कोरबा : केंद्र सरकार की एक विशेष योजना के तहत दलहन की खेती को बढ़ावा देने के लिए जिलों में प्रयास किए जा रहे हैं. दलहन की खेती में किसानों की स्थिति मजबूत करने के लिए उन्हें मसूर खेती से जोड़ा जा रहा. जिले में 367 एकड़ भूमि में प्रदर्शन खेती की जाएगी. इतनी ही संख्या में चयनित किसानों को मुफ्त बीज भी दिया गया है.
इन सुविधा के अधार पर किसानों का चयन : नवंबर माह से शुरू होने वाली खेती के लिए किसानों का चिन्हांकन किया गया है. कृषि भूमि में सिंचाई और फेंसिंग की सुविधा के अधार पर किसानों का चयन किया जा रहा है. इसके लिए दलदली क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई है. जिले में पोड़ी उपरोड़ा और पाली विकासखंड में ऐसी जमीन उपलब्ध है.
दलहन की खेती 20 फीसदी तक सीमित : दलहन उत्पादन के क्षेत्र में ज्यादातर किसान अभी पिछड़े हुए हैं. इस मामले में वह आत्मनिर्भर नहीं हैं. कोरबा में उड़द, अरहर, चना, मटर का उत्पादन धान की तुलना 20 में सिर्फ प्रतिशत किया जाता है. वहीं, मसूर उत्पादन केवल पांच प्रतिशत किसान करते हैं. जिले के ज्यादातर किसान धान की बोआई करते हैं. फसल कटाई के बाद अधिकांश खेत खाली पड़े रहते हैं. जहां सिंचाई की सुविधा है, वहां किसान गर्मी सीजन में भी धान की बोआई करते हैं, लेकिन धान के बजाए अन्य फसल की बोआई के लिए कृषि विभाग ने किसानों को मसूर की खेती से जोड़ने का फैसला किया है.
मसूर की खेती करने के लिए किसानों को प्रेरित किया जा रहा है. इस बार जिले में नवंबर माह से 367 एकड़ भूमि में प्रदर्शन खेती की जाएगी. काली मिट्टी, सिंचाई और फेंसिंग की सुविधा वाले किसानों का चिन्हांकन किया गया है. चयनित किसानों को नि:शुल्क बीज प्रदान करने के साथ खेती की तकनीकी जानकारी भी दी जाएगी. दलहन की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किया जा रहा है. : डीपीएस कंवर, सहायक संचालक, कृषि विभाग कोरबा
जिले को मिले हैं 30 क्विंटल मसूर के बीज : राज्य शासन ने जिला कृषि विभाग को 30 क्विंटल मसूर बीज उपलब्ध कराया है. मसूर की खेती के लिए काली मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है. जिला कृषि अधिकारी के मुताबिक, पोड़ी उपरोड़ा व पाली क्षेत्र की मिट्टी मसूर की खेती के अनुकूल है. वन क्षेत्र और ठंड का असर अधिक होने की वजह से बेहतर उत्पादन की संभावना है. धान के बाद मसूर बोआई से किसानों को फसल परिवर्तन का लाभ मिलेगा. किसानों को बीज वितरण के साथ फसल तैयार होने तक तकनीकी उपचार, भंडारण संरक्षण से लेकर मार्केटिंग की जानकारी भी दी जाएगी.
जिले में संचित रकबा बेहद कम : कम पानी और तीन से चार माह के भीतर तैयार होने वाला मसूर फसल अन्य दलहन उत्पाद की तुलना में कम लागत आती है. एक एकड़ भूमि के लिए आठ किलो बीज की आवश्यकता होती है. फसल तैयार करने में 15 हजार रुपये लागत आती है. प्रति एकड़ छह क्विंटल मसूर तैयार होता है, जिसका बाजार मूल्य 48 हजार है. लागत काटकर प्रति एकड़ 33 हजार रुपये लाभ किसानों को मिलता है.
सिंचाई का अभाव बनती है बाधा : फायदेमंद फसल होने के बाद भी किसान इस तरह की फसल नहीं ले पाते, जिसका एक कारण जिले में सिंचाई का अभाव है. जिले में रबी फसल के लिए कुल सिंचित क्षेत्रफल सिर्फ 12 फ़ीसदी है. ज्यादातर खेतों में सिंचाई के लिए पानी का इंतजाम नहीं है, जिसके चलते किसान इस तरह की फसल नहीं कर पाते. लेकिन अब सरकार की मदद से दलहन की फसल उगाने की नई शुरुआत हुई है.
20 नवंबर तक बढ़ाई गई है तिथि : केंद्र की राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) के अंतर्गत दलहन के बीज मिनीकिट का अतिरिक्त आवंटन, रबी 2024-25 के दौरान आम किसानों के साथ ही एफआरए (वन अधिकार अधिनियम) पट्टा धारकों को वितरण किया जायेगा. रबी सीजन 2024-25 के लिए एनएफएसएम के तहत दलहन (मसूर) के बीज मिनीकिट की आपूर्ति की तिथि को 20 नवंबर 2024 तक बढ़ाई गई है. इसके पीछे केंद्र सरकार के मंशा दलहन की खेती को बढ़ावा देना है.