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नहीं रहे प्रोफेसर जीएन साईबाबा, शुक्रवार को आईसीयू में कराया गया था भर्ती

डीयू के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा का शनिवार शाम निधन हो गया. वह निज़ाम इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के आईसीयू में भर्ती थे.

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : 3 hours ago

दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा (फाइल फोटो)
दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा (फाइल फोटो) (Etv Bharat)

नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर गोकरकोंडा नागा साईबाबा(जीएन साईबाबा) को शनिवार शाम 8.36 बजे निज़ाम इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. एक पारिवारिक मित्र के अनुसार ने उन्हें एक सप्ताह पहले पित्ताशय की सर्जरी के बाद पोस्ट-ऑपरेटिव जटिलताओं के कारण शुक्रवार शाम को आईसीयू में ले जाया गया था. जीएन साईबाबा 57 वर्ष के थे.

दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा माओवादियों से संबंध रखने के आरोप में इसी वर्ष मार्च में बरी हुए थे. बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा बरी किए जाने के बाद जेल से रिहा होकर 8 मार्च को वह दिल्ली आए थे. उन्होंने अपने सभी शुभचिंतकों, यूनाइटेड नेशन, ह्यूमन राइट कमीशन को भी धन्यवाद दिया था. साईबाबा ने कहा था उन्हें यकीन नहीं हो रहा कि वे जेल से बाहर आ गए हैं.

जेल से रिहा होने के बाद प्रो जीएन साईबाबा ने कहा, "मेरे साथ क्रूरता हुई", बीते दिनों को याद कर नम हुई आंखें

जेल से रिहा होने के बाद पत्नी वसंता के साथ दिल्ली के सुरजीत भवन पहुंचे प्रो जीएन साईंबाबा ने भावुक मन से अपनी बात रखते हुए कहा था कि जिस तरह माता सीता को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ा, उसकी तरह वे भी गुजरे. शक के आधार पर अपनी गिरफ्तारी को लेकर साईंबाबा ने कहा था कि लोगों ने तो भगवान राम पर भी शक किया था. शक बिल्कुल बेबुनियाद था. गिरफ्तारी के बाद 10 साल जिस प्रताड़ना से गुजरा हूँ, उस दौरान हुई क्रूरता को कभी नहीं भूल सकता. मेरे साथ क्रूरता की गई.

ये भी पढ़ें: माओवादी संबंध मामला: बॉम्बे हाई कोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर साईबाबा समेत 5 अन्य को बरी किया

गिरफ्तारी के 10 साल और सजा मिलने के बाद सात साल जेल के अंडासेल में रखा गया, जहां दुर्दांत कैदियों को रखा जाता है. ऐसे सेल में रखा गया जहां वे व्हीलचेयर नहीं ले जा सकते. जिस जेल में 200 कैदियों की क्षमता थी, वहां 1300 से अधिक कैदियों को रखा जाता है. वहां जानवरों की तरह उठने, बैठने के लिए कैदी आपस मे लड़ाई करते हैं. जेल में दैनिक क्रिया के लिए मुझे दो आदिवासी कैदी मदद करते थे. बिना उनके सहयोग के वे हिल भी नहीं सकते.

बता दें कि प्रो साईंबाबा ने कहा कि उन्हें बचपन में आए पोलियो अटैक के अलावा कोई बीमारी नहीं थी. लेकिन आज उनके शरीर के ज्यादातर अंग काम नहीं कर रहे हैं. ब्रेन में सिस्ट था. हार्ट 55 फीसद काम कर रहा था. गॉल ब्लैडर में स्टोन था, पित्ताशय काम नहीं कर रहा था.

प्रो जीएन साईबाबा को क्यों किया गया था गिरफ्तार

90 प्रतिशत शारीरिक रूप से अक्षम जीएन साईबाबा को 2014 में गढ़चिरौली पुलिस ने गिरफ्तार किया था. गिरफ्तारी से पहले जीएन साई बाबा रामलाल आनंद कालेज में अंग्रेजी पढ़ाते थे. वह 90 प्रतिशत दिव्यांग थे और व्हीलचेयर से चलते हैं. गिरफ्तारी के बाद उन पर गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. इनके साथ पांच अन्य को भी सजा सुनाई गई थी.

जानकारों के अनुसार साई बाबा आंध्र प्रदेश के एक गरीब परिवार में पैदा हुए थे. 2003 में दिल्ली आने से पहले उनके पास व्हील चेयर खरीदने के भी पैसे नहीं थे. लेकिन, वह पढ़ाई में शुरू से ही काफी मेधावी थे. एक कोचिंग क्लास में उनकी मुलाकात अपनी पत्नी वसंता से हुई थी. फिर दोनों ने लव मैरिज कर ली थी. अखिल भारतीय पीपुल्स रेजिस्टंस फोरम के एक कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने कश्मीर और उत्तर पूर्व में मुक्ति आंदोलनों के समर्थन में दलित और आदिवासी अधिकारों के प्रचार के लिए दो लाख किमी से अधिक की यात्रा की थी. साईं बाबा पर शहर में रहकर माओवादियों के लिए काम करने का भी आरोप लगा. हालांकि, वह हमेशा ही माओवादियों का साथ देने के आरोप से इनकार करते रहे.

ये भी पढ़ें: जेल से रिहा होने के बाद प्रो जीएन साईबाबा हुए भावुक, कहा- 'मेरे साथ क्रूरता हुई'

नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर गोकरकोंडा नागा साईबाबा(जीएन साईबाबा) को शनिवार शाम 8.36 बजे निज़ाम इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. एक पारिवारिक मित्र के अनुसार ने उन्हें एक सप्ताह पहले पित्ताशय की सर्जरी के बाद पोस्ट-ऑपरेटिव जटिलताओं के कारण शुक्रवार शाम को आईसीयू में ले जाया गया था. जीएन साईबाबा 57 वर्ष के थे.

दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा माओवादियों से संबंध रखने के आरोप में इसी वर्ष मार्च में बरी हुए थे. बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा बरी किए जाने के बाद जेल से रिहा होकर 8 मार्च को वह दिल्ली आए थे. उन्होंने अपने सभी शुभचिंतकों, यूनाइटेड नेशन, ह्यूमन राइट कमीशन को भी धन्यवाद दिया था. साईबाबा ने कहा था उन्हें यकीन नहीं हो रहा कि वे जेल से बाहर आ गए हैं.

जेल से रिहा होने के बाद प्रो जीएन साईबाबा ने कहा, "मेरे साथ क्रूरता हुई", बीते दिनों को याद कर नम हुई आंखें

जेल से रिहा होने के बाद पत्नी वसंता के साथ दिल्ली के सुरजीत भवन पहुंचे प्रो जीएन साईंबाबा ने भावुक मन से अपनी बात रखते हुए कहा था कि जिस तरह माता सीता को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ा, उसकी तरह वे भी गुजरे. शक के आधार पर अपनी गिरफ्तारी को लेकर साईंबाबा ने कहा था कि लोगों ने तो भगवान राम पर भी शक किया था. शक बिल्कुल बेबुनियाद था. गिरफ्तारी के बाद 10 साल जिस प्रताड़ना से गुजरा हूँ, उस दौरान हुई क्रूरता को कभी नहीं भूल सकता. मेरे साथ क्रूरता की गई.

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गिरफ्तारी के 10 साल और सजा मिलने के बाद सात साल जेल के अंडासेल में रखा गया, जहां दुर्दांत कैदियों को रखा जाता है. ऐसे सेल में रखा गया जहां वे व्हीलचेयर नहीं ले जा सकते. जिस जेल में 200 कैदियों की क्षमता थी, वहां 1300 से अधिक कैदियों को रखा जाता है. वहां जानवरों की तरह उठने, बैठने के लिए कैदी आपस मे लड़ाई करते हैं. जेल में दैनिक क्रिया के लिए मुझे दो आदिवासी कैदी मदद करते थे. बिना उनके सहयोग के वे हिल भी नहीं सकते.

बता दें कि प्रो साईंबाबा ने कहा कि उन्हें बचपन में आए पोलियो अटैक के अलावा कोई बीमारी नहीं थी. लेकिन आज उनके शरीर के ज्यादातर अंग काम नहीं कर रहे हैं. ब्रेन में सिस्ट था. हार्ट 55 फीसद काम कर रहा था. गॉल ब्लैडर में स्टोन था, पित्ताशय काम नहीं कर रहा था.

प्रो जीएन साईबाबा को क्यों किया गया था गिरफ्तार

90 प्रतिशत शारीरिक रूप से अक्षम जीएन साईबाबा को 2014 में गढ़चिरौली पुलिस ने गिरफ्तार किया था. गिरफ्तारी से पहले जीएन साई बाबा रामलाल आनंद कालेज में अंग्रेजी पढ़ाते थे. वह 90 प्रतिशत दिव्यांग थे और व्हीलचेयर से चलते हैं. गिरफ्तारी के बाद उन पर गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. इनके साथ पांच अन्य को भी सजा सुनाई गई थी.

जानकारों के अनुसार साई बाबा आंध्र प्रदेश के एक गरीब परिवार में पैदा हुए थे. 2003 में दिल्ली आने से पहले उनके पास व्हील चेयर खरीदने के भी पैसे नहीं थे. लेकिन, वह पढ़ाई में शुरू से ही काफी मेधावी थे. एक कोचिंग क्लास में उनकी मुलाकात अपनी पत्नी वसंता से हुई थी. फिर दोनों ने लव मैरिज कर ली थी. अखिल भारतीय पीपुल्स रेजिस्टंस फोरम के एक कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने कश्मीर और उत्तर पूर्व में मुक्ति आंदोलनों के समर्थन में दलित और आदिवासी अधिकारों के प्रचार के लिए दो लाख किमी से अधिक की यात्रा की थी. साईं बाबा पर शहर में रहकर माओवादियों के लिए काम करने का भी आरोप लगा. हालांकि, वह हमेशा ही माओवादियों का साथ देने के आरोप से इनकार करते रहे.

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