नई दिल्ली: राज्यसभा में विपक्ष की आवाज दबाने के, 15 सदस्यों के आरोपों को सभापति एम वेंकैया नायडू ने खारिज कर दिया. उन्होंने सोमवार को कहा अनुभवजन्य साक्ष्य बताते हैं कि यह शिकायत सही नहीं है.
शून्यकाल के दौरान सभापति ने बताया कि राज्यसभा के 15 सदस्यों ने उन्हें 25 जुलाई 2019 को एक पत्र लिखा है. उन्होंने बताया कि 14 दलों के सदस्यों द्वारा लिखे गए इस पत्र में यह कहते हुए क्षोभ व्यक्त किया गया है कि कुछ विधेयकों को संसद की स्थायी समितियों या प्रवर समिति के पास भेजे बिना ही पारित कर दिया गया.
सभापति ने कहा कि बिना जांच पड़ताल के, विधेयकों को पारित किए जाने को लेकर चिंता जताने वाले इस पत्र की सामग्री के बारे में मीडिया में भी खबरें आई हैं. उन्होंने कहा इससे हमारे उच्च सदन के कामकाज को लेकर गलत संदेश जाता है और यह हमारे संसदीय लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है.
नायडू ने कहा कि 15 सदस्यों के इस पत्र में उन विधेयकों के बारे में कहा गया है जिन्हें 14वीं, 15वीं, 16वीं और वर्तमान लोकसभा के दौरान जांच के लिए संसदीय समिति के पास भेजा गया था .
उन्होंने कहा, अगर उनकी शिकायत यह है कि लोकसभा के इस सत्र में पेश किए गए विधयेकों को संसदीय समिति के पास जांच के लिए नहीं भेजा गया तो यह राज्यसभा का सभापति होने की वजह से मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता.
इसलिए मैं इस शिकायत के बारे में कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हूं और मुझे लगता है कि यह शिकायत गलत व्यक्ति के पास की गई है.
नायडू ने कहा कि संसद में विधेयकों के पारित होने को लेकर व्यापक संदेश गया है. राज्यसभा संसद का घटक है और वह राज्यसभा के सभापति हैं इसलिए वह उच्च सदन में पेश विधेयक की जांच पड़ताल को लेकर तथ्यपरक जानकारी देना चाहेंगे.
सभापति ने कहा कि उन्होंने राज्यसभा के पिछले पांच सत्रों की अध्यक्षता की है. उनकी अध्यक्षता में हुए 244वें सत्र से लेकर 248वें सत्र के दौरान सरकार ने 10 विधेयक पहले राज्यसभा में पेश किए.
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उन्होंने कहा कि इन दस विधेयकों में से उन्होंने 8 विधेयकों को विभाग संबंधी स्थायी संसदीय समितियों के पास भेजा. हालांकि ऐसा करना जरूरी नहीं है.
नायडू ने कहा कि अन्य दो विधेयक कुछ समुदायों को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल करने संबंधी थे जिनकी स्थायी समिति से जांच कराने की जरूरत महसूस नहीं हुई इसलिए उन्हें ऐसी समितियों के पास नहीं भेजा गया.
सभापति ने कहा कि मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक लोकसभा में पारित हो चुका है. इस विधेयक की स्थायी संसदीय समिति ने जांच की थी. दूसरे सदन में पारित हो चुका यह विधेयक राज्यसभा की प्रवर समिति के पास भेजा जा चुका है.
उन्होंने उम्मीद जताई कि यह तथ्य राज्यसभा द्वारा जल्दबाजी में विधेयक पारित किए जाने के आरोपों को खारिज करने के लिए पर्याप्त हैं.
नायडू ने कहा कि राज्यसभा के वर्तमान 249वें सत्र में चार विधेयक पहले उच्च सदन में पेश किए गए हैं.
उन्होंने बताया कि इनमें से तीन विधेयकों पर सदन में चर्चा की गई और वे पारित कर दिए गए.
इन विधेयकों को स्थायी समितियों के पास इसलिए नहीं भेजा गया क्योंकि इन समितियों का अभी गठन नहीं हुआ है.
सभापति ने कहा, विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजना है या नहीं, इस बारे में फैसला मैं नहीं बल्कि यह सदन करता है.
उन्होंने कहा कि चौथा विधेयक दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) विधेयक, 2019 है जिसे राज्यसभा में पहले पेश किया गया. इस विधेयक को चर्चा एवं पारित करने के लिए अभी लिया जाना है.
नायडू ने कहा कि लोकसभा में परित हो चुके सात अन्य विधेयकों पर इस सदन में चर्चा होनी है. स्थायी समितियां इन विधेयकों की जांच कर चुकी हैं.
सभापति ने कहा कि 15 सदस्यों द्वारा लिखे गए पत्र में एक आरोप यह भी है कि सदन में विपक्ष की आवाज को दबाया जाता है. सदस्यों के अनुसार, सदन में जितनी अल्पकालिक चर्चा होनी चाहिए, उतनी नहीं हो रहीं.
उन्होंने कहा कि एक अल्पकालिक चर्चा होती रही है. राज्यसभा के हर साल न्यूनतम तीन सत्र होते हैं और आंकड़े बताते हैं कि हर सत्र में औसतन तीन से कम अल्पकालिक चर्चा हुई.
नायडू ने कहा कि इस सत्र में भी अब तक दो अल्पकालिक चर्चाएं हो चुकी हैं. एक और चर्चा हो सकती थी लेकिन लगभग ढाई दिन तक तो सदन में कोई कामकाज ही नहीं हो पाया. हालांकि सत्र की शेष अवधि में ऐसी चर्चा होने की गुंजाइश है.
उन्होंने कहा, इससे पता चलता है कि इस बारे में परंपरा का कोई उल्लंघन नहीं हुआ.
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सभापति ने कहा, इस तरह प्रमाण साबित करते हैं कि राज्यसभा में विपक्ष की आवाज दबाने का आरोप भी सही नहीं है.
15 सदस्यों के लिखे गए पत्र का संदर्भ देते हुए नायडू ने कहा कि यह समय आत्मावलोकन करने का है ताकि उच्च सदन अपनी गरिमा के मुताबिक काम कर सके.
संसद के सत्रों की अवधि और समय के बारे में सभापति ने कहा कि यह विशेषाधिकार सरकार का है तथा संसद के सदनों के पीठासीन अधिकारी इस बारे में कुछ नहीं कर सकते.
उन्होंने कहा कि किसी भी विधेयक की प्रभावी जांच सुनिश्चित करना विपक्ष का अधिकार और जिम्मेदारी है. एक दूसरे की चिंताओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए.
नायडू ने कहा, राज्यसभा का सभापति होने के नाते मैं यह आश्वासन देना चाहूंगा कि किसी के भी ऐसे किसी भी प्रयास को मैं अनुमति नहीं दूंगा जिससे इस सदन के सदस्यों के अधिकार प्रभावित होते हों.