हैदराबाद : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मानना था कि भूमि पर अधिकार किसी व्यक्ति या राज्य का अधिकार नहीं होना चाहिए. गांधी का मानना था, जो जमीन जिस जगह पर है वह वहां के स्थानीय लोगों और समुदाय से जुड़ी होनी चाहिए. हालांकि, ट्रस्टीशिप की अवधारणा में एकाधिकार, विशेषाधिकार या व्यक्तिगत स्वामित्व के लिए कोई स्थान नहीं है. महात्मा गांधी मानते थे कि एक किसान के पास इतनी जमीन होनी चाहिए, जो उसकी और उसके परिवार की हो. जिसपर वह परिवार के साथ खेती कर सके.
महात्मा गांधी ने किसानों के बारे में लिखा था कि भारत किसानों की झोपड़ियों में बसता है. बुनकरों का कौशल भारत के गौरव की याद दिलाता है और इसलिए मैं खुद को किसान और बुनकर बताने में गर्व महसूस करता हूं.
किसान को यह जानना होगा कि उसका पहला व्यवसाय अपनी जरूरतों की चीजें पैदा करना है, क्योंकि किसान जब चीजें पैदा करता है तो उसकी सही कीमत वह जानता है, जब किसान ऐसा करने में सफल होता है, तो उसे बाजार नुकसान नहीं पहुंचा सकते हैं.
जैविक तरीके से खेती के पक्षधर थे बापू
गांधी ने आधुनिक सभ्यता को जीवन और कार्य के रूप में खारिज करते हुए कृषि, चरखा और गांव को समझदार मानव जीवन के लिए रूपक के रूप में स्वीकार किया. महात्मा गांधी का मानना था कि कृषि को जैविक तरीके से करना चाहिए.
उनका मानना था कि एक किसान के पास एक ऐसी भूमि होनी चाहिए, जिसके साथ वह अपना जीवन सही ढंग से चला सके और अपना जीवन गर्व के साथ व्यतीत कर सके.
यही कारण था कि आजादी की लड़ाई के दौरान उन्होंने किसानों के पक्ष में भूमि सुधार के लिए कोई आंदोलन नहीं किया. हालांकि, स्वतंत्रता के बाद, वह कृषि के क्षेत्र में एक नई क्रांति शुरू करना चाहते थे. इस क्रांति के तहत, वह भूमिहीन किसानों को संगठित, प्रबुद्ध और सक्रिय करना चाहते थे.
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गांधी का स्वराज (पूर्ण स्वतंत्रता) कृषि की अवधारणा सभी विकास की आधारशिला थी. वह ऐसी नीतियां चाहते थे जो कुटीर उद्योगों के एक नेटवर्क के माध्यम से लोगों के लिए आवश्यक कृषि और माल के उत्पादन में मदद करें और जो लोगों के लिए रोजगार पैदा कर सकें.