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जम्मू-कश्मीर : विशेष दर्जा हटाने के एक साल बाद भी जम्मू में निराशा - जम्मू-कश्मीर के विकास

केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा हटाने को ऐतिहासिक कदम बताया था, लेकिन एक साल बीतने के बाद जम्मू क्षेत्र के कई लोगों ने विकास में गिरावट को लेकर निराशा व्यक्त की है. इनमें वह लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने केंद्र सरकार के विशेष दर्जा हटाने के कदम का समर्थन किया था. जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा हटाने की पहली वर्षगांठ पर पढ़ें हमारी विशेष रिपोर्ट...

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विशेष दर्जा हटाने के एक साल बाद भी जम्मू में बेचैनी
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Published : Aug 5, 2020, 12:43 AM IST

जम्मू : पिछले साल पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करते हुए एनडीए सरकार ने दावा किया था कि इस कदम से क्षेत्र में जबरदस्त आर्थिक विकास और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होगा. हालांकि एक साल बीतने के बाद वह लोग 'निराशाजनक' परिणाम पर अपना असंतोष व्यक्त कर रहे हैं, जिन्होंने अनुच्छेद 370 और 35A को निरस्त करने के केंद्र के कदम का खुलकर समर्थन किया था.

मोदी सरकार ने तर्क दिया था कि अनुच्छेद 370 और 35A जम्मू-कश्मीर के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए एक बाधा थे. साथ ही दावा किया गया था कि तत्कालीन राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में विभाजित करने से हिंसा प्रभावित कश्मीर घाटी में शांति की बहाली में मदद मिलेगी.

जहां तक ​​नए केंद्रशासित प्रदेशों के विकास का सवाल है, तो चालू वित्त वर्ष के बजट आवंटन के आंकड़ों से खुद स्पष्ट हो जाता है, जहां मोदी सरकार ने 2020-21 के बजट में केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिए 30,757 करोड़ रुपये और लद्दाख के लिए 5,958 करोड़ रुपये आवंटित किए.

अधिकांश विश्लेषकों का मानना ​​है कि केंद्रशासित प्रदेशों के लिए यह आवंटन बहुत कम है. यह राशि केंद्रशासित प्रदेशों के आर्थिक विकास के लिए नाममात्र है. इसे प्रतीत होता है कि केंद्र सरकार लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के विकास और आर्थिक वृद्धि के बारे में अपने वादे को पूरा करने के लिए गंभीर नहीं है.

जम्मू क्षेत्र में धारणा यह है कि विकास की प्रक्रिया में वृद्धि की बजाय, जैसा कि उस समय सरकार द्वारा वादा किया गया था. तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य के पुनर्गठन ने केवल आम लोगों के दुखों में इजाफा ही किया है.

ईटीवी भारत से बात करते हुए एक युवा मोहिंदर जीत सिंह ने कहा, 'अनुच्छेद 370 और 35A के निरस्त होने से इस जगह पर केवल आर्थिक संकट आया. भाजपा सरकार ने जम्मू के लोगों से वादा किया था कि यह कदम उनके जीवन में समृद्धि लाएगा, लेकिन अब हम सबसे खराब स्थिति को देख सकते हैं. आजीविका पर संकट पैदा हो गया है. तब से बेरोजगारी बहुत बढ़ गई है. उज्ज्वल भविष्य के आकर्षक सपने बस भ्रम साबित हुए हैं. सरकार केवल बाहरी लोगों को अधिवास प्रमाण पत्र देकर खुश कर रही है, जबकि जम्मू के मूल निवासी चिंतित हैं, वह दयनीय स्थिति का सामना कर रहे हैं.'

क्षेत्रीय और स्थानीय राजनीतिक दल और उनके कार्यकर्ता भी पूर्ववर्ती राज्य की स्थिति में परिवर्तन और वादों को पूरा करने में सरकार की विफलता के कारण नाराज हैं.

वहीं, दूसरी ओर नेशनल कॉन्फ्रेंस के अस्थायी अध्यक्ष शेख बशीर अहमद ने कहा, 'उन्होंने (केंद्र) 5 अगस्त, 2019 को उठाए गए कदम से जम्मू-कश्मीर को बर्बाद कर दिया है. बेरोजगारी बढ़ गई है और पिछले एक साल से व्यापार गतिविधियां पूरी तरह से रुकी हुई हैं. उन्होंने यहां की लोकतांत्रिक संस्थाओं को भी नुकसान पहुंचाया है.'

विशेष दर्जा हटाने के एक साल बाद भी जम्मू में निराशा

उन्होंने आगे कहा, 'मोदी सरकार ने पांच अगस्त के अपने फैसले को सही ठहराया था और इसे एक उपलब्धि बताते हुए कहा था कि उसने महान कार्य किया है, जो पूर्ववर्ती सरकारें 70 वर्ष में नहीं कर सकीं, जबकि सच्चाई यह है कि हमने वह सब कुछ खो दिया है जो हमने पिछले 70 साल के दौरान हासिल किया था.'

दिलचस्प बात यह है कि जिन लोगों ने जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा और विशेष दर्जा निरस्त करने के फैसले का समर्थन किया था, वह भी आजकल निराशा जाहिर कर रहे हैं.

स्थानीय राजनीतिक समूह, एकजुट जम्मू (यूनाइटेड जम्मू) के अध्यक्ष अंकुर शर्मा ने कहा, 'हमने पिछले साल पांच अगस्त को भारत सरकार के इस कदम पर जश्न मनाया था, क्योंकि हमें उम्मीद थी कि इस संशोधन से कश्मीर केंद्रित राजनीति का युग समाप्त हो जाएगा और जम्मू के लोगों को उनके राजनीतिक और विकासात्मक अधिकार मिलने शुरू हो जाएंगे. अब एक साल बीत गया है, लेकिन हमें अभी तक स्थिति में कोई सुधार नहीं दिखाई दे रहा है. हमें लगता है कि हमारे साथ धोखा हुआ है.'

पढ़ें - जम्मू-कश्मीर : पत्रकार काजी शिबली जेल भेजे गए, नौ महीने बाद हुई थी रिहाई

इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए शिवसेना नेता मनीष साहनी ने कहा, 'हम जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करने के बाद समृद्धि की आशा कर रहे थे, लेकिन ऐसा लगता है कि भाजपा ने हमारी आशाओं और सपनों को बर्बाद कर दिया है. जम्मू की जनता ने इस कार्य के लिए सरकार का समर्थन किया था, क्योंकि विकास और समृद्धि के संबंध में हमसे कई वादे किए गए थे, लेकिन अब ऐसा लगता है कि हमारे साथ छल किया गया है.

सरकार से वादों को पूरा करने की मांग करते हुए साहनी ने कहा, 'हमें अभी भी उम्मीद है कि भाजपा सरकार केंद्रशासित प्रदेश को विनाश के रास्ते से वापस लाने और विकास व समृद्धि के रास्ते पर लाने के लिए कदम उठाएगी.'

जम्मू : पिछले साल पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करते हुए एनडीए सरकार ने दावा किया था कि इस कदम से क्षेत्र में जबरदस्त आर्थिक विकास और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होगा. हालांकि एक साल बीतने के बाद वह लोग 'निराशाजनक' परिणाम पर अपना असंतोष व्यक्त कर रहे हैं, जिन्होंने अनुच्छेद 370 और 35A को निरस्त करने के केंद्र के कदम का खुलकर समर्थन किया था.

मोदी सरकार ने तर्क दिया था कि अनुच्छेद 370 और 35A जम्मू-कश्मीर के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए एक बाधा थे. साथ ही दावा किया गया था कि तत्कालीन राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में विभाजित करने से हिंसा प्रभावित कश्मीर घाटी में शांति की बहाली में मदद मिलेगी.

जहां तक ​​नए केंद्रशासित प्रदेशों के विकास का सवाल है, तो चालू वित्त वर्ष के बजट आवंटन के आंकड़ों से खुद स्पष्ट हो जाता है, जहां मोदी सरकार ने 2020-21 के बजट में केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिए 30,757 करोड़ रुपये और लद्दाख के लिए 5,958 करोड़ रुपये आवंटित किए.

अधिकांश विश्लेषकों का मानना ​​है कि केंद्रशासित प्रदेशों के लिए यह आवंटन बहुत कम है. यह राशि केंद्रशासित प्रदेशों के आर्थिक विकास के लिए नाममात्र है. इसे प्रतीत होता है कि केंद्र सरकार लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के विकास और आर्थिक वृद्धि के बारे में अपने वादे को पूरा करने के लिए गंभीर नहीं है.

जम्मू क्षेत्र में धारणा यह है कि विकास की प्रक्रिया में वृद्धि की बजाय, जैसा कि उस समय सरकार द्वारा वादा किया गया था. तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य के पुनर्गठन ने केवल आम लोगों के दुखों में इजाफा ही किया है.

ईटीवी भारत से बात करते हुए एक युवा मोहिंदर जीत सिंह ने कहा, 'अनुच्छेद 370 और 35A के निरस्त होने से इस जगह पर केवल आर्थिक संकट आया. भाजपा सरकार ने जम्मू के लोगों से वादा किया था कि यह कदम उनके जीवन में समृद्धि लाएगा, लेकिन अब हम सबसे खराब स्थिति को देख सकते हैं. आजीविका पर संकट पैदा हो गया है. तब से बेरोजगारी बहुत बढ़ गई है. उज्ज्वल भविष्य के आकर्षक सपने बस भ्रम साबित हुए हैं. सरकार केवल बाहरी लोगों को अधिवास प्रमाण पत्र देकर खुश कर रही है, जबकि जम्मू के मूल निवासी चिंतित हैं, वह दयनीय स्थिति का सामना कर रहे हैं.'

क्षेत्रीय और स्थानीय राजनीतिक दल और उनके कार्यकर्ता भी पूर्ववर्ती राज्य की स्थिति में परिवर्तन और वादों को पूरा करने में सरकार की विफलता के कारण नाराज हैं.

वहीं, दूसरी ओर नेशनल कॉन्फ्रेंस के अस्थायी अध्यक्ष शेख बशीर अहमद ने कहा, 'उन्होंने (केंद्र) 5 अगस्त, 2019 को उठाए गए कदम से जम्मू-कश्मीर को बर्बाद कर दिया है. बेरोजगारी बढ़ गई है और पिछले एक साल से व्यापार गतिविधियां पूरी तरह से रुकी हुई हैं. उन्होंने यहां की लोकतांत्रिक संस्थाओं को भी नुकसान पहुंचाया है.'

विशेष दर्जा हटाने के एक साल बाद भी जम्मू में निराशा

उन्होंने आगे कहा, 'मोदी सरकार ने पांच अगस्त के अपने फैसले को सही ठहराया था और इसे एक उपलब्धि बताते हुए कहा था कि उसने महान कार्य किया है, जो पूर्ववर्ती सरकारें 70 वर्ष में नहीं कर सकीं, जबकि सच्चाई यह है कि हमने वह सब कुछ खो दिया है जो हमने पिछले 70 साल के दौरान हासिल किया था.'

दिलचस्प बात यह है कि जिन लोगों ने जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा और विशेष दर्जा निरस्त करने के फैसले का समर्थन किया था, वह भी आजकल निराशा जाहिर कर रहे हैं.

स्थानीय राजनीतिक समूह, एकजुट जम्मू (यूनाइटेड जम्मू) के अध्यक्ष अंकुर शर्मा ने कहा, 'हमने पिछले साल पांच अगस्त को भारत सरकार के इस कदम पर जश्न मनाया था, क्योंकि हमें उम्मीद थी कि इस संशोधन से कश्मीर केंद्रित राजनीति का युग समाप्त हो जाएगा और जम्मू के लोगों को उनके राजनीतिक और विकासात्मक अधिकार मिलने शुरू हो जाएंगे. अब एक साल बीत गया है, लेकिन हमें अभी तक स्थिति में कोई सुधार नहीं दिखाई दे रहा है. हमें लगता है कि हमारे साथ धोखा हुआ है.'

पढ़ें - जम्मू-कश्मीर : पत्रकार काजी शिबली जेल भेजे गए, नौ महीने बाद हुई थी रिहाई

इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए शिवसेना नेता मनीष साहनी ने कहा, 'हम जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करने के बाद समृद्धि की आशा कर रहे थे, लेकिन ऐसा लगता है कि भाजपा ने हमारी आशाओं और सपनों को बर्बाद कर दिया है. जम्मू की जनता ने इस कार्य के लिए सरकार का समर्थन किया था, क्योंकि विकास और समृद्धि के संबंध में हमसे कई वादे किए गए थे, लेकिन अब ऐसा लगता है कि हमारे साथ छल किया गया है.

सरकार से वादों को पूरा करने की मांग करते हुए साहनी ने कहा, 'हमें अभी भी उम्मीद है कि भाजपा सरकार केंद्रशासित प्रदेश को विनाश के रास्ते से वापस लाने और विकास व समृद्धि के रास्ते पर लाने के लिए कदम उठाएगी.'

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