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बैंकिंग विनियमन विधेयक : यस बैंक जैसी स्थिति फिर नहीं आए - भारतीय रिजर्व बैंक

लोकसभा में बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक पारित हो गया है. इससे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को कई नए अधिकार मिल गए हैं. पढ़िए इस संबंध में संवाददाता कृष्णानंद त्रिपाठी की रिपोर्ट...

nirmala sitaraman
निर्मला सीतारमण
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Published : Sep 17, 2020, 11:55 AM IST

नई दिल्ली : लोकसभा से बुधवार को बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक पारित हो गया. इससे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को ग्राहकों के पैसा निकालने पर प्रतिबंध लगाए बिना किसी बैंक का प्रबंधन अपने नियंत्रण में लेने की अनुमति मिल जाएगी ताकि वह उस बैंक का पुनर्गठन या किसी अन्य बैंक के साथ विलय कर सके.

लोकसभा से बुधवार को इस बदलाव की स्वीकृति मिल जाने से आरबीआई को गड़बड़ी करने वाले किसी भी बैंक के प्रबंधन को हटा देने का अधिकार होगा और ग्राहकों को पैसे निकालने पर रोक लगाने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी. ऐसी व्यवस्था का नहीं रहना वर्ष 1949 के बैंकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 45 में एक गंभीर चूक थी. उसके अनुसार, आर्थिक संकट से जूझ रहे बैंक के पुनर्गठन या किसी अन्य बैंक में विलय से पहले आरबीआई की ओर से लेन-देन पर रोक लगाने की शर्त थी, लेकिन इसने बैंकिंग प्रणाली में जमाकर्ताओं के भरोसे को निश्चित रूप से धूमिल किया.

इन संशोधनों से यस बैंक जैसी स्थिति दोबारा नहीं आए इससे रिजर्व बैंक को बचने की अनुमति मिल जाएगी. रिजर्व बैंक ने हाई प्रोफाइल व्यवसायी राणा कपूर की ओर से स्थापित यस बैंक के प्रबंधन बोर्ड को हटाने (सुपरसीड) करने का निर्णय लिया जिसकी वजह से पूरे बैंकिंग उद्योग में शोक की लहर दौड़ गई.

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इस विधेयक के बारे में कहा कि धारा 45 का संशोधन वित्तीय प्रणाली में संभावित व्यवधानों को दूर करने के लिए है. इससे भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से पहले पैसा निकालने पर रोक लगाने का आदेश देने की जरूरत नहीं पड़ेगी और आरबीआई बैंकिंग कंपनी के पुनर्गठन या एकीकरण के लिए योजना तैयार कर पाएगा.

इसी साल मार्च में रिजर्व बैंक ने यस बैंक के प्रबंधन बोर्ड को सुपरसीड कर दिया था और बैंक के प्रति ग्राहक को अधिकतम 50 हजार रुपए तक ही निकालने की अनुमति दी थी.

इसने पूरे बैंकिंग उद्योग को सदमे में ला दिया. अपनी मेहनत से कमाए पैसे डूब जाने की आशंका से घबराए लाखों ग्राहक पैसे निकालने के लिए यस बैंक की शाखाओं के बाहर कतार में लग गए.

भारतीय स्टेट बैंक के नेतृत्व में एक सहायता संघ (कंसोर्टियम) की ओर से उसका पुनर्गठन का फैसला लिया जाए इसके पहले आरबीआई की ओर से पैसे की निकासी पर रोक लगाने की शर्त थी, इससे यह डर हो गया कि यस बैंक भी पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक ( पीएमसी बैंक ) की राह पर जा सकता है जिसके जमाकर्ता आज भी अपने पैसे वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

पढ़ें :- भारत की अर्थव्यवस्था में आएगी नौ प्रतिशत की गिरावट : एसएंडपी

आरबीआई ने हालांकि एक महीने से भी कम समय में यस बैंक से निकासी पर प्रतिबंध हटा लिया लेकिन वित्तीय प्रणाली को नुकसान तो पहले ही हो चुका था. आरबीआई की ओर से पैसे निकालने की सीमा से रोक हटाए लेने बाद बड़ी संख्या में घबराए जमाकर्ताओं ने तुरंत यस बैंक से अपने पैसे निकाल लिए.

पीएमसी बैंक का दुख जारी

यस बैंक रिजर्व बैंक की देखरेख में भले ही काफी हद तक पटरी पर आ गया है, लेकिन पीएमसी बैंक के हजारों ग्राहक अब भी अपने पैसे वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. रिजर्व बैंक ने होम लोन देने वाली कंपनी एचडीआईएल के साथ पीएमसी बैंक की लेनदेन में अनियमितताओं की रिपोर्ट मिलने के बाद बैंक से एक हजार रुपए से अधिक की निकासी पर रोक लगा दी थी.

निकासी पर लगे प्रतिबंधों ने बैंकिंग प्रणाली में ग्राहक के विश्वास को बहुत अधिक धूमिल किया. इसने सरकार को सहकारी बैंकों पर रिज़र्व बैंक की निगरानी को मजबूत करने के लिए प्रेरित किया, जिससे ऐसी स्थिति फिर से आने को रोका जा सके और निकासी पर प्रतिबंध लगाए बिना आरबीआई को पुनर्गठन या विलय करने के लिए लचीलापन उपलब्ध कराया जा सके.

नई दिल्ली : लोकसभा से बुधवार को बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक पारित हो गया. इससे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को ग्राहकों के पैसा निकालने पर प्रतिबंध लगाए बिना किसी बैंक का प्रबंधन अपने नियंत्रण में लेने की अनुमति मिल जाएगी ताकि वह उस बैंक का पुनर्गठन या किसी अन्य बैंक के साथ विलय कर सके.

लोकसभा से बुधवार को इस बदलाव की स्वीकृति मिल जाने से आरबीआई को गड़बड़ी करने वाले किसी भी बैंक के प्रबंधन को हटा देने का अधिकार होगा और ग्राहकों को पैसे निकालने पर रोक लगाने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी. ऐसी व्यवस्था का नहीं रहना वर्ष 1949 के बैंकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 45 में एक गंभीर चूक थी. उसके अनुसार, आर्थिक संकट से जूझ रहे बैंक के पुनर्गठन या किसी अन्य बैंक में विलय से पहले आरबीआई की ओर से लेन-देन पर रोक लगाने की शर्त थी, लेकिन इसने बैंकिंग प्रणाली में जमाकर्ताओं के भरोसे को निश्चित रूप से धूमिल किया.

इन संशोधनों से यस बैंक जैसी स्थिति दोबारा नहीं आए इससे रिजर्व बैंक को बचने की अनुमति मिल जाएगी. रिजर्व बैंक ने हाई प्रोफाइल व्यवसायी राणा कपूर की ओर से स्थापित यस बैंक के प्रबंधन बोर्ड को हटाने (सुपरसीड) करने का निर्णय लिया जिसकी वजह से पूरे बैंकिंग उद्योग में शोक की लहर दौड़ गई.

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इस विधेयक के बारे में कहा कि धारा 45 का संशोधन वित्तीय प्रणाली में संभावित व्यवधानों को दूर करने के लिए है. इससे भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से पहले पैसा निकालने पर रोक लगाने का आदेश देने की जरूरत नहीं पड़ेगी और आरबीआई बैंकिंग कंपनी के पुनर्गठन या एकीकरण के लिए योजना तैयार कर पाएगा.

इसी साल मार्च में रिजर्व बैंक ने यस बैंक के प्रबंधन बोर्ड को सुपरसीड कर दिया था और बैंक के प्रति ग्राहक को अधिकतम 50 हजार रुपए तक ही निकालने की अनुमति दी थी.

इसने पूरे बैंकिंग उद्योग को सदमे में ला दिया. अपनी मेहनत से कमाए पैसे डूब जाने की आशंका से घबराए लाखों ग्राहक पैसे निकालने के लिए यस बैंक की शाखाओं के बाहर कतार में लग गए.

भारतीय स्टेट बैंक के नेतृत्व में एक सहायता संघ (कंसोर्टियम) की ओर से उसका पुनर्गठन का फैसला लिया जाए इसके पहले आरबीआई की ओर से पैसे की निकासी पर रोक लगाने की शर्त थी, इससे यह डर हो गया कि यस बैंक भी पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक ( पीएमसी बैंक ) की राह पर जा सकता है जिसके जमाकर्ता आज भी अपने पैसे वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

पढ़ें :- भारत की अर्थव्यवस्था में आएगी नौ प्रतिशत की गिरावट : एसएंडपी

आरबीआई ने हालांकि एक महीने से भी कम समय में यस बैंक से निकासी पर प्रतिबंध हटा लिया लेकिन वित्तीय प्रणाली को नुकसान तो पहले ही हो चुका था. आरबीआई की ओर से पैसे निकालने की सीमा से रोक हटाए लेने बाद बड़ी संख्या में घबराए जमाकर्ताओं ने तुरंत यस बैंक से अपने पैसे निकाल लिए.

पीएमसी बैंक का दुख जारी

यस बैंक रिजर्व बैंक की देखरेख में भले ही काफी हद तक पटरी पर आ गया है, लेकिन पीएमसी बैंक के हजारों ग्राहक अब भी अपने पैसे वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. रिजर्व बैंक ने होम लोन देने वाली कंपनी एचडीआईएल के साथ पीएमसी बैंक की लेनदेन में अनियमितताओं की रिपोर्ट मिलने के बाद बैंक से एक हजार रुपए से अधिक की निकासी पर रोक लगा दी थी.

निकासी पर लगे प्रतिबंधों ने बैंकिंग प्रणाली में ग्राहक के विश्वास को बहुत अधिक धूमिल किया. इसने सरकार को सहकारी बैंकों पर रिज़र्व बैंक की निगरानी को मजबूत करने के लिए प्रेरित किया, जिससे ऐसी स्थिति फिर से आने को रोका जा सके और निकासी पर प्रतिबंध लगाए बिना आरबीआई को पुनर्गठन या विलय करने के लिए लचीलापन उपलब्ध कराया जा सके.

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