सांप्रदायिक एकता प्रति गांधी की प्रतिबद्धता बचपन से ही थी. हिंदू, मुस्लिम और पारसियों के बीच आपसी सद्बाव को लेकर वे उसी समय से सजग रहे. उन्होंने खुद कहा था कि जब वह 12 साल के थे, तभी से यह भावना उनके अंदर घर कर गई. यह कोई साधारण संयोग नहीं था कि चार साल बाद दिसंबर 1885 में एक अंग्रेज ने कांग्रेस की स्थापना की. कांग्रेस के पहले अध्यक्ष एक हिंदू थे (बॉम्बे), दूसरे अध्यक्ष पारसी (कलकत्ता), तीसरे अध्यक्ष मुस्लिम (मद्रास) और चौथे अध्यक्ष अंग्रेज (इलाहाबाद में) थे. आने वाले समय में कांग्रेस में यही परंपरा कायम रही. सांस्कृतिक बहुलवाद और धर्मनिरपेक्षता इसके प्रमुख अवयव थे.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक एलन ऑक्टेवियन ह्यूम की भारत के युवाओं के प्रति प्रतिबद्धता का शाश्वत सत्य ये है कि आत्म बलिदान और निः स्वार्थता के रास्ते पर चलकर ही स्वतंत्रता और खुशी हासिल की जा सकती है. यह उनका कहना था. उनके अनुसार यह सौ फीसदी समयानुकूल था.
गांधी के अंदर सांस्कृतिक बहुलता और मानवीय भावना उसी समय आत्मसात हो गई थी, जब वह राजकोट स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे. बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए जब वह इंगलैंड जा रहे थे, तब उन्होंने अपनी मां को भरोसा दिया था कि वह पवित्रता और अनुशासन दोनों बनाए रखेंगे. अफ्रीका में वह 20 साल से भी अधिक समय तक रहे. एक वकील के रूप में वो लड़ाई लड़ते रहे. वहां बार-बार अपमान का सामना करना पड़ा. उनके साथ धक्का-मुक्की भी हुई. बावजूद इसके वह समाज के निचले तबकों के लोगों की आवाज उठाते रहे. उन्होंने रंगभेद नीति और वहां की सरकार का विरोध किया. गांधी ने इस दौरान कभी भी हिंसा का सहारा नहीं लिया.
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1906 उनके जीवन और आधुनिक दुनिया के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था. उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह का प्रयोग किया. इसकी शक्ति ऐसी थी, जैसा कि रामचंद्र गुहा ने लिखा, 'न कि तलवार खींची गई थी, न बंदूक से फायर किया गया था ... लेकिन असमानता की हार को अपने स्वयं के अंत बनाने में गांधी द्वारा प्रदर्शित वीरता का कोई जवाब नहीं था.' गुहा ने दक्षिण अफ्रीकी मित्र के एक पत्र के हवाले से लिखा, 'आपने हमें एक वकील दिया और हमने आपको एक महात्मा दिया.' गांधी ने स्वयं सत्याग्रह को शायद पृथ्वी का सबसे शक्तिशाली उपकरण बताया था.
जब महात्मा गांधी अपनी मातृभूमि लौट आए, तो भारत में अव्यवस्था जैसी स्थिति में थी. उनका मिशन था अपने लाखों देशवासियों को विदेशी शासन की बेड़ियों से मुक्त कराना और उन्हें शोषण और अन्याय से मुक्ति दिलाना. एक नायक के रूप में वह भारत लौटे थे. उन्होंने द. अफ्रीका में काले उत्पीड़ित लोगों के बीच नई उम्मीद जगा दी थी.
उन्होंने सत्याग्रहा, अहिंसा और प्रेम को अपना हथियार बनाया था. राजमोहन गांधी ने एक अरबी कवि मिखाइल नूमा के हवाले से लिखा है कि गांधी के हाथ की कतली तलवार से भी ज्यादा तेज थी, गांधी के दुबले-पतले शरीर को लपेटने वाली सरल सफेद चादर एक ऐसी कवच प्लेट थी, जिसे बंदूक भी भेद नहीं सकती थी और गांधी का बकरा ब्रिटिश शेर से ज्यादा मजबूत था. बाकी इतिहास, शानदार ढंग से रोमन रोलैंड द्वारा अभिव्यक्त किया गया है.'
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गांधी ने 30 करोड़ लोगों को खड़ा कर दिया था. उनमें नई ऊर्जा भर दी थी. उनके इस प्रयास से ब्रिटिश साम्राज्य हिल गया था. पिछले दो हजार सालों में दुनिया ने अपनी ही तरह का ऐसा अनोखा आंदोलन नहीं देखा था.
गांधी ने प्रेम, करूणा और क्षमा को शक्ति का प्रतीक बना दिया था. निजी जीवन में कई ऐसे मौके आए जब उन्होंने अपने परिजनों को भी माफी मांगने को कहा, जब उन्हें लगा कि इसकी जरूरत है.
एक बार उन्होंने अपने बेटे को भी कहा, जब उसने गुस्सा और विरोध प्रकट किया था, 'अपने पिता को माफ कर दो यदि तुमको लगता है कि मैंने गलत किया है.' उनके संत स्वभाव ने उनके कठोर आलोचकों के भी मुंह बंद कर दिए थे. फिर चाहे वह राजनीतिक विरोधी हो या नाराज सगे-संबंधी. उनकी तुलना बुद्ध और क्राइस्ट से की गई. कोई आश्चर्य नहीं कि इंग्लैंड के कुछ ईसाई मिशनरियों ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा कि उन्होंने सेवाग्राम में मसीह को देखा.
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सवाल यह है कि आज की दुनिया में मानवता के लिए सत्ता की लालसा, धन, हिंसा, भ्रष्टाचार और बढ़ती गरीबी के बीच कोई जगह है. क्या भविष्य के लिए कोई उम्मीद बची है. इसका जवाब है गांधी की विरासत. यह हमें अंधेरे से प्रकाश के बीच ले जाने का रास्ता दिखाता है. किंग्सले मार्टिन ने कहा था 'गांधी का जीवन और मृत्यु इस विश्वास का गवाह रहेगा कि मानव अभी भी सत्य और प्रेम से दुख, क्रूरता और हिंसा को दूर कर सकते हैं.' आज के दिन हम हर साल उन मूल्यों के
बारे में अपने विश्वास की पुष्टि करते हैं, जो भविष्य के लिए आशा की किरण है.
(लेखक- ए प्रसन्ना कुमार, वह सेंटर ऑफ पॉलिसी स्टडीज विशाखापट्टनम् के फाउंडर प्रेसिडेंट हैं)
(आलेख के विचार लेखक के निजी हैं. इनसे ईटीवी भारत का कोई संबंध नहीं है)