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वैज्ञानिकों ने गिनाए लॉकडाउन के फायदे, अध्ययन में मिली मदद

कोरोना वायरस का प्रकोप विश्व में व्यापक रूप से फैल रहा है, लेकिन इसने भूवैज्ञानिकों को लाभान्वित किया है. लॉकडाउन के कारण भूकंपीय शोर में कमी से सीस्मोलॉजिस्ट को पृथ्वी के अंदर हो रही गतिविधियों को और अधिक सटीक रूप से अध्ययन करने में मदद करेगा.

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Published : Apr 2, 2020, 2:34 PM IST

Updated : Apr 2, 2020, 4:31 PM IST

हैदराबाद : कोरोना वायरस के प्रकोप ने लोगों के जीने के तरीके को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है. दुनियाभर के देशों में कोरोनो वायरस के खतरे को रोकने के लिए पूरी तरह से लॉकडाउन किया जा रहा है. वैसे भी लोगों के लिए इसका प्रकोप विनाशकारी है, लेकिन वैज्ञानिकों ने लॉकडाउन से होने वाले कई फायदों से अवगत कराया है.

दूसरी तरफ सिस्मोलॉजी (भूकंप विज्ञान) के क्षेत्र में उन लोगों को फायदा हुआ है, जो भूकंप और भूकंपीय तरंगों का अध्ययन करते हैं. शांत वातावरण और बाहरी शोर में कमी ने भूकंपीय शोर पर ध्यान केंद्रित करने में विशेष योगदान दिया है. यह सब कोरोना को लेकर हुए लॉकडाउन के कारण संभव हुआ है.

वायरस से जूझ रहे देशों में लोगों को घर के अंदर रहने के लिए कहा गया है, जिसके कारण सड़कों पर आवाजाही कम हो गई है और शोर में कमी आई है. पृथ्वी के अंदर होने वाली गतिविधियों का अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि शोर में आई गिरावट के कारण ज्वालामुखीय गतिविधि और अन्य भूकंपीय घटनाओं को और अधिक सटीक करीके से पढ़ने में मदद करेगा.

इससे हल्के भूकंपों को पहचानने में भी मदद मिल सकती है. अधिक गतिविधि होने से भूकंपीय वैज्ञानिकों के लिए हल्के भूकंपों को मापना मुश्किल हो जाता है. शोर में मौजूदा कमी ने वेधशाला के उपकरण (ऑब्जर्वेटरी इक्विपमेंट) की संवेदनशीलता को बढ़ाया है, जिससे तरंगों का पता लगाने की क्षमता में सुधार हुआ है. यदि लॉकडाउन जारी रहता है, तो यह दुनियाभर के भूकंप पर शोध करने वालों को भूकंपों का पता लगाने में मदद करेगा और उन्हें स्थान को अधिक सटीक रूप से इंगित करने में सक्षम करेगा.

हैदराबाद : कोरोना वायरस के प्रकोप ने लोगों के जीने के तरीके को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है. दुनियाभर के देशों में कोरोनो वायरस के खतरे को रोकने के लिए पूरी तरह से लॉकडाउन किया जा रहा है. वैसे भी लोगों के लिए इसका प्रकोप विनाशकारी है, लेकिन वैज्ञानिकों ने लॉकडाउन से होने वाले कई फायदों से अवगत कराया है.

दूसरी तरफ सिस्मोलॉजी (भूकंप विज्ञान) के क्षेत्र में उन लोगों को फायदा हुआ है, जो भूकंप और भूकंपीय तरंगों का अध्ययन करते हैं. शांत वातावरण और बाहरी शोर में कमी ने भूकंपीय शोर पर ध्यान केंद्रित करने में विशेष योगदान दिया है. यह सब कोरोना को लेकर हुए लॉकडाउन के कारण संभव हुआ है.

वायरस से जूझ रहे देशों में लोगों को घर के अंदर रहने के लिए कहा गया है, जिसके कारण सड़कों पर आवाजाही कम हो गई है और शोर में कमी आई है. पृथ्वी के अंदर होने वाली गतिविधियों का अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि शोर में आई गिरावट के कारण ज्वालामुखीय गतिविधि और अन्य भूकंपीय घटनाओं को और अधिक सटीक करीके से पढ़ने में मदद करेगा.

इससे हल्के भूकंपों को पहचानने में भी मदद मिल सकती है. अधिक गतिविधि होने से भूकंपीय वैज्ञानिकों के लिए हल्के भूकंपों को मापना मुश्किल हो जाता है. शोर में मौजूदा कमी ने वेधशाला के उपकरण (ऑब्जर्वेटरी इक्विपमेंट) की संवेदनशीलता को बढ़ाया है, जिससे तरंगों का पता लगाने की क्षमता में सुधार हुआ है. यदि लॉकडाउन जारी रहता है, तो यह दुनियाभर के भूकंप पर शोध करने वालों को भूकंपों का पता लगाने में मदद करेगा और उन्हें स्थान को अधिक सटीक रूप से इंगित करने में सक्षम करेगा.

Last Updated : Apr 2, 2020, 4:31 PM IST
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