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ब्रिटिश काल के दौरान पड़े बंगाल में भीषण अकाल, मरे थे 30 लाख लोग - मानव रचित भुखमरी

सन् 1943 में बंगाल में अकाल पड़ा था. यह अकाल कोई प्राकृतिक घटना नहीं थी. यह मानव-रचित भुखमरी थी जिसमें लाखों लोगों की मौत हो गई थी. अंग्रेजों को इस अकाल का जिम्मेदार ठहराया गया. पढ़ें ऐसा क्या किया था ब्रिटिश सरकार ने जिससे लाखों लोगों की मौत हो गई...

BENGAL FAMINE
बंगाल अकाल
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Published : Sep 2, 2020, 9:23 AM IST

Updated : Sep 2, 2020, 11:22 AM IST

हैदराबाद : 1943 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बंगाल में अकाल पड़ा था जिसमें करीब 30 लाख लोगों ने भूख से तड़पकर अपनी जान दे दी थी. अनाज के कम उत्पादन के चलते इतनी बड़ी त्रासदी लोगों को झेलनी पड़ी थी. यह एक कृत्रिम अकाल था जो ब्रिटिश सरकार की गलत नीतियों की वजह से उत्पन्न हुई थी. उस वक्त प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल थे.

2019 में एक शोध किया गया जिसमें बंगाल में आए अकाल के लिए ब्रिटिश सरकार और सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया गया.

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

2019 में, जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार 1943 में बंगाल में सिर्फ सूखे के कारण अकाल नहीं हुआ था, ब्रिटिश सरकार की विफलता भी एक प्रमुख कारण था. प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल की सरकार द्वारा लाई गई नीतियां और उनके असफल क्रियान्वयन के चलते बंगाल को मुश्किल समय से गुजरना पड़ा.

वैज्ञानिकों ने 1870 से 2016 के बीच मिट्टी की नमी के स्तर का विश्लेषण किया जिससे यह पता लगाया जा सके कि वास्तव में उस समय क्या हुआ था. उनके अनुसार, उस समय सीमा के दौरान छह अकाल पड़े थे जिनमें बंगाल में जो अकाल की स्थिति पैदा हुई वह कृत्रिम थी, क्योंकि इसमें न तो फसलें खराब हुई थी और न ही मिट्टी में नमी की कमी थी.

ब्रिटिश सरकार की नीतियां

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने चावल के आयात को रोक दिया था साथ ही, जो अनाज लोगों तक पहुंचाया जाना था उसे भी विश्व युद्ध में लड़ रहे सैनिकों तक पहुंचा दिया गया था, जिससे अनाज की कमी हो गई, जो अकाल का कारण बन गया. इसके बाद भी ब्रिटिश सरकार ने भारत में अकाल की घोषणा नहीं की थी.

अध्ययन के अनुसार बर्मा (अब म्यांमार) में जापानी कब्जा, 1943 के अकाल में हुई मौतों का आंकड़ा बढ़ाने वाला एक अन्य कारण था क्योंकि बर्मा से भारत में चावल का आयात होता था. बर्मा पर जापान के कब्जे के बाद वहां से चावल का आयात रुक गया था.

अध्ययन में कहा गया है कि पहले भी घातक अकाल पड़े लेकिन म्यांमार से चावल के आयात और ब्रिटिश सरकार की राहत सहायता मिलने से ज्यादा नुकसान नहीं हो पाया था.

अध्ययन में यह दावा किया गया कि अकाल मुख्य रूप से ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए युद्धकालीन अनाज आयात प्रतिबंधों से पड़ा. मुख्य शोधकर्ता विमल मिश्रा ने बताया कि यह एकमात्र अकाल था जिसे सूखे की स्थिति और फसलों के खराब होने से नहीं जोड़ा जा सका क्योंकि मिट्टी में नमी की कमी नहीं थी, मिट्टी उपजाऊ थी.

आनाज का अत्याधिक निर्यात बना कारण

2011 में मधुश्री मुखर्जी की किताब चर्चिल सीक्रेट वॉर के अनुसार भारत से अनाज का अत्याधिक निर्यात, काल का कारण बना.

सरकार को अकाल के बारे में चेतावनी दी गई थी बावजूद इसके ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल अपने सैन्य अभियानों को मजबूत करने में लगे हुए थे, समस्याओं को ठीक करने और संसाधनों की कमी की पूर्ति करने में असफल रहे.

भारत ने अकाल की स्थिति पैदा होने के बाद भी जनवरी से जुलाई 1943 के बीच 70 हजार टन से अधिक चावल का निर्यात किया. अगर इतना चावल निर्यात नहीं किया जाता तो इससे लगभग चार लाख लोगों की पूरे साल की भूख को मिटाया जा सकता था. चावल की कमी होने के कारण कीमतें आसमान छू रही थी जिसके बाद भारत की आपूर्ति व्यवस्था ध्वस्त हो गई.

चर्चिल ने जहाजों की कमी का हवाला देते हुए भारत में खाद्य निर्यात को भी रोक दिया था. वहीं जापान के आक्रमण के डर से बंगाल में नावों और बैलगाड़ियों को जब्त या नष्ट कर दिया गया था.

इनग्लोरियस एम्पायर: 'वॉट ब्रिटिश डिड टू इंडिया' के लेखक शशि थरूर का कहना है कि चर्चिल ने जानबूझकर भारतीय नागरिकों के पास अनाज नहीं पहुंचाया. वह ब्रिटिश सैनिकों को आनाज की आपूर्ति करते रहे, जिनके पास पहले से ही पर्याप्त अनाज था.

विंस्टन चर्चिल ने भारत को तिरस्कृत करते हुए कहा था 'अकाल हो या अकाल नहीं हो, भारतीय हमेशा खरगोश की तरह प्रजनन करेंगे.'

अध्ययन में ऐसे कई सबूत मिले हैं जो दिखाते हैं कि लोगों की दुःस्थिति के लिए चर्चिल सीधे तौर पर जिम्मेदार थे.

हैदराबाद : 1943 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बंगाल में अकाल पड़ा था जिसमें करीब 30 लाख लोगों ने भूख से तड़पकर अपनी जान दे दी थी. अनाज के कम उत्पादन के चलते इतनी बड़ी त्रासदी लोगों को झेलनी पड़ी थी. यह एक कृत्रिम अकाल था जो ब्रिटिश सरकार की गलत नीतियों की वजह से उत्पन्न हुई थी. उस वक्त प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल थे.

2019 में एक शोध किया गया जिसमें बंगाल में आए अकाल के लिए ब्रिटिश सरकार और सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया गया.

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

2019 में, जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार 1943 में बंगाल में सिर्फ सूखे के कारण अकाल नहीं हुआ था, ब्रिटिश सरकार की विफलता भी एक प्रमुख कारण था. प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल की सरकार द्वारा लाई गई नीतियां और उनके असफल क्रियान्वयन के चलते बंगाल को मुश्किल समय से गुजरना पड़ा.

वैज्ञानिकों ने 1870 से 2016 के बीच मिट्टी की नमी के स्तर का विश्लेषण किया जिससे यह पता लगाया जा सके कि वास्तव में उस समय क्या हुआ था. उनके अनुसार, उस समय सीमा के दौरान छह अकाल पड़े थे जिनमें बंगाल में जो अकाल की स्थिति पैदा हुई वह कृत्रिम थी, क्योंकि इसमें न तो फसलें खराब हुई थी और न ही मिट्टी में नमी की कमी थी.

ब्रिटिश सरकार की नीतियां

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने चावल के आयात को रोक दिया था साथ ही, जो अनाज लोगों तक पहुंचाया जाना था उसे भी विश्व युद्ध में लड़ रहे सैनिकों तक पहुंचा दिया गया था, जिससे अनाज की कमी हो गई, जो अकाल का कारण बन गया. इसके बाद भी ब्रिटिश सरकार ने भारत में अकाल की घोषणा नहीं की थी.

अध्ययन के अनुसार बर्मा (अब म्यांमार) में जापानी कब्जा, 1943 के अकाल में हुई मौतों का आंकड़ा बढ़ाने वाला एक अन्य कारण था क्योंकि बर्मा से भारत में चावल का आयात होता था. बर्मा पर जापान के कब्जे के बाद वहां से चावल का आयात रुक गया था.

अध्ययन में कहा गया है कि पहले भी घातक अकाल पड़े लेकिन म्यांमार से चावल के आयात और ब्रिटिश सरकार की राहत सहायता मिलने से ज्यादा नुकसान नहीं हो पाया था.

अध्ययन में यह दावा किया गया कि अकाल मुख्य रूप से ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए युद्धकालीन अनाज आयात प्रतिबंधों से पड़ा. मुख्य शोधकर्ता विमल मिश्रा ने बताया कि यह एकमात्र अकाल था जिसे सूखे की स्थिति और फसलों के खराब होने से नहीं जोड़ा जा सका क्योंकि मिट्टी में नमी की कमी नहीं थी, मिट्टी उपजाऊ थी.

आनाज का अत्याधिक निर्यात बना कारण

2011 में मधुश्री मुखर्जी की किताब चर्चिल सीक्रेट वॉर के अनुसार भारत से अनाज का अत्याधिक निर्यात, काल का कारण बना.

सरकार को अकाल के बारे में चेतावनी दी गई थी बावजूद इसके ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल अपने सैन्य अभियानों को मजबूत करने में लगे हुए थे, समस्याओं को ठीक करने और संसाधनों की कमी की पूर्ति करने में असफल रहे.

भारत ने अकाल की स्थिति पैदा होने के बाद भी जनवरी से जुलाई 1943 के बीच 70 हजार टन से अधिक चावल का निर्यात किया. अगर इतना चावल निर्यात नहीं किया जाता तो इससे लगभग चार लाख लोगों की पूरे साल की भूख को मिटाया जा सकता था. चावल की कमी होने के कारण कीमतें आसमान छू रही थी जिसके बाद भारत की आपूर्ति व्यवस्था ध्वस्त हो गई.

चर्चिल ने जहाजों की कमी का हवाला देते हुए भारत में खाद्य निर्यात को भी रोक दिया था. वहीं जापान के आक्रमण के डर से बंगाल में नावों और बैलगाड़ियों को जब्त या नष्ट कर दिया गया था.

इनग्लोरियस एम्पायर: 'वॉट ब्रिटिश डिड टू इंडिया' के लेखक शशि थरूर का कहना है कि चर्चिल ने जानबूझकर भारतीय नागरिकों के पास अनाज नहीं पहुंचाया. वह ब्रिटिश सैनिकों को आनाज की आपूर्ति करते रहे, जिनके पास पहले से ही पर्याप्त अनाज था.

विंस्टन चर्चिल ने भारत को तिरस्कृत करते हुए कहा था 'अकाल हो या अकाल नहीं हो, भारतीय हमेशा खरगोश की तरह प्रजनन करेंगे.'

अध्ययन में ऐसे कई सबूत मिले हैं जो दिखाते हैं कि लोगों की दुःस्थिति के लिए चर्चिल सीधे तौर पर जिम्मेदार थे.

Last Updated : Sep 2, 2020, 11:22 AM IST
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