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सात साल पहले बहे उत्तराखंड के थराली में एक मात्र संपर्क पुल का निर्माण अब तक नहीं

2013 की आपदा में थराली के सोल क्षेत्र में कई गांव का एक मात्र ढाडरबगड़ का संपर्क पुल बह गया था. 7 साल बीत जाने के बाद भी पुल का निर्माण नहीं हो पाया है. जिससे लोगों में खासा आक्रोश है.

सात साल पहले बहा पुल
सात साल पहले बहा पुल
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Published : Jul 22, 2020, 1:38 PM IST

थराली: चमोली जिले के थराली विकासखंड के सोल घाटी में ढाडरबगड़ में पुल टूटने के बाद से लोग जान जोखिम में डालकर आवाजाही कर रहे हैं. ग्रामीण लट्ठे के सहारे नाले को पार कर रहे हैं. एक ओर सरकार विकास के दावे करती है, वहीं दूसरी ओर आपदा में ध्वस्त हुए पुल का दोबारा निर्माण न होना सरकार की दावों की पोल खोल रहा है.

2013 की आपदा में थराली के सोल क्षेत्र में कई गांव का एक मात्र ढाडरबगड़ का संपर्क पुल बह गया था. 7 साल बीत जाने के बाद भी रणकोट, गुमड, घुंघुटी सहित कई गांवों के लोग पुल बनने की आस लगाए बैठे हैं. हर साल बरसात में यहां लोग जान हथेली पर रखकर आवाजाही करते हैं. पीड़ितों का कहना है कि सूबे में डबल इंजन की सरकार केवल खानापूर्ति करती है. सरकार को जिले की अव्यवस्थाओं से कोई लेना-देना नहीं है.

सात साल पहले बहा पुल

लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव, हर चुनाव में ढाडरबगड़ में पुल बनाने का आश्वासन दिया जाता है. राजनीतिक दल पुल को लेकर ग्रामीणों से वोट भी मांगते हैं. ऐसे में ग्रामीणों की मांग है कि पुल का निर्माण जल्द होना चाहिए, जिससे बरसात में ग्रामीणों की आवाजाही सुलभ हो सके. ग्रामीणों का कहना है कि जब तक पुल का निर्माण नहीं होता, तब तक आवाजाही के लिए एक ट्रॉली की व्यवस्था की जाए.

ग्रामीण पुल की मांग को लेकर क्षेत्रीय विधायक से लेकर मुख्यमंत्री तक गुहार लगा चुके हैं. फिर भी कागजी कार्रवाई अब तक धरातल पर नहीं उतर सकी है. जिसके चलते ग्रामीणों को जान हथेली पर रखकर उफनती नदी को पार करना पड़ता है. वहीं विक्रम मेहर ने ग्रामीणों की समस्या के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया है. साथ ही उन्होंने कहा कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों को जनता ने बारी-बारी से चुना है, लेकिन आश्वासन के अलावा ग्रामीणों को कुछ नहीं मिला. उन्होंने कहा कि जल्द पुल का निर्माण नहीं हुआ तो वे उग्र आंदोलन के लिए विवश होंगे.

थराली: चमोली जिले के थराली विकासखंड के सोल घाटी में ढाडरबगड़ में पुल टूटने के बाद से लोग जान जोखिम में डालकर आवाजाही कर रहे हैं. ग्रामीण लट्ठे के सहारे नाले को पार कर रहे हैं. एक ओर सरकार विकास के दावे करती है, वहीं दूसरी ओर आपदा में ध्वस्त हुए पुल का दोबारा निर्माण न होना सरकार की दावों की पोल खोल रहा है.

2013 की आपदा में थराली के सोल क्षेत्र में कई गांव का एक मात्र ढाडरबगड़ का संपर्क पुल बह गया था. 7 साल बीत जाने के बाद भी रणकोट, गुमड, घुंघुटी सहित कई गांवों के लोग पुल बनने की आस लगाए बैठे हैं. हर साल बरसात में यहां लोग जान हथेली पर रखकर आवाजाही करते हैं. पीड़ितों का कहना है कि सूबे में डबल इंजन की सरकार केवल खानापूर्ति करती है. सरकार को जिले की अव्यवस्थाओं से कोई लेना-देना नहीं है.

सात साल पहले बहा पुल

लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव, हर चुनाव में ढाडरबगड़ में पुल बनाने का आश्वासन दिया जाता है. राजनीतिक दल पुल को लेकर ग्रामीणों से वोट भी मांगते हैं. ऐसे में ग्रामीणों की मांग है कि पुल का निर्माण जल्द होना चाहिए, जिससे बरसात में ग्रामीणों की आवाजाही सुलभ हो सके. ग्रामीणों का कहना है कि जब तक पुल का निर्माण नहीं होता, तब तक आवाजाही के लिए एक ट्रॉली की व्यवस्था की जाए.

ग्रामीण पुल की मांग को लेकर क्षेत्रीय विधायक से लेकर मुख्यमंत्री तक गुहार लगा चुके हैं. फिर भी कागजी कार्रवाई अब तक धरातल पर नहीं उतर सकी है. जिसके चलते ग्रामीणों को जान हथेली पर रखकर उफनती नदी को पार करना पड़ता है. वहीं विक्रम मेहर ने ग्रामीणों की समस्या के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया है. साथ ही उन्होंने कहा कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों को जनता ने बारी-बारी से चुना है, लेकिन आश्वासन के अलावा ग्रामीणों को कुछ नहीं मिला. उन्होंने कहा कि जल्द पुल का निर्माण नहीं हुआ तो वे उग्र आंदोलन के लिए विवश होंगे.

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