वाराणसी : वैज्ञानिक तकनीक से खेती का गुर सीखना हो, तो बनारस के किसान मदन मोहन और रमेश मिश्रा से मिलिए. ये ऐसे किसान हैं, जिन्होंने अपनी खेतों को प्रयोगशाला बना दिया है. ऐसी प्रयोगशाला जहां स्ट्रॉबेरी की फसल लहलहा रही है.
कंदवा क्षेत्र के परमहंस नगर में मदन मोहन और रमेश मिश्रा ने स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की है. इनको यह आइडिया पुणे से मिला, जिसके बाद दोनों किसानों ने वाराणसी की धरती पर अपने आइडिया को उतार दिया. इनका मानना है कि जब स्ट्रॉबेरी की खेती पुणे में हो सकती है, तो यह वाराणसी में क्यों नहीं. इनके द्वारा शुरू की गई आधुनिक खेती वाराणसी के साथ ही आस-पास के जिलों के लिए नजीर बन गई है. यही वजह है कि लोग यहां आते हैं, इनकी खेती को देखते हैं और इनसे जानकारियां प्राप्त करते हैं.
पुणे से मिला आइडिया
कंदवा क्षेत्र के परमहंस नगर में रहने वाले यह दोनों किसानों ने एक एकड़ की जमीन में स्ट्रॉबेरी की खेती की शुरुआत की है. ईटीवी भारत से बातचीत में खेती करने वाले मदन मोहन तिवारी ने बताया कि यह आइडिया हमें पुणे से मिला. हमने वहां देखा कि लोग स्ट्रॉबेरी की खेती करते हैं. हमें लगा कि क्यों न हम लोग भी इस खेती को अपने यहां पर करें. इसके बाद हमने वहां पर ट्रेनिंग प्रोग्राम में हिस्सा लिया और उसके बाद वाराणसी में भी स्ट्रॉबेरी की खेती की शुरुआत कर दी.
8 से 10 लाख की आई है लागत
मदन मोहन तिवारी ने बताया कि स्ट्रॉबेरी की खेती में कोरोना काल को देखते हुए हमने इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए शुद्धता और केमिकल न होने पर ज्यादा ध्यान दिया है. उन्होंने बताया कि इस फसल में अब तक 8 से 10 लाख रुपये की लागत आई है और हमें उम्मीद है कि आने वाले दिन हमारे लिए अच्छे होंगे. अभी जो लाभ मिल रहा है वह संतोषजनक है.
10 लोगों को मिला है रोजगार
किसान रमेश मिश्रा ने बताया कि हमने जब स्ट्रॉबेरी की खेती की शुरुआत की तो कुछ समस्याएं भी आई, लेकिन उसका एक अच्छा पहलू यह रहा कि इससे कई लोगों को रोजगार भी मिला. लॉकडाउन में काफी लोगों की नौकरियां चली गई. कुछ ने किन्हीं कारणवश अपनी नौकरी छोड़ दी. ऐसे में लोगों का जीविकोपार्जन थोड़ा मुश्किल हो गया. इस वजह से हमने यहां 8 से 10 लोगों को काम पर रखा, जिसमें ज्यादा संख्या महिलाओं की है. वह यहां आती हैं और पौधों की देखरेख करती हैं. इससे उनका समय भी कटता है और उनको आमदनी भी होती है.
30 से 40 किलो स्ट्रॉबेरी मार्केट भेजा जा रहा
रमेश मिश्रा ने बताया कि हमने अक्टूबर से इस फसल की शुरुआत की है. फरवरी तक यह फसल पूरी हो जाएगी. 4 महीने की खेती में लगभग 15 लाख तक की बचत हो सकती है. उन्होंने बताया कि अभी 30 से 40 किलो स्ट्रॉबेरी मार्केट भेजा जा रहा है, क्योंकि हमारा उद्देश्य है कि पहले हम अपने शहर वासियों को खिलाएं यदि उनको अच्छा लगेगा तो हम इसे अन्य जगह भी भेजेंगे. वाराणसी में स्ट्रॉबेरी का रेट 250-300 रुपये प्रति किलो है. अगले वर्ष यदि उपज बढ़ी तो हम इसे दूसरे स्थानों पर भी भेजेंगे. उसके लिए भी हम तैयारियां कर रहे हैं.
पीले खरबूज और रेड लेडी पपीते की भी करेंगे खेती
बातचीत में मदन मोहन तिवारी ने बताया कि अभी हमने स्ट्रॉबेरी की खेती की शुरुआत करके थोड़ा सीखने का प्रयास किया है. आगामी सीजन में हम पीले खरबूजे और रेड लेडी पपीता के अलावा अन्य सब्जियां भी लगाएंगे. साथ ही आस-पास के किसानों को भी इस तरह की खेती के लिए जागरूक करेंगे, जिससे कि वह भी आधुनिक तकनीकी का प्रयोग कर खुद को बेहतर बना सकें.
किसानों के लिए नजीर
बता दें कि यह दोनों युवा इन दिनों बनारस ही नहीं, बल्कि पूर्वांचल के लोगों के लिए नजीर बने हुए हैं. लोग इनके फार्महाउस में आते हैं और नई तरीके की खेती करने के बारे में जानकारी भी प्राप्त करते हैं. इन दोनों युवा किसानों का भी कहना है कि हम आगे चलकर समय-समय पर प्रदर्शनी लगाएंगे और किसान भाइयों को बुला कर उन्हें उस तकनीक के बारे में जानकारी देंगे. जिससे वह भी थोड़ी सी आधुनिक तकनीकी और योजनाओं की जानकारी के साथ बेहतर कमर्शियल और ऑर्गेनिक खेती कर सकते हैं. इससे न सिर्फ उन्हें मुनाफा मिलेगा बल्कि उनकी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक बेहतर मार्ग बनेगा.