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बाबा गोरक्षनाथ को आज भी चढ़ाई जाती है नेपाल नरेश की भेजी गई खिचड़ी - गोरक्षनाथ मंदिर में खिचड़ी

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित गोरक्षनाथ मंदिर में मकर संक्रांति के दिन चढ़ाई जाने वाली खिचड़ी का खास महत्व होता है. यहां गोरक्ष पीठाधीश्वर के रूप में विराजमान महंत ही बाबा गोरक्षनाथ को पहली खिचड़ी चढ़ाते हैं. इसके बाद यहां नेपाल नरेश की ओर से भेजी गई खिचड़ी चढ़ाई जाती है. देखें स्पेशल रिपोर्ट...

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Published : Jan 12, 2021, 12:52 PM IST

गोरखपुर : मकर संक्रांति के पर्व पर बाबा गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की अनूठी परंपरा है. इसका निर्वाह और शुरुआत आदिकाल से गोरक्ष पीठाधीश्वर के रूप में विराजमान महंत मकर संक्रांति के दिन बाबा गोरक्षनाथ को पहली खिचड़ी चढ़ाकर करते हैं. लेकिन दूसरे नंबर पर जो खिचड़ी चढ़ती है उसके बारे में जानकर आपको आश्चर्य होगा. यह भारत के किसी हिंदू घराने या मठ मंदिर से नहीं आती बल्कि नेपाल नरेश द्वारा भेजी गई खिचड़ी और विशेष प्रसाद को बाबा गोरखनाथ को चढ़ाया जाता है. नेपाल के राजपुरोहित इस खिचड़ी को लेकर गोरखपुर आते हैं. वर्षों से चली आ रही इस परंपरा का निर्वाह इस वर्ष भी होगा. हर वर्ष की भांति नेपाल की सुख-शांति लिए गोरक्षपीठ के द्वारा भेजी जाने वाली विशेष प्रसाद, नेपाल को इस बार भी भेजी जाएगी. जिसका नाम 'महारोट' प्रसाद होता है.

गोरक्षनाथ मंदिर में मकर संक्रांति के दिन चढ़ाई जाने वाली खिचड़ी का खास महत्व

कहानियां बनीं परंपरा की गवाह
मान्यता है कि नेपाल में कई वर्षों से बारिश नहीं हो रही थी. नेपाल नरेश ने इसका कारण पता किया तो मालूम हुआ कि मत्स्येंद्रनाथ ने नेपाल की सारी घटाओं को रोक लिया है इसलिए बारिश नहीं हो रही है. जिसके बाद नेपाल राजवंश ने गुरु गोरक्षनाथ को आग्रह कर नेपाल ले गए. गुरु गोरक्षनाथ को देखते ही मत्स्येंद्रनाथ ने उन्हें प्रणाम किया जिसके बाद उसकी मेघमाला ढीली हो गई और नेपाल में बारिश शुरू हो गई. तभी से नेपाल का गोरखा राजवंश गुरु गोरक्षनाथ को अपना कुलदेवता मानने लगा और उन्हें खिचड़ी चढ़ाने लगा.

गोरखनाथ मंदिर के सचिव द्वारिका तिवारी कहते हैं कि वर्षों से चली आ रही यह परंपरा आज भी कायम है. इस वर्ष भी मकर संक्रांति पर नेपाल नरेश की खिचड़ी चढ़ेगी. राजतंत्र की समाप्ति के बाद भी यह परंपरा आज भी कायम है. नेपाल के हिंदू राष्ट्र के आंदोलन को भी मजबूत करने में गोरखनाथ मंदिर की अहम भूमिका रही है. नेपाल नरेश और गोरखपुर के संबंधों के बारे में नाथ संप्रदाय पर रिसर्च करने वाले डॉक्टर प्रदीप राव बताते हैं कि नेपाल के गोरखाली राजा पृथ्वी नारायण शाह ने 1722 से 1775 तक के अपने कार्यकाल में हिंदू नेपाल अधिराज्य की स्थापना की, जिसके पीछे उन्होंने गुरु गोरक्षनाथ के एकीकरण के वरदान को आधार माना.

यह भी पढ़ें-ड्रग्स केस में मुंबई के मशहूर मुच्छड़ पानवाला गिरफ्तार

पॉलीथिन मुक्त अभियान चलाएगा प्रशासन
14 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने के साथ शुरू होगा. इस मंदिर के महंत और पीठाधीश्वर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं जो बाबा गोरक्षनाथ को पहली खिचड़ी चढ़ाएंगे. इसके लिए उन्होंने जिला स्तरीय अधिकारियों को सुरक्षा और कोविड-19 के नियमों के पालन का दिशा-निर्देश दिया है. तैयारियों के संबंध में मंडलायुक्त गोरखपुर जयंत नारलीकर ने बताया कि सुरक्षा और कोविड-19 के नियमों का पालन कड़ाई से होगा. इस दौरान कोई भी श्रद्धालु पॉलिथीन बैग में खिचड़ी चढ़ाने लेकर न लेकर आए अन्यथा उन्हें वापस भी जाना पड़ सकता है. हालांकि उन्होंने कहा कि इस दौरान नगर निगम और महिला सिपाहियों के माध्यम से कपड़े के झोले वितरित करने की व्यवस्था की जा रही है. फिर भी लोग जरूरी नियमों का पालन करते हुए ही इस महापर्व को मनाने में सहयोग करें.

गोरखपुर : मकर संक्रांति के पर्व पर बाबा गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की अनूठी परंपरा है. इसका निर्वाह और शुरुआत आदिकाल से गोरक्ष पीठाधीश्वर के रूप में विराजमान महंत मकर संक्रांति के दिन बाबा गोरक्षनाथ को पहली खिचड़ी चढ़ाकर करते हैं. लेकिन दूसरे नंबर पर जो खिचड़ी चढ़ती है उसके बारे में जानकर आपको आश्चर्य होगा. यह भारत के किसी हिंदू घराने या मठ मंदिर से नहीं आती बल्कि नेपाल नरेश द्वारा भेजी गई खिचड़ी और विशेष प्रसाद को बाबा गोरखनाथ को चढ़ाया जाता है. नेपाल के राजपुरोहित इस खिचड़ी को लेकर गोरखपुर आते हैं. वर्षों से चली आ रही इस परंपरा का निर्वाह इस वर्ष भी होगा. हर वर्ष की भांति नेपाल की सुख-शांति लिए गोरक्षपीठ के द्वारा भेजी जाने वाली विशेष प्रसाद, नेपाल को इस बार भी भेजी जाएगी. जिसका नाम 'महारोट' प्रसाद होता है.

गोरक्षनाथ मंदिर में मकर संक्रांति के दिन चढ़ाई जाने वाली खिचड़ी का खास महत्व

कहानियां बनीं परंपरा की गवाह
मान्यता है कि नेपाल में कई वर्षों से बारिश नहीं हो रही थी. नेपाल नरेश ने इसका कारण पता किया तो मालूम हुआ कि मत्स्येंद्रनाथ ने नेपाल की सारी घटाओं को रोक लिया है इसलिए बारिश नहीं हो रही है. जिसके बाद नेपाल राजवंश ने गुरु गोरक्षनाथ को आग्रह कर नेपाल ले गए. गुरु गोरक्षनाथ को देखते ही मत्स्येंद्रनाथ ने उन्हें प्रणाम किया जिसके बाद उसकी मेघमाला ढीली हो गई और नेपाल में बारिश शुरू हो गई. तभी से नेपाल का गोरखा राजवंश गुरु गोरक्षनाथ को अपना कुलदेवता मानने लगा और उन्हें खिचड़ी चढ़ाने लगा.

गोरखनाथ मंदिर के सचिव द्वारिका तिवारी कहते हैं कि वर्षों से चली आ रही यह परंपरा आज भी कायम है. इस वर्ष भी मकर संक्रांति पर नेपाल नरेश की खिचड़ी चढ़ेगी. राजतंत्र की समाप्ति के बाद भी यह परंपरा आज भी कायम है. नेपाल के हिंदू राष्ट्र के आंदोलन को भी मजबूत करने में गोरखनाथ मंदिर की अहम भूमिका रही है. नेपाल नरेश और गोरखपुर के संबंधों के बारे में नाथ संप्रदाय पर रिसर्च करने वाले डॉक्टर प्रदीप राव बताते हैं कि नेपाल के गोरखाली राजा पृथ्वी नारायण शाह ने 1722 से 1775 तक के अपने कार्यकाल में हिंदू नेपाल अधिराज्य की स्थापना की, जिसके पीछे उन्होंने गुरु गोरक्षनाथ के एकीकरण के वरदान को आधार माना.

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पॉलीथिन मुक्त अभियान चलाएगा प्रशासन
14 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने के साथ शुरू होगा. इस मंदिर के महंत और पीठाधीश्वर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं जो बाबा गोरक्षनाथ को पहली खिचड़ी चढ़ाएंगे. इसके लिए उन्होंने जिला स्तरीय अधिकारियों को सुरक्षा और कोविड-19 के नियमों के पालन का दिशा-निर्देश दिया है. तैयारियों के संबंध में मंडलायुक्त गोरखपुर जयंत नारलीकर ने बताया कि सुरक्षा और कोविड-19 के नियमों का पालन कड़ाई से होगा. इस दौरान कोई भी श्रद्धालु पॉलिथीन बैग में खिचड़ी चढ़ाने लेकर न लेकर आए अन्यथा उन्हें वापस भी जाना पड़ सकता है. हालांकि उन्होंने कहा कि इस दौरान नगर निगम और महिला सिपाहियों के माध्यम से कपड़े के झोले वितरित करने की व्यवस्था की जा रही है. फिर भी लोग जरूरी नियमों का पालन करते हुए ही इस महापर्व को मनाने में सहयोग करें.

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