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बिहार के मोतिहारी से 'महात्मा' बने थे मोहनदास करमचंद गांधी, जानें पूरी कहानी

आजादी के आंदोलन के दौरान गांधीजी ने देश के अलग-अलग हिस्सों का दौरा किया था. जहां-जहां भी बापू जाते थे, वे वहां के लोगों पर अमिट छाप छोड़ जाते थे. वहां के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना घर कर जाती थी. ईटीवी भारत ऐसे ही जगहों से गांधी से जुड़ी कई यादें आपको प्रस्तुत कर रहा है. पेश है आज 27वीं कड़ी.

महात्मा गांधी
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Published : Sep 11, 2019, 7:06 AM IST

Updated : Sep 30, 2019, 4:49 AM IST

मोतिहारी: वो अंग्रेजों का जुल्म ढाने वाला दशक था, जब बिहार के किसान गोरे नीलहे जमींदारों के अत्याचार से तड़प रहे थे. अंग्रेज जमींदार तीन कठिया, असामीवार, जिराती प्रथा जैसे अवैध कर लगा रहे थे. इसके खिलाफ आवाज उठाने वाले किसान राजकुमार शुक्ल 1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में पहुंचे.

राजकुमार शुक्ल ने लखनऊ में गांधी जी से किसानों के आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए चंपारण चलने का आग्रह किया. मोहनदास करम चंद गांधी ने राजकुमार शुक्ल की बातों को सुना और चंपारण आने का भरोसा दिया.

गांधी जी ने राजकुमार शुक्ल के साथ 15 अप्रैल, 1917 को मोतिहारी की धरती पर पहली बार कदम रखा. अगले दिन यानी 16 अप्रैल 1917 को जसौली पट्टी जाने का निर्णय लिया. हाथी पर सवार होकर जसौली पट्टी के लिए निकले, लेकिन मोतिहारी से 10 किलोमीटर दूर चंद्रहिया के पास एक अंग्रेज दरोगा आया, और गांधी जी को तत्कालीन अंग्रेज कलेक्टर डब्ल्यू बी हेकॉक का नोटिस थमा दिया. इसमें गांधी को चंपारण जल्द-से-जल्द छोड़ने की बात लिखी हुई थी.

ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट

मोहनदास तो आखिर, गांधी ठहरे. वो मोतिहारी तो लौट आए, लेकिन चंपारण में ही रहने की जिद पर अड़ गए. उसके बाद एसडीओ कोर्ट में उन पर मुकदमा चला. जहां उन्होंने अपनी बात रखी और जमानत लेने से इंकार कर दिया.
गांधी के मोतिहारी आने और कोर्ट में हाजिर होने की बात पर किसानों की एक बड़ी भीड़ ने एसडीओ कोर्ट को घेर लिया. लिहाजा, किसानों के आक्रोश और वरीय अधिकारियों के निर्देश पर एसडीओ ने करमचंद गांधी को बिना शर्त रिहा कर दिया.

एसडीओ कोर्ट से रिहा होने के बाद गांधी ने किसानों का बयान लेना शुरु किया. करम चंद गांधी ने 2900 गांवों के 13 हजार किसानों का बयान लिया. गांधी के नेतृत्व में चंपारण के किसान एकजुट होने लगे और उन्हे गांधी के रुप में 'महात्मा' दिखाई देने लगा. लोगों ने गांधी को 'महात्मा' कहना शुरु कर दिया.

मोहन दास करमचंद गांधी चंपारण के लोगों के लिए 'महात्मा गांधी' हो गए. महात्मा गांधी के नेतृत्व में गोरे जमींदारों के खिलाफ शुरू हुआ चंपारण के किसानों का सत्याग्रह राष्ट्रव्यापी हो गया. अंग्रेजी शासकों को झुकना पड़ा और किसानों पर जबरन थोपे गए सभी कर हटा लिए गए. चंपारण में सफल हुए सत्याग्रह ने देश की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया.

मोतिहारी: वो अंग्रेजों का जुल्म ढाने वाला दशक था, जब बिहार के किसान गोरे नीलहे जमींदारों के अत्याचार से तड़प रहे थे. अंग्रेज जमींदार तीन कठिया, असामीवार, जिराती प्रथा जैसे अवैध कर लगा रहे थे. इसके खिलाफ आवाज उठाने वाले किसान राजकुमार शुक्ल 1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में पहुंचे.

राजकुमार शुक्ल ने लखनऊ में गांधी जी से किसानों के आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए चंपारण चलने का आग्रह किया. मोहनदास करम चंद गांधी ने राजकुमार शुक्ल की बातों को सुना और चंपारण आने का भरोसा दिया.

गांधी जी ने राजकुमार शुक्ल के साथ 15 अप्रैल, 1917 को मोतिहारी की धरती पर पहली बार कदम रखा. अगले दिन यानी 16 अप्रैल 1917 को जसौली पट्टी जाने का निर्णय लिया. हाथी पर सवार होकर जसौली पट्टी के लिए निकले, लेकिन मोतिहारी से 10 किलोमीटर दूर चंद्रहिया के पास एक अंग्रेज दरोगा आया, और गांधी जी को तत्कालीन अंग्रेज कलेक्टर डब्ल्यू बी हेकॉक का नोटिस थमा दिया. इसमें गांधी को चंपारण जल्द-से-जल्द छोड़ने की बात लिखी हुई थी.

ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट

मोहनदास तो आखिर, गांधी ठहरे. वो मोतिहारी तो लौट आए, लेकिन चंपारण में ही रहने की जिद पर अड़ गए. उसके बाद एसडीओ कोर्ट में उन पर मुकदमा चला. जहां उन्होंने अपनी बात रखी और जमानत लेने से इंकार कर दिया.
गांधी के मोतिहारी आने और कोर्ट में हाजिर होने की बात पर किसानों की एक बड़ी भीड़ ने एसडीओ कोर्ट को घेर लिया. लिहाजा, किसानों के आक्रोश और वरीय अधिकारियों के निर्देश पर एसडीओ ने करमचंद गांधी को बिना शर्त रिहा कर दिया.

एसडीओ कोर्ट से रिहा होने के बाद गांधी ने किसानों का बयान लेना शुरु किया. करम चंद गांधी ने 2900 गांवों के 13 हजार किसानों का बयान लिया. गांधी के नेतृत्व में चंपारण के किसान एकजुट होने लगे और उन्हे गांधी के रुप में 'महात्मा' दिखाई देने लगा. लोगों ने गांधी को 'महात्मा' कहना शुरु कर दिया.

मोहन दास करमचंद गांधी चंपारण के लोगों के लिए 'महात्मा गांधी' हो गए. महात्मा गांधी के नेतृत्व में गोरे जमींदारों के खिलाफ शुरू हुआ चंपारण के किसानों का सत्याग्रह राष्ट्रव्यापी हो गया. अंग्रेजी शासकों को झुकना पड़ा और किसानों पर जबरन थोपे गए सभी कर हटा लिए गए. चंपारण में सफल हुए सत्याग्रह ने देश की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया.

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Last Updated : Sep 30, 2019, 4:49 AM IST
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