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लुप्त हो रहीं हैं एम्परर पेंगुइन की 98 फीसदी बस्तियां

ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने के कारण अंटार्कटिका में बर्फ पिघलने का सिलसिला इसी तरह चलता रहा तो इस सदी के आखिर तक एम्परर पेंगुइन की 98 फीसदी बस्तियां लुप्त हो जाएंगी. ये खुलासा हाल ही में किए गए शोध में किया गया है. पढ़िए पूरी रिपोर्ट..

एम्परर पेंगुइन
एम्परर पेंगुइन
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Published : Aug 8, 2021, 5:07 PM IST

हैदराबाद : ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने के कारण अंटार्कटिका में बर्फ पिघलने का सिलसिला लगातार चल रहा है, इससे बर्फ में रहने वाली एम्परर पेंगुइन की बस्तियों के नष्ट होने का खतरा पैदा हो गया है. इतना ही नहीं हाल ही में हुए शोध में ये खुलासा हुआ है कि जलवायु परिवर्तन से एम्परर पेंगुइन के समुद्री बर्फ में बसी बस्तियों को खतरा है. वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अगर अगर ऐसा ही चलता रहा तो 2100 तक एम्परर पेंगुइन की 98 फीसदी बस्तियां लुप्‍त होने की कगार पर पहुंच जाएंगी.

2050 तक एम्परर पेंगुइन की 70 फीसदी बस्तियों के तबाह होने का खतरा

बता दें अंटार्कटिका में दुनिया की 99 फीसदी बर्फ है. यहां साल में बारह महीने बर्फ रहती है जहा समुद्री मछलियां, पेंग्विन, सील और पोलर बियर जैसे जानवर रह सकते हैं. वहीं शोध में ये दावा किया गया कि है अगर कार्बन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन की वर्तमान दरों में कोई बदलाव नहीं किया जाता है तो 2050 तक बर्फ में रहने वाली एम्‍परर पेंगुइन के समुद्री बर्फ की बस्तियों के लगभग 70 फीसदी बस्तियां नष्ट हो सकती हैं.

इनके बारे में  ग्राफ से जानिए.
इनके बारे में ग्राफ से जानिए.

2016 में समुद्री बर्फ कम होने के कारण प्रजनन हुआ था प्रभावित

वुड्स होल ओशनोग्राफिक इंस्टीट्यूशन में इकोलॉजिस्ट स्टेफ़नी जेनोवियर ने कहा, 'एम्‍परर पेंगुइन का जीवन चक्र स्थिर समुद्री बर्फ से जुड़ा होता है, जिसे उन्हें प्रजनन, खिलाने और पिघलाने की आवश्यकता होती है.' नए अध्ययन में ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम में उतार-चढ़ाव की बढ़ती संभावना को देखा और यह नोट किया गया कि 2016 में समुद्री बर्फ के बेहद कम हो जाने के कारण अंटार्कटिका के हैली बे में एक पेंगुइन बस्‍ती की बड़े पैमाने पर प्रजनन असफल रहा.

लगभग 10,000 बच्चे पक्षी डूब गए

विशेषज्ञ ने बताया कि 2014 में नन्हे पेंग्विनों के पानी रोकने वाले वयस्क पंख आने से पहले ही मौसमी समुद्री बर्फ टूट गई जिससे लगभग 10,000 बच्चे पक्षी डूब गए. इसके बाद बस्ती इस झटके से उबर नहीं पाई. बता दें कि एम्‍परर पेंगुइन सर्दियों के दौरान विशेष रूप से अंटार्कटिका में प्रजनन करते हैं. लेकिन वे पर्याप्त समुद्री बर्फ के बिना जीवित नहीं रह सकते.

बर्फ पिघलने के खतरा बढ़ा.
बर्फ पिघलने के खतरा बढ़ा.

जलवायु संकट से बुरी तरह प्रभावित हैं पेंगुइन

सेंटर फॉर बायोलॉजिकल डायवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम निदेशक सारा उहलेमैन ने कहा, 'ये पेंगुइन जलवायु संकट से बुरी तरह प्रभावित हैं और अमेरिकी सरकार अंततः उस खतरे को पहचान रही है.' अमेरिकी सरकार ने पहले ध्रुवीय भालू सहित देश के बाहर की प्रजातियों को खतरे के रूप में सूचीबद्ध किया है, जो आर्कटिक क्षेत्रों में रहता है और जलवायु परिवर्तन और समुद्री बर्फ के नुकसान से भी प्रभावित है.

दुनिया भर में 650,000 हैं एम्‍परर पेंगुइन

दुनिया का सबसे बड़ी संख्‍या में इन पेंगुइन की है. वर्तमान समय में एम्मरर पेंगुलन की लगभग 650,000 कुल संख्या है. लेकिन तेज धूप पहुंचने से बर्फ के पिघलने से इनकी बस्तियां तबाह हो जाएंगी. विशेषज्ञों के अनुसार पक्षी को सूचीबद्ध करना उन्‍हें सुरक्षा प्रदान करता है जैसे कि व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए उन्हें आयात करने से रोकना. वर्तमान में अंटार्कटिका में काम कर रहे अमेरिकी समुद्री मत्स्य पालन द्वारा पेंगुइन पर संभावित प्रभावों का भी मूल्यांकन किया जाना चाहिए. जलवायु परिवर्तन, इसके लिए एक प्राथमिक चुनौती है जो दुनिया भर में विभिन्न प्रजातियों को प्रभावित करती है.

हैदराबाद : ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने के कारण अंटार्कटिका में बर्फ पिघलने का सिलसिला लगातार चल रहा है, इससे बर्फ में रहने वाली एम्परर पेंगुइन की बस्तियों के नष्ट होने का खतरा पैदा हो गया है. इतना ही नहीं हाल ही में हुए शोध में ये खुलासा हुआ है कि जलवायु परिवर्तन से एम्परर पेंगुइन के समुद्री बर्फ में बसी बस्तियों को खतरा है. वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अगर अगर ऐसा ही चलता रहा तो 2100 तक एम्परर पेंगुइन की 98 फीसदी बस्तियां लुप्‍त होने की कगार पर पहुंच जाएंगी.

2050 तक एम्परर पेंगुइन की 70 फीसदी बस्तियों के तबाह होने का खतरा

बता दें अंटार्कटिका में दुनिया की 99 फीसदी बर्फ है. यहां साल में बारह महीने बर्फ रहती है जहा समुद्री मछलियां, पेंग्विन, सील और पोलर बियर जैसे जानवर रह सकते हैं. वहीं शोध में ये दावा किया गया कि है अगर कार्बन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन की वर्तमान दरों में कोई बदलाव नहीं किया जाता है तो 2050 तक बर्फ में रहने वाली एम्‍परर पेंगुइन के समुद्री बर्फ की बस्तियों के लगभग 70 फीसदी बस्तियां नष्ट हो सकती हैं.

इनके बारे में  ग्राफ से जानिए.
इनके बारे में ग्राफ से जानिए.

2016 में समुद्री बर्फ कम होने के कारण प्रजनन हुआ था प्रभावित

वुड्स होल ओशनोग्राफिक इंस्टीट्यूशन में इकोलॉजिस्ट स्टेफ़नी जेनोवियर ने कहा, 'एम्‍परर पेंगुइन का जीवन चक्र स्थिर समुद्री बर्फ से जुड़ा होता है, जिसे उन्हें प्रजनन, खिलाने और पिघलाने की आवश्यकता होती है.' नए अध्ययन में ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम में उतार-चढ़ाव की बढ़ती संभावना को देखा और यह नोट किया गया कि 2016 में समुद्री बर्फ के बेहद कम हो जाने के कारण अंटार्कटिका के हैली बे में एक पेंगुइन बस्‍ती की बड़े पैमाने पर प्रजनन असफल रहा.

लगभग 10,000 बच्चे पक्षी डूब गए

विशेषज्ञ ने बताया कि 2014 में नन्हे पेंग्विनों के पानी रोकने वाले वयस्क पंख आने से पहले ही मौसमी समुद्री बर्फ टूट गई जिससे लगभग 10,000 बच्चे पक्षी डूब गए. इसके बाद बस्ती इस झटके से उबर नहीं पाई. बता दें कि एम्‍परर पेंगुइन सर्दियों के दौरान विशेष रूप से अंटार्कटिका में प्रजनन करते हैं. लेकिन वे पर्याप्त समुद्री बर्फ के बिना जीवित नहीं रह सकते.

बर्फ पिघलने के खतरा बढ़ा.
बर्फ पिघलने के खतरा बढ़ा.

जलवायु संकट से बुरी तरह प्रभावित हैं पेंगुइन

सेंटर फॉर बायोलॉजिकल डायवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम निदेशक सारा उहलेमैन ने कहा, 'ये पेंगुइन जलवायु संकट से बुरी तरह प्रभावित हैं और अमेरिकी सरकार अंततः उस खतरे को पहचान रही है.' अमेरिकी सरकार ने पहले ध्रुवीय भालू सहित देश के बाहर की प्रजातियों को खतरे के रूप में सूचीबद्ध किया है, जो आर्कटिक क्षेत्रों में रहता है और जलवायु परिवर्तन और समुद्री बर्फ के नुकसान से भी प्रभावित है.

दुनिया भर में 650,000 हैं एम्‍परर पेंगुइन

दुनिया का सबसे बड़ी संख्‍या में इन पेंगुइन की है. वर्तमान समय में एम्मरर पेंगुलन की लगभग 650,000 कुल संख्या है. लेकिन तेज धूप पहुंचने से बर्फ के पिघलने से इनकी बस्तियां तबाह हो जाएंगी. विशेषज्ञों के अनुसार पक्षी को सूचीबद्ध करना उन्‍हें सुरक्षा प्रदान करता है जैसे कि व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए उन्हें आयात करने से रोकना. वर्तमान में अंटार्कटिका में काम कर रहे अमेरिकी समुद्री मत्स्य पालन द्वारा पेंगुइन पर संभावित प्रभावों का भी मूल्यांकन किया जाना चाहिए. जलवायु परिवर्तन, इसके लिए एक प्राथमिक चुनौती है जो दुनिया भर में विभिन्न प्रजातियों को प्रभावित करती है.

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