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विशेष : खाड़ी देशों से वतन वापस लौटने को मजबूर श्रमिक, सरकार ने फेरा मुंह

उज्ज्वल भविष्य की बहुत उम्मीद के साथ मध्य-पूर्व की रेगिस्तानी भूमि पर प्रवासी मजदूर पहुंच तो गए लेकिन, वहां दयनीय परिस्थितियों में जीवन बिताने पर मजबूर हैं. जब हालात ठीक थे तब सरकारों ने बहुमूल्य विदेशी मुद्रा का योगदान देने वाले खाड़ी के श्रमिकों की बहुत प्रशंसा की थी, लेकिन जब वही श्रमिक कठिनाइयों में हैं तो वही सरकारों ने अपना मुंह फेर लिया है और अब विदेशी भूमि पर बिना अपनी मातृभूमि वापस लौटने की उम्मीद के जीवन बिताने के लिए मजबूर हैं.

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Published : Oct 13, 2020, 9:06 AM IST

प्रवासी मजदूर
प्रवासी मजदूर

नई दिल्ली : लाखों प्रवासी भारतीयों को तेल समृद्ध खाड़ी देशों के एकीकृत विकास में योगदान देने का श्रेय दिया जाता है, जबकि इसके बदले में उनके परिवारों को पेट्रो-डॉलर प्राप्त हुए जिससे कि वह समृद्ध हो सके. इस ही सिक्के का एक और पहलू भी है, हजारों श्रमिकों ने कई बिचौलियों और अवैध एजेंसियों पर विश्वास करने की भूल की और उज्ज्वल भविष्य की बहुत उम्मीद के साथ मध्य-पूर्व की रेगिस्तानी भूमि पर पहुंच तो गए लेकिन, वहां दयनीय परिस्थितियों में जीवन बिताने पर मजबूर हैं. जब हालात ठीक थे तब सरकारों ने बहुमूल्य विदेशी मुद्रा का योगदान देने वाले खाड़ी के श्रमिकों की बहुत प्रशंसा की थी, लेकिन जब वही श्रमिक कठिनाइयों में हैं तो वही सरकारों ने अपना मुंह फेर लिया है और अब विदेशी भूमि पर बिना अपनी मातृभूमि वापस लौटने की उम्मीद के जीवन बिताने के लिए मजबूर हैं.

सरकारों के लापरवाह रवैये पर सर्वोच्च न्यायलय में जनहित याचिका दायर की गई है. न्यायमूर्ति एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 12 राज्य सरकारों समेत सीबीआई को नोटिस जारी किए हैं. गल्फ-तेलंगाना वेलफेयर एंड कल्चरल एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ इंडियन वर्कर्स राइट्स के अध्यक्ष द्वारा दायर किए गये मुक्दमें के कारण कई प्रमुख मुद्दे प्रकाश में आ गए हैं. याचिकाकर्ता खाड़ी की जेलों में बंद 8189 लोगों के लिए और 44 मौत की सजा का इंतजार कर रहे कैदियों के लिए कूटनीतिक हस्तक्षेप और कानूनी सहायता चाहते हैं. साथ ही वे विदेश की भूमि पर गंवाने वाले श्रमिकों के शवों को वापस लाने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश की माँग कर रहे हैं ताकि उन्हें अपने देश वापस लाया जा सके. जबकि पाकिस्तान, श्रीलंका, चीन और बांग्लादेश जैसे देश अपने श्रमिकों को वापस लाने के लिए सक्रिय रूप से पहल कर रहे हैं. शिकायत यह है कि विदेशों में भारतीय दूतावास उदासीनता से काम कर रहे हैं. भारत से अशिक्षित कामगारों की अवैध तस्करी और अन्य संबंधित अपराधों की जांच करने के लिए सीबीआई को नोडल एजेंसी के रूप में नियुक्त करने की भी एक दलील दी गई है. केंद्र और राज्य सरकारों को असहाय अशिक्षित गरीब महिलाओं को वापस लाने के लिए तत्काल समाधान प्रदान करने की आवश्यकता है जो त्वरित धन की तलाश में घरेलू-कामगार और श्रमिकों के रूप में खाड़ी चली तो गईं हैं लेकिन वहाँ उन्हें दास के रूप में बेच दिया गया है और वेश्यालयों के अंधेरे जीवन में धकेल दिया गया है.

श्रम अधिकारों का उल्लंघन
विदेश मंत्रालय के अनुसार छह खाड़ी देशों में 85 लाख भारतीय काम कर रहे हैं. केंद्र ने जुलाई में लोकसभा को सूचित किया था कि 2016 और 2019 के बीच उत्पीड़न के विभिन्न रूपों की 77,000 से अधिक शिकायतें प्राप्त हुईं और उनमें से 36 प्रतिशत सऊदी अरब से आईं हैं और निष्कर्ष निकाला कि असल में पीड़ित आप्रवासियों की वास्तविक संख्या की तुलना में मिली यह शिकायतों की संख्या नाममात्र ही थी. किसी भी विदेशी देश में मजदूरी का भुगतान नहीं करना, श्रम अधिकारों का उल्लंघन करना, निवास के परमिट से वंचित रखना, चिकित्सा सुविधाओं का प्रावधान नहीं करना और हताहतों हुए श्रमिकों के लिए मुआवजे का भुगतान नहीं करना आदि सभी समस्याएं मज़दूरों के जीवन और मौत का सवाल हैं. 2014 और 2019 के बीच लगभग 34,000 प्रवासी श्रमिकों की मौत सरकारों को गंभीर मुद्दा नहीं लगती है! जून 2016 में कतर के दौरे पर जाते समय प्रधान मंत्री मोदी ने आश्वासन दिया था कि वह श्रमिकों की समस्याओं से अवगत हैं और उन्हें हल करने के लिए नेताओं से बात करेंगे.

मजबूत तंत्र की जरूरत
शिकायतों का लगातार चलता सिलसिला साबित करता है कि दिए गए आश्वासन से हालात को सुधारने में कोई मदद नहीं मिली है. 2012 और 2017 के बीच दुनिया भर में प्रवासी भारतीयों द्वारा भारत भेजे गए प्रेषण की कुल राशि $ 41,000 करोड़ थी. उसमें से लगभग 21 हजार करोड़ रुपये खाड़ी देशों से आए थे. सरकारों का यह कर्तव्य है कि वे देश के लिए कीमती विदेशी मुद्रा कमाने वाले मेहनती मजदूरों के कल्याण को सुनिश्चित करें और देखें कि उनके जीवन को जालसाजों के हाथों कुचल नहीं दिया गया है. केंद्र ने पिछले फरवरी यह खुलासा किया था कि दो तेलुगू राज्यों में अशिक्षित गरीब लोगों को खाड़ी जाने का सपना बेचने वाली 29 अवैध एजेंसियां हैं और साथ ही यह चेतावनी दी थी कि यह संख्या महाराष्ट्र, पंजाब और दिल्ली में बढ़कर 85 हो गई है. एक तरफ जबकि राज्यों को कानूनी रूप से श्रम प्रवास को लागू करने के लिए एक सुरक्षित प्रणाली बनाने की जरूरत है दूसरी ओर केंद्र को भी एक मजबूत तंत्र बनाना चाहिए जिसके द्वारा ये सुनिश्चित किया जा सके कि संबंधित मेजबान सरकारें भारत से गए कार्यबल को रोज़गार की सुरक्षा और कार्य स्थल में उनके अधिकारों की पूरी तरह से जिम्मेदारी लेगी. इस तरह एक सुरक्षित और सफल प्रवासन प्रणाली सुनिश्चित की जा सकती है.

नई दिल्ली : लाखों प्रवासी भारतीयों को तेल समृद्ध खाड़ी देशों के एकीकृत विकास में योगदान देने का श्रेय दिया जाता है, जबकि इसके बदले में उनके परिवारों को पेट्रो-डॉलर प्राप्त हुए जिससे कि वह समृद्ध हो सके. इस ही सिक्के का एक और पहलू भी है, हजारों श्रमिकों ने कई बिचौलियों और अवैध एजेंसियों पर विश्वास करने की भूल की और उज्ज्वल भविष्य की बहुत उम्मीद के साथ मध्य-पूर्व की रेगिस्तानी भूमि पर पहुंच तो गए लेकिन, वहां दयनीय परिस्थितियों में जीवन बिताने पर मजबूर हैं. जब हालात ठीक थे तब सरकारों ने बहुमूल्य विदेशी मुद्रा का योगदान देने वाले खाड़ी के श्रमिकों की बहुत प्रशंसा की थी, लेकिन जब वही श्रमिक कठिनाइयों में हैं तो वही सरकारों ने अपना मुंह फेर लिया है और अब विदेशी भूमि पर बिना अपनी मातृभूमि वापस लौटने की उम्मीद के जीवन बिताने के लिए मजबूर हैं.

सरकारों के लापरवाह रवैये पर सर्वोच्च न्यायलय में जनहित याचिका दायर की गई है. न्यायमूर्ति एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 12 राज्य सरकारों समेत सीबीआई को नोटिस जारी किए हैं. गल्फ-तेलंगाना वेलफेयर एंड कल्चरल एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ इंडियन वर्कर्स राइट्स के अध्यक्ष द्वारा दायर किए गये मुक्दमें के कारण कई प्रमुख मुद्दे प्रकाश में आ गए हैं. याचिकाकर्ता खाड़ी की जेलों में बंद 8189 लोगों के लिए और 44 मौत की सजा का इंतजार कर रहे कैदियों के लिए कूटनीतिक हस्तक्षेप और कानूनी सहायता चाहते हैं. साथ ही वे विदेश की भूमि पर गंवाने वाले श्रमिकों के शवों को वापस लाने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश की माँग कर रहे हैं ताकि उन्हें अपने देश वापस लाया जा सके. जबकि पाकिस्तान, श्रीलंका, चीन और बांग्लादेश जैसे देश अपने श्रमिकों को वापस लाने के लिए सक्रिय रूप से पहल कर रहे हैं. शिकायत यह है कि विदेशों में भारतीय दूतावास उदासीनता से काम कर रहे हैं. भारत से अशिक्षित कामगारों की अवैध तस्करी और अन्य संबंधित अपराधों की जांच करने के लिए सीबीआई को नोडल एजेंसी के रूप में नियुक्त करने की भी एक दलील दी गई है. केंद्र और राज्य सरकारों को असहाय अशिक्षित गरीब महिलाओं को वापस लाने के लिए तत्काल समाधान प्रदान करने की आवश्यकता है जो त्वरित धन की तलाश में घरेलू-कामगार और श्रमिकों के रूप में खाड़ी चली तो गईं हैं लेकिन वहाँ उन्हें दास के रूप में बेच दिया गया है और वेश्यालयों के अंधेरे जीवन में धकेल दिया गया है.

श्रम अधिकारों का उल्लंघन
विदेश मंत्रालय के अनुसार छह खाड़ी देशों में 85 लाख भारतीय काम कर रहे हैं. केंद्र ने जुलाई में लोकसभा को सूचित किया था कि 2016 और 2019 के बीच उत्पीड़न के विभिन्न रूपों की 77,000 से अधिक शिकायतें प्राप्त हुईं और उनमें से 36 प्रतिशत सऊदी अरब से आईं हैं और निष्कर्ष निकाला कि असल में पीड़ित आप्रवासियों की वास्तविक संख्या की तुलना में मिली यह शिकायतों की संख्या नाममात्र ही थी. किसी भी विदेशी देश में मजदूरी का भुगतान नहीं करना, श्रम अधिकारों का उल्लंघन करना, निवास के परमिट से वंचित रखना, चिकित्सा सुविधाओं का प्रावधान नहीं करना और हताहतों हुए श्रमिकों के लिए मुआवजे का भुगतान नहीं करना आदि सभी समस्याएं मज़दूरों के जीवन और मौत का सवाल हैं. 2014 और 2019 के बीच लगभग 34,000 प्रवासी श्रमिकों की मौत सरकारों को गंभीर मुद्दा नहीं लगती है! जून 2016 में कतर के दौरे पर जाते समय प्रधान मंत्री मोदी ने आश्वासन दिया था कि वह श्रमिकों की समस्याओं से अवगत हैं और उन्हें हल करने के लिए नेताओं से बात करेंगे.

मजबूत तंत्र की जरूरत
शिकायतों का लगातार चलता सिलसिला साबित करता है कि दिए गए आश्वासन से हालात को सुधारने में कोई मदद नहीं मिली है. 2012 और 2017 के बीच दुनिया भर में प्रवासी भारतीयों द्वारा भारत भेजे गए प्रेषण की कुल राशि $ 41,000 करोड़ थी. उसमें से लगभग 21 हजार करोड़ रुपये खाड़ी देशों से आए थे. सरकारों का यह कर्तव्य है कि वे देश के लिए कीमती विदेशी मुद्रा कमाने वाले मेहनती मजदूरों के कल्याण को सुनिश्चित करें और देखें कि उनके जीवन को जालसाजों के हाथों कुचल नहीं दिया गया है. केंद्र ने पिछले फरवरी यह खुलासा किया था कि दो तेलुगू राज्यों में अशिक्षित गरीब लोगों को खाड़ी जाने का सपना बेचने वाली 29 अवैध एजेंसियां हैं और साथ ही यह चेतावनी दी थी कि यह संख्या महाराष्ट्र, पंजाब और दिल्ली में बढ़कर 85 हो गई है. एक तरफ जबकि राज्यों को कानूनी रूप से श्रम प्रवास को लागू करने के लिए एक सुरक्षित प्रणाली बनाने की जरूरत है दूसरी ओर केंद्र को भी एक मजबूत तंत्र बनाना चाहिए जिसके द्वारा ये सुनिश्चित किया जा सके कि संबंधित मेजबान सरकारें भारत से गए कार्यबल को रोज़गार की सुरक्षा और कार्य स्थल में उनके अधिकारों की पूरी तरह से जिम्मेदारी लेगी. इस तरह एक सुरक्षित और सफल प्रवासन प्रणाली सुनिश्चित की जा सकती है.

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