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बात करने में मदद करेगा आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस

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Published : Jun 20, 2020, 4:33 AM IST

ब्रिटेन के शोधकर्ताओं की एक टीम ने दिव्यांगों की मदद करने के लिए नई तकनीक विकसित की है. यह उन लोगों के लिए है जो बात करने के लिए उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं. यह शोध दर्शाता है कि कैसे एआई दिव्यांगों के जीवन को बेहतर बना सकता है.

AI reduces  communication gap
AI reduces communication gap

ब्रिटेन: शोधकर्ताओं की एक टीम ने आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस का इस्तामाल करके बात करने के लिए उपकरण का उपयोग करने वालों के लिए नई तकनीक विकसित की है. शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि यह कम्युनिकेशन गैप को कम करेगा.

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और डंडी विश्वविद्यालय की टीम ने एक नया कांटेक्ट-अवेयर तरीका विकसित किया है. इसकी मदद से दिव्यांग व्यक्ति को बात करने के लिए पहले की तुलना में कम टाइप करना पड़ेगा.

इसे मुख्य रूप से बात न कर पाने वाले लोगों के लिए बनाया गया है. यह कांटेक्ट या संदर्भ से जुड़ी जानकारी का इस्तेमाल करता है, जैसे व्यक्ति की लोकेशन, दिन का समय व सामने वाले की जानकारी. इसके बाद यह संदर्भ में प्रयोग किए जाने वाले वाक्यों का सुझाव देता है. दिव्यांग इसका उपयोग करके लोगों से बात कर सकते हैं.

जो लोग टाइप करने में सक्षम हैं उनको भी तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. औसतन लोग एक मिनट में पांच से 20 शब्द टाइप करते हैं और 100-140 शब्द बोलते हैं.

अध्ययन के प्रमुख लेखक व कैम्ब्रिज इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर पर ओला क्रिस्टेंसन ने कहा कि कम्युनिकेशन दर में जो फर्क है उसे कम्युनिकेशन गैप कहते हैं. जो लोग बातचीत करने के लिए उपरणों का इस्तेमाल करते हैं उनके लिए यह गैप 80-135 शब्दों का होता, जो उनके जीवन को प्रभावित करता है.

क्रिस्टेंसन की टीम द्वारा बनाए गए सिस्टम से लोग जल्दी से पहले इस्तेमाल किए हुए वाक्यों को फिर से इस्तेमाल कर सकते हैं. शोध में पाया गया है कि बात करने के लिए उपकरणों का इस्तेमाल करने वाले लोग कुछ ही वाक्यों का बार-बार प्रयोग करते हैं. हालांकि इन वाक्यों को खोजने में समय लगता है. इससे बातचीत की प्रक्रिया और धीमी हो जाती है.

नए सिस्टम में व्यक्ति जो भी टाइप कर रहा होता है एल्गोरिदम उससे मिलता जुलता वाक्य निकालकर दे देता है. कांटेक्ट में व्यक्ति की लोकेशन, दिन का समय और व्यक्ति किससे बात कर रहा है इसकी जानकारी होती है. एल्गोरिदम इस आधार पर भी वाक्यों को पूरा कर देता है. जिस व्यक्ति से बातचीत हो रही होती है उसे पहचानने के लिए एक कैमरा लगा है.

कई विश्लेषण करने के बाद शोधकर्ता वाक्यों को फिर से निकालने के की विधी को समझ पाए. इससे उनको सिस्टम के प्रदर्शन को और बेहतर बनाने में भी मदद मिली. यह शोध अपने आप में पहला है. यह दिखाता है कि कैसे एआई का इस्तेमाल करके दिव्यांगों के जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है.

पढ़ें-जानें, क्या है चीन की विस्तारवादी नीति का कारण और क्यों है भारत से परेशान

ब्रिटेन: शोधकर्ताओं की एक टीम ने आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस का इस्तामाल करके बात करने के लिए उपकरण का उपयोग करने वालों के लिए नई तकनीक विकसित की है. शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि यह कम्युनिकेशन गैप को कम करेगा.

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और डंडी विश्वविद्यालय की टीम ने एक नया कांटेक्ट-अवेयर तरीका विकसित किया है. इसकी मदद से दिव्यांग व्यक्ति को बात करने के लिए पहले की तुलना में कम टाइप करना पड़ेगा.

इसे मुख्य रूप से बात न कर पाने वाले लोगों के लिए बनाया गया है. यह कांटेक्ट या संदर्भ से जुड़ी जानकारी का इस्तेमाल करता है, जैसे व्यक्ति की लोकेशन, दिन का समय व सामने वाले की जानकारी. इसके बाद यह संदर्भ में प्रयोग किए जाने वाले वाक्यों का सुझाव देता है. दिव्यांग इसका उपयोग करके लोगों से बात कर सकते हैं.

जो लोग टाइप करने में सक्षम हैं उनको भी तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. औसतन लोग एक मिनट में पांच से 20 शब्द टाइप करते हैं और 100-140 शब्द बोलते हैं.

अध्ययन के प्रमुख लेखक व कैम्ब्रिज इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर पर ओला क्रिस्टेंसन ने कहा कि कम्युनिकेशन दर में जो फर्क है उसे कम्युनिकेशन गैप कहते हैं. जो लोग बातचीत करने के लिए उपरणों का इस्तेमाल करते हैं उनके लिए यह गैप 80-135 शब्दों का होता, जो उनके जीवन को प्रभावित करता है.

क्रिस्टेंसन की टीम द्वारा बनाए गए सिस्टम से लोग जल्दी से पहले इस्तेमाल किए हुए वाक्यों को फिर से इस्तेमाल कर सकते हैं. शोध में पाया गया है कि बात करने के लिए उपकरणों का इस्तेमाल करने वाले लोग कुछ ही वाक्यों का बार-बार प्रयोग करते हैं. हालांकि इन वाक्यों को खोजने में समय लगता है. इससे बातचीत की प्रक्रिया और धीमी हो जाती है.

नए सिस्टम में व्यक्ति जो भी टाइप कर रहा होता है एल्गोरिदम उससे मिलता जुलता वाक्य निकालकर दे देता है. कांटेक्ट में व्यक्ति की लोकेशन, दिन का समय और व्यक्ति किससे बात कर रहा है इसकी जानकारी होती है. एल्गोरिदम इस आधार पर भी वाक्यों को पूरा कर देता है. जिस व्यक्ति से बातचीत हो रही होती है उसे पहचानने के लिए एक कैमरा लगा है.

कई विश्लेषण करने के बाद शोधकर्ता वाक्यों को फिर से निकालने के की विधी को समझ पाए. इससे उनको सिस्टम के प्रदर्शन को और बेहतर बनाने में भी मदद मिली. यह शोध अपने आप में पहला है. यह दिखाता है कि कैसे एआई का इस्तेमाल करके दिव्यांगों के जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है.

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