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'नर्क' से हैं इस गांव के हालात, गंदे पानी से ग्रामीण बुझा रहे प्यास

बाड़नपाल गांव में रहने वाले लोग आज भी लोग पानी के लिए तरस रहे है. यहां के लोग नाले का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं.

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Published : Oct 23, 2019, 8:14 AM IST

Updated : Oct 23, 2019, 2:11 PM IST

नाले का गंदा पानी पीने को मजबूर है ग्रामीण

सुकमा: सदियां गुजर गईं, बावजूद इसके भी गांव के सूरत-ए-हाल आज जस के तस बने हैं. गांव के लोग आज भी नदी और नाले का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं. हम बात कर रहे हैं, चियुरवाड़ा ग्राम पंचायत के बाड़नपाल गांव की, जहां ग्रामीण आज भी नदी का मटमैला पानी पीने को मजबूर हैं. ग्रामीणों को शुद्ध पानी मुहैया कराने की दिशा में प्रशासन ने कुछ भी पहल नहीं की है और ना ही जनप्रतिनिधियों ने कोई सकारात्मक कदम उठाया है. ग्रामीण अभी भी एक मसीहे के इंतजार में है जो आएगा और पेयजल कि समस्या को दूर करेगा.

पानी के लिए नदी-नालों पर आश्रित है बाड़नपाल के ग्रामीण

सुकमा जिले के ग्रामीण इलाकों में आज भी लोग पानी के लिए तरस रहे हैं. कई गांव के लोग नदी और नाले का पानी पीने को मजबूर हैं. पंचायत के ग्रामीण पेयजल के लिए नदी किनारे बने छोटे-छोटे जल स्रोतों पर निर्भर हैं. यहां गर्मी से ज्यादा परेशानी बरसात में होती है, जब नदी का यह जल स्त्रोत बाढ़ के पानी में डूब जाता है. तब लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. पिछले कई साल से यह समस्या बनी हुई है, लेकिन इस समस्या के निराकरण के लिए आज तक कोई सक्षम पहल नहीं की गई है, जिससे प्रभावित क्षेत्र के लोग व्यवस्था पर सवाल भी खड़े करते हैं.

गंदा पानी पी रहे ग्रामीण
बाड़नपाल गांव का नयापारा भीमसेन नदी के दूसरे पार पर बसा है. यहां करीब 30 से अधिक परिवार रहते हैं. यहां रहने वाले आदिवासी ग्रामीण गांव के करीब बहने वाली नदी का पानी पी रहे हैं. नदी किनारे बने जल स्त्रोतों से गिलास या लोटा से पानी निकालकर बड़े बर्तनों में भरते हैं. इन जल स्त्रोतों का पानी गंदा ना हो जाए, इसलिए यहां सबसे पहले पानी लेने की होड़ लगी रहती हैं.

हैंडपंप नहीं होने से पीते हैं गंदा पानी
गांव वाले बताते हैं कि गांव में एक भी हैंडपंप नहीं है. गर्मी और बारिश में पानी की समस्या विकराल हो जाती है. बारिश में जहां बाढ़ आ जाने से छोटे-छोटे जल स्त्रोत डूब जाते हैं. ऐसे में उन्हें बाढ़ का गंदा पानी ही पीना पड़ता है. कई साल से यहां पानी की समस्या बनी हुई है. शासन-प्रशासन के जिम्मेदारों ने भी कभी गांव तक पहुंचने के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की है.

बरसात में पहुंच विहीन हो जाती है बस्ती
बाड़नपाल गांव का नयापारा बारिश के दिनों में पहुंच विहीन हो जाता है. एक तरफ जंगल तो दूसरी ओर नदी है. नदी पर पुल नहीं है, ऐसे में जब नदी में बाढ़ आती है, तो यहां के लोग बाहर नहीं निकल पाते हैं और अगर कोई बीमार पड़ गया तो एंबुलेंस तो दूर बाइक से भी पहुंचना दूभर हो जाता है. यहां के लोगों की जिंदगी भगवान भरोसे रहती है.

गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाने में होती है परेशानी
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता चैती मरकाम ने बताया कि 'गांव से करीब 6 किलोमीटर दूर सौतनार गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. नदी के कारण मरीजों को अस्पताल ले जाने में परेशानी होती है. खासकर गर्भवती महिलाओं को ले जाने में परेशानी आती है'.

गांव की समस्या को लेकर कोई गंभीर नहीं
गांववाले बताते हैं कि 'गांव की समस्या को लेकर प्रशासन गंभीर नहीं है. आज तक इस इलाके में न तो जिम्मेदार पहुंचे है और ना ही निर्वाचित जनप्रतिनिधि. पंचायत सचिव भी कभी-कभार ही गांव में झांकने आते हैं. 15 साल तक सत्ता में रही बीजेपी ने जिले के अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचाने का दावा किया था, लेकिन हकीकत में यहां विकास तो दूर उसकी किरणें भी नहीं पहुंच पाई हैं. ग्रामीणों को अब प्रदेश की नई सरकार से काफी उम्मीदें हैं उन्हें लगता है कि गांव में पहुंच मार्ग की सुविधा मीले न मिले, लेकिन कम से कम पानी की समस्या दूर हो जाएगी.

सुकमा: सदियां गुजर गईं, बावजूद इसके भी गांव के सूरत-ए-हाल आज जस के तस बने हैं. गांव के लोग आज भी नदी और नाले का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं. हम बात कर रहे हैं, चियुरवाड़ा ग्राम पंचायत के बाड़नपाल गांव की, जहां ग्रामीण आज भी नदी का मटमैला पानी पीने को मजबूर हैं. ग्रामीणों को शुद्ध पानी मुहैया कराने की दिशा में प्रशासन ने कुछ भी पहल नहीं की है और ना ही जनप्रतिनिधियों ने कोई सकारात्मक कदम उठाया है. ग्रामीण अभी भी एक मसीहे के इंतजार में है जो आएगा और पेयजल कि समस्या को दूर करेगा.

पानी के लिए नदी-नालों पर आश्रित है बाड़नपाल के ग्रामीण

सुकमा जिले के ग्रामीण इलाकों में आज भी लोग पानी के लिए तरस रहे हैं. कई गांव के लोग नदी और नाले का पानी पीने को मजबूर हैं. पंचायत के ग्रामीण पेयजल के लिए नदी किनारे बने छोटे-छोटे जल स्रोतों पर निर्भर हैं. यहां गर्मी से ज्यादा परेशानी बरसात में होती है, जब नदी का यह जल स्त्रोत बाढ़ के पानी में डूब जाता है. तब लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. पिछले कई साल से यह समस्या बनी हुई है, लेकिन इस समस्या के निराकरण के लिए आज तक कोई सक्षम पहल नहीं की गई है, जिससे प्रभावित क्षेत्र के लोग व्यवस्था पर सवाल भी खड़े करते हैं.

गंदा पानी पी रहे ग्रामीण
बाड़नपाल गांव का नयापारा भीमसेन नदी के दूसरे पार पर बसा है. यहां करीब 30 से अधिक परिवार रहते हैं. यहां रहने वाले आदिवासी ग्रामीण गांव के करीब बहने वाली नदी का पानी पी रहे हैं. नदी किनारे बने जल स्त्रोतों से गिलास या लोटा से पानी निकालकर बड़े बर्तनों में भरते हैं. इन जल स्त्रोतों का पानी गंदा ना हो जाए, इसलिए यहां सबसे पहले पानी लेने की होड़ लगी रहती हैं.

हैंडपंप नहीं होने से पीते हैं गंदा पानी
गांव वाले बताते हैं कि गांव में एक भी हैंडपंप नहीं है. गर्मी और बारिश में पानी की समस्या विकराल हो जाती है. बारिश में जहां बाढ़ आ जाने से छोटे-छोटे जल स्त्रोत डूब जाते हैं. ऐसे में उन्हें बाढ़ का गंदा पानी ही पीना पड़ता है. कई साल से यहां पानी की समस्या बनी हुई है. शासन-प्रशासन के जिम्मेदारों ने भी कभी गांव तक पहुंचने के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की है.

बरसात में पहुंच विहीन हो जाती है बस्ती
बाड़नपाल गांव का नयापारा बारिश के दिनों में पहुंच विहीन हो जाता है. एक तरफ जंगल तो दूसरी ओर नदी है. नदी पर पुल नहीं है, ऐसे में जब नदी में बाढ़ आती है, तो यहां के लोग बाहर नहीं निकल पाते हैं और अगर कोई बीमार पड़ गया तो एंबुलेंस तो दूर बाइक से भी पहुंचना दूभर हो जाता है. यहां के लोगों की जिंदगी भगवान भरोसे रहती है.

गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाने में होती है परेशानी
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता चैती मरकाम ने बताया कि 'गांव से करीब 6 किलोमीटर दूर सौतनार गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. नदी के कारण मरीजों को अस्पताल ले जाने में परेशानी होती है. खासकर गर्भवती महिलाओं को ले जाने में परेशानी आती है'.

गांव की समस्या को लेकर कोई गंभीर नहीं
गांववाले बताते हैं कि 'गांव की समस्या को लेकर प्रशासन गंभीर नहीं है. आज तक इस इलाके में न तो जिम्मेदार पहुंचे है और ना ही निर्वाचित जनप्रतिनिधि. पंचायत सचिव भी कभी-कभार ही गांव में झांकने आते हैं. 15 साल तक सत्ता में रही बीजेपी ने जिले के अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचाने का दावा किया था, लेकिन हकीकत में यहां विकास तो दूर उसकी किरणें भी नहीं पहुंच पाई हैं. ग्रामीणों को अब प्रदेश की नई सरकार से काफी उम्मीदें हैं उन्हें लगता है कि गांव में पहुंच मार्ग की सुविधा मीले न मिले, लेकिन कम से कम पानी की समस्या दूर हो जाएगी.

Intro:बाड़नपाल के ग्रामीण पानी के लिए नदी-नालों पर आश्रित

सुकमा. कई सदियां गुजर गई इसके बावजूद गांव के सूरत-ए-हाल आज भी जस की तस है. आज भी गांव के लोग नदी-नालों का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं. यह कोई कहानी नहीं बल्कि हकीकत है.

छिंदगढ़ विकासखंड के चियुरवाड़ा ग्राम पंचायत के बाड़ल पाल में जहां ग्रामीण आज भी नदी का मटमैला पानी पी रहे हैं. ग्रामीणों को शुद्ध पानी मुहैया कराने की दिशा में न प्रशासन ने पहल की है और ना ही जनप्रतिनिधियों ने कोई सकारात्मक कदम उठाएं. ग्रामीणों को अब भी इंतजार है किसी मसीहा का जो पेयजल समस्या को दूर कर इनको शुद्ध पेयजल मुहैया करा सके.

गर्मी से ज्यादा बारिश में होती है परेशानी...
सुकमा जिले के ग्रामीण इलाकों में आज भी पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं लोगों को नहीं मिल पा रही है. कई गांव में लोग नदी नालों का पानी पीने को मजबूर हैं. पंचायत के ग्रामीण पेयजल के लिए नदी किनारे बने छोटे-छोटे जल स्रोतों पर निर्भर है. यह गर्मी से ज्यादा परेशानी बरसात में होती है जब नदी के यह जल स्त्रोत बाढ़ में डूब जाते हैं. तब लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. वर्षों से यहां समस्या बनी हुई है लेकिन इस समस्या के निराकरण के लिए आज तक कोई सक्षम पहल नहीं की गई. जिससे प्रभावित क्षेत्र के लोग व्यवस्था पर सवाल भी खड़े करते हैं.


Body:बाड़नपाल नयापारा में 30 से ज्यादा घर...
चियुरवाडा पंचायत के बाड़न पाल का नयापारा भीमसेन नदी के उस पार बसा है. यहां करीब 30 से अधिक परिवार निवासरत है. यहां रहने वाले आदिवासी ग्रामीण गांव के करीब बहने वाली नदी का पानी पी रहे हैं. नदी किनारे बने जल स्त्रोतों से गिलास या लोटा से पानी निकालकर बड़े बर्तनों में पानी भरते हैं. इन जल स्त्रोतों का पानी गंदा ना हो जाए इसलिए यहां सबसे पहले पानी लेने की होड़ बनी रहती है.

गांव में हैंडपंप नहीं इसलिए पीते हैं नदी का गंदा पानी...
गांव वाले बताते हैं कि गांव में एक भी हैंडपंप नहीं है गर्मी और बारिश में पानी की समस्या विकराल हो जाती है. बारिश में जहां बाढ़ आ जाने से छोटे-छोटे जल स्त्रोत डूब जाते हैं. ऐसे में उन्हें बाढ़ का गंदा पानी ही पीना पड़ता है. कई वर्षों से यहां पानी की समस्या है गांव के नजदीक बहने वाली नदी के कारण पहुंच मार्ग भी नहीं है. शासन-प्रशासन के जिम्मेदारों ने भी कभी गांव तक पहुंचने के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की है.


Conclusion:बारिश में पहुंचवीहीन हो जाती है बस्ती...
बाड़न पाल गांव का नया पारा बारिश के दिनों में पहुंच विहीन हो जाता है. एक तरफ जंगल तो दूसरी तरफ नदी है. नदी में पुल नहीं है ऐसे में यहां से लोग नदी से बाढ़ आने पर बाहर नहीं निकल पाते हैं. और अगर कोई बीमार पड़ गया तो एंबुलेंस की बात तो दूर मोटरसाइकिल से पहुंचना दूभर हो जाता है. यहां के लोगों की जिंदगी भगवान भरोसे रहती है. आंगनबाड़ी कार्यकर्ता चैती मरकाम ने बताया कि गांव से करीब 6 किलोमीटर दूर सौतनार गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. नदी के कारण मरीजों को ले जाने में परेशानी होती है. खासकर गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाने में परेशानी होती है.

न प्रशासन के जिम्मेदार पहुंचते हैं और ना ही जनप्रतिनिधि...
गांव वाले बताते हैं कि गांव की समस्या को लेकर कोई भी गंभीर नहीं है. आज तक इस इलाके में न प्रशासन के जिम्मेदार पहुंचे और ना ही निर्वाचित जनप्रतिनिधि. पंचायत सचिव भी कभी-कभार ही गांव में झांकने आता है. 15 साल की भाजपा सरकार ने जिले के अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचाने का दावा किया था. लेकिन हकीकत में यहां विकास तो दूर उसकी किरणें भी नहीं पहुंच पाई हैं. ग्रामीणों को अब प्रदेश की नई सरकार से काफी उम्मीदें हैं उन्हें लगता है कि गांव में पहुंच मार्ग की सुविधा मीले न मिले लेकिन कम से कम पानी की समस्या दूर हो जाएगी।

बाइट: 01 उमेश नाग(लड़का)
बाइट 02: सुकड़ा मड़कम
बाइट 03: चैती मड़कम( आगनबाड़ी कार्यकर्ता)
Last Updated : Oct 23, 2019, 2:11 PM IST
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