हैदराबाद : रेल मंत्रालय ट्रेनों या रेलवे परिसरों में भीख मांगने पर दी जाने वाली सजा को कम करने या तर्कसंगत बनाने की कवायद में लगा हुआ है. बता दें कि रेलवे अधिनियम 1989 में रेलवे स्टेशन या ट्रेन में भीख मांगने पर जेल भेजने या जुर्माना भरने के प्रावधान हैं. रेल मंत्रालय ने इन प्रावधानों में बदलाव करने का प्रस्ताव दिया है. रेलवे बोर्ड ने अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों को लेकर लोगों से टिप्पणी और सुझाव देने के लिए कहा है.
रेलवे अधिनियम 1989 के उस प्रवधान को संशोधित करने का प्रस्ताव दिया है जिसमें लिखा है कि किसी भी व्यक्ति को किसी भी रेलगाड़ी या रेलवे के किसी भी भाग में भीख मांगने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
केंद्र सरकार अधिनियम
रेलवे अधिनियम 1989 की धारा 144 (2) अनधिकृत हॉकिंग आदि पर प्रतिबन्ध में कहा गया है कि यदि कोई भी व्यक्ति किसी रेलवे या रेलवे के किसी हिस्से पर किसी कस्टम या हॉकर या बिक्री के लिए प्रचार करता है जो रेलवे प्रशासन द्वारा इस विषय के संबंध में दिए गए लाइसेंस के नियम और शर्तों के अलावा ऐसा करता है, तो उस व्यक्ति को अधिनियम की धारा 144 के तहत दण्डित किया जाएगा.
दंड- ट्रेन या रेलवे स्टेशन पर भीख मांगते पकड़े जाने पर व्यक्ति को एक साल तक की जेल की सजा या अधिकतम 2000 रुपये तक के जुर्माने से दण्डित किया जाएगा.
इससे पहले की घटनाएं :-
2018 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा भीख मांगना अपराध नहीं होगा
केंद्र सरकार ने नवंबर में एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा था कि गरीबी के कारण भीख मांगना अपराध नहीं होना चाहिए. हालांकि, इसने कानून में उस प्रावधान की रक्षा करने की मांग की थी जो पुलिस को एक भिखारी को बिना वारंट के गिरफ्तार करने की अनुमति देता है.
केंद्र ने तर्क दिया था कि यह पता लगाने के लिए किसी व्यक्ति को हिरासत में लेना आवश्यक है कि क्या वह व्यक्ति गरीबी के कारण भीख मांग रहा है या उसे भीख मांगने के लिए मजबूर किया गया था.
2019 में जम्मू-कश्मीर, केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित होने से कुछ दिन पहले, राज्य उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में, प्रीवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट 1960 को निरस्त कर दिया. इस कानून के तहत जम्मू और कश्मीर में भीख मांगना असंवैधानिक और एक अपराध था. इसके लिए सजा का भी प्रवधान था. इस कानून को निरस्त करने के बाद अब राज्य में भीख मांगना अपराध नहीं है. पीठ ने 23 मई 2018 को श्रीनगर जिला न्यायाधीश के आदेश को भी रद्द कर दिया जिसमें अदालत ने श्रीनगर में भीख मांगने पर प्रतिबंध लगा दिया था.
बेगरी लॉ (beggary law) का आधार
यह शोध मुख्य रूप से बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट 1959 पर है क्योंकि यह कानून प्रत्येक राज्य के भिक्षावृत्ति से जुड़े कानूनों के लिए एकमात्र आधार के रूप में काम करता है. अधिकांश राज्यों ने बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट 1959 के आधार पर कानून बनाए हैं या इस एक्ट को अपनाया है.
भिख मांगना क्यों अपराध की श्राणी में नहीं आना चाहिए?
- बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट (बीपीबीए) केवल वंचितों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने का काम करता है. राज्य सरकार अपनी विफलताओं के कारण बेघर लोगों को जीवन का अधिकार प्रदान नहीं कर पाती है, इसलिए गरीबों और बेघरों को दंडित नहीं किया जा सकता है.
- भीख मांगना एक ऐसी गतिविधि है जो किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाती है.
- यह राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों के तहत दिए गए बेघर लोगों को अधिकार दिए जाने और उनकी रक्षा करने के लिए एक विशेष अधिकार है, जो कि संविधान निर्माताओं द्वारा निर्देशित दिशानिर्देश हैं.
- यह तर्क दिया जा सकता है कि स्वेच्छा से दिया गया पैसा या भोजन या अन्य स्वैच्छिक गतिविधि को अपराध नहीं माना जा सकता है, इसलिए भीख मांगने को बेरोजगारी, संसाधनों की कमी और शिक्षा की कमी के रूप में देखना चाहिए ना की सिर्फ तस्करी या अन्य गलत रूप में देखा जाना चाहिए.
भिख मांगना अपराध की श्रेणी में क्यों आना चाहिए?
सामान्य तौर पर भिखारी दे प्रकार के होते हैं-
- पहले जिनके पास कोई विकल्प नहीं है और वे भीख मांगने के लिए मजबूर होते हैं.
- दूसरे जिनके पास विकल्प होते हैं, लेकिन उन्हें भीख मांगना आसान लगता. ऐसे लोगों को भीख मांगने में महारत हासिल होती है और वे इससे अच्छी खासी कमाई कर लेते हैं.
भिख मांगने से बढ़ी समस्याएं
भारत में कई बच्चों का अपहरण किया जाता है और उन्हें भीख मांगने के लिए मजबूर किया जाता है. इसके आंकड़े चिंताजनक हैं. भारतीय राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार हर साल 40,000 बच्चों का अपहरण किया जाता है. उनमें से 10,000 से अधिक बच्चों का कुछ पता नहीं चलता. यह अनुमान लगाया जाता है कि पूरे भारत में तीन लाख से ज्यादा बच्चों को जबरदस्ती नशा करवाया जाता है, मारा-पीटा जाता है और प्रतिदिन भीख मांगवाई जाती है. यह पैसा कमाने का बड़ा उद्योग है जिसे मानव तस्करी के माफिया चलाते हैं.
सरकारी जनगणना परिणाम (2011)
भारत में कुछ राज्यों में बड़ी संख्या में भिखारी हैं. सरकार की जनगणना (2011) के अनुसार पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा भिखारी हैं.
उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा बाल भिक्षावृत्ति है, यहां बच्चों से भिख मंगवाई जाती है, जबकि पश्चिम बंगाल में दिव्यांग भिखारी ज्यादा हैं.
भिखारियों की संख्या आंध्र प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, असम और ओडिशा में भी अधिक है. हालांकि, यह जानना मुश्किल है कि कौन-सा व्यक्ति भिखारी है, उपलब्ध डेटा उपलब्ध नहीं है.