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'पीके' के बाद 'पीकु'...जदयू में बढ़ी नाराजगी या सोची समझी 'रणनीति' - pawan verma cautions jdu chief nitish

प्रशांत किशोर के बाद पवन कुमार वर्मा ने नीतीश कुमार से सवाल पूछा है. उनका कहना है कि नीतीश को भाजपा की विभाजनकारी नीतियों पर अपनी स्थिति साफ करनी चाहिए. हालांकि, वर्मा ने कहा कि उन्हें अपने नेता पर पूरा भरोसा है. उनकी निष्ठा पर कोई सवाल नहीं है. लेकिन कुछ चीजें स्पष्ट जरूर होनी चाहिए. यह पता नहीं है कि वर्मा किसी रणनीति के तहत ये बात कह रहे हैं या पार्टी के अंदर यह किसी फूट का इशारा है. विस्तार से पढ़ें खबर.

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नीतीश पवन वर्मा और प्रशांत किशोर
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Published : Jan 21, 2020, 6:37 PM IST

Updated : Feb 17, 2020, 9:31 PM IST

हैदराबाद : बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं. इसके ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यू के बीच फिर से दरार सामने आने लगी है. जदयू के वरिष्ठ नेता पवन वर्मा ने सीधे तौर पर पार्टी के 'बॉस' नीतीश कुमार से 'पंगा' ले लिया है. उन्होंने कहा कि नीतीश को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी. वर्मा भाजपा सरकार की नीतियों के बड़े आलोचकों में शामिल रहे हैं.

पवन वर्मा ने इस बाबत एक ट्वीट किया है. पवन वर्मा ने अपने ट्वीट में नीतीश कुमार को 2012 की याद दिलाई है. उन्होंने कहा कि तब मेरी और आपकी मुलाकात पटना में हुई थी. मैं जेडीयू का हिस्सा नहीं था. मुझे आपने भाजपा और आरएसएस की विभाजनकारी नीतियों से सावधान किया था. आपने ये भी कहा था कि कैसे नरेंद्र मोदी देश के भविष्य के लिए उपयुक्त नहीं हैं.

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पवन वर्मा का ट्वीट

अपने पत्र में वर्मा ने आगे लिखा है कि आपने एक समय आरएसएस मुक्त भारत का नारा दिया था. लेकिन 2017 में आप फिर से भाजपा के साथ आ गए. बावजूद आप ये मानते रहे कि भाजपा की विचारधारा में कोई परिवर्तन नहीं आया है. आपके निजी विचार यही रहे हैं कि भाजपा ने देश के संस्थानों को नुकसान पहुंचाया है.

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पवन वर्मा के पत्र का पहला पेज

वर्मा ने कहा है कि नीतीश को अपनी विचारधारा स्पष्ट करनी होगी. उन्होंने लिखा कि उम्मीद करता हूं कि आप अपनी विचारधारा पार्टी की बैठक में स्पष्ट करेंगे.

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पवन वर्मा के पत्र का दूसरा पेज

वर्मा से पहले पीके ने रखी थी ऐसी राय
आपको बता दें कि पवन वर्मा से पहले पार्टी से अलग राय प्रशांत किशोर ने भी रखी थी. पीके ने पार्टी द्वारा नागरिकता संशोधन कानून को समर्थन देने पर हैरानी जताई थी. उन्होंने खुलकर इसका विरोध किया था. पीके ने एनआरसी का भी विरोध किया है. हालांकि, नीतीश कुमार यह स्पष्ट कर चुके हैं कि बिहार में एनआरसी लागू नहीं होगा.

ये भी पढ़ें: प्रशांत किशोर ने NRC को लेकर बिना नाम लिए BJP पर हमला बोला

नाराजगी में दम है या दिखावा
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि पवन वर्मा और प्रशांत किशोर किसी 'लिखे स्क्रिप्ट' पर आगे बढ़ रहे हैं या फिर वाकई में इन दोनों नेताओं की नाराजगी में दम है. सच्चाई ये भी है कि जेडीयू में नीतीश कुमार से अलग राय रखने वाले पार्टी में टिक नहीं पाते हैं. इसके बावजूद वर्मा और पीके पार्टी में टिके हुए हैं. ये अलग बात है कि दोनों नेताओं के पास कोई जनाधार नहीं है. पवन वर्मा जहां मुख्य रूप से विचारक माने जाते हैं, वहीं पीके मुख्य रणनीतिकार के तौर पर जाने जाते हैं.

ये भी पढ़ें: नागरिकता बिल : JDU में मतभेद, पवन वर्मा-प्रशांत किशोर का विरोध

17 साल पुराना भाजपा-जदयू गठबंधन टूट गया
2013 में जनता दल यू ने भारतीय जनता पार्टी से 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ लिया था. तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि भाजपा को नरेन्द्र मोदी को चुनाव प्रचार कमेटी का प्रमुख घोषित नहीं करना चाहिए. भाजपा ने इसे पार्टी का अंदरूनी मामला बताया था.

2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू को दो सीटें मिलीं
2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू ने सीपीआई के साथ हाथ मिलाया. पार्टी मात्र दो सीटों पर सिमट कर रह गई. भाजपा और लोजपा वाले गठबंधन को 32 सीटें मिली.

राजद के साथ जदयू ने विधानसभा का चुनाव लड़ा
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू ने राजद के साथ गठबंधन कर लिया. कांग्रेस भी इस गठबंधन में शामिल हो गई. 243 में से इस गठबंधन को 178 सीटें मिलीं. नीतीश फिर से सीएम बन गए. लेकिन 2017 में नीतीश कुमार ने राजद का साथ छोड़ दिया. अब शरद यादव भी पार्टी में नहीं हैं.

2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू और भाजपा ने मिलकर लड़ा चुनाव

हैदराबाद : बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं. इसके ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यू के बीच फिर से दरार सामने आने लगी है. जदयू के वरिष्ठ नेता पवन वर्मा ने सीधे तौर पर पार्टी के 'बॉस' नीतीश कुमार से 'पंगा' ले लिया है. उन्होंने कहा कि नीतीश को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी. वर्मा भाजपा सरकार की नीतियों के बड़े आलोचकों में शामिल रहे हैं.

पवन वर्मा ने इस बाबत एक ट्वीट किया है. पवन वर्मा ने अपने ट्वीट में नीतीश कुमार को 2012 की याद दिलाई है. उन्होंने कहा कि तब मेरी और आपकी मुलाकात पटना में हुई थी. मैं जेडीयू का हिस्सा नहीं था. मुझे आपने भाजपा और आरएसएस की विभाजनकारी नीतियों से सावधान किया था. आपने ये भी कहा था कि कैसे नरेंद्र मोदी देश के भविष्य के लिए उपयुक्त नहीं हैं.

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पवन वर्मा का ट्वीट

अपने पत्र में वर्मा ने आगे लिखा है कि आपने एक समय आरएसएस मुक्त भारत का नारा दिया था. लेकिन 2017 में आप फिर से भाजपा के साथ आ गए. बावजूद आप ये मानते रहे कि भाजपा की विचारधारा में कोई परिवर्तन नहीं आया है. आपके निजी विचार यही रहे हैं कि भाजपा ने देश के संस्थानों को नुकसान पहुंचाया है.

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पवन वर्मा के पत्र का पहला पेज

वर्मा ने कहा है कि नीतीश को अपनी विचारधारा स्पष्ट करनी होगी. उन्होंने लिखा कि उम्मीद करता हूं कि आप अपनी विचारधारा पार्टी की बैठक में स्पष्ट करेंगे.

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पवन वर्मा के पत्र का दूसरा पेज

वर्मा से पहले पीके ने रखी थी ऐसी राय
आपको बता दें कि पवन वर्मा से पहले पार्टी से अलग राय प्रशांत किशोर ने भी रखी थी. पीके ने पार्टी द्वारा नागरिकता संशोधन कानून को समर्थन देने पर हैरानी जताई थी. उन्होंने खुलकर इसका विरोध किया था. पीके ने एनआरसी का भी विरोध किया है. हालांकि, नीतीश कुमार यह स्पष्ट कर चुके हैं कि बिहार में एनआरसी लागू नहीं होगा.

ये भी पढ़ें: प्रशांत किशोर ने NRC को लेकर बिना नाम लिए BJP पर हमला बोला

नाराजगी में दम है या दिखावा
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि पवन वर्मा और प्रशांत किशोर किसी 'लिखे स्क्रिप्ट' पर आगे बढ़ रहे हैं या फिर वाकई में इन दोनों नेताओं की नाराजगी में दम है. सच्चाई ये भी है कि जेडीयू में नीतीश कुमार से अलग राय रखने वाले पार्टी में टिक नहीं पाते हैं. इसके बावजूद वर्मा और पीके पार्टी में टिके हुए हैं. ये अलग बात है कि दोनों नेताओं के पास कोई जनाधार नहीं है. पवन वर्मा जहां मुख्य रूप से विचारक माने जाते हैं, वहीं पीके मुख्य रणनीतिकार के तौर पर जाने जाते हैं.

ये भी पढ़ें: नागरिकता बिल : JDU में मतभेद, पवन वर्मा-प्रशांत किशोर का विरोध

17 साल पुराना भाजपा-जदयू गठबंधन टूट गया
2013 में जनता दल यू ने भारतीय जनता पार्टी से 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ लिया था. तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि भाजपा को नरेन्द्र मोदी को चुनाव प्रचार कमेटी का प्रमुख घोषित नहीं करना चाहिए. भाजपा ने इसे पार्टी का अंदरूनी मामला बताया था.

2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू को दो सीटें मिलीं
2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू ने सीपीआई के साथ हाथ मिलाया. पार्टी मात्र दो सीटों पर सिमट कर रह गई. भाजपा और लोजपा वाले गठबंधन को 32 सीटें मिली.

राजद के साथ जदयू ने विधानसभा का चुनाव लड़ा
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू ने राजद के साथ गठबंधन कर लिया. कांग्रेस भी इस गठबंधन में शामिल हो गई. 243 में से इस गठबंधन को 178 सीटें मिलीं. नीतीश फिर से सीएम बन गए. लेकिन 2017 में नीतीश कुमार ने राजद का साथ छोड़ दिया. अब शरद यादव भी पार्टी में नहीं हैं.

2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू और भाजपा ने मिलकर लड़ा चुनाव

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Last Updated : Feb 17, 2020, 9:31 PM IST
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