रायपुर : राजधानी रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में आज से दो दिवसीय जनजातीय गौरव दिवस का भव्य आयोजन किया जा रहा है. इस समारोह में देश के विभिन्न राज्यों के साथ पूर्वोत्तर राज्यों के कलाकार भी अपनी संस्कृति की झलक दिखाएंगे.
अपनी संस्कृति के विविध रंग बिखेरेंगे कलाकार : आज और कल आयोजित इस कार्यक्रम में प्रस्तुति देने पूर्वोत्तर भारत के 5 राज्यों मेघालय, मिजोरम, असम, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के कलाकार रायपुर पहुंच चुके हैं. रायपुर रेलवे स्टेशन पर कलाकारों का पुष्पाहार और तिलक लगाकर स्वागत किया गया. पूर्वोत्तर राज्यों से आए ये कलाकार वांगला रुंगला, रेट किनॉन्ग, गेह पदम ए ना न्यी ई, सोलकिया जैसे लोक नृत्यों की प्रस्तुति से अपनी संस्कृति के विविध रंग बिखेरेंगे.
फसल कटाई के बाद करते हैं वांगला-रुंगला नृत्य : जनजातीय गौरव दिवस पर प्रस्तुति देने मेघालय से 20 कलाकारों की टीम रायपुर आई है. यह दल गारो जनजाति द्वारा फसल कटाई के बाद किया जाने वाला वांगला रुंगला लोक नृत्य प्रस्तुत करेगी. इन कलाकारों का दल मेघालय की राजधानी शिलांग से करीब 200 किलोमीटर दूर नॉर्थ कर्व हिल्स से आए हैं, जिनका नेतृत्व मानसेन मोमिन कर रहे हैं.
वांगला गारो जनजाति का लोकप्रिय त्योहार है. यह जनजाति कृषि अर्थव्यवस्था पर निर्भर है. फसल कटाई के बाद उर्वरता के देवता मिसी सालजोंग को धन्यवाद देने के लिए यह नृत्य करते हैं. वे फसल उपलब्ध कराने के लिए भगवान को धन्यवाद देते हैं. उनकी पूजा कर, नाच गाकर प्रार्थना करते हैं और नई फसल का भोग लगाते हैं. देवता मिसी सालजोंग को धन्यवाद देने से पहले किसी भी कृषि उत्पाद का उपयोग नहीं किया जाता है. : मानसेन मोमिन, कलाकार
महिला पुरुष मिलकर करते हैं 'वांगला रुंगला' नृत्य : वांगला रुंगला आदिवासी लोक नृत्य में नर्तकों का नेतृत्व करने वाले को ग्रिकगिपा या तोरेगिपा कहा जाता है. इसमें महिलाएं संगीत की धुन पर अपने हाथ हिलाती हैं, जबकि पुरुष अपने परंपरागत ढोल को बजाकर नृत्य करते हैं, जिसे दामा कहा जाता है. वांगला रुंगला आदिवासी लोक नृत्य में महिला और पुरुष दोनों भाग लेते हैं.
दुश्मनों पर जीत के जश्न का नृत्य है 'सोलकिया' : मिजोरम की राजधानी आईजोल से रायपुर पहुंचे लोक नृत्य के कलाकारों का दल यहां सोलकिया नृत्य की प्रस्तुति देगी. इस दल में 20 सदस्य शामिल हैं, जिनमें 11 पुरूष और नौ महिलाएं हैं. सोलकिया नृत्य खासतौर पर मिजोरम की मारा जनजाति करती है.‘सोलकिया’ का अर्थ दुश्मन के कटे हुए सिर से है. विजेता अपने दुश्मन का सिर ट्रॉफी के तौर पर घर लाते थे. तब दुश्मनों पर जीत का जश्न मनाने के लिए सोलकिया नृत्य किया जाता था. लेकिन अब यह सभी महत्वपूर्ण अवसरों पर मिजो समुदायों के लोग करते हैं.
मिजोरम के कलाकारों के लीडर जोथमजामा ने बताया कि सोलकिया नृत्य की शुरुआत पिवी और लाखेर समुदायों ने की थी. सोलकिया लोक नृत्य में गाया जाने वाला सुर मंत्रोच्चार के समान लगती है. ताल संगीत एक जोड़ी घडियों से निकाला जाता है, जो एक दूसरे से बड़े होते हैं. इन्हें डार्कहुआंग कहा जाता है. संगीत को और मजेदार बनाने के लिए झांझ भी बजाए जाते हैं. : जोथमजामा, लीडर, मिजोरम के कलाकार
जोथमजामा ने मारा जनजाति के बारे में बताया कि यह एक कुकी जनजाति है, जो मिजोरम की लुशाई पहाड़ियों और म्यांमार की चिन पहाड़ियों में रहती है. इन्हें लाखेर, शेंदु, मारिंग, ज़ु, त्लोसाई और खोंगज़ई नामों से भी जाना जाता है.