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कोरोना महामारी ने देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की खोली पोल

कोरोना महामारी ने एक तरफ कई जिंदगियां तबाह की, वहीं दूसरी तरफ इससे देश की स्वास्थ्य प्रणाली की हकीकत भी सामने आई. कोरोना महामारी पर संसदीय समिति की रिपोर्ट की बात करें, तो इसमें महामारी से लड़ने के लिए भारत की तैयारी और प्रतिक्रिया को पूरी तरह से अप्रभावी बताया गया है. आइये जानते हैं स्वास्थ्य प्रणाली को लेकर इस रिपोर्ट में क्या-क्या बातें सामने आईं...

कोरोना महामारी ने देश की स्वास्थ्य प्रणाली को उजागर किया
कोरोना महामारी ने देश की स्वास्थ्य प्रणाली को उजागर किया
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Published : Nov 24, 2020, 7:30 PM IST

हैदराबाद : इस सदी की सबसे बड़ी तबाही कोरोना महामारी, मजबूत चिकित्सा व्यवस्था वाले देशों तक को प्रभावित कर रही है. भारत की अगर बात करें, तो देश अपनी विकट स्वास्थ्य प्रणाली के साथ आय दिन कोरोना के ताजा मामलों की बड़ी संख्या दर्ज कर रहा है.

कोरोना महामारी पर संसदीय समिति/पैनल ने अपनी रिपोर्ट दी है, जिसमें महामारी के प्रति भारत की प्रतिक्रिया को अप्रभावी बताया गया है. यह रिपोर्ट इंगित करती है कि वैश्विक आपातकाल ने देश की स्वास्थ्य प्रणाली की कमियों को उजागर किया.

इसके अलावा महामारी ने सरकार की ओर से की गई स्वास्थ्य संबंधी तैयारियों को भी रेखांकित किया.

राज्यों के लिए अगले कुछ साल कठिन हो सकते हैं

पैनल ने सुझाव दिया है कि केंद्र अगले 2 वर्षों के भीतर जीडीपी के 2.5 प्रतिशत तक व्यय के राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में अपने निवेश को बढ़ाएगा. पैनल ने कोरोना वैक्सीन को रियायती दर पर वितरित करने की सिफारिश की है. इसके साथ ही देश की स्वास्थ्य सेवा (आईएचएस) को भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) जितनी मजबूती देने की भी बात कही है.

15 वें वित्त आयोग ने स्वास्थ्य सेवा पर खर्च को वास्तविक 1.15 प्रतिशत से बढ़ाकर 2025 तक 2.5 प्रतिशत तक करने का लक्ष्य रखा है. आरबीआई की रिपोर्ट बताती है कि पहले से ही कर्ज में डूबे हुए राज्यों के लिए अगले कुछ साल कठिन हो सकते हैं.

पढ़ें : प्राथमिक चिकित्सा की बुनियाद कमजोर, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार की जरूरत

देश में 6 लाख डॉक्टरों की कमी

15 वें वित्त आयोग ने राज्य सरकारों को सामूहिक स्वास्थ्य पर व्यय के लिए आगे आने का प्रस्ताव दिया है. ऐसे समय में जब देश में 6 लाख डॉक्टरों की कमी है और प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 20 लाख नर्सों की भी काफी कमी (विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से 20 से 30 प्रतिशत कम) है, ऐसे में सरकार को देशव्यापी स्वास्थ्य सुधारों की ओर रुख करना चाहिए, ताकि स्वच्छ भारत के सपने को साकार किया जा सके.

1978 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सदस्य देशों ने 'हेल्थ फॉर ऑल' के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्राथमिक हेल्थकेयर दृष्टिकोण को स्वीकार किया है, जो एक ऐसा लक्ष्य है, जिसे वर्ष 2000 तक दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त करने की जरूरत है.

स्वास्थ्य स्थिति के आकलन के लिए भोरे समिति
हालांकि, महामारी से जूझ रहे देश अमेरिका, फ्रांस, यूके, जर्मनी और इटली राष्ट्रीय रक्षा की तुलना में स्वास्थ्य सेवाओं पर अधिक खर्च करते हैं. सर जोसेफ भोरे के नेतृत्व में भोरे समिति (1946), भारत की स्वास्थ्य स्थिति का आकलन करने के लिए एक विकास समिति द्वारा लिया गया स्वास्थ्य सर्वेक्षण था.

समिति की रिपोर्ट ने भारत में स्वास्थ्य सेवाओं के एक राष्ट्रीय कार्यक्रम का प्रस्ताव रखा और निवारक देखभाल के महत्व पर बल दिया. स्वास्थ्य देखभाल खर्च के लिए सकल घरेलू उत्पाद का 1.33 प्रतिशत आवंटित करने की समिति की सिफारिश को भारी विरोध का सामना करना पड़ा.

हालांकि, 70 के दशक के दौरान न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम (inimum Needs Program) यानी एमएनपी की शुरुआत की गई थी, लेकिन इस योजना के कारण फंड की कमी हो गई थी. शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि भविष्य में महामारी COVID-19 की तुलना में अधिक लगातार क्रम में और घातक होगी, जो स्वास्थ्य के लिए सरकार के दृष्टिकोण में बदलाव का आह्वान करती है.

विश्व बैंक ने हाल ही में आगाह किया था कि भारत में टेस्टिंग और ट्रेसिंग रेट गंभीर रूप से कम था. जीवनशैली संबंधी बीमारियों, जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण और तेजी से शहरीकरण को ध्यान में रखते हुए, सरकार को व्यापक स्वास्थ्य नीतियों पर ध्यान देना चाहिए. केंद्र और राज्य सरकारों को सार्वजनिक स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाने और चिकित्सा सेवाओं को व्यवस्थित रूप से विस्तारित करने के लिए समन्वय में काम करना चाहिए.

हैदराबाद : इस सदी की सबसे बड़ी तबाही कोरोना महामारी, मजबूत चिकित्सा व्यवस्था वाले देशों तक को प्रभावित कर रही है. भारत की अगर बात करें, तो देश अपनी विकट स्वास्थ्य प्रणाली के साथ आय दिन कोरोना के ताजा मामलों की बड़ी संख्या दर्ज कर रहा है.

कोरोना महामारी पर संसदीय समिति/पैनल ने अपनी रिपोर्ट दी है, जिसमें महामारी के प्रति भारत की प्रतिक्रिया को अप्रभावी बताया गया है. यह रिपोर्ट इंगित करती है कि वैश्विक आपातकाल ने देश की स्वास्थ्य प्रणाली की कमियों को उजागर किया.

इसके अलावा महामारी ने सरकार की ओर से की गई स्वास्थ्य संबंधी तैयारियों को भी रेखांकित किया.

राज्यों के लिए अगले कुछ साल कठिन हो सकते हैं

पैनल ने सुझाव दिया है कि केंद्र अगले 2 वर्षों के भीतर जीडीपी के 2.5 प्रतिशत तक व्यय के राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में अपने निवेश को बढ़ाएगा. पैनल ने कोरोना वैक्सीन को रियायती दर पर वितरित करने की सिफारिश की है. इसके साथ ही देश की स्वास्थ्य सेवा (आईएचएस) को भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) जितनी मजबूती देने की भी बात कही है.

15 वें वित्त आयोग ने स्वास्थ्य सेवा पर खर्च को वास्तविक 1.15 प्रतिशत से बढ़ाकर 2025 तक 2.5 प्रतिशत तक करने का लक्ष्य रखा है. आरबीआई की रिपोर्ट बताती है कि पहले से ही कर्ज में डूबे हुए राज्यों के लिए अगले कुछ साल कठिन हो सकते हैं.

पढ़ें : प्राथमिक चिकित्सा की बुनियाद कमजोर, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार की जरूरत

देश में 6 लाख डॉक्टरों की कमी

15 वें वित्त आयोग ने राज्य सरकारों को सामूहिक स्वास्थ्य पर व्यय के लिए आगे आने का प्रस्ताव दिया है. ऐसे समय में जब देश में 6 लाख डॉक्टरों की कमी है और प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 20 लाख नर्सों की भी काफी कमी (विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से 20 से 30 प्रतिशत कम) है, ऐसे में सरकार को देशव्यापी स्वास्थ्य सुधारों की ओर रुख करना चाहिए, ताकि स्वच्छ भारत के सपने को साकार किया जा सके.

1978 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सदस्य देशों ने 'हेल्थ फॉर ऑल' के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्राथमिक हेल्थकेयर दृष्टिकोण को स्वीकार किया है, जो एक ऐसा लक्ष्य है, जिसे वर्ष 2000 तक दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त करने की जरूरत है.

स्वास्थ्य स्थिति के आकलन के लिए भोरे समिति
हालांकि, महामारी से जूझ रहे देश अमेरिका, फ्रांस, यूके, जर्मनी और इटली राष्ट्रीय रक्षा की तुलना में स्वास्थ्य सेवाओं पर अधिक खर्च करते हैं. सर जोसेफ भोरे के नेतृत्व में भोरे समिति (1946), भारत की स्वास्थ्य स्थिति का आकलन करने के लिए एक विकास समिति द्वारा लिया गया स्वास्थ्य सर्वेक्षण था.

समिति की रिपोर्ट ने भारत में स्वास्थ्य सेवाओं के एक राष्ट्रीय कार्यक्रम का प्रस्ताव रखा और निवारक देखभाल के महत्व पर बल दिया. स्वास्थ्य देखभाल खर्च के लिए सकल घरेलू उत्पाद का 1.33 प्रतिशत आवंटित करने की समिति की सिफारिश को भारी विरोध का सामना करना पड़ा.

हालांकि, 70 के दशक के दौरान न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम (inimum Needs Program) यानी एमएनपी की शुरुआत की गई थी, लेकिन इस योजना के कारण फंड की कमी हो गई थी. शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि भविष्य में महामारी COVID-19 की तुलना में अधिक लगातार क्रम में और घातक होगी, जो स्वास्थ्य के लिए सरकार के दृष्टिकोण में बदलाव का आह्वान करती है.

विश्व बैंक ने हाल ही में आगाह किया था कि भारत में टेस्टिंग और ट्रेसिंग रेट गंभीर रूप से कम था. जीवनशैली संबंधी बीमारियों, जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण और तेजी से शहरीकरण को ध्यान में रखते हुए, सरकार को व्यापक स्वास्थ्य नीतियों पर ध्यान देना चाहिए. केंद्र और राज्य सरकारों को सार्वजनिक स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाने और चिकित्सा सेवाओं को व्यवस्थित रूप से विस्तारित करने के लिए समन्वय में काम करना चाहिए.

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