श्रीनगर : पूरी दुनिया कोरोना वायरस से फैली महामारी से जूझ रही है. वायरस के प्रसार को रोकने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया था. इस बीच जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों ने ठान ली है कि इस महामारी के खत्म होने से पहले वह आतंकवादियों के साथ तीन दशकों से चल रहे संघर्ष को खत्म करके रहेंगे. चूंकि कश्मीर के कई हिस्सों में कुछ लोग इन आतंकियों को समर्थन करते हैं. खासकर दक्षिणी कश्मीर में, इसलिए सुरक्षा बलों ने आतंकवाद से निबटने के लिए बड़े बदलाव किए हैं.
बता दें, महामारी को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन में सशस्त्र बलों और आतंकियों के बीच 37 मुठभेड़ें हुई हैं, जिसमे सुरक्षा बलों ने 90 आतंकवादियों को मारा गिराया है.
पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा हटाए जाने के बाद से हालात धीरे-धीरे सामान्य हो रहे थे, लेकिन उससे पहले ही महामारी को रोकने के लिए लॉकडाउन लगा दिया गया.
सशस्त्र बलों को राजनीतिक अशांति से निबटने में पहले ही मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था. कोविड-19 महामारी और पिघलती बर्फ से उनकी मुश्किलें और बढ़ गईं. बता दें कि बर्फ पिघलने के बाद पहाड़ों के रास्ते से आतंकियों की घुसपैठ बढ़ जाती है.
दक्षिणी कश्मीर के शोपियां, पुलवामा और कुलगाम (यहां आतंकियों को भारी जन समर्थन प्राप्त है) में ही हिजबुल मुजाहिदीन के चीफ कमांडर रियाज नाइकू समेत 22 आतंकवादियों को मारा गया है.
कश्मीरी मामलों के एक विशेषज्ञ ने ईटीवी भारत को बताया कि लॉकडाउन सुरक्षा बलों के लिए एक वरदान के रूप में आया है. आतंकवादियों के लिए यहां के लोगों का समर्थन मछली के लिए पानी की तरह है, जब आप पानी रोकते हैं, तो मछली मर जाती है.
लॉकडाउन लागू होने का समय भी महत्वपूर्ण था. यह तब लगा है जब आतंकवादी रिहायशी क्षेत्रों को छोड़कर घने जंगलों में जाना शुरू करते हैं. सुरक्षा बलों ने इसको रोक दिया. सुरक्षा बलों ने लॉकडाउन के दौरान पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद का मुकाबला करने के अपने इरादे को और स्पष्ट कर दिया है.
जम्मू-कश्मीर पुलिस के महानिदेशक दिलबाग सिंह ने कहा कि पाकिस्तान को काउंटर करने की उनकी रणनीति दोतरफा है. पहली नियंत्रण रेखा (एलओसी) और अंतरराष्ट्रीय सीमा (आईबी) से घुसपैठ को रोकना. दूसरी उन लोगों से निबटना जो घाटी में रहकर आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं और स्थानीय युवाओं को आतंकी रैंक में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें दोनों में ही बड़ी सफलता मिली है.
आतंकियों को खत्म करने में किसी भी तरह की रियायत नहीं बरती जा रही है. एक आतंकी के परिवार ने पुलिस को सूचित किया था कि वह लापता है, इसके एक हफ्ते के भीतर ही सुरक्षा बलों ने आतंकी को मार गिराया था.
सिंह ने बताया कि उन्होंने करीब 240 जमीनी कार्यकर्ताओं (ओजीडब्लू) को गिरफ्तार किया है. वह आतंकियों की आंख और कान का काम करते हैं.
लॉकडाउन व दफनाने की नई रणनीति
लॉकडाउन ने सुरक्षा बलों को मारे गए आतंकियों के शवों को उनके परिवार वालों को न देने का एक और कारण दे दिया है.
2008 के बाद से मारे गए आतंकियों के अंतिम संस्कार में बड़ी संख्या में लोग शामिल होते थे. यहां सार्वजनिक भावना का व्यापक प्रदर्शन देखा जाने लगा, जो सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय था. अंतिम संस्कार में शामिल लोग आतंकियों को बंदूक से सलामी देते थे. यही नहीं, यहीं से युवा आतंकी रैंक में शामिल भी हो रहे थे.
कोविड-19 महामारी के बीच अप्रैल के दूसरे सप्ताह में उत्तरी कश्मीर के सोपोर में एक आतंकी के अंतिम संस्कार में बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ी. इसके बाद से आतंकवादियों के अंतिम संस्कार की अनुमति नहीं देने की नीति को अपनाया गया.
आतंकवादियों के शव अब दूर बारामुला और सोनमर्ग के पहाड़ी क्षेत्र में दो या तीन करीबी रिश्तेदारों की उपस्थिति या उनके बिना गुप्त रूप से दफन किए जाते हैं.
कश्मीर जोन के पुलिस महानिरीक्षक विजय कुमार ने कहा कि सामाजिक दूरी के मानदंडों को ध्यान में रखते हुए, पुलिस ने अंतिम संस्कार करने और स्थानीय आतंकवादियों के शवों को उनके परिवारों को सौंपने की अनुमति नहीं देने का फैसला किया है.
आतंकियों को पकड़ने घर उड़ाने की नीति
सुरक्षाबलों को आतंकवादियों की मौजूदगी के बारे में इनपुट मिलने के बाद ज्यादातर मुठभेड़ें रिहायशी मकानों के अंदर हुईं. इलाकों को बंद कर दिया जाता है और सुरक्षा बलों को सुरक्षित रखने के लिए लक्षित घरों को आमतौर पर इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) से उड़ा दिया जाता है.
हाल ही में श्रीनगर के नवाकाडल में हिजबुल के एक शीर्ष कमांडर जुनैद सेहराई को मुठभेड़ में मार गिराया गया था. इस दौरान 22 आवासीय घर पूरी तरह या आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गए थे. आतंकी जुनैद सेहराई अलगाववादी नेता अशरफ सेहराई का बेटा था.
उससे पहले हिजबुल कमांडर रियाज नाइकू को पुलवामा के बेघीपोरा में मार गिराया गया था. उस दौरान करीब पांच घरों को उड़ा दिया गया था.
अधिकारियों ने कहा कि स्थानीय लोगों के घर 'संपार्श्विक' (आतंक के खात्मे के दौरान घरों पर की गई कार्रवाई) बन जाते हैं और उनमें से केवल उन लोगों को प्रशासन द्वारा मुआवजा दिया जाता है, जिन्हें सुरक्षा मंजूरी मिलती है कि आतंकवादी इन घरों में छिपे नहीं थे.
सुरक्षा बलों ने लोगों को कोविड-19 महामारी के मद्देनजर मुठभेड़ स्थलों के आसपास इकट्ठा होने से मना कर दिया. बता दें मुठभेड़ स्थलों के आसपास भीड़ जमा हो जाने से कई आतंकवादियों को भागने में मदद मिली है. बता दें कि सुरक्षा बलों के लिए सामाजिक दूरी और यात्रा के लिए लॉकडाउन मानदंड में ढील दी गई है.