मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि एक तलाकशुदा महिला (पत्नी) जो काम करती है उसे भी गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है. उच्च न्यायालय ने कहा कि तलाकशुदा महिला के नौकरी करने पर भी उसके गुजारा भत्ता के दावे से इनकार नहीं किया जा सकता है.
पेश मामले में कोल्हापुर के याचिकाकर्ता की शादी करीब 13 साल पहले हुई थी और उनका एक बेटा है. उनके तलाक का मामला मुंबई हाई कोर्ट में दायर किया गया था. पत्नी ने पति और उसके परिवार के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत थाने में शिकायत दर्ज कराई थी. तलाकशुदा पत्नी के साथ उसका एक 10 साल का बेटा रहता है. उसने बेटे और खुद के लिए गुजारा भत्ता मांगा था.
कोल्हापुर सत्र न्यायालय ने पति को महिला और बच्चे को पांच हजार रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था. सेशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ पति ने मुंबई हाई कोर्ट में याचिका दायर की. उसने कोर्ट में तर्क दिया कि पत्नी काम करती है और रोजाना करीब डेढ़ सौ रुपये कमाती है. इसलिए उसे अलग से गुजारा भत्ता देने की जरूरत नहीं है. उसने जोर देकर कहा कि उसकी पत्नी जीविकोपार्जन कर रही है और उसे अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने की जरूरत नहीं है.
जस्टिस एन जे जमादार ने इस तर्क का खंडन किया. इस जोड़े की शादी मई 2005 में हुई थी. 2012 में उनका एक बेटा हुआ था. तब पत्नी ने याचिकाकर्ता और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज कराई थी. जुलाई 2015 में मजिस्ट्रेट ने बच्चे को हर्जाने में 2,000 रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया. वर्ष 2021 में सत्र न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा. उसने पति को उसे और उसके बच्चे के रखरखाव खर्च के रूप में 5,000 रुपये प्रति माह का भुगतान करने का भी आदेश दिया.
इसके खिलाफ पति ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उसने दलील दी कि उसकी पत्नी चांदी के बर्तन की दुकान में काम करती है. इसके अलावा मजिस्ट्रेट के सामने रिवर्स जांच में उसने कहा था कि वह एक दिन में 100 रुपये से 150 रुपये कमा रही थी. याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि उसकी तलाकशुदा पत्नी अपनी देखभाल करने में सक्षम है और सत्र न्यायालय ने गलत तरीके से रखरखाव खर्च का आदेश दिया.
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हाईकोर्ट ने कहा कि आज की बदलती जीवनशैली में महिलाओं को काम करना पड़ता है, जो आज की स्थिति की जरूरत है. भले ही वह 150 रुपये प्रति दिन कमा रही हो, अगर पत्नी कमाने में सक्षम है तो भी पति के लिए उसकी देखभाल करना कानूनी प्रावधान है. अदालत ने फैसला सुनाया कि कमाई करने वाली पत्नी के कमाई के अधिकार को उसकी आय से बाधित नहीं किया जा सकता है. साथ ही पति की याचिका खारिज करते हुए सत्र न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा है.