कानपुर: जब अंग्रेजों ने मंदिर बनाने की इजाजत नहीं दी थी तो तिलक ने 3 मंजिल मकान को ही बप्पा का घर बना दिया था. जी हां बात 100 साल पहले की है और शहर था कानपुर. महाराष्ट्र से बाहर उत्तर भारत में गणेश उत्सव की शुरुआत होनी थी और इसके लिए जरूरी था गणपति गजानन की स्थापना, लेकिन अंग्रेजों ने पास में ही मस्जिद होने का बहाना बनाकर मंदिर नहीं बनने दिया, लेकिन गणपति विराजे वहीं.
कानपुर के घंटाघर इलाके में स्थापित बप्पा का यह सिद्धिविनायक मंदिर 100 साल से भी ज्यादा पुराना है. यूपी का यह इकलौता मंदिर है, जिसका स्वरूप तीन खंड के मकान जैसा है. इसके साथ ही यहां भगवान गणेश के 8 रूप मयूरेश्वर, सिद्धिविनायक, बल्लासेश्वर,वरद विनाय, चिंतामणि थेऊर, गिरिजात्मज, विघ्नेश्वर और महागणपति एक साथ मौजूद हैं.
इस गणेश मंदिर की मूर्तियां जयपुर के शिल्पकारों ने गढ़ी हैं. यहां भगवान गणेश के साथ उनकी पत्नियां रिद्धि-सिद्धि भी विराजमान हैं, साथ हैं उनके पुत्र शुभ और लाभ. इस मंदिर में द्वारपालों जय और विजय के साथ मां गंगा भी हैं.
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बात सन 1918 की है जब लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने कानपुर में गणेश मंदिर की आधारशिला रखी थी, जिसका विरोध अंग्रेजों ने जमकर किया था. अंग्रेजों का कहना था कि पास में मस्जिद है.
इसलिए मंदिर और मस्जिद एक साथ नहीं बन सकते, लेकिन कहते हैं न जब मन में दृढ़ संकल्प हो तो कोई भी रुकावट खत्म की जा सकती है. लोगों के दबाव में अंग्रेजों ने यह शर्त रख दी कि मंदिर का निर्माण मंदिर के स्वरूप में नहीं होगा.