नई दिल्ली : हाल ही में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने दावा किया था कि आयुष चिकित्सा प्रणाली अवैज्ञानिक है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के दावे को आयुष के क्षेत्र में काम कर रहे वैज्ञानिकों ने चुनौती दी है. ईटीवी भारत से खास बातचीत में आयुर्वेदिक विज्ञान में अनुसंधान के लिए केंद्रीय परिषद (Central Council for Research in Ayurvedic Sciences-CCRAS) से जुड़े वैज्ञानिक वेलफेयर एसोसिएशन (CSWA) के अध्यक्ष डॉ. वीके शाही ने कहा कि आयुर्वेदिक दवाएं गहन वैज्ञानिक शोध के बाद बाजार में आती हैं.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कोविड-19 के मरीजों के इलाज के लिए आयुर्वेद और योग को बढ़ावा देने की बात कही थी, जिसकी आईएमए ने आलोचना की थी. डॉ. शाही ने कहा कि दवाएं बनाने के लिए आयुष प्रणाली लंबे समय से किए जा रहे शोध और अध्ययनों पर आधारित है. कई सबूतों से पता चला है कि आयुष प्रणाली देशभर में कोविड-19 महामारी से लड़ने में कारगर साबित हो रही है. उन्होंने आईएमए द्वारा आयुष प्रोटोकॉल पर उठाए गए सवालों की कड़ी आलोचना भी की.
डॉ. शाही ने कहा कि आईएमए ने आयुष दवाओं को प्लसीबो करार दिया है, जो निंदनीय है, क्योंकि यह आयुष के क्षेत्र में कार्य कर रहे वैज्ञानिकों की मेहनत पर सवाल उठाता है. डॉ. शाही ने बताया कि भारत की क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्री में 67 इंटरवेंशनल ट्रायल पंजीकृत हैं. उनमें से 46 आयुष की प्रणाली पर आधारित हैं.
पढ़ें-स्वास्थ्य मंत्री का दावा - 2021 की शुरुआत में आएगी कोविड-19 वैक्सीन
उन्होंने हाईड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की प्रभावकारिता पर भी सवाल उठाए. उन्होंने दावा किया कि वर्तमान डेटा प्रोफिलैक्सिस या कोविड-19 के उपचार के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के उपयोग का समर्थन नहीं करता है और इससे जुड़ा कोई भी ट्रायल आज तक प्रकाशित नहीं हुआ है.
डॉ. शाही ने कहा कि चिकित्सा की आयुष पद्धति-आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध, सोवा, रिगपा और होमियोपैथी अनुसंधान के क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रही है. वैज्ञानिक वेलफेयर एसोसिएशन ने आईएमए से कोविड-19 के उपचार के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और मिथाइल प्रेडनिसोलोन की प्रभावकारिता को लेकर सबूत मांगे हैं. वैज्ञानिक वेलफेयर एसोसिएशन ने यह भी कहा है कि आईएमए चिकित्सा की आयुष पद्धति से अनभिज्ञ है.