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ठोस कचरे से पैदा होगी 17.40 करोड़ यूनिट बिजली, भारत का पहला संयंत्र - ठोस कचरा बिजली निर्माण

हैदराबाद का ठोस कचरा बिजली उत्पादन के कार्य में प्रयोग करने के लिए तैयार किया गया है. यह इस काम को करने वाला भारत का पहला शहर है. यहां की आधिकारिक योजना इस संयंत्र से 17.40 करोड़ यूनिट बिजली पैदा करने की कोशिश कर रही है. पूरे शहर में इस तरह की परियोजना पर कार्य चल रहा है.

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कचरा प्रबंधन के लिए प्रभावी रणनीति
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Published : Sep 22, 2020, 2:59 PM IST

हैदराबाद : अप्रभावी कचरा प्रबंधन का परिणाम हमेशा पर्यावरण से जुड़ी आपदाओं के रूप में मिलता है. जमीन में खतरनाक कचरे को डालना और अनुचित तरीके से जलाना जनता के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है, तो कचरा निपटान का सही तरीका क्या है? हैदराबाद के पास इसका जवाब है. यहां शहर के जवाहरनगर स्थित डंप यार्ड है, जिसे ठोस कचरे से बिजली बनाने के लिए डिजाइन किया गया है, जिससे हैदराबाद दक्षिण भारत में यह अद्भुत काम करने वाला पहला शहर बन गया है.

आधिकारिक योजना इस संयंत्र से 17.40 करोड़ यूनिट बिजली पैदा करने की कोशिश कर रही है. इस तरह की परियोजनाओं पर शहर भर में काम चल रहा है. सरकार से हुए समझौते के अनुसार, ठोस कचरा जलाने से बनी प्रति यूनिट बिजली के लिए सरकार को 7.84 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा. हालांकि यह एक महंगा मामला है, लेकिन यह व्यवस्था समय बीतने के साथ किफायती हो सकती है.

तिमारपुर परियोजना
तिमारपुर (दिल्ली) परियोजना 1987 में प्रति दिन 300 टन ठोस अपशिष्ट से बिजली पैदा करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी, लेकिन इस परियोजना पर अमल नहीं किया जा सका. उसके बाद के कुछ दशकों में विभिन्न राज्यों में कम से कम 180 बायोगैस और जैव-सीएनजी परियोजनाएं शुरू की गईं. इनमें तमिलनाडु, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश बायोगैस परियोजना सबसे आगे हैं. हालांकि, हैदराबाद ज्वलनशील कचरे का उपयोग करके बिजली और उर्वरक उत्पादन की दिशा में अलग है. बाकी सरकारों को अन्य प्रमुख शहरों में सस्ते ऊर्जा उत्पादन के इस दृष्टिकोण को अपनाने के लिए सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए.

भारत की कचरा प्रबंधन रणनीति
भारत की कचरा प्रबंधन रणनीति घरों और सड़कों से कचरा एकत्र करने और इसे भराव क्षेत्र में ले जाकर निपटा देने तक सीमित थी. जबलपुर (मध्य प्रदेश) और गुवाहाटी (असम) उन पहले शहरों में से थे, जिन्होंने बिजली पैदा करने के लिए लैंडफिल का उपयोग किया है. देश का सबसे बड़ा ठोस अपशिष्ट बिजली संयंत्र दिल्ली में स्थित है. दिल्ली सरकार प्रतिदिन अपने दो हजार टन कचरे से अपनी बिजली उत्पादन को वर्तमान 24 मेगावाट प्रति दिन से बढ़ाने की योजना बना रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से देश के चार हजार शहरों में कचरा शोधन संयंत्र स्थापित करने के आह्वान के बावजूद राज्य सरकारों ने कुछ भी ठोस नहीं किया.

पढ़ें - स्वच्छ भारत मिशन के लिए रोल मॉडल बना अंबिकापुर

विदेश की कचरा प्रबंधन रणनीति
स्पेन ने 1940 के दशक की शुरुआत में कचरा से ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित किया. जर्मनी नगरपालिका ठोस कचरे को पुनर्चक्रित करने का बहुत अच्छा काम कर रही है. ऑस्ट्रिया, दक्षिण कोरिया और स्विट्जरलैंड भी ईंधन के स्रोत के रूप में कचरे का प्रसंस्करण कर रहे हैं. अनुमान है कि भारत 2030 तक 16.50 करोड़ टन ठोस कचरा जमा करेगा. आसन्न चुनौती से निपटने के लिए रणनीति तैयार करते समय हमें और सख्त होने की जरूरत होगी.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने खुलासा किया है कि हमारे खराब कचरा प्रबंधन की वजह से भारतीय विशेष रूप से कैंसर, अस्थमा और 22 अन्य प्रकार की पुरानी बीमारियों की चपेट हैं.

हैदराबाद : अप्रभावी कचरा प्रबंधन का परिणाम हमेशा पर्यावरण से जुड़ी आपदाओं के रूप में मिलता है. जमीन में खतरनाक कचरे को डालना और अनुचित तरीके से जलाना जनता के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है, तो कचरा निपटान का सही तरीका क्या है? हैदराबाद के पास इसका जवाब है. यहां शहर के जवाहरनगर स्थित डंप यार्ड है, जिसे ठोस कचरे से बिजली बनाने के लिए डिजाइन किया गया है, जिससे हैदराबाद दक्षिण भारत में यह अद्भुत काम करने वाला पहला शहर बन गया है.

आधिकारिक योजना इस संयंत्र से 17.40 करोड़ यूनिट बिजली पैदा करने की कोशिश कर रही है. इस तरह की परियोजनाओं पर शहर भर में काम चल रहा है. सरकार से हुए समझौते के अनुसार, ठोस कचरा जलाने से बनी प्रति यूनिट बिजली के लिए सरकार को 7.84 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा. हालांकि यह एक महंगा मामला है, लेकिन यह व्यवस्था समय बीतने के साथ किफायती हो सकती है.

तिमारपुर परियोजना
तिमारपुर (दिल्ली) परियोजना 1987 में प्रति दिन 300 टन ठोस अपशिष्ट से बिजली पैदा करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी, लेकिन इस परियोजना पर अमल नहीं किया जा सका. उसके बाद के कुछ दशकों में विभिन्न राज्यों में कम से कम 180 बायोगैस और जैव-सीएनजी परियोजनाएं शुरू की गईं. इनमें तमिलनाडु, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश बायोगैस परियोजना सबसे आगे हैं. हालांकि, हैदराबाद ज्वलनशील कचरे का उपयोग करके बिजली और उर्वरक उत्पादन की दिशा में अलग है. बाकी सरकारों को अन्य प्रमुख शहरों में सस्ते ऊर्जा उत्पादन के इस दृष्टिकोण को अपनाने के लिए सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए.

भारत की कचरा प्रबंधन रणनीति
भारत की कचरा प्रबंधन रणनीति घरों और सड़कों से कचरा एकत्र करने और इसे भराव क्षेत्र में ले जाकर निपटा देने तक सीमित थी. जबलपुर (मध्य प्रदेश) और गुवाहाटी (असम) उन पहले शहरों में से थे, जिन्होंने बिजली पैदा करने के लिए लैंडफिल का उपयोग किया है. देश का सबसे बड़ा ठोस अपशिष्ट बिजली संयंत्र दिल्ली में स्थित है. दिल्ली सरकार प्रतिदिन अपने दो हजार टन कचरे से अपनी बिजली उत्पादन को वर्तमान 24 मेगावाट प्रति दिन से बढ़ाने की योजना बना रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से देश के चार हजार शहरों में कचरा शोधन संयंत्र स्थापित करने के आह्वान के बावजूद राज्य सरकारों ने कुछ भी ठोस नहीं किया.

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विदेश की कचरा प्रबंधन रणनीति
स्पेन ने 1940 के दशक की शुरुआत में कचरा से ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित किया. जर्मनी नगरपालिका ठोस कचरे को पुनर्चक्रित करने का बहुत अच्छा काम कर रही है. ऑस्ट्रिया, दक्षिण कोरिया और स्विट्जरलैंड भी ईंधन के स्रोत के रूप में कचरे का प्रसंस्करण कर रहे हैं. अनुमान है कि भारत 2030 तक 16.50 करोड़ टन ठोस कचरा जमा करेगा. आसन्न चुनौती से निपटने के लिए रणनीति तैयार करते समय हमें और सख्त होने की जरूरत होगी.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने खुलासा किया है कि हमारे खराब कचरा प्रबंधन की वजह से भारतीय विशेष रूप से कैंसर, अस्थमा और 22 अन्य प्रकार की पुरानी बीमारियों की चपेट हैं.

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