाकात की और इस दौरान उन्होंने पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद पर एक्शन की बात को यह कहकर टाल दिया कि वह ईरान पर ध्यान दे रहे हैं. वह यह बात साफ समझते हैं कि पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों के साथ काम करता आ रहा है. वह यह भी जानते हैं कि कश्मीर मामले पर भारत किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की इजाजत नहीं देगा. इसलिए हम कहते हैं कि अगर आप पाकिस्तान को किसी तरह से व्यस्त रखना चाहते हैं तो ठीक है.जहां तक कांग्रेस का सवाल है, वह प्रशासन से काफी अलग तरह काम करती है. अमरीकी कांग्रेस सरकार के ही एक अंग के तरह काम करती है. कांग्रेस में डेमोक्रेट दल की मदद से कश्मीर पर एक प्रस्ताव दाखिल किया जा रहा है. यह इसलिए नहीं कि कांग्रेस भारत विरोधी है, बल्कि कश्मीर पर पाबंदियों और सीएए और एनआरसी से संबंधित मसलों पर कांग्रेस की अपनी एक राय है. इन सिनेटरों द्वारा किया गया एक्शन उसी का हिस्सा है. उनकी राजनीति यह कहती है कि वह इन मुद्दों पर विरोधी रुख लें. भारत को वह करने की जरूरत है, जो उसके लिए फायदेमंद हो. भारत ने अमरीकी प्रशासन के साथ रिश्ते बनाए हैं, लेकिन इसके साथ ही उसे कांग्रेस तक अपनी पहुंच को भी मजबूत करना है. साल 2000 से ही भारत को कांग्रेस से मिल रहे पूर्ण समर्थन (डेमोक्रेट और रिपब्लिकन) ने भारत की राह आसान की है. कांग्रेस से इस तरह का समर्थन पाने वाले देशों में इससे पहले इजरायल की ही गिनती होती रही है. मौजूदा समय में कांग्रेस में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट के बीच संबंध विरोधी हैं और वह ट्रंप और मोदी के रिश्तों को भी उसी नजर से देखते हैं और इसलिए कांग्रेस भारत की कई नीतियों को लेकर विरोध के स्वर इख्तियार कर रही है. भारत के लिए इसे लेकर सतर्क रहने की जरूरत है. कांग्रेस तक पहुंचने की कोशिशें जारी रखे और इस रिश्ते को और मजबूत करे.

सवाल- 'हाउडी मोदी' के दौरान रिपब्लिकन पार्टी ने इसे मोदी द्वारा ट्रंप के चुनाव प्रचार के तौर पर देखा था. अब अमरीका में चुनावों से कुछ महीने पहले हो रहे 'केम छो ट्रंप' के कारण क्या भारत अमरीकी कांग्रेस में अपने लिये सभी पार्टियों के समर्थन को खतरे में डाल रहा है ?

जवाब- अमरीका में कोई भी राष्ट्रपति हो, भारत को उसमें निवेश करना होगा. भारत ने राष्ट्रपति क्लिंटन ने भी निवेश किया था. राष्ट्रपति बुश के समय भी यही देखने को मिला. आपको याद होगा कि उस समय भारतीय प्रधानमंत्री ने अमरीकी राष्ट्रपति से सितंबर 2008 में उनके कार्यकाल के आखरी दौर में मुलाकात की थी और कहा था कि भारत के लोग आपसे बहुत प्यार करते हैं. यह एक ऐसे समय में हुआ था जब बुश की लोकप्रियता अमरीका और विश्व में काफी नीचे चल रही थी. भारत ने राष्ट्रपति ओबामा के साथ उस समय घनिष्ठता से काम किया था, जब ज़्यादातर कांग्रेस उनके खिलाफ थी. आपको ऐसा करना होगा, लेकिन यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि अमरीका में अन्य देशों के उलट, कांग्रेस कई मायनों में सरकार के बराबर है. अमरीकी राष्ट्रपति के भारत आने पर आपको यह दिखाना होगा कि उनका स्वागत है. आप किसी व्यक्ति का स्वागत नहीं कर रहे हैं. आप अमरीका के राष्ट्रपति का स्वागत कर रहे हैं.

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Last Updated : Mar 1, 2020, 8:36 AM IST
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