राजनांदगांव: कहते हैं हजारों शब्दों से ज्यादा एक तस्वीर कह जाती है. तस्वीरों की एक और खास बात है कि वो वक्त को भी रोक सकती है. तस्वीरें हमारी जिंदगी के हर लम्हे को संजोकर रखती है. फोटोग्राफी एक ऐसा अविष्कार है, जिसमें हम अपने अच्छे-बुरे लम्हों को कैद कर सकते हैं. फोटोग्राफी न सिर्फ लम्हों को कैद करने का एहसास है, बल्कि ये एक पैशन है, जिसके लिए कुछ दीवाने किसी भी हद तक गुजर जाते हैं. आज विश्व फोटोग्राफी दिवस पर हम आपको राजनांदगांव के एक ऐसे ही फोटोग्राफर से मिला रहे हैं.
अशोक श्रीवास्तव ने 1995 में फोटोग्राफी शुरू की थी और तब से लेकर आज तक वे दिव्यांग, गरीब और लवारिस लाशों की फ्री में फोटों खींचते आ रहे हैं. अशोक बताते हैं कि गरीब बच्चों में फोटो खिंचवाने की ललक को देखते हुए उन्होंने गरीब और बेसहारा लोगों की मदद और निःशुल्क फोटोग्राफी करने का फैसला लिया था.
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अशोक बताते हैं कि वे फोटोग्राफी के क्षेत्र में तकरीबन 40 साल से ज्यादा का समय बिता चुके हैं. उन्होंने एक छोटे से स्टूडियो से फोटोग्राफर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की थी. वे बताते हैं कि 15 साल तक स्टूडियो में काम करने के दौरान वे अक्सर गरीब तबके के बच्चों को पैसे न होने के कारण स्टूडियो से मायूस होकर जाते देखा करते थे. इस बात की हमेशा उन्हें कसक रहती थी, इसलिए उन्होंने मन में ठान लिया था कि जब उनका खुद का स्टूडियो तैयार होगा, तो वह गरीब, बेसहारा और दिव्यांग लोगों की निःशुल्क फोटो खींचेंगे.
स्टूडियो खोलते ही शुरू की फोटोग्राफी
अपना स्टूडियो खोलते ही अशोक ने बेसहारा लोगों की मदद के लिए फ्री में फोटोग्राफी शुरू कर दी. अशोक बताते हैं कि वे आज भी स्टूडियो में बीपीएल कार्ड लेकर पहुंचने वाले हर व्यक्ति के पूरे परिवार की फोटो फ्री में खींचा करते हैं. वे कहते हैं कि इस काम से उन्हें बेहद सुकून मिलता है. उनका कहना है कि अपने बच्चों को भी वे इसी रास्ते पर चलने के लिए समझाएंगे.
लावारिस लाशों की फोटोग्राफी
अशोक ने बताया कि कई गुमशुदा लोगों की गुमनाम मौत हो जाती है. ऐसी स्थिति में पुलिस उनकी फोटो खींचकर आम लोगों तक इश्तिहार के जरिए पहुंचाती है. इसके लिए भी वे निःशुल्क कार्य करते हैं. वे बताते हैं कि तकरीबन 25 साल से लावारिस लाशों की वह फ्री फोटोग्राफी करते आ रहे हैं.
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परिवार की भी खुशी से सहमति
अशोक बताते हैं कि इस काम के लिए उनके परिवार की भी सहर्ष सहमति मिली है. इस काम के लिए पूरा घर उनकी सराहना भी करता है और उन्हें मोटिवेट भी करता है. परिवार के सहयोग और मदद से ही वे आज महंगाई के इस दौर में भी लगातार गरीब तबके के लोगों को निःशुल्क फोटो उपलब्ध करा रहे हैं.
राज्यपाल से हो चुके हैं सम्मानित
अपने इस नेक काम के लिए अशोक राज्यपाल से भी सम्मानित हो चुके हैं. बेसहारा, गरीब और दिव्यांग लोगों की मदद के लिए उन्हें सम्मानित किया जा चुका है. वहीं अलग-अलग कई सामाजिक संगठनों ने भी उन्हें इस काम के लिए सम्मानित किया है.
15 रुपए की कसक
अशोक बताते हैं कि 1993 से वे फोटोग्राफी कर रहे हैं. उस दौर में एक फोटो के 15 रुपए लिए जाते थे, जो आम लोगों के लिए बहुत बड़ी रकम थी. इसी कारण गरीब लोग स्टूडियो के बाहर से ही लौट जाते थे. हालांकि उन दिनों में अशोक के पास भी अपना कैमरा नहीं था, लेकिन उन दिनों में ही अशोक ने सोच लिया था कि जिस दिन उनके पास अपना कैमरा होगा, वे गरीबों की मुफ्त में तस्वीरें खीचेंगे और आज वे 25 साल से ऐसे लोगों के लिए फ्री फोटोग्राफी कर रहे हैं.