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हरियाणा : मेवात के लोगों को आज भी है रेलवे मैप पर आने का इंतजार - नूंह न्यूज

गुरुग्राम जैसे विकसित जिले से 2005 में अलग होकर मेवात सूबे का 20वां जिला बना था. इस जिले के हजारों लोग रेल देखे बिना ही दुनिया को अलविदा कह गए और कुछ लोग उम्र के आखिरी पड़ाव पर हैं. रेल को यहां की करीब 70 फीसदी आबादी ने देखा तक नहीं है.

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भारतीय रेल
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Published : Jan 16, 2020, 8:01 PM IST

नूंह (हरियाणा) : राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से महज 70 किलोमीटर दूर एक ऐसा अभागा जिला मेवात बसता है, जहां के निवासियों के लिए बुलेट ट्रेन के जमाने में सामान्य रेल भी एक सपने की तरह है.

कहने को तो ये इलाका फरीदाबाद और गुरुग्राम से सटा हुआ है, जहां रैपिड मेट्रो चल रही है. इसके बावजूद पलवल व नूंह जिले के सात ब्लॉक खंडों में बसा यह इलाका 70 साल से रेलवे मैप पर आने का इंतजार कर रहा है.

नेताओं के वादे मिले, ट्रेन नहीं
ये वही मेवात क्षेत्र है, जहां के वीरों की बहादुरी और शहादत के चर्चे का तो इतिहास गवाह है, लेकिन नंबर वन हरियाणा का नारा देने वाले कई सरकारों के सफेदपोश मेवात के लोगों के रेल के सपने को आजादी से लेकर आज तक हकीकत में नहीं बदल पाए हैं.

रेल तो दूर बस भी नहीं होती नसीब
गुरुग्राम जैसे विकसित जिले से 2005 में अलग होकर मेवात सूबे का 20वां जिला बना. इस जिले के हजारों लोग रेल देखे बिना ही दुनिया को अलविदा कह गए और कुछ लोग उम्र के आखिरी पड़ाव पर हैं. रेल को यहां की करीब 70 फीसदी आबादी ने देखा तक नहीं है, उसमें सफर करना तो दूर की बात है.

देश और प्रदेश तेजी से तरक्की कर रहे हैं. प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक सूबे के विकास को लेकर विदेश तक दौरे कर रहे हैं, लेकिन करीब 17 लाख की आबादी वाले मुस्लिम बाहुल्य जिले में रेल तो दूर बसें भी लोगों को नसीब नहीं हो पा रही हैं.

सर्वे भी हुआ, काम नहीं
इस एरिया में रेल लाने के लिए केंद्र सरकार ने 2 बार सर्वे भी कराया. इसके तहत फरीदाबाद को अलवर से जोड़ने के लिए रेलवे ने 2006 में सर्वे कराया था, जिसकी फाइल अब रेल भवन में धूल फांक रही है. इससे पहले 1985 में रेवाड़ी से अलीगढ़ को जोड़ने के लिए भी सर्वे हुआ था.

वहीं, मेवात से वोट लेकर सांसद बने केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत व कृष्णपाल गुर्जर जब भी आते हैं तो रेल मार्ग पर काम होने का दावा करते हैं. इसके अलावा सीएम मनोहर लाल ने हरियाणा में सात नए रेल मार्गों का सर्वे कराने की बात कही है, जिसमें मेवात को अलवर-दिल्ली होते हुए सोहना-नूंह से जोड़ने की बात कही है.

ट्रेन आती तो विकास भी होता!
रेल अगर इस इलाके के लोगों को कई दशक पहले मिली होती तो दूध, सब्जी का व्यापार ही नहीं, एनसीआर के शहरों से नूंह की पहुंच कम हो पाती. नौकरी कर युवा, मेवात के माथे से गुरबत के कलंक को मिटा चुके होते.

देश की सभी पार्टियों के हुक्मरानों से मेवात के लोग बजट के समय बड़ी उम्मीदें रेल को लेकर करते हैं, लेकिन चुनावों के समय हर बार रेल की सीटी बजाने का वायदा करने वाले इसे भूल जाते हैं.

ये भी पढ़ेंः जींद में जाट समाज की महापंचायत, कैप्टन अभिमन्यु के घर हुई आगजनी के मामले में होगा फैसला

मेवात के लोग सरकार से मांग कर रहे हैं कि रेल बजट के दौरान सरकार उन पर मेहरबानी दिखाए, ताकि मुल्क की तरक्की के नजदीक से इस इलाके लोग भी गवाह बन सकें.

मेवात के लोग आज भी परिवहन के साधनों का रोना रो रहे हैं. रेल तो दूर लग्जरी बसों तक सरकार इस इलाके के लोगों को मुहैया नहीं करा पाई है.

नूंह (हरियाणा) : राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से महज 70 किलोमीटर दूर एक ऐसा अभागा जिला मेवात बसता है, जहां के निवासियों के लिए बुलेट ट्रेन के जमाने में सामान्य रेल भी एक सपने की तरह है.

कहने को तो ये इलाका फरीदाबाद और गुरुग्राम से सटा हुआ है, जहां रैपिड मेट्रो चल रही है. इसके बावजूद पलवल व नूंह जिले के सात ब्लॉक खंडों में बसा यह इलाका 70 साल से रेलवे मैप पर आने का इंतजार कर रहा है.

नेताओं के वादे मिले, ट्रेन नहीं
ये वही मेवात क्षेत्र है, जहां के वीरों की बहादुरी और शहादत के चर्चे का तो इतिहास गवाह है, लेकिन नंबर वन हरियाणा का नारा देने वाले कई सरकारों के सफेदपोश मेवात के लोगों के रेल के सपने को आजादी से लेकर आज तक हकीकत में नहीं बदल पाए हैं.

रेल तो दूर बस भी नहीं होती नसीब
गुरुग्राम जैसे विकसित जिले से 2005 में अलग होकर मेवात सूबे का 20वां जिला बना. इस जिले के हजारों लोग रेल देखे बिना ही दुनिया को अलविदा कह गए और कुछ लोग उम्र के आखिरी पड़ाव पर हैं. रेल को यहां की करीब 70 फीसदी आबादी ने देखा तक नहीं है, उसमें सफर करना तो दूर की बात है.

देश और प्रदेश तेजी से तरक्की कर रहे हैं. प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक सूबे के विकास को लेकर विदेश तक दौरे कर रहे हैं, लेकिन करीब 17 लाख की आबादी वाले मुस्लिम बाहुल्य जिले में रेल तो दूर बसें भी लोगों को नसीब नहीं हो पा रही हैं.

सर्वे भी हुआ, काम नहीं
इस एरिया में रेल लाने के लिए केंद्र सरकार ने 2 बार सर्वे भी कराया. इसके तहत फरीदाबाद को अलवर से जोड़ने के लिए रेलवे ने 2006 में सर्वे कराया था, जिसकी फाइल अब रेल भवन में धूल फांक रही है. इससे पहले 1985 में रेवाड़ी से अलीगढ़ को जोड़ने के लिए भी सर्वे हुआ था.

वहीं, मेवात से वोट लेकर सांसद बने केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत व कृष्णपाल गुर्जर जब भी आते हैं तो रेल मार्ग पर काम होने का दावा करते हैं. इसके अलावा सीएम मनोहर लाल ने हरियाणा में सात नए रेल मार्गों का सर्वे कराने की बात कही है, जिसमें मेवात को अलवर-दिल्ली होते हुए सोहना-नूंह से जोड़ने की बात कही है.

ट्रेन आती तो विकास भी होता!
रेल अगर इस इलाके के लोगों को कई दशक पहले मिली होती तो दूध, सब्जी का व्यापार ही नहीं, एनसीआर के शहरों से नूंह की पहुंच कम हो पाती. नौकरी कर युवा, मेवात के माथे से गुरबत के कलंक को मिटा चुके होते.

देश की सभी पार्टियों के हुक्मरानों से मेवात के लोग बजट के समय बड़ी उम्मीदें रेल को लेकर करते हैं, लेकिन चुनावों के समय हर बार रेल की सीटी बजाने का वायदा करने वाले इसे भूल जाते हैं.

ये भी पढ़ेंः जींद में जाट समाज की महापंचायत, कैप्टन अभिमन्यु के घर हुई आगजनी के मामले में होगा फैसला

मेवात के लोग सरकार से मांग कर रहे हैं कि रेल बजट के दौरान सरकार उन पर मेहरबानी दिखाए, ताकि मुल्क की तरक्की के नजदीक से इस इलाके लोग भी गवाह बन सकें.

मेवात के लोग आज भी परिवहन के साधनों का रोना रो रहे हैं. रेल तो दूर लग्जरी बसों तक सरकार इस इलाके के लोगों को मुहैया नहीं करा पाई है.

Intro:संवाददाता नूंह मेवात

स्टोरी :- देश की आजादी से रेल आज तक सपना

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से महज 70 किलोमीटर दूर एक ऐसा अभागा जिला बसता है ,जिसकी बहादुरी और शहादत के चर्चे का तो इतिहास गवाह है ,लेकिन नंबर वन हरियाणा का नारा देने वाले सभी दलों के सफेदपोश मेवात के लोगों के रेल के सपने को आजादी से लेकर आज तक हकीकत में नहीं बदल पाए हैं। गुड़गांव जैसे विकसित जिले से 2005 में अलग जिला बनने वाला मेवात ,सूबे का 20 वां जिला बना। इस जिले के हजारों लोग रेल देखे बिना ही दुनिया को अलविदा कह गए और कुछ लोग उम्र के आखिरी पड़ाव पर हैं। रेल को यहां की करीब 70 फीसदी आबादी ने देखा तक नहीं है ,उसमें सफर करना तो दूर की बात है। देश और प्रदेश तेजी से तरक्की कर रहे हैं। प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक सूबे के विकास को लेकर विदेश तक दौरे कर रहे हैं ,लेकिन करीब 14 लाख की आबादी वाले मुस्लिम बाहुल्य जिले में रेल तो दूर बसें भी
लोगों को नसीब नहीं हो पा रही हैं। रेल अगर इस इलाके के लोगों को कई दशक पहले मिली होती तो दूध ,सब्जी इत्यादि का व्यापार ही नहीं एन सी आर के शहरों में नौकरी कर युवा ,मेवात के माथे से ग़ुरबत के कलंक को मिटा चुके होते। Body:देश के सभी पार्टियों के हुक्मरानों से मेवात के लोग बजट के समय बड़ी उम्मीदें रेल को लेकर करते हैं ,लेकिन चुनावों के समय हर बार रेल की
सीटी बजाने का वायदा करने वाले इसे भूल जाते हैं। मौज़ूदा सांसद एवं केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने पहले कांग्रेस और अब भाजपा में रहते इस मसले में बात तो संसद से लेकर आला नेताओं के सामने में उठाया ,लेकिन कामयाबी अभी तक भी नहीं मिल रही। मेवात के लोग सरकार से मांग कर रहे हैं कि रेल बजट के दौरान सरकार उन पर मेहरबानी दिखाए ,ताकि मुल्क की तरक्की के नजदीक से इस इलाके लोग भी गवाह बन सकें। मेवात के लोग आज भी परिवहन के साधनों का रोना रो रहे हैं। रेल तो दूर लग्जरी बसों तक सरकार इस इलाके के लोगों को मुहैया नहीं करा पाई है। देश का बजट अगले महीने पेश होने वाला है। जब बजट का समय नजदीक आता है तो लोगों और डिमांड दोनों बढ़ जाती हैं। मीडियाकर्मी भी सांसद से लेकर सीएम तक के सामने इस सवाल को एक बार नहीं बल्कि बार - बार रखते आ रहे हैं। जवाब तो कई बार ठीक मिल जाता है , कई बार देश की अर्थव्यवस्था का हवाला दिया जाता है। वह दिन इस इलाके के लोगों के लिए कब नसीब होगा , जब नजदीक से रेल को देखने और उसकी छुक - छुक की आवाज कानों तक सुनाई देने की मुराद पूरी होगी। नूह जिला चारों तरफ से रेल लाइन से घिरा हुआ है। पलवल , अलवर , होडल , गुरुग्राम , रेवाड़ी में रेल दिनभर दौड़ती रहती हैं , लेकिन इस जिले में उसका दीदार कब होगा। इसका पुख्ता जवाब किसी के पास नहीं है।Conclusion:बाइट ;- रमजान चौधरी वरिष्ठ समाजसेवी नूंह मेवात
बाइट ;- राजुद्दीन ग्रामीण
बाइट ;- अयूब खान वरिष्ठ एडवोकेट

संवाददाता कासिम खान नूंह मेवात
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