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सामना की संपादकीय ने उठाए अश्विनी कुमार की मौत पर सवाल

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Published : Oct 9, 2020, 2:16 PM IST

सीबीआई के पूर्व चीफ और हिमाचल के पूर्व डीजीपी व नगालैंड-मणिपुर के पूर्व राज्यपाल अश्विनी कुमार ने आत्महत्या कर ली. इस पर सामना की संपादकीय ने सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर क्यों डीजीपी अश्विनी कुमार की मौत हुई और क्यों किसी ने उनकी मौत के पीछे के कारणों के बारे में आवाज उठाना जरूरी नहीं समझा. इसके साथ ही उन्होंने कई संस्थाओं व सोशल मीडिया पर सवाल उठाते हुए कटाक्ष किये.

saamna Editorial
अश्विनी कुमार

मुंबई : पूर्व सीबीआई चीफ और हिमाचल के पूर्व डीजीपी अश्विनी कुमार ने बुधवार को खुदकुशी कर ली. रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने शिमला स्थित घर में फांसी लगा ली थी. बताया जा रहा है कि वो डिप्रेशन से जूझ रहे थे. शिमला के एसपी मोहित चावला ने इस घटना की पुष्टि की है और कहा है कि यह चौंकाने वाला मामला है. चावला ने कहा कि पुलिस अफसरों के लिए अश्विनी कुमार रोल मॉडल थे.

अश्विनी कुमार मौत मामले में सामना की संपादकीय में लिखा है कि देश का सामाजिक, राजनीतिक माहौल दुष्कर्म और आत्महत्या जैसे मुद्दों से धुंधला गया है. ऐसे में अपने शिमला स्थित घर में अश्विनी कुमार का शव फांसी के फंदे पर लटके हुए पाया जाना दुख की बात है. सीबीआई के प्रमुख निदेशक पद पर काम कर चुका व्यक्ति एक समय के बाद निराश हो जाता है, जीवन में जैसे कुछ बचा ही न हो और जिंदगी से निराश होकर आत्महत्या कर लेता है और इस पर सभी लोग आंख बंद करके विश्वास कर लेते हैं. सामना के लेख में लिखा है कि वे इससे सहमत नहीं हैं.

विशेष सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल चुके थे कुमार
सामना के मुखपत्र के मुताबिक, अश्विनी कुमार सिर्फ सीबीआई के निदेशक ही नहीं थे बल्कि सेवानिवृत्त होने के पश्चात वे नागालैंड और मणिपुर के राज्यपाल भी रहे. वे हिमाचल के पुलिस महानिदेशक भी थे. वहीं दिल्ली में प्रमुख नेताओं की विशेष सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालने वाली एसपीजी में उन्होंने महत्वपूर्ण काम किया है. इसका मतलब तो यह है कि वे मन और शरीर से काफी मजबूत थे और इसीलिए सरकार ने उन पर विशेष जिम्मेदारियां सौंपी थीं. ऐसा व्यक्ति अचानक आत्महत्या कर लेता है और कोई सवाल तक नहीं करता, इस पर आश्चर्य होता है.

पढ़ें: फर्जी टीआरपी रैकेट के गिरोह का पर्दाफाश, दो मराठी चैनलों के मालिक गिरफ्तार

अश्विनी कुमार की मौत पर सवाल क्यों नहीं
सामना का मानना है कि अश्विनी कुमार सच में जीवन से निराश हो गए थे या उन पर किसी प्रकार का दबाव था, इस पर फिलहाल हिमाचल में रहनेवाली 'अभिनेत्री' को कुछ कहना चाहिए. अश्विनी कुमार को किन परिस्थितियों में आत्महत्या करनी पड़ी, यह सवाल विभिन्न मुद्दों पर सवाल उठाने वाले टीवी चैनलों को भी करना चाहिए. सुशांत मामला आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या है, इसको सिद्ध करने के लिए जिन्होंने पूरी ताकत लगा दी, उन्हें सीबीआई के पूर्व निदेशक अश्विनी कुमार की आत्महत्या के पीछे कुछ रहस्य है, ऐसा प्रतीत ना होना आश्चर्यजनक है.

यशस्वी,जिंदादिल अधिकारी थे कुमार
सामना के मुताबिक मुंबई में सुशांत ने आत्महत्या की. उसके कुछ दिनों पहले से वे निराश थे और मादक पदार्थों का सेवन करने लगे थे. अश्विनी कुमार एक यशस्वी और जिंदादिल पुलिस अधिकारी थे. वे अपने सहकर्मियों में लोकप्रिय थे. हिमाचल जैसे छोटे पहाड़ी राज्य से सीबीआई के निदेशक पद तक पहुंचने वाले शायद वे एकमात्र अधिकारी रहे हों. सीबीआई के प्रमुख पद पर रहते हुए उन्होंने कई राजनीतिक पेंच वाले मामले सुलझाए. उन्होंने चर्चित आरुषि तलवार हत्या मामले की भी जांच की. वे एक 'प्रोफेशनल' पुलिस अधिकारी थे.

आखिर मौत के पीछे क्या था कारण
अश्विनी कुमार सेवानिवृत्ति के पश्चात वे एमबीए के विद्यार्थियों को शिक्षण दे रहे थे और शिमला के एक विश्वविद्यालय में उप कुलपति के पद पर थे. वे अपनी पसंद के अनुसार काम कर रहे थे. आईपीएस के रूप में उन्हें उनके क्षेत्र के कई सर्वोच्च पद मिले. फिर निराश होकर फांसी लगा लेने जैसा उनके जीवन में क्या घटा? इस पर प्रकाश पड़ना आवश्यक है. अश्विनी कुमार की आत्महत्या का रहस्य इसलिए भी सुलझाया जाना चाहिए क्योंकि वरिष्ठ पद पर काम करने वाले अधिकारियों की मानसिक स्थिति क्या है? उन्हें किस दबाव में काम करना पड़ता है? राज्य और केंद्र में बाकायदा उत्कृष्ट सेवा की है. नौकरी में होने पर तनाव होता रहता है. कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. उस समय उन्होंने गंभीर चुनौतियों का डट कर सामना किया और अब सेवानिवृत्ति के पश्चात निराश होकर मौत को गले लगा लिया.

पुलिस प्रशासन के 'नायक' थे अश्विनी कुमार
हमारे देश में आत्महत्या नई बात नहीं. गरीब जनता, किसान और बेरोजगार जीवन से निराश होकर रोज आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाते हैं. उनमें जीने को लेकर चिंता रहती है इसलिए वे मौत का रास्ता चुनते हैं, लेकिन मुंबई में सुशांत और शिमला में अश्विनी कुमार के मामले में ऐसा नहीं है. फिर भी उन्होंने खुद ही मरने का रास्ता चुना. सुशांत की आत्महत्या के बाद जो सारे सवाल और संदेह पैदा करवाए गए, वैसा अश्विनी कुमार के बारे में भी हो सकता है. सुशांत पर्दे के हीरो थे और अश्विनी कुमार पुलिस प्रशासन के 'नायक'.

पढ़ें: भीमा कोरेगांव केस : एनआईए ने फादर स्टेन को हिरासत में लिया

हिमाचल की अभिनेत्री ने नहीं ली सुध
हिमाचल की एक अभिनेत्री सुशांत आत्महत्या के मामले को पकड़ कर बैठी हैं, लेकिन उन्हीं अभिनेत्री के हिमाचल में सीबीआई के पूर्व निदेशक के आत्महत्या करने के बावजूद उन्होंने कोई बात नहीं की. अश्विनी कुमार की मौत क्यों हुई, यह रहस्य न रह जाए. शिमला की पुलिस जांच करेगी ही लेकिन सीबीआई का नेतृत्व कर चुके अश्विनी कुमार की आत्महत्या के बाद कम से कम सीबीआई को अपनी पलकें झपका लेनी चाहिए. हमारे देश में क्या चल रहा है? इसको समझने का कोई रास्ता नहीं है.

बयानों पर सरकार विश्वास करने को तैयार नहीं
सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या की है. स्वास्थ्य विभाग द्वारा दिए गए सबूत के बावजूद कुछ लोग इसे मानने को तैयार नहीं. हाथरस की बेटी ने कहा था कि उसके साथ गलत हुआ है, लेकिन उसके बावजूद सरकार विश्वास करने को तैयार नहीं. अब सीबीआई के पूर्व निदेशक अश्विनी कुमार का शव का मिलना, अत्यंत दुख की बात है. उनकी मौत कैसे हुई, इसका रहस्य जानने में किसी को कोई रस नहीं है. सही है, क्या कठिन समय आ गया है.

मुंबई : पूर्व सीबीआई चीफ और हिमाचल के पूर्व डीजीपी अश्विनी कुमार ने बुधवार को खुदकुशी कर ली. रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने शिमला स्थित घर में फांसी लगा ली थी. बताया जा रहा है कि वो डिप्रेशन से जूझ रहे थे. शिमला के एसपी मोहित चावला ने इस घटना की पुष्टि की है और कहा है कि यह चौंकाने वाला मामला है. चावला ने कहा कि पुलिस अफसरों के लिए अश्विनी कुमार रोल मॉडल थे.

अश्विनी कुमार मौत मामले में सामना की संपादकीय में लिखा है कि देश का सामाजिक, राजनीतिक माहौल दुष्कर्म और आत्महत्या जैसे मुद्दों से धुंधला गया है. ऐसे में अपने शिमला स्थित घर में अश्विनी कुमार का शव फांसी के फंदे पर लटके हुए पाया जाना दुख की बात है. सीबीआई के प्रमुख निदेशक पद पर काम कर चुका व्यक्ति एक समय के बाद निराश हो जाता है, जीवन में जैसे कुछ बचा ही न हो और जिंदगी से निराश होकर आत्महत्या कर लेता है और इस पर सभी लोग आंख बंद करके विश्वास कर लेते हैं. सामना के लेख में लिखा है कि वे इससे सहमत नहीं हैं.

विशेष सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल चुके थे कुमार
सामना के मुखपत्र के मुताबिक, अश्विनी कुमार सिर्फ सीबीआई के निदेशक ही नहीं थे बल्कि सेवानिवृत्त होने के पश्चात वे नागालैंड और मणिपुर के राज्यपाल भी रहे. वे हिमाचल के पुलिस महानिदेशक भी थे. वहीं दिल्ली में प्रमुख नेताओं की विशेष सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालने वाली एसपीजी में उन्होंने महत्वपूर्ण काम किया है. इसका मतलब तो यह है कि वे मन और शरीर से काफी मजबूत थे और इसीलिए सरकार ने उन पर विशेष जिम्मेदारियां सौंपी थीं. ऐसा व्यक्ति अचानक आत्महत्या कर लेता है और कोई सवाल तक नहीं करता, इस पर आश्चर्य होता है.

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अश्विनी कुमार की मौत पर सवाल क्यों नहीं
सामना का मानना है कि अश्विनी कुमार सच में जीवन से निराश हो गए थे या उन पर किसी प्रकार का दबाव था, इस पर फिलहाल हिमाचल में रहनेवाली 'अभिनेत्री' को कुछ कहना चाहिए. अश्विनी कुमार को किन परिस्थितियों में आत्महत्या करनी पड़ी, यह सवाल विभिन्न मुद्दों पर सवाल उठाने वाले टीवी चैनलों को भी करना चाहिए. सुशांत मामला आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या है, इसको सिद्ध करने के लिए जिन्होंने पूरी ताकत लगा दी, उन्हें सीबीआई के पूर्व निदेशक अश्विनी कुमार की आत्महत्या के पीछे कुछ रहस्य है, ऐसा प्रतीत ना होना आश्चर्यजनक है.

यशस्वी,जिंदादिल अधिकारी थे कुमार
सामना के मुताबिक मुंबई में सुशांत ने आत्महत्या की. उसके कुछ दिनों पहले से वे निराश थे और मादक पदार्थों का सेवन करने लगे थे. अश्विनी कुमार एक यशस्वी और जिंदादिल पुलिस अधिकारी थे. वे अपने सहकर्मियों में लोकप्रिय थे. हिमाचल जैसे छोटे पहाड़ी राज्य से सीबीआई के निदेशक पद तक पहुंचने वाले शायद वे एकमात्र अधिकारी रहे हों. सीबीआई के प्रमुख पद पर रहते हुए उन्होंने कई राजनीतिक पेंच वाले मामले सुलझाए. उन्होंने चर्चित आरुषि तलवार हत्या मामले की भी जांच की. वे एक 'प्रोफेशनल' पुलिस अधिकारी थे.

आखिर मौत के पीछे क्या था कारण
अश्विनी कुमार सेवानिवृत्ति के पश्चात वे एमबीए के विद्यार्थियों को शिक्षण दे रहे थे और शिमला के एक विश्वविद्यालय में उप कुलपति के पद पर थे. वे अपनी पसंद के अनुसार काम कर रहे थे. आईपीएस के रूप में उन्हें उनके क्षेत्र के कई सर्वोच्च पद मिले. फिर निराश होकर फांसी लगा लेने जैसा उनके जीवन में क्या घटा? इस पर प्रकाश पड़ना आवश्यक है. अश्विनी कुमार की आत्महत्या का रहस्य इसलिए भी सुलझाया जाना चाहिए क्योंकि वरिष्ठ पद पर काम करने वाले अधिकारियों की मानसिक स्थिति क्या है? उन्हें किस दबाव में काम करना पड़ता है? राज्य और केंद्र में बाकायदा उत्कृष्ट सेवा की है. नौकरी में होने पर तनाव होता रहता है. कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. उस समय उन्होंने गंभीर चुनौतियों का डट कर सामना किया और अब सेवानिवृत्ति के पश्चात निराश होकर मौत को गले लगा लिया.

पुलिस प्रशासन के 'नायक' थे अश्विनी कुमार
हमारे देश में आत्महत्या नई बात नहीं. गरीब जनता, किसान और बेरोजगार जीवन से निराश होकर रोज आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाते हैं. उनमें जीने को लेकर चिंता रहती है इसलिए वे मौत का रास्ता चुनते हैं, लेकिन मुंबई में सुशांत और शिमला में अश्विनी कुमार के मामले में ऐसा नहीं है. फिर भी उन्होंने खुद ही मरने का रास्ता चुना. सुशांत की आत्महत्या के बाद जो सारे सवाल और संदेह पैदा करवाए गए, वैसा अश्विनी कुमार के बारे में भी हो सकता है. सुशांत पर्दे के हीरो थे और अश्विनी कुमार पुलिस प्रशासन के 'नायक'.

पढ़ें: भीमा कोरेगांव केस : एनआईए ने फादर स्टेन को हिरासत में लिया

हिमाचल की अभिनेत्री ने नहीं ली सुध
हिमाचल की एक अभिनेत्री सुशांत आत्महत्या के मामले को पकड़ कर बैठी हैं, लेकिन उन्हीं अभिनेत्री के हिमाचल में सीबीआई के पूर्व निदेशक के आत्महत्या करने के बावजूद उन्होंने कोई बात नहीं की. अश्विनी कुमार की मौत क्यों हुई, यह रहस्य न रह जाए. शिमला की पुलिस जांच करेगी ही लेकिन सीबीआई का नेतृत्व कर चुके अश्विनी कुमार की आत्महत्या के बाद कम से कम सीबीआई को अपनी पलकें झपका लेनी चाहिए. हमारे देश में क्या चल रहा है? इसको समझने का कोई रास्ता नहीं है.

बयानों पर सरकार विश्वास करने को तैयार नहीं
सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या की है. स्वास्थ्य विभाग द्वारा दिए गए सबूत के बावजूद कुछ लोग इसे मानने को तैयार नहीं. हाथरस की बेटी ने कहा था कि उसके साथ गलत हुआ है, लेकिन उसके बावजूद सरकार विश्वास करने को तैयार नहीं. अब सीबीआई के पूर्व निदेशक अश्विनी कुमार का शव का मिलना, अत्यंत दुख की बात है. उनकी मौत कैसे हुई, इसका रहस्य जानने में किसी को कोई रस नहीं है. सही है, क्या कठिन समय आ गया है.

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