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इलाहाबाद हाईकोर्ट का जौहर विश्वविद्यालय के खिलाफ कार्रवाई रोकने से इनकार

रामपुर में जौहर विश्वविद्यालय (Jauhar University) की भूमि के अधिग्रहण के लिए राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई कार्यवाही के खिलाफ मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट (Maulana Mohammad Ali Jauhar Trust) की याचिका को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है

इलाहाबाद हाईकोर्ट
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Published : Sep 7, 2021, 3:04 PM IST

प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के सांसद मोहम्मद आजम खान (Mohd Azam Khan) को झटका देते हुए मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट (Maulana Mohammad Ali Jauhar Trust) की याचिका खारिज कर दी है.

ट्रस्ट ने रामपुर में जौहर विश्वविद्यालय (Jauhar University) की भूमि के अधिग्रहण के लिए राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई कार्यवाही के खिलाफ याचिका दायर की थी.

ट्रस्ट को 2005 में एक शैक्षणिक संस्थान (educational institution) के निर्माण के लिए जमीन दी गई थी. राज्य सरकार ने ट्रस्ट द्वार शर्तों का पालन न करने के आरोपम में कार्रवाई की गई थी.

अदालत ने सोमवार को आदेश देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय परिसर के अंदर भूमि पर अतिक्रमण और मस्जिद के निर्माण को उचित नहीं ठहराया जा सकता है.

मोहम्मद आजम खान ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं जबकि उनकी पत्नी तंजीन फातिमा (Tanzeen Fatima) सचिव हैं और बेटा अब्दुल्ला आजम खान (Abdullah Azam Khan) ट्रस्ट के सक्रिय सदस्य हैं.

मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट की याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल (Justice Rohit Ranjan Agarwal ) ने कहा, 'यह एक ऐसा मामला है, जहां जमीन का एक बड़ा हिस्सा खरीदा गया है और साथ ही किरायेदारों और ग्राम सभा की जमीन के कुछ हिस्से पर कब्जा कर लिया गया है. वर्ष 2005 में आए एक अधिनियम के अनुसार एक पूर्व कैबिनेट मंत्री (former cabinet minister) ने एक शैक्षणिक संस्थान की स्थापना की.

अदालत ने आगे कहा, 'मौजूदा मामले में 12.50 एकड़ से अधिक की भूमि के हस्तांतरण की अनुमति केवल एक शैक्षणिक संस्थान की स्थापना के लिए दी गई थी. मस्जिद की स्थापना 7 नवंबर, 2005 को दी गई अनुमति के खिलाफ थी. इस प्रकार, ट्रस्ट ने उन शर्तों का उल्लंघन किया है, जिसके तहत किसी भी शर्त के उल्लंघन (case of violation) की स्थिति में 12.50 एकड़ से अधिक भूमि राज्य सरकार के निहित होगी.

याचिकाकर्ता ट्रस्ट ने भूमि पर निर्माण के संबंध में उप-मंडल मजिस्ट्रेट (sub-divisional magistrate) द्वारा प्रस्तुत 16 मार्च, 2020 की रिपोर्ट को रद्द करने के साथ-साथ रामपुर के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (additional district magistrate) द्वारा 16 जनवरी 2021 को दिए आदेश को रद्द करने की मांग की थी.

याचिकाकर्ता के वकील के तर्क पर कि मस्जिद विश्वविद्यालय के कर्मचारियों (staff of the university) के लिए बनाई गई थी, अदालत ने कहा, 'यह तर्क कि परिसर में शिक्षण के साथ-साथ गैर-शिक्षण कर्मचारियों के लिए आवासीय परिसर था, उनके लिए एक मस्जिद का निर्माण किया गया था, इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है. यह राज्य द्वारा दी गई अनुमति के खिलाफ जाता है.'

पढ़ें - आज से असदुद्दीन ओवैसी का तीन दिवसीय अयोध्या दौरा

बता दें कि 2005 में राज्य सरकार ने मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय अधिनियम (Mohammad Ali Jauhar University Act), 2005 को अधिनियमित किया, जिससे विश्वविद्यालय के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ.

उसके बाद राज्य सरकार ने मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट को कुछ शर्तों को लागू करते हुए विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए 12.5 एकड़ (5.0586 हेक्टेयर) की सीमा के खिलाफ 400 एकड़ भूमि का अधिग्रहण करने की अनुमति दी, जिसमें से एक एक शर्त यह थी कि भूमि का उपयोग केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए किया जाएगा.

कानून के अनुसार अगर इस तरह के प्रतिबंध/शर्तों का उल्लंघन किया जाता है, तो राज्य सरकार द्वारा दी गई अनुमति वापस ले ली जाती है.

(आईएएनएस)

प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के सांसद मोहम्मद आजम खान (Mohd Azam Khan) को झटका देते हुए मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट (Maulana Mohammad Ali Jauhar Trust) की याचिका खारिज कर दी है.

ट्रस्ट ने रामपुर में जौहर विश्वविद्यालय (Jauhar University) की भूमि के अधिग्रहण के लिए राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई कार्यवाही के खिलाफ याचिका दायर की थी.

ट्रस्ट को 2005 में एक शैक्षणिक संस्थान (educational institution) के निर्माण के लिए जमीन दी गई थी. राज्य सरकार ने ट्रस्ट द्वार शर्तों का पालन न करने के आरोपम में कार्रवाई की गई थी.

अदालत ने सोमवार को आदेश देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय परिसर के अंदर भूमि पर अतिक्रमण और मस्जिद के निर्माण को उचित नहीं ठहराया जा सकता है.

मोहम्मद आजम खान ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं जबकि उनकी पत्नी तंजीन फातिमा (Tanzeen Fatima) सचिव हैं और बेटा अब्दुल्ला आजम खान (Abdullah Azam Khan) ट्रस्ट के सक्रिय सदस्य हैं.

मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट की याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल (Justice Rohit Ranjan Agarwal ) ने कहा, 'यह एक ऐसा मामला है, जहां जमीन का एक बड़ा हिस्सा खरीदा गया है और साथ ही किरायेदारों और ग्राम सभा की जमीन के कुछ हिस्से पर कब्जा कर लिया गया है. वर्ष 2005 में आए एक अधिनियम के अनुसार एक पूर्व कैबिनेट मंत्री (former cabinet minister) ने एक शैक्षणिक संस्थान की स्थापना की.

अदालत ने आगे कहा, 'मौजूदा मामले में 12.50 एकड़ से अधिक की भूमि के हस्तांतरण की अनुमति केवल एक शैक्षणिक संस्थान की स्थापना के लिए दी गई थी. मस्जिद की स्थापना 7 नवंबर, 2005 को दी गई अनुमति के खिलाफ थी. इस प्रकार, ट्रस्ट ने उन शर्तों का उल्लंघन किया है, जिसके तहत किसी भी शर्त के उल्लंघन (case of violation) की स्थिति में 12.50 एकड़ से अधिक भूमि राज्य सरकार के निहित होगी.

याचिकाकर्ता ट्रस्ट ने भूमि पर निर्माण के संबंध में उप-मंडल मजिस्ट्रेट (sub-divisional magistrate) द्वारा प्रस्तुत 16 मार्च, 2020 की रिपोर्ट को रद्द करने के साथ-साथ रामपुर के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (additional district magistrate) द्वारा 16 जनवरी 2021 को दिए आदेश को रद्द करने की मांग की थी.

याचिकाकर्ता के वकील के तर्क पर कि मस्जिद विश्वविद्यालय के कर्मचारियों (staff of the university) के लिए बनाई गई थी, अदालत ने कहा, 'यह तर्क कि परिसर में शिक्षण के साथ-साथ गैर-शिक्षण कर्मचारियों के लिए आवासीय परिसर था, उनके लिए एक मस्जिद का निर्माण किया गया था, इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है. यह राज्य द्वारा दी गई अनुमति के खिलाफ जाता है.'

पढ़ें - आज से असदुद्दीन ओवैसी का तीन दिवसीय अयोध्या दौरा

बता दें कि 2005 में राज्य सरकार ने मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय अधिनियम (Mohammad Ali Jauhar University Act), 2005 को अधिनियमित किया, जिससे विश्वविद्यालय के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ.

उसके बाद राज्य सरकार ने मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट को कुछ शर्तों को लागू करते हुए विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए 12.5 एकड़ (5.0586 हेक्टेयर) की सीमा के खिलाफ 400 एकड़ भूमि का अधिग्रहण करने की अनुमति दी, जिसमें से एक एक शर्त यह थी कि भूमि का उपयोग केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए किया जाएगा.

कानून के अनुसार अगर इस तरह के प्रतिबंध/शर्तों का उल्लंघन किया जाता है, तो राज्य सरकार द्वारा दी गई अनुमति वापस ले ली जाती है.

(आईएएनएस)

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