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विपक्ष ने राज्यसभा में अनदेखी का आरोप लगाया, सभापति नायडू का इनकार

विपक्ष ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार में उनकी आवाज को दबा दिया जाता है. विपक्ष के इस आरोप को खारिज करते हुए सभापति एम वेंकैया नायडू ने कहा है कि विपक्ष का यह आरोप ठीक नहीं है.

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Published : Jul 29, 2019, 11:49 PM IST

वेंकैया नायडू

नई दिल्ली: राज्यसभा में विपक्ष की आवाज दबाने के, 15 सदस्यों के आरोपों को सभापति एम वेंकैया नायडू ने खारिज कर दिया. उन्होंने सोमवार को कहा अनुभवजन्य साक्ष्य बताते हैं कि यह शिकायत सही नहीं है.

शून्यकाल के दौरान सभापति ने बताया कि राज्यसभा के 15 सदस्यों ने उन्हें 25 जुलाई 2019 को एक पत्र लिखा है. उन्होंने बताया कि 14 दलों के सदस्यों द्वारा लिखे गए इस पत्र में यह कहते हुए क्षोभ व्यक्त किया गया है कि कुछ विधेयकों को संसद की स्थायी समितियों या प्रवर समिति के पास भेजे बिना ही पारित कर दिया गया.

सभापति ने कहा कि बिना जांच पड़ताल के, विधेयकों को पारित किए जाने को लेकर चिंता जताने वाले इस पत्र की सामग्री के बारे में मीडिया में भी खबरें आई हैं. उन्होंने कहा इससे हमारे उच्च सदन के कामकाज को लेकर गलत संदेश जाता है और यह हमारे संसदीय लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है.

नायडू ने कहा कि 15 सदस्यों के इस पत्र में उन विधेयकों के बारे में कहा गया है जिन्हें 14वीं, 15वीं, 16वीं और वर्तमान लोकसभा के दौरान जांच के लिए संसदीय समिति के पास भेजा गया था .

उन्होंने कहा, अगर उनकी शिकायत यह है कि लोकसभा के इस सत्र में पेश किए गए विधयेकों को संसदीय समिति के पास जांच के लिए नहीं भेजा गया तो यह राज्यसभा का सभापति होने की वजह से मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता.

इसलिए मैं इस शिकायत के बारे में कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हूं और मुझे लगता है कि यह शिकायत गलत व्यक्ति के पास की गई है.

नायडू ने कहा कि संसद में विधेयकों के पारित होने को लेकर व्यापक संदेश गया है. राज्यसभा संसद का घटक है और वह राज्यसभा के सभापति हैं इसलिए वह उच्च सदन में पेश विधेयक की जांच पड़ताल को लेकर तथ्यपरक जानकारी देना चाहेंगे.

सभापति ने कहा कि उन्होंने राज्यसभा के पिछले पांच सत्रों की अध्यक्षता की है. उनकी अध्यक्षता में हुए 244वें सत्र से लेकर 248वें सत्र के दौरान सरकार ने 10 विधेयक पहले राज्यसभा में पेश किए.

पढ़ें- राज्यसभा में पेश होगा तीन तलाक विधेयक, BJP ने सांसदों को व्हिप जारी किया : सूत्र

उन्होंने कहा कि इन दस विधेयकों में से उन्होंने 8 विधेयकों को विभाग संबंधी स्थायी संसदीय समितियों के पास भेजा. हालांकि ऐसा करना जरूरी नहीं है.

नायडू ने कहा कि अन्य दो विधेयक कुछ समुदायों को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल करने संबंधी थे जिनकी स्थायी समिति से जांच कराने की जरूरत महसूस नहीं हुई इसलिए उन्हें ऐसी समितियों के पास नहीं भेजा गया.

सभापति ने कहा कि मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक लोकसभा में पारित हो चुका है. इस विधेयक की स्थायी संसदीय समिति ने जांच की थी. दूसरे सदन में पारित हो चुका यह विधेयक राज्यसभा की प्रवर समिति के पास भेजा जा चुका है.

उन्होंने उम्मीद जताई कि यह तथ्य राज्यसभा द्वारा जल्दबाजी में विधेयक पारित किए जाने के आरोपों को खारिज करने के लिए पर्याप्त हैं.

नायडू ने कहा कि राज्यसभा के वर्तमान 249वें सत्र में चार विधेयक पहले उच्च सदन में पेश किए गए हैं.

उन्होंने बताया कि इनमें से तीन विधेयकों पर सदन में चर्चा की गई और वे पारित कर दिए गए.

इन विधेयकों को स्थायी समितियों के पास इसलिए नहीं भेजा गया क्योंकि इन समितियों का अभी गठन नहीं हुआ है.

सभापति ने कहा, विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजना है या नहीं, इस बारे में फैसला मैं नहीं बल्कि यह सदन करता है.

उन्होंने कहा कि चौथा विधेयक दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) विधेयक, 2019 है जिसे राज्यसभा में पहले पेश किया गया. इस विधेयक को चर्चा एवं पारित करने के लिए अभी लिया जाना है.

नायडू ने कहा कि लोकसभा में परित हो चुके सात अन्य विधेयकों पर इस सदन में चर्चा होनी है. स्थायी समितियां इन विधेयकों की जांच कर चुकी हैं.

सभापति ने कहा कि 15 सदस्यों द्वारा लिखे गए पत्र में एक आरोप यह भी है कि सदन में विपक्ष की आवाज को दबाया जाता है. सदस्यों के अनुसार, सदन में जितनी अल्पकालिक चर्चा होनी चाहिए, उतनी नहीं हो रहीं.

उन्होंने कहा कि एक अल्पकालिक चर्चा होती रही है. राज्यसभा के हर साल न्यूनतम तीन सत्र होते हैं और आंकड़े बताते हैं कि हर सत्र में औसतन तीन से कम अल्पकालिक चर्चा हुई.

नायडू ने कहा कि इस सत्र में भी अब तक दो अल्पकालिक चर्चाएं हो चुकी हैं. एक और चर्चा हो सकती थी लेकिन लगभग ढाई दिन तक तो सदन में कोई कामकाज ही नहीं हो पाया. हालांकि सत्र की शेष अवधि में ऐसी चर्चा होने की गुंजाइश है.

उन्होंने कहा, इससे पता चलता है कि इस बारे में परंपरा का कोई उल्लंघन नहीं हुआ.

पढ़ें- लोकसभा में पारित हुआ NMC विधेयक, हर्षवर्धन ने बताया प्रगतिशील

सभापति ने कहा, इस तरह प्रमाण साबित करते हैं कि राज्यसभा में विपक्ष की आवाज दबाने का आरोप भी सही नहीं है.

15 सदस्यों के लिखे गए पत्र का संदर्भ देते हुए नायडू ने कहा कि यह समय आत्मावलोकन करने का है ताकि उच्च सदन अपनी गरिमा के मुताबिक काम कर सके.

संसद के सत्रों की अवधि और समय के बारे में सभापति ने कहा कि यह विशेषाधिकार सरकार का है तथा संसद के सदनों के पीठासीन अधिकारी इस बारे में कुछ नहीं कर सकते.

उन्होंने कहा कि किसी भी विधेयक की प्रभावी जांच सुनिश्चित करना विपक्ष का अधिकार और जिम्मेदारी है. एक दूसरे की चिंताओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए.

नायडू ने कहा, राज्यसभा का सभापति होने के नाते मैं यह आश्वासन देना चाहूंगा कि किसी के भी ऐसे किसी भी प्रयास को मैं अनुमति नहीं दूंगा जिससे इस सदन के सदस्यों के अधिकार प्रभावित होते हों.

नई दिल्ली: राज्यसभा में विपक्ष की आवाज दबाने के, 15 सदस्यों के आरोपों को सभापति एम वेंकैया नायडू ने खारिज कर दिया. उन्होंने सोमवार को कहा अनुभवजन्य साक्ष्य बताते हैं कि यह शिकायत सही नहीं है.

शून्यकाल के दौरान सभापति ने बताया कि राज्यसभा के 15 सदस्यों ने उन्हें 25 जुलाई 2019 को एक पत्र लिखा है. उन्होंने बताया कि 14 दलों के सदस्यों द्वारा लिखे गए इस पत्र में यह कहते हुए क्षोभ व्यक्त किया गया है कि कुछ विधेयकों को संसद की स्थायी समितियों या प्रवर समिति के पास भेजे बिना ही पारित कर दिया गया.

सभापति ने कहा कि बिना जांच पड़ताल के, विधेयकों को पारित किए जाने को लेकर चिंता जताने वाले इस पत्र की सामग्री के बारे में मीडिया में भी खबरें आई हैं. उन्होंने कहा इससे हमारे उच्च सदन के कामकाज को लेकर गलत संदेश जाता है और यह हमारे संसदीय लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है.

नायडू ने कहा कि 15 सदस्यों के इस पत्र में उन विधेयकों के बारे में कहा गया है जिन्हें 14वीं, 15वीं, 16वीं और वर्तमान लोकसभा के दौरान जांच के लिए संसदीय समिति के पास भेजा गया था .

उन्होंने कहा, अगर उनकी शिकायत यह है कि लोकसभा के इस सत्र में पेश किए गए विधयेकों को संसदीय समिति के पास जांच के लिए नहीं भेजा गया तो यह राज्यसभा का सभापति होने की वजह से मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता.

इसलिए मैं इस शिकायत के बारे में कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हूं और मुझे लगता है कि यह शिकायत गलत व्यक्ति के पास की गई है.

नायडू ने कहा कि संसद में विधेयकों के पारित होने को लेकर व्यापक संदेश गया है. राज्यसभा संसद का घटक है और वह राज्यसभा के सभापति हैं इसलिए वह उच्च सदन में पेश विधेयक की जांच पड़ताल को लेकर तथ्यपरक जानकारी देना चाहेंगे.

सभापति ने कहा कि उन्होंने राज्यसभा के पिछले पांच सत्रों की अध्यक्षता की है. उनकी अध्यक्षता में हुए 244वें सत्र से लेकर 248वें सत्र के दौरान सरकार ने 10 विधेयक पहले राज्यसभा में पेश किए.

पढ़ें- राज्यसभा में पेश होगा तीन तलाक विधेयक, BJP ने सांसदों को व्हिप जारी किया : सूत्र

उन्होंने कहा कि इन दस विधेयकों में से उन्होंने 8 विधेयकों को विभाग संबंधी स्थायी संसदीय समितियों के पास भेजा. हालांकि ऐसा करना जरूरी नहीं है.

नायडू ने कहा कि अन्य दो विधेयक कुछ समुदायों को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल करने संबंधी थे जिनकी स्थायी समिति से जांच कराने की जरूरत महसूस नहीं हुई इसलिए उन्हें ऐसी समितियों के पास नहीं भेजा गया.

सभापति ने कहा कि मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक लोकसभा में पारित हो चुका है. इस विधेयक की स्थायी संसदीय समिति ने जांच की थी. दूसरे सदन में पारित हो चुका यह विधेयक राज्यसभा की प्रवर समिति के पास भेजा जा चुका है.

उन्होंने उम्मीद जताई कि यह तथ्य राज्यसभा द्वारा जल्दबाजी में विधेयक पारित किए जाने के आरोपों को खारिज करने के लिए पर्याप्त हैं.

नायडू ने कहा कि राज्यसभा के वर्तमान 249वें सत्र में चार विधेयक पहले उच्च सदन में पेश किए गए हैं.

उन्होंने बताया कि इनमें से तीन विधेयकों पर सदन में चर्चा की गई और वे पारित कर दिए गए.

इन विधेयकों को स्थायी समितियों के पास इसलिए नहीं भेजा गया क्योंकि इन समितियों का अभी गठन नहीं हुआ है.

सभापति ने कहा, विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजना है या नहीं, इस बारे में फैसला मैं नहीं बल्कि यह सदन करता है.

उन्होंने कहा कि चौथा विधेयक दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) विधेयक, 2019 है जिसे राज्यसभा में पहले पेश किया गया. इस विधेयक को चर्चा एवं पारित करने के लिए अभी लिया जाना है.

नायडू ने कहा कि लोकसभा में परित हो चुके सात अन्य विधेयकों पर इस सदन में चर्चा होनी है. स्थायी समितियां इन विधेयकों की जांच कर चुकी हैं.

सभापति ने कहा कि 15 सदस्यों द्वारा लिखे गए पत्र में एक आरोप यह भी है कि सदन में विपक्ष की आवाज को दबाया जाता है. सदस्यों के अनुसार, सदन में जितनी अल्पकालिक चर्चा होनी चाहिए, उतनी नहीं हो रहीं.

उन्होंने कहा कि एक अल्पकालिक चर्चा होती रही है. राज्यसभा के हर साल न्यूनतम तीन सत्र होते हैं और आंकड़े बताते हैं कि हर सत्र में औसतन तीन से कम अल्पकालिक चर्चा हुई.

नायडू ने कहा कि इस सत्र में भी अब तक दो अल्पकालिक चर्चाएं हो चुकी हैं. एक और चर्चा हो सकती थी लेकिन लगभग ढाई दिन तक तो सदन में कोई कामकाज ही नहीं हो पाया. हालांकि सत्र की शेष अवधि में ऐसी चर्चा होने की गुंजाइश है.

उन्होंने कहा, इससे पता चलता है कि इस बारे में परंपरा का कोई उल्लंघन नहीं हुआ.

पढ़ें- लोकसभा में पारित हुआ NMC विधेयक, हर्षवर्धन ने बताया प्रगतिशील

सभापति ने कहा, इस तरह प्रमाण साबित करते हैं कि राज्यसभा में विपक्ष की आवाज दबाने का आरोप भी सही नहीं है.

15 सदस्यों के लिखे गए पत्र का संदर्भ देते हुए नायडू ने कहा कि यह समय आत्मावलोकन करने का है ताकि उच्च सदन अपनी गरिमा के मुताबिक काम कर सके.

संसद के सत्रों की अवधि और समय के बारे में सभापति ने कहा कि यह विशेषाधिकार सरकार का है तथा संसद के सदनों के पीठासीन अधिकारी इस बारे में कुछ नहीं कर सकते.

उन्होंने कहा कि किसी भी विधेयक की प्रभावी जांच सुनिश्चित करना विपक्ष का अधिकार और जिम्मेदारी है. एक दूसरे की चिंताओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए.

नायडू ने कहा, राज्यसभा का सभापति होने के नाते मैं यह आश्वासन देना चाहूंगा कि किसी के भी ऐसे किसी भी प्रयास को मैं अनुमति नहीं दूंगा जिससे इस सदन के सदस्यों के अधिकार प्रभावित होते हों.

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PRI GEN NAT
.NEWDEL PAR12
RS-CHAIRMAN OPPN
Naidu dismisses charge that voice of oppn smothered in House
         New Delhi, Jul 29 (PTI) Rajya Sabha Chairman M Venkaiah
Naidu on Monday rejected the allegation by 15 MPs that voice
of the opposition was being "smothered" in the House, saying
empirical evidence goes to prove that the complaint does not
stand scrutiny.
         During the Zero Hour, Naidu said 15 members of Rajya
Sabha belonging to 14 parties addressed him a letter dated
July 25, 2019 conveying what they called their anguish and
concern over passing of Bills without scrutiny by either
Parliamentary Standing or Select Committees.
         Noting that the contents of the letter have been widely
reported in the media, he said, "This has cast a cloud over
the functioning of our apex legislature which is not good for
our parliamentary democracy".
         He said the 15 members have quoted some statistics about
the number of bills referred and not referred to scrutiny
either by parliamentary committees during the 14th, 15th, 16th
and the present Lok Sabha.
         "If their complaint is that Bills first introduced in
these Lok Sabha sessions were not referred to parliamentary
committees for scrutiny, that is not certainly in my domain as
the Chairman of Rajya Sabha. So, I am not in a position to
respond to this complaint and I feel that this complaint, if
any, has been addressed to the wrong person," Naidu said.
         Naidu further said "since a broad message" has gone about
hurried legislation by Parliament, of which Rajya Sabha is a
constituent, as its Chairman, he would like to clarify the
factual position regarding scrutiny of Bills introduced in the
Upper House.
         During the last five sessions that he has presided (244th
to 248th sessions), Naidu said 10 Bills have been first
introduced by the Government in Rajya Sabha.
         "I am happy to inform you that as Chairman of this august
House, I have referred 8 of those 10 Bills to respective
Department Related Standing Committees, though it is not
mandatory to do so," he said.
         The other two Bills that were not so referred related to
inclusion of some more groups in the category of Scheduled
tribes as they did not warrant a detailed scrutiny by standing
committee.
         Further, one more Bill -- The Motor Vehicles (Amendment)
Bill -- as received from Lok Sabha after detailed scrutiny by
the Standing Committee concerned and passage by the other
House was again referred to the Select Committee of Rajya
Sabha.
         "I hope that all of you would agree that such a record
would not justify the allegation if it is so intended that
Rajya Sabha is a party to hurried legislation," Naidu said.
         During the current session (249th), four bills have so
far been introduced first in the Rajya Sabha. Of these, three
Bills have been taken up for consideration and passed.
         These Bills could not be referred to Standing Committees
because they are still to be constituted, Naidu said.
         "...it is for the House to decide if a Bill is to be
referred to the Select Committee and not me as the Chairman of
the House," he added.
         The fourth Bill -- the Insolvency and Bankruptcy Code
(Amendment) Bill -- first introduced in Rajya Sabha is still
to be taken for consideration and passing.
         The Chairman also said seven more Bills to be taken up in
Rajya Sabha for consideration as received from the Lok Sabha
also have been already scrutinised by standing committees
         "The fourth and important complaint is about the alleged
smothering of the voice of the opposition in the Rajya Sabha.
In support of this allegation, the Honble Members have raised
in their letter the inadequacy of Short Duration Discussions
in the House," he said.
         In support of this complaint, Naidu added the Members
have referred to what they called the long standing convention
of having one such Short Duration Discussion each week.
         To this, Naidu said since there are a minimum of three
sessions of Rajya Sabha every year, going by the data, Short
Duration Discussions taken up in House during 30 years (1952-
2013) was less than 3 per session.
         This does not support the contention that by convention,
one such discussion is taken up every week during the sessions
of Rajya Sabha, he said.
         "During this session, two such discussions have already
been taken up. One more such discussion could have been taken
up by now but the House was not allowed to transact any
business for two and a half days," he said.
         And there is a certain scope of taking up more during the
remainder of this session, Naidu added.
         "This shows that there is no violation of conventions in
this regard.
         "This empirical evidence goes to prove that the complaint
of smothering the voice of opposition in Rajya Sabah also does
not stand scrutiny," the Chairman said.
         In the context of issues raised by 15 members of Rajya
Sabha, Naidu said it is time for a collective introspection
and reflection so that the House of Elders can function as
envisaged by the founding fathers.
         Regarding the timing and duration of the sessions of
Parliament, it is the prerogative of the Government of the day
and the Presiding Officers of Houses of Parliament have no say
in it, he said.
         Proposing legislations is in the domain of the executive
and ensuring effective scrutiny of such proposals is the right
and responsibility of the opposition and this should be
ensured in a harmonised manner by taking each others concerns
on board.
         "I can assure you all that as Chairman of Rajya Sabha I
will not allow any effort from anybody to undermine the rights
and privileges of its members," he said.
         With regard to scrutiny of Bills by parliamentary
committees, there is perhaps a need for codification of
guidelines that could make the road ahead much clear, he
added. PTI NKD
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