नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक दलों को चंदा देने के मकसद से शुरू हुई चुनावी बांड योजना पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया है, हालांकि उसने केंद्र और निर्वाचन आयोग से इस बावत जवाब मांगा.
प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने गैर सरकारी संगठन 'एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स' के आवेदन पर केन्द्र और निर्वाचन आयोग से दो सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है.
संगठन की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि इस योजना का मतलब बगैर हिसाब किताब वाले काले धन को सत्तारूढ़ दल के पक्ष में देना है. उन्होंने इस योजना पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक के एक दस्तावेज का भी जिक्र कया.
पीठ ने कहा, 'हम इसे देखेंगे. हम इस मामले को दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध कर रहे हैं.'
निर्वाचन आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि ये सभी दलीलें पहले दी जा चुकी हैं.
उन्होंने कहा कि इस योजना के खिलाफ गैर सरकारी संगठन के आवेदन पर जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय दिया जाए.
सरकार ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान दस दिन के लिए चुनावी बांड की बिक्री खोली है.
सरकार ने दो जनवरी, 2018 को चुनावी बांड योजना अधिसूचित की थी. इस योजना के प्रावधानों के अनुसार कोई भी भारतीय नागरिक या प्रतिष्ठान चुनावी बांड खरीद सकता है. कोई व्यक्ति अकेले या संयुक्त रूप से चुनावी बांड खरीद सकता है.
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ये चुनावी बांड रखने की अनुमति सिर्फ उन राजनीतिक दलों को होगी, जो जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं और उन्हें पिछले लोकसभा चुनाव या विधान सभा चुनाव में कुल मतदान का एक प्रतिशत से कम मत नहीं मिले हैं.
अधिसूचना के अनुसार राजनीतिक दल अधिकृत बैंक में खाते के माध्यम से ही इन चुनावी बांड को भुनाने के योग्य होंगे.