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भारत और जापान के करार किसी तीसरे देश के खिलाफ नहीं : विशेषज्ञ

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Published : Aug 22, 2020, 8:59 AM IST

Updated : Aug 22, 2020, 9:20 AM IST

भारत के विदेश मंत्रालय को अभी तारीख तय करनी है लेकिन मीडिया की खबरों में बताया गया है कि वास्तव में मोदी और आबे के बीच वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन सितंबर की शुरुआत में होने की संभावना है. वहीं चीन के प्रभावशाली अंग्रेजी दैनिक 'ग्लोबल टाइम्स’ में 'हार्ड फॉर इंडिया, जापान टू फॉर्म ए यूनाईटेड फ्रंट अगेंस्ट चाइना’ यानी 'भारत और जापान के लिए चीन के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाना मुश्किल’ शीर्षक से प्रकाशित लेख में शिंघुआ यूनिवर्सिटी के नेशनल स्ट्रेटजी इंस्टीट्यूट के अनुसंधान विभाग के निदेशक क्विंग फेंग ने कहा है कि चीन को दबाने के लिए यदि भारत जापान को मनाने की कोशिश करता है तो वह नाकाम होकर बर्बाद ही होना है.

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भारत और जापान के करार किसी तीसरे देश के खिलाफ नहीं

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके जापानी समकक्ष शिंजो आबे के बीच अगले माह द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन होने वाला है. ऐसी खबरों के बीच चीन सरकार से संबद्ध एक मीडिया ने दावा किया है कि नई दिल्ली और टोक्यो के लिए बीजिंग के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाना मुश्किल होगा. जापानी अध्ययन के एक प्रमुख भारतीय विद्वान ने कहा है कि भारतीय-जापानी रिश्ते का लक्ष्य किसी तीसरे देश के विरुद्ध नहीं है.

चीन के प्रभावशाली अंग्रेजी दैनिक 'ग्लोबल टाइम्स’ में 'हार्ड फॉर इंडिया, जापान टू फॉर्म ए यूनाईटेड फ्रंट अगेंस्ट चाइना’ यानी 'भारत और जापान के लिए चीन के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाना मुश्किल’ शीर्षक से प्रकाशित लेख में शिंघुआ यूनिवर्सिटी के नेशनल स्ट्रेटजी इंस्टीट्यूट के अनुसंधान विभाग के निदेशक क्विंग फेंग ने कहा है कि चीन को दबाने के लिए यदि भारत जापान को मनाने की कोशिश करता है तो वह नाकाम होकर बर्बाद ही होना है. क्विंग का यह लेख इस साल भारत और चीन के बीच लद्दाख सीमा पर हुए टकराव को देखते हुए आया है, जिसमें वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पिछले 45 साल में पहली बार दोनों पक्षों के कई जवानों की मौत हुई थी.

क्विंग ने लिखा है कि सीमा पर टकराव के बाद भारत ने सीमा पर विवाद जारी रहते ही एकतरफा और अनुचित काम किए हैं. उदाहरण के तौर पर भारत ने टिक-टॉक और वी-चैट सहित चीन के 59 मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध लगा दिए हैं. भारत चीन को लगाम खींचकर रोकने के लिए जापान और ऑस्ट्रेलिया को भी मनाने में लगा है. हालांकि, यह महामारी के बाद के युग में भारत की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में या विकास में मदद नहीं करेगा. चीन को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करके भारत आर्थिक मामले में और अधिक कष्ट भोगेगा. भारत की राष्ट्रीय शक्ति चीन के राष्ट्रीय हितों को चुनौती देने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकती. हालांकि, इसके साथ ही इस लेख में कहा गया है कि चीन-भारत और चीन-जापान के रिश्ते उतनी तेजी से नीचे नहीं गए जितनी चीन और अमेरिका के गए हैं.

लेख में कहा गया है कि नई दिल्ली बीजिंग पर दबाव बनाना चाहता है लेकिन अब भी एक सामान्य प्रवृत्ति वार्ता करके ही चीन-भारत के विवाद को सुलझाना है.

जहां तक जापान की बात है तो वह महामारी के बाद के समय में अपने आर्थिक विकास पर विचार करते हुए हो सकता है कि अब भी चीन के साथ रिश्तों को स्थिर करना चाहे. यही मामला है कि नई दिल्ली और टोक्यो बीजिंग को उकसाने के लिए अत्यधिक बयानबाजी और चाल नहीं चलेंगे.

क्विंग ने आगे लिखा है कि चीन का भारत और जापान के साथ विवाद भले ही है, नई दिल्ली और टोक्यो एशिया में संतुलन बनाए रखने के लिए सहयोग को मजबूत करना चाह सकते हैं. हम एशिया की दो महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं भारत और जापान के बीच सामान्य सहयोग को देखना चाहेंगे. कुल मिलाकर उनकी सफलता पूरे एशिया क्षेत्र में सहयोग के लिए सुचालक है.

लेकिन ऐसा सहयोग संयुक्त रूप से चीन पर दबाव बनाने के मकसद पर आधारित है तब हम लोग निश्चित रूप से इसके विरोध में हैं, क्योंकि यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र को अस्थिर करेगा.

भारत के विदेश मंत्रालय को हालांकि अभी तारीख तय करनी है लेकिन मीडिया की खबरों में बताया गया है कि वास्तव में मोदी और आबे के बीच वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन सितंबर की शुरुआत में होने की संभावना है.

जापान उन दो देशों में एक है जिनके साथ भारत वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन करता है, दूसरा देश रूस है. हालांकि, पिछले साल असम के गुवाहाटी में होने वाला शिखर सम्मेलन नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों की वजह से स्थगित कर दिया गया था.

भारत और चीन के सैनिकों के बीच जून में लद्दाख में हुए खूनी संघर्ष के बाद पिछले माह जापान भारत के समर्थन में सामने आया. एक विचार मंच की ओर से यहां 'इंडिया-जापान रिलेशंस इन पोस्ट कोविड एरा’ यानी 'कोविड के बाद के युग में भारत-जापान संबंध’ विषय पर आयोजित एक परिचर्चा में भारत में जापान के राजदूत सतोशी सुजुकी ने कहा कि टोक्यो लद्दाख में एलएसी के पास स्थिति में बदलाव करने की किसी भी कोशिश का सख्ती के साथ विरोध करता है.

ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित ताजा लेख के संदर्भ में ऑबजर्वर रिसर्च फाउंडेशन नाम के विचार मंच (थिंक टैंक) के नामचीन व्यक्ति एवं जापान अध्ययन क्षेत्र के अग्रणी भारतीय विद्वान के. वी केसवन ने ईटीवी भारत से कहा कि भारत-जापान के रिश्ते किसी दूसरे देश के खिलाफ लक्ष्य करके नहीं हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वर्ष 2014 में पूर्वी एशियाई देशों के दौरे के दौरान भारत-जापान के संबंध ऊंचा उठकर 'विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी’ तक पहुंच गए.

हम भारत और जापान एक रणनीतिक साझेदारी साझा करते हैं और हमलोग क्षेत्र में शांति और समुद्री सुरक्षा को सुनिश्चित करने में सफल होंगे. केसवन ने आगे कहा कि चीन दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में शरारत कर रहा है. भारत के साथ सीमा पर कशमकश के अलावा चीन का दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में कई देशों के साथ सीमा विवाद चल रहा है.

पूर्वी चीन सागर में बीजिंग का टोक्यो के साथ सेनकाकु द्वीपों को लेकर विवाद है, जिसे चीन दियायू द्वीप कहता है. पिछले माह जब चीन के तटरक्षक जहाज इन द्वीपों के पास पहुंच गए तो जापान ने कड़ा विरोध दर्ज कराया.

पाकिस्तान की तरह भारत पर निशाना साधने वालों की तरह चीन के भी कई साझेदार हैं, यह कहते हुए केसवन ने कहा कि बीजिंग एक नई क्षेत्रीय व्यवस्था तैयार करने की कोशिश कर रहा है.

उन्होंने पिछले माह अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के रक्षामंत्रियों की ओर से जारी एक संयुक्त बयान का हवाला दिया जिसमें एक ऐसे सशक्त त्रिपक्षीय रक्षा सहयोग और आदान-प्रदान का आह्वान किया गया था जो एक मुक्त, खुले, समावेशी और समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र के समर्थन में स्पष्ट योगदान देते हैं.

अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत उस चतुष्कोण का हिस्सा है जो बीजिंग के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में शांति एवं समृद्धि के लिए काम करना चाहते हैं. यह क्षेत्र जापान के पूर्वी तट से लेकर अफ्रीका के पूर्वी तट तक फैला हुआ है.

(अरुणिम भुयान)

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके जापानी समकक्ष शिंजो आबे के बीच अगले माह द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन होने वाला है. ऐसी खबरों के बीच चीन सरकार से संबद्ध एक मीडिया ने दावा किया है कि नई दिल्ली और टोक्यो के लिए बीजिंग के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाना मुश्किल होगा. जापानी अध्ययन के एक प्रमुख भारतीय विद्वान ने कहा है कि भारतीय-जापानी रिश्ते का लक्ष्य किसी तीसरे देश के विरुद्ध नहीं है.

चीन के प्रभावशाली अंग्रेजी दैनिक 'ग्लोबल टाइम्स’ में 'हार्ड फॉर इंडिया, जापान टू फॉर्म ए यूनाईटेड फ्रंट अगेंस्ट चाइना’ यानी 'भारत और जापान के लिए चीन के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाना मुश्किल’ शीर्षक से प्रकाशित लेख में शिंघुआ यूनिवर्सिटी के नेशनल स्ट्रेटजी इंस्टीट्यूट के अनुसंधान विभाग के निदेशक क्विंग फेंग ने कहा है कि चीन को दबाने के लिए यदि भारत जापान को मनाने की कोशिश करता है तो वह नाकाम होकर बर्बाद ही होना है. क्विंग का यह लेख इस साल भारत और चीन के बीच लद्दाख सीमा पर हुए टकराव को देखते हुए आया है, जिसमें वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पिछले 45 साल में पहली बार दोनों पक्षों के कई जवानों की मौत हुई थी.

क्विंग ने लिखा है कि सीमा पर टकराव के बाद भारत ने सीमा पर विवाद जारी रहते ही एकतरफा और अनुचित काम किए हैं. उदाहरण के तौर पर भारत ने टिक-टॉक और वी-चैट सहित चीन के 59 मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध लगा दिए हैं. भारत चीन को लगाम खींचकर रोकने के लिए जापान और ऑस्ट्रेलिया को भी मनाने में लगा है. हालांकि, यह महामारी के बाद के युग में भारत की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में या विकास में मदद नहीं करेगा. चीन को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करके भारत आर्थिक मामले में और अधिक कष्ट भोगेगा. भारत की राष्ट्रीय शक्ति चीन के राष्ट्रीय हितों को चुनौती देने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकती. हालांकि, इसके साथ ही इस लेख में कहा गया है कि चीन-भारत और चीन-जापान के रिश्ते उतनी तेजी से नीचे नहीं गए जितनी चीन और अमेरिका के गए हैं.

लेख में कहा गया है कि नई दिल्ली बीजिंग पर दबाव बनाना चाहता है लेकिन अब भी एक सामान्य प्रवृत्ति वार्ता करके ही चीन-भारत के विवाद को सुलझाना है.

जहां तक जापान की बात है तो वह महामारी के बाद के समय में अपने आर्थिक विकास पर विचार करते हुए हो सकता है कि अब भी चीन के साथ रिश्तों को स्थिर करना चाहे. यही मामला है कि नई दिल्ली और टोक्यो बीजिंग को उकसाने के लिए अत्यधिक बयानबाजी और चाल नहीं चलेंगे.

क्विंग ने आगे लिखा है कि चीन का भारत और जापान के साथ विवाद भले ही है, नई दिल्ली और टोक्यो एशिया में संतुलन बनाए रखने के लिए सहयोग को मजबूत करना चाह सकते हैं. हम एशिया की दो महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं भारत और जापान के बीच सामान्य सहयोग को देखना चाहेंगे. कुल मिलाकर उनकी सफलता पूरे एशिया क्षेत्र में सहयोग के लिए सुचालक है.

लेकिन ऐसा सहयोग संयुक्त रूप से चीन पर दबाव बनाने के मकसद पर आधारित है तब हम लोग निश्चित रूप से इसके विरोध में हैं, क्योंकि यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र को अस्थिर करेगा.

भारत के विदेश मंत्रालय को हालांकि अभी तारीख तय करनी है लेकिन मीडिया की खबरों में बताया गया है कि वास्तव में मोदी और आबे के बीच वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन सितंबर की शुरुआत में होने की संभावना है.

जापान उन दो देशों में एक है जिनके साथ भारत वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन करता है, दूसरा देश रूस है. हालांकि, पिछले साल असम के गुवाहाटी में होने वाला शिखर सम्मेलन नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों की वजह से स्थगित कर दिया गया था.

भारत और चीन के सैनिकों के बीच जून में लद्दाख में हुए खूनी संघर्ष के बाद पिछले माह जापान भारत के समर्थन में सामने आया. एक विचार मंच की ओर से यहां 'इंडिया-जापान रिलेशंस इन पोस्ट कोविड एरा’ यानी 'कोविड के बाद के युग में भारत-जापान संबंध’ विषय पर आयोजित एक परिचर्चा में भारत में जापान के राजदूत सतोशी सुजुकी ने कहा कि टोक्यो लद्दाख में एलएसी के पास स्थिति में बदलाव करने की किसी भी कोशिश का सख्ती के साथ विरोध करता है.

ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित ताजा लेख के संदर्भ में ऑबजर्वर रिसर्च फाउंडेशन नाम के विचार मंच (थिंक टैंक) के नामचीन व्यक्ति एवं जापान अध्ययन क्षेत्र के अग्रणी भारतीय विद्वान के. वी केसवन ने ईटीवी भारत से कहा कि भारत-जापान के रिश्ते किसी दूसरे देश के खिलाफ लक्ष्य करके नहीं हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वर्ष 2014 में पूर्वी एशियाई देशों के दौरे के दौरान भारत-जापान के संबंध ऊंचा उठकर 'विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी’ तक पहुंच गए.

हम भारत और जापान एक रणनीतिक साझेदारी साझा करते हैं और हमलोग क्षेत्र में शांति और समुद्री सुरक्षा को सुनिश्चित करने में सफल होंगे. केसवन ने आगे कहा कि चीन दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में शरारत कर रहा है. भारत के साथ सीमा पर कशमकश के अलावा चीन का दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में कई देशों के साथ सीमा विवाद चल रहा है.

पूर्वी चीन सागर में बीजिंग का टोक्यो के साथ सेनकाकु द्वीपों को लेकर विवाद है, जिसे चीन दियायू द्वीप कहता है. पिछले माह जब चीन के तटरक्षक जहाज इन द्वीपों के पास पहुंच गए तो जापान ने कड़ा विरोध दर्ज कराया.

पाकिस्तान की तरह भारत पर निशाना साधने वालों की तरह चीन के भी कई साझेदार हैं, यह कहते हुए केसवन ने कहा कि बीजिंग एक नई क्षेत्रीय व्यवस्था तैयार करने की कोशिश कर रहा है.

उन्होंने पिछले माह अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के रक्षामंत्रियों की ओर से जारी एक संयुक्त बयान का हवाला दिया जिसमें एक ऐसे सशक्त त्रिपक्षीय रक्षा सहयोग और आदान-प्रदान का आह्वान किया गया था जो एक मुक्त, खुले, समावेशी और समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र के समर्थन में स्पष्ट योगदान देते हैं.

अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत उस चतुष्कोण का हिस्सा है जो बीजिंग के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में शांति एवं समृद्धि के लिए काम करना चाहते हैं. यह क्षेत्र जापान के पूर्वी तट से लेकर अफ्रीका के पूर्वी तट तक फैला हुआ है.

(अरुणिम भुयान)

Last Updated : Aug 22, 2020, 9:20 AM IST
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