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वायु प्रदूषण पैदा कर सकता है इस्केमिक हृदय रोग, फेफड़ों को करता है प्रभावित

ईटीवी भारत से बात करते हुए डॉ जयेश एम लेले ने कहा कि वायु प्रदूषण लगातार स्वास्थ्य के लिए खतरा बनता जा रहा है. डॉ लेले ने कहा, 'सभी वर्ग के लोग वायु प्रदूषण से ग्रस्त हैं. यह बच्चों में फेफड़ों की गंभीर समस्या पैदा कर रहा है और वयस्कों के लिए अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी पैदा कर रहा है.'

वायु प्रदूषण
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Published : Nov 10, 2021, 7:54 PM IST

नई दिल्ली : जिस तरह निरंतर वायु प्रदूषण ने पूरे भारत में बड़े पैमाने पर शुष्क बना दिया है, उस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा है कि जहरीली हवा बच्चों में फेफड़ों के विकास और फंक्शन को कम कर रही है.

इस संबंध में ईटीवी भारत से बात करते हुए डॉ जयेश एम लेले ने कहा कि वायु प्रदूषण लगातार स्वास्थ्य के लिए खतरा बनता जा रहा है. डॉ लेले ने कहा, 'सभी वर्ग के लोग वायु प्रदूषण से ग्रस्त हैं. यह बच्चों में फेफड़ों की गंभीर समस्या पैदा कर रहा है और वयस्कों के लिए अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी पैदा कर रहा है.'

उन्होंने कहा कि उच्च वायु प्रदूषण हृदय और सांस की बीमारी को बढ़ा सकता है. डॉ लेले ने कहा, 'प्रदूषित हवा के लगातार संपर्क में आने से फेफड़ों की क्षमता कम हो सकती है और यह अस्थमा और ब्रोंकाइटिस को बढ़ावा देती है.

वहीं, डब्ल्यूएचओ के अनुसार वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से 70 लाख लोगों की समय से पहले मौत होने का अनुमान है और इसके परिणामस्वरूप हर साल लाखों लोगों को नुक्सान होता है. इससे बच्चों में फेफड़ों की वृद्धि और कार्य में कमी, श्वसन संक्रमण और बढ़े हुए अस्थमा जैसे रोग हो सकते हैं.

वायु प्रदूषण के कारण वयस्कों में इस्केमिक हृदय रोग और स्ट्रोक बाहरी समय से पहले मौत के सबसे आम कारण हैं.

डब्ल्यूएचओ के पिछले 2005 के वैश्विक अपडेट के बाद से इस बात के प्रमाण में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है कि वायु प्रदूषण जीवन के विभिन्न पहलुओं को कैसे प्रभावित करता है.

दिलचस्प बात यह है कि डब्ल्यूएचओ ने एक दिशानिर्देश में पांच प्रदूषकों के लिए वायु गुणवत्ता के स्तर की सिफारिश की, जहां साक्ष्य ने स्वास्थ्य पर सबसे अधिक प्रभाव डाला है. जब इन प्रदूषकों-पार्टिकुलेट मैटर (particulate matter), ओजोन (ozone), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (nitrogen dioxide ), सल्फर डाइऑक्साइड (sulfur dioxide ) और कार्बन मोनोऑक्साइड (carbon monoxide) पर कार्रवाई की जाती है, तो इसका अन्य हानिकारक प्रदूषकों पर भी प्रभाव पड़ता है.

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और अन्य संस्थानों के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार और पर्यावरण अनुसंधान पत्रिका में प्रकाशित भारत में 14 साल से अधिक उम्र के लोगों में होने वाली कुल मौतों का कम से कम 30 प्रतिशत जीवाश्म ईंधन से वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.

सरकारी आंकड़ों में कहा गया है कि 18 शहरों के साथ महाराष्ट्र सबसे अधिक प्रदूषित शहरों वाले राज्यों की सूची में सबसे ऊपर है, इसके बाद उत्तर प्रदेश में 16 शहर और आंध्र प्रदेश में 13 शहर हैं। महाराष्ट्र के शहर इइके चंद्रपुर, औरंगाबाद, पुणे, ठाणे मुंबई सहित अन्य सबसे अधिक प्रदूषक हैं.

पढ़ें - गुजरात में फिर 350 करोड़ से ज्यादा की ड्रग्स जब्त

उत्तर प्रदेश में आगरा, इलाहाबाद, अनपरा, बरेली जैसे शहर सबसे अधिक प्रदूषक हैं, इसके बाद आंध्र प्रदेश के शहर जैसे एलुरु, गुंटूर, विशाखापत्तनम जैसे अन्य शहर हैं.

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि विभिन्न मापदंडों की जटिलता और अलग-अलग शहरों की वायु गुणवत्ता पर उनके प्रभाव के कारण वायु गुणवत्ता के आधार पर शहरों की रैंकिंग नहीं की जाती है.

अधिकारी ने कहा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ( central pollution control board) ने 124 गैर-प्राप्ति शहरों (एनएसी) की पहचान की है, जो लगातार पांच वर्षों के लिए किसी भी अधिसूचित मानकों के संबंध में वार्षिक राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों से अधिक हैं.

केंद्र सरकार ने 2024 तक पार्टिकुलेट मैटर की सांद्रता में 20 प्रतिशत से 30 प्रतिशत की कमी प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ पूरे भारत में वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए एक दीर्घकालिक, समयबद्ध राष्ट्रीय स्तर की रणनीति के रूप में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) शुरू किया है.

इस मुद्दे प्रसिद्ध पर्यावरणविद् अनिल सूद ने कहा कि हवा विभिन्न कारकों से प्रदूषित होती है.

उन्होंने इस बात से इंकार किया कि दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में वायु प्रदूषण का एकमात्र प्रमुख कारण पराली जलाना है. प्रदूषण केवल पराली जलाने से नहीं होता है.

इस साल किए गए तीन अध्ययनों में कहा गया है कि हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और यूपी जैसे राज्यों में पराली जलाने से रोजाना 30 लाख गुना CO2 पैदा होती है.

सूद ने कहा अध्ययनों में कहा गया है कि कोयला आधारित बिजली संयंत्र भी विशाल CO2 का छोड़रहे हैं जिसका आकलन नहीं किया गया है.

सूद ने कहा, 'डाइजेल लोकोमोटिव के साथ रेलवे ने भी स्थिति का आकलन करने के लिए कोई मानदंड नहीं बनाया है.

उन्होंने सुझाव दिया कि केंद्र और राज्यों की सरकारों को एक साथ आना चाहिए और वायु प्रदूषण के ज्वलंत मुद्दे के समाधान के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए.

नई दिल्ली : जिस तरह निरंतर वायु प्रदूषण ने पूरे भारत में बड़े पैमाने पर शुष्क बना दिया है, उस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा है कि जहरीली हवा बच्चों में फेफड़ों के विकास और फंक्शन को कम कर रही है.

इस संबंध में ईटीवी भारत से बात करते हुए डॉ जयेश एम लेले ने कहा कि वायु प्रदूषण लगातार स्वास्थ्य के लिए खतरा बनता जा रहा है. डॉ लेले ने कहा, 'सभी वर्ग के लोग वायु प्रदूषण से ग्रस्त हैं. यह बच्चों में फेफड़ों की गंभीर समस्या पैदा कर रहा है और वयस्कों के लिए अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी पैदा कर रहा है.'

उन्होंने कहा कि उच्च वायु प्रदूषण हृदय और सांस की बीमारी को बढ़ा सकता है. डॉ लेले ने कहा, 'प्रदूषित हवा के लगातार संपर्क में आने से फेफड़ों की क्षमता कम हो सकती है और यह अस्थमा और ब्रोंकाइटिस को बढ़ावा देती है.

वहीं, डब्ल्यूएचओ के अनुसार वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से 70 लाख लोगों की समय से पहले मौत होने का अनुमान है और इसके परिणामस्वरूप हर साल लाखों लोगों को नुक्सान होता है. इससे बच्चों में फेफड़ों की वृद्धि और कार्य में कमी, श्वसन संक्रमण और बढ़े हुए अस्थमा जैसे रोग हो सकते हैं.

वायु प्रदूषण के कारण वयस्कों में इस्केमिक हृदय रोग और स्ट्रोक बाहरी समय से पहले मौत के सबसे आम कारण हैं.

डब्ल्यूएचओ के पिछले 2005 के वैश्विक अपडेट के बाद से इस बात के प्रमाण में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है कि वायु प्रदूषण जीवन के विभिन्न पहलुओं को कैसे प्रभावित करता है.

दिलचस्प बात यह है कि डब्ल्यूएचओ ने एक दिशानिर्देश में पांच प्रदूषकों के लिए वायु गुणवत्ता के स्तर की सिफारिश की, जहां साक्ष्य ने स्वास्थ्य पर सबसे अधिक प्रभाव डाला है. जब इन प्रदूषकों-पार्टिकुलेट मैटर (particulate matter), ओजोन (ozone), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (nitrogen dioxide ), सल्फर डाइऑक्साइड (sulfur dioxide ) और कार्बन मोनोऑक्साइड (carbon monoxide) पर कार्रवाई की जाती है, तो इसका अन्य हानिकारक प्रदूषकों पर भी प्रभाव पड़ता है.

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और अन्य संस्थानों के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार और पर्यावरण अनुसंधान पत्रिका में प्रकाशित भारत में 14 साल से अधिक उम्र के लोगों में होने वाली कुल मौतों का कम से कम 30 प्रतिशत जीवाश्म ईंधन से वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.

सरकारी आंकड़ों में कहा गया है कि 18 शहरों के साथ महाराष्ट्र सबसे अधिक प्रदूषित शहरों वाले राज्यों की सूची में सबसे ऊपर है, इसके बाद उत्तर प्रदेश में 16 शहर और आंध्र प्रदेश में 13 शहर हैं। महाराष्ट्र के शहर इइके चंद्रपुर, औरंगाबाद, पुणे, ठाणे मुंबई सहित अन्य सबसे अधिक प्रदूषक हैं.

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उत्तर प्रदेश में आगरा, इलाहाबाद, अनपरा, बरेली जैसे शहर सबसे अधिक प्रदूषक हैं, इसके बाद आंध्र प्रदेश के शहर जैसे एलुरु, गुंटूर, विशाखापत्तनम जैसे अन्य शहर हैं.

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि विभिन्न मापदंडों की जटिलता और अलग-अलग शहरों की वायु गुणवत्ता पर उनके प्रभाव के कारण वायु गुणवत्ता के आधार पर शहरों की रैंकिंग नहीं की जाती है.

अधिकारी ने कहा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ( central pollution control board) ने 124 गैर-प्राप्ति शहरों (एनएसी) की पहचान की है, जो लगातार पांच वर्षों के लिए किसी भी अधिसूचित मानकों के संबंध में वार्षिक राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों से अधिक हैं.

केंद्र सरकार ने 2024 तक पार्टिकुलेट मैटर की सांद्रता में 20 प्रतिशत से 30 प्रतिशत की कमी प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ पूरे भारत में वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए एक दीर्घकालिक, समयबद्ध राष्ट्रीय स्तर की रणनीति के रूप में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) शुरू किया है.

इस मुद्दे प्रसिद्ध पर्यावरणविद् अनिल सूद ने कहा कि हवा विभिन्न कारकों से प्रदूषित होती है.

उन्होंने इस बात से इंकार किया कि दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में वायु प्रदूषण का एकमात्र प्रमुख कारण पराली जलाना है. प्रदूषण केवल पराली जलाने से नहीं होता है.

इस साल किए गए तीन अध्ययनों में कहा गया है कि हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और यूपी जैसे राज्यों में पराली जलाने से रोजाना 30 लाख गुना CO2 पैदा होती है.

सूद ने कहा अध्ययनों में कहा गया है कि कोयला आधारित बिजली संयंत्र भी विशाल CO2 का छोड़रहे हैं जिसका आकलन नहीं किया गया है.

सूद ने कहा, 'डाइजेल लोकोमोटिव के साथ रेलवे ने भी स्थिति का आकलन करने के लिए कोई मानदंड नहीं बनाया है.

उन्होंने सुझाव दिया कि केंद्र और राज्यों की सरकारों को एक साथ आना चाहिए और वायु प्रदूषण के ज्वलंत मुद्दे के समाधान के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए.

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