हैदराबाद : भारत के प्रत्येक नागरिक को अपनी मृत्यु के बाद गरिमा और उचित सम्मान का अधिकार है, लेकिन क्या वाकई कोरोना महामारी की स्थिति में ऐसा हो रहा है? बिल्कुल ऐसा नहीं हो रहा है, यहां तक कि शवों की अंत्येष्टि या दफन करने का काम भी ठीक से नहीं किया जा रहा है.
हम बार-बार देखते हैं कि कैसे इंसान की लाशों का अनादर किया जा रहा है. चाहे वह पश्चिम बंगाल के कोलकाता में 13 शवों को घसीटे जाने की घटना हो या पुदुचेरी की घटना, जहां स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा कोरोना पॉजिटिव मरीजों के शवों को अमानवीय ढंग से फेंका गया. हालांकि, मौत के बाद भी मृतकों की गरिमा और उचित व्यवहार भारतीय नागरिकों का एक मौलिक अधिकार है.
जी हां, भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत न केवल एक जीवित व्यक्ति के लिए, बल्कि उसकी मृत्यु के बाद मृत शरीर को सम्मान के साथ व्यवहार करने का अधिकार दिया गया है. अनुच्छेद 21 के तहत यह सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है कि मृत व्यक्ति के शव को उसकी पंरम्परा और धर्म के अनुसार तथा उचित सम्मान से अंतिम संस्कार किया जाए.
अनुच्छेद 21 के तहत क्या कहा गया है?
विभिन्न विधियों, कानूनों आदि के तहत जीवित व्यक्ति को असंख्य अधिकार दिए गए हैं जबकि मृत व्यक्तियों को व्यापक अर्थों में केवल दो मुख्य अधिकार हैं.
1- शवों का निपटान
सरकार एक कल्याणकारी राज्य के रूप में शक्तियों के तहत कानून में बाध्य है और एक मृत शरीर के निपटान के लिए, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मृत व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करने के लिए एक सभ्य और गरिमामय श्मशान / दफन उसकी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार करने का प्रावधान है.
शवों के निपटान में दफन की उचित सुविधाएं शामिल हैं, किसी भी अपराध की जांच के लिए या समाज की भलाई के लिए कानून के तहत उल्लिखित कारणों के अलावा किसी भी कारण कब्र को खोदने का अधिकार नहीं है.
2- लाशों के खिलाफ अपराध
लाशों के खिलाफ किया जाने वाला सबसे जघन्य अपराध नेक्रोफिलिया (लाशों के प्रति आकर्षण या संभोग) है, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 377 (अप्राकृतिक अपराध) के तहत शामिल अपराध है. लाशों को बिना किसी छेड़छाड़ के सम्मान पाने का अधिकार है. इसमें लाशों को नुकसान पहुंचाने या अनादर करने से बचाना शामिल है.
विलियम हेनरी फ्रांसिस द्वारा लिखी गई पुस्तक 'द बरिअल ऑफ द डेड' में कहा गया है कि दुनिया भर में विभिन्न संस्कृतियों में लोगों द्वारा मृतकों के साथ अलग-अलग रीति-रिवाज और प्रथाओं का पालन किया जाता है, लेकिन इनमें जो बात सामान्य है वो मृतक के साथ सम्मान के साथ व्यवहार करना. शवों के प्रति सम्मान की भावना इतनी मजबूत है कि लोग अपने दुश्मन के शव के साथ सम्मान का व्यवहार करते हैं.
इसके अलावा, यह देखा गया है कि प्राकृतिक या जैविक आपदाओं के दौरान, जब अज्ञात शवों को इकट्ठा किया जाता है, तो मृतक की विशिष्टता को संरक्षित किए बिना शवों के तेजी से निपटान के लिए सामूहिक कब्र और श्मशान का उपयोग करने का प्रचलन है.
हालांकि, आपदा के दौरान भारी संख्या में अज्ञात शवों के निपटान के समय भी सरकार को सभी मृतकों को सम्मान देने की आवश्यकता होती है. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन दिशा-निर्देशों के अनुसार, मृतक व्यक्ति की धार्मिक मान्यताओं, सांस्कृतिक मूल्यों, जातीय और सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार निपटान किया जाना चाहिए.
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन दिशा-निर्देश
- आपदा के समय शवों को ढूंढना और उन्हें इकट्ठा करना.
- सभी शवों का सम्मानजनक निपटान करना, उनकी धार्मिक, सांस्कृतिक, जातीय और मानसिक-सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार.
- मीडिया के माध्यम से उचित सूचना प्रबंधन, जिसमें मृतकों की पहचान के लिए डेटा का विश्लेषण शामिल हो.
- भारत में कानून स्पष्ट रूप से यह नहीं कहता है कि मृतकों का दफन / दाह संस्कार राज्य की जिम्मेदारी है, लेकिन अदालतों द्वारा बार-बार इसकी व्याख्या की गई है.
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भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से वर्णित मृतकों के अधिकार
भारतीय दंड संहिता में धारा 297 के तहत दफनाने की जगहों पर अतिक्रमण, किसी भी व्यक्ति की भावनाओं को आहत करना, या किसी व्यक्ति के धर्म का अपमान करना, या मानव शव के साथ किसी भी तरह अपमान करना या अंतिम संस्कार के लिए जमा होने से किसी के लिए अशांति पैदा होती है, तो दोषी को जुर्माने के साथ कारावास की सजा हो सकती है. कारावास की सजा को एक साल तक बढ़ाया जा सकता है.