रायपुर: रायपुर शहर को तालाबों की नगरी के नाम से जाना जाता है. एक समय यहां 300 से ज्यादा तालाब हुआ करते थे. बढ़ते अतिक्रमण और विकास ने इन तालाबों के ऊपर बस्ती बना दी. अब यहां कुछ ही तलाब बचे हुए हैं, जो अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं. रायपुर नगर निगम ने तालाबों को संजोने का कार्य शुरू किया. जिसका उदाहरण बूढ़ा तालाब है, जिसका कायाकल्प हो चुका है. लेकिन शहर का प्राचीन महाराजबंद तालाब को जलकुंभियों ने जकड़ लिया है. तालाब में पानी नजर नहीं आ रहा है, बल्कि मैदान दिख रहा है.
ETV भारत की खबर का असर, बूढ़ा तालाब का कायाकल्प शुरू
जलकुंभी से पटा तालाब
ETV भारत की टीम ने महाराजबंद तालाब का जायजा लिया. तालाब के चारों ओर जलकुंभी फैली हुई है. तालाब का पानी नजर नहीं आ रहा है. ऐसे में आसपास के लोगों को परेशानियां हो रही है. नगर निगम की उदासीनता के कारण महाराज बंद तालाब अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है. तालाब पूरी तरह से जलकुंभियों से पटा हुआ है. तालाब में पानी की लहरें एक कोने से दूसरे कोने हिलोरें लेती थीं, लेकिन अब पानी का नामों निशान नहीं दिखता. तालाब कम मैदान ज्यादा दिख रहा है.
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निस्तारी की समस्या
स्थानीय लोगों ने बताया कि तालाब में सफाई नहीं होने से निस्तारी की समस्या उत्पन्न हो रही है. लोगों ने बताया कि तालाब एक बार ही साफ करवाया गया, लेकिन अच्छे से साफ-सफाई नहीं होने के कारण फिर से जलकुंभी उत्पन्न हो गई है. स्थानीय लोगों ने बताया कि तालाब के सौंदर्यीकरण के नाम पर जनता को ठगा गया है. तालाब के सौंदर्यीकरण के नाम पर सिर्फ लीपा-पोती की गई है.
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90 एकड़ का तालाब बचा आधा
तालाब का गहरीकरण और सही तरह से सफाई नहीं हो रही है. 90 एकड़ तालाब की बजाय सिर्फ आधा तालाब ही बचा है. आसपास जिन लोगों ने घर बनवा लिया है. वे भी तालाब में घरों की गंदगी और कचरा डालते हैं. स्थानीय लोगों की मांग है कि तालाब का जल्द से जल्द साफ सफाई हो. तालाब का गहरीकरण किया जाए.
सड़क बनाने से तालाब का हुआ छोटा
स्थानीय लोगों ने बताया कि तालाब का सौंदर्यीकरण के नाम पर तालाब का कुछ हिस्सा पाटकर सड़क का निर्माण कराया गया. सड़क तो बन गई, लेकिंन तालाब की ओर ध्यान नहीं दिया गया. तालाब का अस्तित्व आज संकट में है.
दूधाधारी मठ के सामने स्थित है तालाब
इतिहासकार रामेंद्रनाथ मिश्र ने बताया महाराजबंद तालाब प्रसिद्ध एतिहासिक मंदिर दूधाधारी मठ के सामने बना हुआ है. रायपुर के कलचुरी राजाओं के किले की सुरक्षा की दृष्टि से बनवाया गया था. बूढ़ा तालाब, महाराजबंद तालाब और कंकाली मंदिर तालाब की खाई पुराने किले की सुरक्षा के लिए उपयोग किए जाते थे. बिम्बा जी भोसले के समय दूधाधारी मंदिर का विकास हुआ और महाराजबंद तालाब का विकास हुआ, जो बड़े व्यापक क्षेत्र में फैला हुआ था.
तालाब में कमल की जगह जलकुंभी का जमावड़ा
रामेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि आज की स्थिति में बहुत बड़ा भूभाग अवैध कब्जे के परिधि में आ गया है. बहुत सारे मकान बन गए हैं. वर्तमान में जो तालाब बचे हुए हैं, वह एक समय में इतना सुंदर हुआ करता था. चारों ओर हरियाली थी और तालाब में कमल फूल और उसके स्वच्छ जल का उपयोग लोग किया करते थे.
कलचुरी काल में 300 तालाब थे
इतिहासकार मिश्र ने कहा कि आज के समय मे तालाब की स्थिति बेहद खराब है. रायपुर में कलचुरी काल में 300 तालाब हुआ करते थे. उन्होंने कहा कि इन ऐतिहासिक तालाबों की अगर हम रक्षा नहीं करेंगे, तो तालाब का अस्तित्व नहीं रहेगा.
तालाबों का सीमांकन जरूरी
इतिहासकार रामेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि शहर के प्राचीन तालाबों का सीमांकन किया जाना चाहिए. तालाबों के आसपास हुए अवैध कब्जों को हटाना चाहिए. हमारी धरोहर इन तालाबों को संजोकर रखना चाहिए, जिससे यह शहर और सुंदर बन सके.