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विश्व पर्यावरण दिवसः ये है दुनिया का पहला धुआंरहित गांव, हर घर में जलता है सोलर चूल्हा

मध्यप्रदेश का बाचा गांव देश-दुनिया का पहला आदर्श गांव बन गया है, जहां हर घर में धुआंरहित रसोई मौजूद है और पर्यावरण के लिए कोई खतरा भी नहीं है. साथ ही इस गांव को साफ-सफाई, जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण के लिए भी जाना जाता है.

दुनिया का पहला धुआंरहित गांव बना बाचा
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Published : Jun 5, 2019, 7:28 PM IST

बैतूल। साधारण सा दिखने वाला बैतूल का बाचा गांव दुनिया के नक्शे पर अब चमक रहा है. आधुनिक गांवों की कतार में सबसे आगे खड़े इस गांव में चूल्हा तो जलता है, लेकिन धुआं नहीं उठता, यहां के लोगों को न घरेलू गैस की जरूरत पड़ती है, और न ही जंगल से लकड़ी काटने की. क्योंकि यहां हर घर में सोलर चूल्हा जलता है. महिलाएं भी खुश हैं कि अब न तो लकड़ी लाने के लिए जंगल जाना पड़ता है और न ही गैस या किरोसिन खत्म होने की चिंता सताती है.

दुनिया का पहला धुआंरहित गांव बना बाचा

बैतूल जिले का बाचा गांव विश्व का पहला गांव बन गया है, जहां हर घर में सौर ऊर्जा चलित चूल्हों पर खाना पकता है. ये पहल भारत भारती शिक्षा समिति के सौजन्य से की गई है, जिसमें आईआईटी मुंबई की मदद से खास तरह का चूल्हा बनाया गया है, जिस पर महिलाएं दोनों टाइम का खाना आदि बनाती हैं. एक घर में लगे इस सोलर पैनल का खर्च 80 हजार रुपए आया है, गांव के कुल 74 घरों में सोलर चूल्हे से अब खाना पकाया जा रहा है.

सितंबर 2017 में प्रोजेक्ट के तहत गांव में सौर ऊर्जा लगाने का काम शुरू हुआ था, जिसे हाल ही में पूरा कर लिया गया. इतना ही नहीं ये गांव साफ-सफाई, जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण में भी अलग मुकाम हासिल कर चुका है, जिसके लिए कई बार अवार्ड भी मिले हैं. सौर ऊर्जा का उपयोग कर पर्यावरण संरक्षण करने की इस गांव की पहल इस दिशा में मील का पत्थर साबित होगी.

दुनिया के पहले धुआंरहित आदर्श गांव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उन सपनों को उड़ान दिया है, जिसमें उन्होंने सौर ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग करने की बात कही थी, सरकार सोलर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी भी दे रही है, ताकि बिजली, रसोई गैस, डीजल-पेट्रोल की निर्भरता कम हो और सौर ऊर्जा के उपयोग से पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा.

बैतूल। साधारण सा दिखने वाला बैतूल का बाचा गांव दुनिया के नक्शे पर अब चमक रहा है. आधुनिक गांवों की कतार में सबसे आगे खड़े इस गांव में चूल्हा तो जलता है, लेकिन धुआं नहीं उठता, यहां के लोगों को न घरेलू गैस की जरूरत पड़ती है, और न ही जंगल से लकड़ी काटने की. क्योंकि यहां हर घर में सोलर चूल्हा जलता है. महिलाएं भी खुश हैं कि अब न तो लकड़ी लाने के लिए जंगल जाना पड़ता है और न ही गैस या किरोसिन खत्म होने की चिंता सताती है.

दुनिया का पहला धुआंरहित गांव बना बाचा

बैतूल जिले का बाचा गांव विश्व का पहला गांव बन गया है, जहां हर घर में सौर ऊर्जा चलित चूल्हों पर खाना पकता है. ये पहल भारत भारती शिक्षा समिति के सौजन्य से की गई है, जिसमें आईआईटी मुंबई की मदद से खास तरह का चूल्हा बनाया गया है, जिस पर महिलाएं दोनों टाइम का खाना आदि बनाती हैं. एक घर में लगे इस सोलर पैनल का खर्च 80 हजार रुपए आया है, गांव के कुल 74 घरों में सोलर चूल्हे से अब खाना पकाया जा रहा है.

सितंबर 2017 में प्रोजेक्ट के तहत गांव में सौर ऊर्जा लगाने का काम शुरू हुआ था, जिसे हाल ही में पूरा कर लिया गया. इतना ही नहीं ये गांव साफ-सफाई, जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण में भी अलग मुकाम हासिल कर चुका है, जिसके लिए कई बार अवार्ड भी मिले हैं. सौर ऊर्जा का उपयोग कर पर्यावरण संरक्षण करने की इस गांव की पहल इस दिशा में मील का पत्थर साबित होगी.

दुनिया के पहले धुआंरहित आदर्श गांव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उन सपनों को उड़ान दिया है, जिसमें उन्होंने सौर ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग करने की बात कही थी, सरकार सोलर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी भी दे रही है, ताकि बिजली, रसोई गैस, डीजल-पेट्रोल की निर्भरता कम हो और सौर ऊर्जा के उपयोग से पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा.

Intro:बैतूल ।।


बैतूल जिले का यह गांव देश ही नही विश्व का पहला गांव है जहा ना तो लकड़ी का चूल्हा जलता और ना ही गैस का । गांव के पूरे घरो में सौर चलित चूल्हों से खाना बनता है । यह दावा भारत भारती शिक्षा समिति ने किया है । देश मे कुछ जगह सौर प्लेट का उपयोग होता रहा है लेकिन पहली बार इस गांव के लिए आईआईटी मुम्बई की टीम ने विशेष प्रकार का चूल्हा तैयार किया है जिससे खाना पक रहा है । इस चूल्हे के कारण अब इस गांव के ग्रामीण चूल्हा जलाने के लिए पेड़ नही काटते है है ।


Body:यह है विश्व का पहला गांव बाचा जहा सौर चलित चूल्हों पर खाना पकता है । इस गांव गांव की महिलाएं अब लकड़ी लेने ना तो जंगल जाती और ना ही चूल्हा जलाने के लिए गैस और मिट्टी तेल का स्तेमाल करती है । बाचा गांव में यह पहल भारत भारती शिक्षा समिति के सौजन्य से की गई है जिसमे आईआईटी मुम्बई की मदद लेकर खास तरह का चूल्हा बनाया गया है जिसपर महिलाये दोनों टाइम का खाना सहित चाय नास्ता बनाती है । एक घर मे लगे इस सोलर पैनल का खर्च 80 हजार रुपए आया है जो कि भारत भारती शिक्षा समिति ने किया है । इस गांव के कुल 74 घरो में सोलर चूल्हे से आज खाना पकाया जा रहा है ।

भारत भारती शिक्षा समिति के मोहन नागर ने बताया कि केंद्र सरकार और ओएनजीसी की मदद से बाचा गांव में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए सौर चूल्हे लगाए गए है । आईआईटी मुम्बई के छात्रों ने सौर ऊर्जा चलित चूल्हे का मॉडल तैयार किया गया था । इसके बाद इस मॉडल को देश के बाचा के लिए चयन किया गया ।

सितंबर 2017 में प्रोजेक्ट के तहत गॉव में सौर ऊर्जा लगाने का काम किया गया । दिसंबर 2018 में सभी घरों में ऊर्जा प्लेट, बैटरी और चूल्हा लगाने का काम पूरा किया गया । बैटरी में इतनी बिजली रहती है जिससे तीन बार खाना बनाया जा सकता है । सोलर प्लेट से 800 वोल्ट बिजली बनती है इसमें लगी बैटरी से तीन यूनिट बिजली स्टोर रहती है और पांच सदस्यों का खाना बन जाता है ।

जब से यह चले इस गांव में लगे है तबसे महिलाओ का काम आसान हो गया है और वे बहुत खुश है । क्योकि पहले उन्हें जंगल जाकर लकड़ी लाना पड़ता था और उसके बाद खाना बनता था जिसमे धुवे से परेशानी होती थी जो अब दूर हो चुकी है ।


Conclusion:देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सौरी ऊर्जा का ज्यादा से ज्यादा फायदा लेने पर जोर दे रहे है । प्रधानमंत्री के इस सपने को कम से कम इस गांव ने पूरा करके तो दिखा ही दिया है और इस गांव ने देश ही नही विदेश में भी मिशाल कायम कर ली है ।

बाइट -- राधा बाई ( गृहणी )
बाइट -- अंगूरी धाकरे ( गृहणी )
बाइट -- अनिल उइके ( ग्रामीण )
बाइट -- मोहन नागर ( भारत भारती शिक्षा समिति )
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