यह विश्व अब 10 से 24 वर्ष की आयु के बीच के 1.8 बिलियन युवाओं का घर है. भारत में 10-24 वर्ष की आयु के बीच की विश्व की सबसे बड़ी युवा जनसंख्या; 356 मिलियन है. यूनाइटेड नेशन्स पापुलेशन फंड्स रिपोर्ट (यूएनएफपीए) के अनुसार, चीन 269 मिलियन युवाओं के साथ दूसरे नम्बर पर है, इसके पश्चात क्रमशः इंडोनेशिया (67 मिलियन), अमेरिका (65 मिलियन) और पाकिस्तान (59 मिलियन), नाइजीरिया (57 मिलियन), ब्राजील (51 मिलियन) और बांग्लादेश (48 मिलियन) का नम्बर आता है.
सबसे तीव्र गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में, आज भारत विश्व के 19% युवाओं का निवास है. भारत की युवा जनसंख्या इसकी सबसे मूल्यवान सम्पदा और सबसे आशाजनक भाग है. यह भारत को एक अनोखा जनसांख्यिकी लाभ प्रदान करता है, परन्तु यह अवसर मानव पूंजी विकास में उचित निवेश के बिना हाथ से निकल जाएगा. चूंकि भारत तीव्र आर्थिक, जनसांख्यिकीय, सामाजिक और प्रोद्योगिकीय परिवर्तनों से गुजर रहा है, इसलिए इसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसके विकास को समाज के सभी वर्गों द्वारा साझा किया जाए. भारत इस लक्ष्य को प्राप्त करने में तभी समर्थ होगा, जब युवावर्ग इसके आर्थिक विकास में लाभकारी ढंग से भाग लेने में सक्षम हो सकेगा. परन्तु दुर्भाग्यवश, केवल 2.3% भारतीय कामगारों ने शिक्षा के दौरान या उसके पश्चात विभिन्न कौशल में औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया है (दक्षिण कोरिया के 96% की तुलना में) और केवल 20% से कम भारतीय स्नातक कंपनियों द्वारा तुरंत नियुक्त किए जाने के योग्य होते हैं. शेष 80% को रोजगार क्षेत्र द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता.
भारत 2019 में विश्व जीडीपी के श्रेणीकरण में छठे स्थान पर है और यहां पर विश्व की कुल युवा जनसंख्या का केवल 3% ही है परन्तु यह विश्व के कुल जीडीपी के 25% का उत्पादन करने के योग्य हो सकता है. चीन विश्व के कुल युवा जनसंख्या के केवल 15% के साथ विश्व श्रेणी में दूसरे स्थान पर विराजमान है और यह विश्व के कुल जीडीपी के 16% का उत्पादन करने में सक्षम है. यह आंकड़ें विश्व के कुल जीडीपी के प्रतिशत के रूप में, भारतीय युवा के वास्तविक सामर्थ्य और देश के कुल जीडीपी के बीच बड़े अंतर को स्पष्ट रूप से इंगित करते हैं.
वर्तमान स्थिति
भारत कौशल के क्षेत्र में 64% तक की सबसे बड़ी कमी से जूझ रहा है जो शीर्ष से दूसरे स्थान पर विराजमान है. 2014 के ओईसीडी के रिपोर्ट के अनुसार, चीन केवल 24% के साथ अन्य राष्ट्रों के बीच निचले पायदान के निकट विराजमान है.
2020 में, लिंक्डइन द्वारा भारत में उभरती हुई नौकरियों का प्रतिवेदन वर्तमान बाजार में नए रोजगार की उभरी हुई भूमिकाओं को चिन्हांकित करता है. ब्लॉक चैन डेवलपर, कृत्रिम वुद्धिमता विशेषज्ञ, रोबोटिक प्रोसेस ऑटोमेशन, बैक एंड डेवलपर, विकास प्रबधक, स्थल विश्वसनीयता अभियंता, ग्रहत सफलता विशेषज्ञ, रोबोटिक्स अभियंता, साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ, पाइथन डेवलपर, डिजिटल विपणन विशेषज्ञ, फ्रंट-एंड अभियंता आदि जैसी नई नौकरियां तेजी से उभर रही हैं.
हाइपर लेजर, स्मार्ट कांटेक्ट, मशीन लर्निंग, डीप लर्निंग, टेन्सर-फ्लो, पाइथन प्रोग्रामिंग लैंग्वेज, नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (एनएलपी) जैसे नए कौशल वर्तमान के कौशल, हैं जिनको एमएनसी ढूंढ रहे हैं. 2019 में, इन्फोसिस द्वारा 'टैलेंट रडार रिपोर्ट' में परियोजनाएं प्रदान करने के लिए वर्तमान के सबसे बड़ी मांग वाली पांच तकनीकी कौशलों को चिन्हांकित किया गया. उनको डिजिटल इनिशिएटिव (67%), एनालिटिक्स (67%), ऑटोमेशन (61%), आईटी वास्तुशिल्प (क्लाउड सहित) – 59% और कृत्रिम बुद्धिमता (58%) उपयोग करने का अनुभव है.
स्पष्ट रूप से कहें तो इन नए कौशल के क्षेत्रों को देश के किसी विश्वविद्यालय या तकनीकी, अभियांत्रिकी संस्थानों में नहीं सिखाया जा रहा है. उन संस्थानों में तकनीकी संकायों ने उनके बारे में सुना तक नहीं है. पूरे विश्व में, वर्तमान स्पर्धात्मक नौकरी के बाजार में तकनीकी नौकरियों के लिए युवाओं को तैयार करना एक प्रमुख समस्या है. अध्ययन कक्ष ज्ञान एवं कौशल और वर्तमान वैश्विक उद्योग की आवश्यकताओं के बीच का अंतर दिन-प्रतिदिन बड़ा हो रहा है. यह अंतर केवल तभी पूरा किया जा सकता है, जब हमारे पास अपने परिसरों में इन नए तकनीकी कौशलों पर विद्यार्थियों को प्रशिक्षित करने के लिए उपयुक्त शिक्षक और संसाधन उपलब्ध हों.
व्यापार का डिजिटलीकरण उन नए तकनीकी कौशलों के लिए मांग उत्पन्न कर रहा है जिसे पूरा उद्योग ढूंढने के लिए संघर्ष कर रहा है. 'विश्व आर्थिक मंच' का पूर्वानुमान है कि हालांकि 2025 तक 75 मिलियन नौकरियां स्वचालन (ऑटोमेशन) और कृत्रिम बुद्धिमता के कारण समाप्त हो जाएंगी, फिर भी 133 मिलियन अन्य नई नौकरियों का निर्माण हो जाएगा. इसलिए, नए अवसरों को पकड़ने हेतु इन नए तकनीकी कौशलों के लिए युवाओं को तैयार करना देश के लिए सफलता की कुंजी है.
नीतिगत रूपरेखा – कार्य योजना
भारत की शिक्षा प्रणाली के कारण कई युवा स्नातक बेरोजगार रह जाते हैं, जिनके पास कोई कौशल नहीं होता जो उनको कॉलेज के बाद स्पर्धात्मक बाजार का सामना करने के लिए तैयार करता है. एस्पायरिंग माइंडस; एक भारतीय योग्यता आकलन प्रतिष्ठान द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, 80 प्रतिशत से अधिक भारतीय अभियंता वर्तमान अर्थव्यवस्था में बेरोजगार हैं. एसोसिएटेड चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया द्वारा किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में स्थित बिजनेस स्कूल के केवल 7% स्नातक बेरोजगार हैं. 2018 में, भारत में अनुमानित युवा बेरोजगारी दर 10.42 प्रतिशत था. पिछले दशक से, भारत का युवा बेरोजगारी दर 10 प्रतिशत के चिन्ह के आसपास मंडरा रहा है.
सही दिशा में अच्छे कदम हैं, जैसे कि उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार का स्टार्ट अप इंडिया पहल; स्किल इंडिया मिशन का शुभारम्भ; एक समर्पित कौशल विकास एवं उद्यमशीलता मंत्रालय की स्थापना; उद्योग के नेतृत्व वाले क्षेत्रीय कौशल परिषदों की स्थापना और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों को सुधारना.
निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत किए गए 2019-2020 के केन्द्रीय बजट में भारत के उच्चतर शिक्षा के रूपांतरण पर लक्षित एक नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को सम्मिलित करने की एक घोषणा के साथ, शिक्षा क्षेत्र को प्रमुख रूप से दर्शाया गया. युवा रोजगार के मोर्चे पर, सरकार विद्यार्थियों को रोजगार हेतु तैयार करने के लिए संबधित कौशल प्रदान करने पर अपना ध्यान नए सिरे से केन्द्रित करने की मंशा रखता है. कृत्रिम बुद्धिमता (एआई), रोबोटिक्स, भाषा प्रशिक्षण, इन्टरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी), 3डी प्रिंटिंग, वर्चुअल रियलिटी और बिग डाटा के क्षेत्रों में विद्यार्थियों को प्रशिक्षित करने के लिए नए प्रशिक्षण कार्यक्रम आरंभ किए जा रहे हैं. नए युग के ये कौशल भारत के युवाओं को देश या विदेश में नियुक्ति प्राप्त करने के लिए तैयार करेगा.
भारतीय युवा को अधिक मार्गदर्शन और कैरियर परामर्श की आवश्यकता है क्यूंकि वे उपयुक्त रोजगार के अवसरों को खोजने में समस्याओं का सामना कर रहे हैं. 51% प्रतिवादी सूचित करते हैं कि उपलब्ध रोजगार के अवसरों के बारे में जानकारी का अभाव जो उनके कौशल के समूह के साथ मेल खाता है, एक महत्त्वपूर्ण अवरोध है. 30% के आसपास प्रतिवादी किसी भी प्रकार के मार्गदर्शन या परामर्श के अवसरों तक पहुंच की कमी को सूचित करता है.
भारत किशोरावस्था अवसाद में विश्व का नेतृत्व करता है. भारत में 4 में एक किशोर अवसाद से गुजरता है. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव, मुंबई 2019 के अनुसार, पिछले पांच वर्षों के दौरान, 40,000 से अधिक विद्यार्थियों ने भारत में प्रति घंटे एक की दर से आत्महत्या की. युवावस्था अवसाद का निदान और उपचार करना और भी अधिक कठिन है. इसके अतिरिक्त, भारत में पांच युवा वयस्कों में से एक को उच्च रक्तचाप रहता है जो 80 मिलियन (8 करोड़) लोगों के बराबर होता है; पूरे यू.के. की जनसंख्या से भी अधिक. स्वास्थ्य के इन समस्याओं का समाधान तुरंत ही होना चाहिए क्यूंकि इन समस्याओं में देश के युवा की वास्तविक ऊर्जा को समाप्त करने का सामर्थ्य होता है. इस प्रकार से, युवा के शिक्षा की गुणवत्ता और कौशल विकास के अतिरिक्त, स्वास्थ्य के मुद्दों पर सरकार द्वारा ध्यान दिया जाना चाहिए. स्वस्थ युवा किसी भी देश की वास्तविक शक्ति होती है.
भारत के विकासशील युवा में, हमें उन युवाओं की संख्या जो देश के ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं और पूरे देश के युवाओं में कन्या विद्यार्थियों की संख्या पर भी विचार करना चाहिए. हमारे पास युवाओं के सशक्तिकरण में ग्रामीण विद्यार्थियों और कन्या विद्यार्थियों के शिक्षा, कौशल विकास और स्वास्थ्य से सम्बंधित पहलुओं का समाधान करने के लिए पृथक नीतियां होनी चाहिए. देश के युवाओं के विभिन्न श्रेणियों के सभी मुद्दों का समाधान करना उपयोगी नहीं हो सकता. इसके अतिरिक्त, देश में 'मिल्लेनिअल्स' और 'जनरेशन जेड' के विद्यार्थियों जैसे युवा के उप-समूहों पर भी विचार करना चाहिए.
प्रोद्योगिकी युवा सशक्तिकरण में एक बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. अभी, यह दुनिया इन्टरनेट और मोबाइल संचार पर चलता है. सभी स्थानों और समयों पर इन्टरनेट तक पहुंच विकास की कुंजी है. चूंकि वर्तमान की 'जनरेशन जेड' प्रोद्योगिकी; जैसे कि कंप्यूटर्स, लैपटॉप्स, आईपैड्स, स्मार्ट फोन्स आदि का उपयोग करने में सिद्धहस्त है, अतः शिक्षा प्रणाली एवं कौशल विकास में प्रोद्योगिकी को एकीकृत करना बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाता है. सरकार को इन्टरनेट सर्वरों, डाटा सेंटरों, कंप्यूटिंग की सुविधाओं, ऑप्टिकल फाइबर केबल नेटवर्कों, संवर्धित इन्टरनेट बैंड विड्थ और सैटेलाइट संचार-व्यवस्था जैसे आईटी अवस्थापना पर उच्च निवेश करना चाहिए. युवाओं को अपने तकनीकी कौशल के विकास में सहयोग करना और इसका उपयोग उत्पादकता की वृद्धि के लिए करना एक बुद्धिमतायुक्त विचार है.
देश के आईआईटीज, आईआईएम्स और एनआईटीजी के विद्यार्थियों द्वारा राष्ट्रीय स्तर के 'समस्या निवारक परिचालन समितियों' को गठन करने का दृढ़तापूर्वक सुझाव दिया गया है. इन संस्थानों में अध्ययन करने वाले विद्यार्थीगण वास्तव में भारत के सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी हैं. इसलिए समाज और देश की ज्वलंत समस्याओं और मुद्दों में से कुछ पर विचार करने और उनका समाधान करने के लिए उनके वर्तमान सामर्थ्य का उपयोग करना एक महान विचार होगा. समस्याओं और मुद्दों को पूरे देश से एकत्रित किया जा सकता है और सबसे प्रभावशाली तरीके से उन पर चिंतन करने, विश्लेषण करने और उनका समाधान करने के लिए इन विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है. यहां तक कि उन विद्यार्थियों या विद्यार्थी के समूहों को शैक्षणिक श्रेय भी दिया जा सकता है जो समस्याओं का समाधान करने में असाधारण प्रदर्शन दिखाते हैं. इस विचार को आगे पूरे देश के सभी विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और विद्यालयों में प्रस्तुत किया जा सकता है, ताकि युवा पीढ़ी प्रारंभिक आयु से ही देश के समस्याओं के बारे में वास्तविक रूप से सोचना आरंभ कर दें. इस विचार के साथ, युवा पीढ़ी राष्ट्र निर्माण और विकास में अपने आप सम्मिलित हो सकते हैं.
कार्यक्षेत्र में 'मशीनों' की उपस्थिति अनिवार्य होने जा रहा है और पूरे विश्व में तीव्रता से इनकी संख्या में वृद्धि हो रही है. एक शोध कंपनी गार्टनर ने अनुमान लगाया है कि पूरे विश्व में कार्यरत रोबोटों; छोटे एवं बड़े दोनों की संख्या में 2015 में 2.5 बिलियन से लेकर 2020 तक 25 बिलियन से अधिक की वृद्धि हो जाएगी. इसलिए युवाओं को भविष्य में इन मशीनों के साथ कार्य करने में चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए. इसे प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के स्तरों पर 'छोटी रोबोटिक्स कार्यशालाओं को आरंभ करके किया जा सकता है.
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हमें देश के युवाओं के मन में 'जीवनपर्यंत शिक्षा नीति' के पहलू को भी विकसित करना चाहिए. यह वैश्विक हो चुके विश्व में तेजी से परिवर्तित हो रहे उद्योग की आवश्यकताओं के अनुसार अपने कौशल को अद्यातन करने और सदैव वर्तमान के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए उपयोगी होगा.
माता-पिता और शिक्षकों को प्राथमिक शिक्षा के दौरान, युवाओं की योग्यताओं और क्षमताओं को विकसित करने में एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करना है. इसे माता-पिता और शिक्षकों, दोनों के संयुक्त प्रयासों की सहायता से किया जा सकता है. प्राथमिक शिक्षा के दौरान, शिक्षक विद्यार्थियों के सामर्थ्य को विकसित करने में अकेले पूरी भूमिका नहीं निभा सकते. माता-पिता का महत्त्व और दायित्व वास्तव में प्राथमिक शिक्षा के दौरान ही अधिक होता है. माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा के दौरान, विद्यार्थियों में अपेक्षित परिवर्तन प्राप्त करने हेतु, देश के लिए उनको अधिक उत्पादक बनाने के लिए शिक्षकों की भूमिका में वृद्धि की जानी चाहिए. मनोचिकित्सक और विद्यार्थी परामर्शदाताओं को भी देश में स्थित प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा के सभी स्तरों पर शिक्षकों के दल में सम्मिलित किया जाना चाहिए.
लेखक - अंबुज नौटियाल