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सपा-बसपा का ऑफिशियल 'ब्रेक-अप' - बहुजन समाज पार्टी

सपा-बसपा का गठबंधन आखिरकार टूट गया. दोनों पार्टियों ने लोकसभा चुनाव से पहले बहुत उम्मीदों के साथ साथ आने का निर्णय किया था. तब उन्होंने इसे लंबे समय तक निभाने का भरोसा भी दिया था. लेकिन लोकसभा चुनाव परिणाम ने दोनों ही पार्टियों को सख्ते में ला दिया. बसपा को लग रहा है कि अब आगे का रास्ता अकेले चलना ही बेहतर होगा. जानें पूरी रिपोर्ट.

अखिलेश यादव और मायावती. (डिजाइन इमेज)
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Published : Jun 24, 2019, 1:31 PM IST

Updated : Jun 24, 2019, 3:01 PM IST


नई दिल्ली/लखनऊ: आखिरकार बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी से औपचारिक तौर पर रिश्ता खत्म कर लिया. बसपा सुप्रीमो मायावती ने ट्वीट कर इसकी घोषणा कर दी. लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद से ही इसके कयास लगाए जा रहे थे. बसपा ने कहा कि वह अब सारे चुनाव अकेले ही लड़ेगी.


गौरतलब है कि आम चुनावों का परिणाम आने के बाद मायावती ने सिर्फ उत्तर प्रदेश में विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव अकेले लड़ने की बात कही थी, लेकिन आज के बयान ने महागठबंधन को समाप्त कर दिया है.

मायावती ने ट्वीट किया है कि जगाजाहिर है कि हमने सपा के साथ सभी पुराने गिले-शिकवे भुला दिए, यहां तक कि 2012-2017 तक सपा सरकार में किए गए बसपा एवं दलित विरोधी फैसलों, पदोन्नति में आरक्षण की राह में रोड़े अटकाना और खराब कानून-व्यवस्था को भी हमने दिरकिनार कर दिया. सबकुछ भुला कर हमने देश और जनहित में सपा के साथ गठबंधन धर्म को पूरी निष्ठा के साथ निभाया.

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उन्होंने लिखा है कि लोकसभा चुनाव के बाद सपा का व्यवहार बसपा को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या ऐसा करके भविष्य में भाजपा को हरा पाना संभव होगा? हमारे हिसाब से तो संभव नहीं होगा.

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उन्होंने लिखा है, 'इसलिए हमने पार्टी और आंदोलन के हित में फैसला लिया है कि बसपा भविष्य में होने वाले सभी छोटे-बड़े चुनाव अपने बूते पर लड़ेगी.'

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सपा-बसपा गठबंधन को लेकर कल से आ रही खबरों पर मीडिया को आड़े हाथों लेते हुए मायावती ने कहा कि बसपा की कल तमाम बैंठकें हुई हैं, जिनमें मीडिया मौजूद नहीं था. उसके बाद हमने प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी, इसके बावजूद बसपा प्रमुख के बारे में खबरें चलाई गईं। उन खबरों में कोई सच्चाई नहीं है.


राजनीतिक विश्लेषक इसे इतिहास का दोहराना जैसा बता रहे हैं. पहले भी सपा और बसपा का गठबंधन (1993 में) हुआ था. लेकिन गेस्ट हाउस कांड (1995) के बाद दोनों पार्टियों के रास्ते अलग-अलग हो गए.

1996 में बसपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था. लेकिन चुनाव में उम्मीद के अनुसार सफलता नहीं मिली. तब मायावती ने आरोप लगाया था कि हमारा वोट कांग्रेस को चला गया, लेकिन उनका वोट हमें नहीं मिला.

पढ़ें: जम्मू-कश्मीर आरक्षण पर आज पहला बिल संसद में पेश करेंगे शाह

2007-12 तक बसपा और 2012-17 तक सपा यूपी में सत्ता में रही. 2014 लोकसभा चुनाव में बसपा को एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी. 2017 विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस से हाथ मिलाया, पर अपेक्षित परिणाम नहीं मिले. बसपा को भी कोई खास सफलता नहीं मिली. इसके बाद लोकसभा उपचुनाव में मिली जीत से सपा और बसपा उत्साहित हो गए. दोनों ने एक साथ आने का फैसला कर लिया.

सपा की प्रतिक्रिया

सपा के राष्ट्रीय महासचिव रमाशंकर विद्यार्थी ने मायावती पर सामाजिक न्याय की लड़ाई कमजोर करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि बसपा प्रमुख घबराहट में सपा के विरुद्ध बयान दे रही हैं. विद्यार्थी ने कहा कि गठबंधन तोड़ने के ऐलान के बाद से दलित समाज तेजी से सपा से जुड़ रहा है.


नई दिल्ली/लखनऊ: आखिरकार बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी से औपचारिक तौर पर रिश्ता खत्म कर लिया. बसपा सुप्रीमो मायावती ने ट्वीट कर इसकी घोषणा कर दी. लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद से ही इसके कयास लगाए जा रहे थे. बसपा ने कहा कि वह अब सारे चुनाव अकेले ही लड़ेगी.


गौरतलब है कि आम चुनावों का परिणाम आने के बाद मायावती ने सिर्फ उत्तर प्रदेश में विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव अकेले लड़ने की बात कही थी, लेकिन आज के बयान ने महागठबंधन को समाप्त कर दिया है.

मायावती ने ट्वीट किया है कि जगाजाहिर है कि हमने सपा के साथ सभी पुराने गिले-शिकवे भुला दिए, यहां तक कि 2012-2017 तक सपा सरकार में किए गए बसपा एवं दलित विरोधी फैसलों, पदोन्नति में आरक्षण की राह में रोड़े अटकाना और खराब कानून-व्यवस्था को भी हमने दिरकिनार कर दिया. सबकुछ भुला कर हमने देश और जनहित में सपा के साथ गठबंधन धर्म को पूरी निष्ठा के साथ निभाया.

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उन्होंने लिखा है कि लोकसभा चुनाव के बाद सपा का व्यवहार बसपा को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या ऐसा करके भविष्य में भाजपा को हरा पाना संभव होगा? हमारे हिसाब से तो संभव नहीं होगा.

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उन्होंने लिखा है, 'इसलिए हमने पार्टी और आंदोलन के हित में फैसला लिया है कि बसपा भविष्य में होने वाले सभी छोटे-बड़े चुनाव अपने बूते पर लड़ेगी.'

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सपा-बसपा गठबंधन को लेकर कल से आ रही खबरों पर मीडिया को आड़े हाथों लेते हुए मायावती ने कहा कि बसपा की कल तमाम बैंठकें हुई हैं, जिनमें मीडिया मौजूद नहीं था. उसके बाद हमने प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी, इसके बावजूद बसपा प्रमुख के बारे में खबरें चलाई गईं। उन खबरों में कोई सच्चाई नहीं है.


राजनीतिक विश्लेषक इसे इतिहास का दोहराना जैसा बता रहे हैं. पहले भी सपा और बसपा का गठबंधन (1993 में) हुआ था. लेकिन गेस्ट हाउस कांड (1995) के बाद दोनों पार्टियों के रास्ते अलग-अलग हो गए.

1996 में बसपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था. लेकिन चुनाव में उम्मीद के अनुसार सफलता नहीं मिली. तब मायावती ने आरोप लगाया था कि हमारा वोट कांग्रेस को चला गया, लेकिन उनका वोट हमें नहीं मिला.

पढ़ें: जम्मू-कश्मीर आरक्षण पर आज पहला बिल संसद में पेश करेंगे शाह

2007-12 तक बसपा और 2012-17 तक सपा यूपी में सत्ता में रही. 2014 लोकसभा चुनाव में बसपा को एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी. 2017 विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस से हाथ मिलाया, पर अपेक्षित परिणाम नहीं मिले. बसपा को भी कोई खास सफलता नहीं मिली. इसके बाद लोकसभा उपचुनाव में मिली जीत से सपा और बसपा उत्साहित हो गए. दोनों ने एक साथ आने का फैसला कर लिया.

सपा की प्रतिक्रिया

सपा के राष्ट्रीय महासचिव रमाशंकर विद्यार्थी ने मायावती पर सामाजिक न्याय की लड़ाई कमजोर करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि बसपा प्रमुख घबराहट में सपा के विरुद्ध बयान दे रही हैं. विद्यार्थी ने कहा कि गठबंधन तोड़ने के ऐलान के बाद से दलित समाज तेजी से सपा से जुड़ रहा है.

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Last Updated : Jun 24, 2019, 3:01 PM IST
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