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सरकार कोई ठोस प्रस्ताव दे तभी होगी बातचीत : किसान नेता

कृषि कानूनों के विरोध में बीते 27 दिनों से किसान आंदोलन जारी है. सरकार और किसान संगठनों के बीच हुई वार्ताएं बेनतीजा रही हैं. किसान तीनों कानूनों को वापस लेने की अपनी मांग पर अड़े हुए हैं. सरकार ने किसान संगठनों से एक बार फिर बातचीत का आग्रह किया है. जानें सरकार के प्रस्ताव पर किसानों का रुख....

सुरजीत सिंह फूल
सुरजीत सिंह फूल
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Published : Dec 22, 2020, 5:35 PM IST

नई दिल्ली : कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलनरत किसान संगठनों को सरकार ने एक बार फिर वार्ता शुरू करने का आग्रह भेजा है, जिसके बाद आज सुबह से ही दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन स्थल के पास संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े किसान संगठनों की बैठक चल रही है. ईटीवी भारत ने मंगलवार की बैठक से पहले भारतीय किसान यूनियन 'क्रांतिकारी' के अध्यक्ष सुरजीत सिंह फूल से विशेष बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि यदि सरकार की तरफ से कोई ठोस प्रस्ताव आता है, तभी बातचीत का कोई फायदा है. यदि सरकार अपनी पुरानी बातों पर ही कायम रही और एक बार फिर बिल से संबंधित आशंकाओं को दूर करने के लिये चर्चा की बात कहती है तो उस बैठक का कोई नतीजा निकलना मुश्किल है.

सुरजीत सिंह फूल से बातचीत

बता दें, 20 दिसंबर को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव की ओर से किसान नेता दर्शनपाल को संबोधित एक पत्र उन चालीस किसान संगठनों के नेताओं को भेजा गया था, जो मुख्य रूप से इस आंदोलन में अग्रणी हैं. आज किसान संगठनों के नेता बैठक में सरकार के प्रस्ताव पर चर्चा कर रहे हैं और शाम तक इस बात का निर्णय होगा कि सरकार की तरफ से वार्ता की पेशकश पर उनका क्या रुख रहेगा.

सुरजीत सिंह ने बताया कि इस आंदोलन में चार सौ से ज्यादा किसान संगठन शामिल हैं जिनकी एकता अटूट है और सब इसी मांग के साथ डटे हैं कि सरकार इन तीनों कानूनों को रद्द करे. आंदोलन उसी सूरत में वापस लिया जाएगा, नहीं तो सरकार चाहे तो जोर-जबरदस्ती का रास्ता अपनाए और फिर जनता अगले चुनाव में उन्हें इसका अंजाम बता देगी.

यह भी पढ़ें-पंढेर का आरोप, किसान संगठनों को 'चक्रव्यूह' में फंसाना चाहती है सरकार

सुरजीत सिंह ने कहा कि सरकार किसानों के भय को दूर करने के लिये कोई ठोस प्रस्ताव भेजे तो बातचीत का कोई नतीजा निकले लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार बस देरी कर मामले को लंबा खींचना चाहती है. उन्हें लगता है कि देरी करने से किसान निराश होंगे और वापस चले जाएंगे. इसलिए ऐसा लगता है कि सरकार गंभीर नहीं है. किसान नेता ने एक बार फिर दोहराया कि आंदोलन में शामिल सभी किसान संगठन इन तीन कानूनों को किसानों के लिये मौत का फरमान मानते हैं और किसान इन कानूनों को रद्द करवा कर ही वापस जाएंगे.

नई दिल्ली : कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलनरत किसान संगठनों को सरकार ने एक बार फिर वार्ता शुरू करने का आग्रह भेजा है, जिसके बाद आज सुबह से ही दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन स्थल के पास संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े किसान संगठनों की बैठक चल रही है. ईटीवी भारत ने मंगलवार की बैठक से पहले भारतीय किसान यूनियन 'क्रांतिकारी' के अध्यक्ष सुरजीत सिंह फूल से विशेष बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि यदि सरकार की तरफ से कोई ठोस प्रस्ताव आता है, तभी बातचीत का कोई फायदा है. यदि सरकार अपनी पुरानी बातों पर ही कायम रही और एक बार फिर बिल से संबंधित आशंकाओं को दूर करने के लिये चर्चा की बात कहती है तो उस बैठक का कोई नतीजा निकलना मुश्किल है.

सुरजीत सिंह फूल से बातचीत

बता दें, 20 दिसंबर को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव की ओर से किसान नेता दर्शनपाल को संबोधित एक पत्र उन चालीस किसान संगठनों के नेताओं को भेजा गया था, जो मुख्य रूप से इस आंदोलन में अग्रणी हैं. आज किसान संगठनों के नेता बैठक में सरकार के प्रस्ताव पर चर्चा कर रहे हैं और शाम तक इस बात का निर्णय होगा कि सरकार की तरफ से वार्ता की पेशकश पर उनका क्या रुख रहेगा.

सुरजीत सिंह ने बताया कि इस आंदोलन में चार सौ से ज्यादा किसान संगठन शामिल हैं जिनकी एकता अटूट है और सब इसी मांग के साथ डटे हैं कि सरकार इन तीनों कानूनों को रद्द करे. आंदोलन उसी सूरत में वापस लिया जाएगा, नहीं तो सरकार चाहे तो जोर-जबरदस्ती का रास्ता अपनाए और फिर जनता अगले चुनाव में उन्हें इसका अंजाम बता देगी.

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सुरजीत सिंह ने कहा कि सरकार किसानों के भय को दूर करने के लिये कोई ठोस प्रस्ताव भेजे तो बातचीत का कोई नतीजा निकले लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार बस देरी कर मामले को लंबा खींचना चाहती है. उन्हें लगता है कि देरी करने से किसान निराश होंगे और वापस चले जाएंगे. इसलिए ऐसा लगता है कि सरकार गंभीर नहीं है. किसान नेता ने एक बार फिर दोहराया कि आंदोलन में शामिल सभी किसान संगठन इन तीन कानूनों को किसानों के लिये मौत का फरमान मानते हैं और किसान इन कानूनों को रद्द करवा कर ही वापस जाएंगे.

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